ज्ञानवापीप शृंगार गौरी वाद बरकरार रखने पर सवाल उठाने वाली याचिका खारिज, सुनवाई जारी रहेगी●
वाराणसी की जिला अदालत ने सोमवार को ज्ञानवापी शृंगार गौरी मामले की पोषणीयता पर सवाल उठाने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी।
मुस्लिम पक्ष ने अदालत के इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है।
हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने बताया कि जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने मामले की पोषणीयता पर सवाल उठाने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनवाई जारी रखने का निर्णय किया।
अदालत में मौजूद एक वकील ने बताया कि जिला न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वादियों और उनके अधिवक्ताओं समेत 32 लोगों की मौजूदगी में 26 पन्नों का आदेश 10 मिनट के अंदर पढ़कर सुनाया।
अदालत ने गत 24 अगस्त को इस मामले में अपना आदेश 12 सितंबर तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।
मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि जिला अदालत के इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में पांच महिलाओं ने याचिका दायर कर हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति मांगी थी, जिनके विग्रह ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं।
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ संपत्ति बताते हुए कहा था कि मामला सुनवाई योग्य नहीं है। मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।
जिला जज ने अपने आदेश में कहा, 'दलीलों और विश्लेषण के मद्देनजर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह मामला उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991, वक्फ अधिनियम 1995 और उप्र श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 तथा बचाव पक्ष संख्या 4 (अंजुमन इंतजामिया) द्वारा दाखिल याचिका 35 सी के तहत वर्जित नहीं गया है, लिहाजा इसे निरस्त किया जाता है।' अदालत के यह फैसला सुनाने के बाद कुछ लोग सड़कों पर आ गये और मिठाइयां बांटकर खुशियां मनायीं।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत 20 मई को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका को मामले की जटिलता के मद्देनजर वाराणसी के सिविल न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत से जिला न्यायाधीश, वाराणसी की अदालत में हस्तांतरित कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि अच्छा होगा यदि इस मामले की सुनवाई 25-30 वर्ष का अनुभव रखने वाले किसी वरिष्ठ न्यायाधीश से कराई जाये। कराने के आदेश दिये थे।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा था कि वह सिविल जज की योग्यता को कमतर नहीं आंक रही है, मगर इस मामले की पेचीदगी को देखते हुए यह बेहतर है कि कोई वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी इस मामले की सुनवाई करे।
इसके बाद इस मामले को जिला न्यायाधीश ए के विश्वेश की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था।
अदालत के निर्णय सुनाये जाने की संवेदनशीलता के मद्देनजर वाराणसी जिला प्रशासन ने धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी थी और सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किये थे।