Monday 12 September 2022

ज्ञानवापी /अदालत

 ज्ञानवापीप शृंगार गौरी वाद बरकरार रखने पर सवाल उठाने वाली याचिका खारिज, सुनवाई जारी रहेगी●

            वाराणसी की जिला अदालत ने सोमवार को ज्ञानवापी शृंगार गौरी मामले की पोषणीयता पर सवाल उठाने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी।


मुस्लिम पक्ष ने अदालत के इस फैसले को उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है।


हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने बताया कि जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने मामले की पोषणीयता पर सवाल उठाने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनवाई जारी रखने का निर्णय किया।


अदालत में मौजूद एक वकील ने बताया कि जिला न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वादियों और उनके अधिवक्‍ताओं समेत 32 लोगों की मौजूदगी में 26 पन्‍नों का आदेश 10 मिनट के अंदर पढ़कर सुनाया।


अदालत ने गत 24 अगस्‍त को इस मामले में अपना आदेश 12 सितंबर तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।


मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि जिला अदालत के इस निर्णय को उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी जाएगी।


उल्लेखनीय है कि इस मामले में पांच महिलाओं ने याचिका दायर कर हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति मांगी थी, जिनके विग्रह ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं।


अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ संपत्ति बताते हुए कहा था कि मामला सुनवाई योग्य नहीं है। मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।


जिला जज ने अपने आदेश में कहा, 'दलीलों और विश्‍लेषण के मद्देनजर मैं इस निष्‍कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह मामला उपासना स्‍थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991, वक्‍फ अधिनियम 1995 और उप्र श्री काशी विश्‍वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 तथा बचाव पक्ष संख्‍या 4 (अंजुमन इंतजामिया) द्वारा दाखिल याचिका 35 सी के तहत वर्जित नहीं गया है, लिहाजा इसे निरस्‍त किया जाता है।' अदालत के यह फैसला सुनाने के बाद कुछ लोग सड़कों पर आ गये और मिठाइयां बांटकर खुशियां मनायीं।


गौरतलब है कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने गत 20 मई को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका को मामले की जटिलता के मद्देनजर वाराणसी के सिविल न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत से जिला न्यायाधीश, वाराणसी की अदालत में हस्तांतरित कर दिया था।


शीर्ष अदालत ने कहा था कि अच्छा होगा यदि इस मामले की सुनवाई 25-30 वर्ष का अनुभव रखने वाले किसी वरिष्‍ठ न्यायाधीश से कराई जाये। कराने के आदेश दिये थे।


न्‍यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्‍यायमूर्ति सूर्य कांत और न्‍यायमूर्ति पी एस नरसिम्‍हा की पीठ ने कहा था कि वह सिविल जज की योग्‍यता को कमतर नहीं आंक रही है, मगर इस मामले की पेचीदगी को देखते हुए यह बेहतर है कि कोई वरिष्‍ठ न्‍यायिक अधिकारी इस मामले की सुनवाई करे।


इसके बाद इस मामले को जिला न्‍यायाधीश ए के विश्‍वेश की अदालत में स्‍थानांतरित कर दिया गया था।


अदालत के निर्णय सुनाये जाने की संवेदनशीलता के मद्देनजर वाराणसी जिला प्रशासन ने धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी थी और सुरक्षा के कड़े बंदोबस्‍त किये थे।

Sunday 11 September 2022

केरल:सिकुड़ती जा रही है वेम्बनाड झील■

        पश्चिम बंगाल में सुंदरबन के बाद भारत में दूसरी सबसे बड़ी आर्द्रभूमि (वेटलैंड) वेम्बनाड झील धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही है। लगभग 20 साल पहले इसे ‘रामसर’ स्थल के रूप में घोषित किया गया था और अब इसकी अनूठी जैव विविधता खतरे में है।


कुट्टनाड के किसानों और मछुआरों के समुदाय के लिए यह झील आजीविका का एक स्रोत है। इसके किनारों पर अनधिकृत निर्माण और प्रदूषण के कारण पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव जारी हैं। विशेषज्ञों ने आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए ‘‘प्रतिबद्ध प्रयास’’ करने का आह्वान किया है।


इस झील का क्षेत्र धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है और यह लगभग दो हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली है तथा इसकी लंबाई लगभग 96 किलोमीटर है। यह झील केरल की सबसे बड़ी और देश की सबसे लंबी झीलों में से एक है। यह अलप्पुझा, कोट्टायम और एर्नाकुलम तीन जिलों से घिरी है।


पारिस्थितिकी विशेषज्ञों और वर्षों से किए गए विभिन्न अध्ययनों के अनुसार बार-बार आने वाली बाढ़, बढ़ते प्रदूषण, जल प्रसार क्षेत्र में कमी और खरपतवार वृद्धि के कारण झील गंभीर पर्यावरणीय क्षरण का सामना कर रही है।


आर्द्रभूमि पर राष्ट्रीय समिति के सदस्य और जल संसाधन विकास और प्रबंधन केंद्र (सीडब्ल्यूआरडीएम) के एक पूर्व निदेशक ई. जे. जेम्स का मानना है कि राज्य सरकार जो कदम उठाने का दावा करती है, वे केवल कागजों तक ही सीमित रहते हैं और जमीनी स्तर पर इन्हें लागू नहीं किया जाता है।


हाल में जब सदन में इस मुद्दे को उठाया गया था, तब मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा था कि राजस्व, सर्वेक्षण और स्थानीय स्वशासन विभाग अतिक्रमणों का पता लगाने और उन्हें हटाने और झील की सीमाओं का सीमांकन करने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं।


विजयन ने कहा था कि झील के पुनरुद्धार में मछुआरों और किसानों सहित स्थानीय समुदायों की भागीदारी आवश्यक है।


जेम्स उस विशेषज्ञ समिति का हिस्सा थे, जिसने वेम्बनाड को ‘रामसर’ स्थल घोषित करने पर जोर दिया था।


उन्होंने कहा कि झील के समक्ष आने वाले पारिस्थितिक क्षय के खतरे का समाधान उतना आसान नहीं है, जितना कि थन्नीरमुकोम बांध में गाद जमा होने से रोकने के लिए अतिक्रमण हटाना या बाहरी बांध बनाना था।


उन्होंने दावा किया, ‘‘इसे रामसर स्थल घोषित किए जाने के बाद, आर्द्रभूमि प्रणाली की रक्षा या वहां पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए शायद ही कुछ किया गया है।’’


अलप्पुझा से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सांसद ए. एम. आरिफ ने कहा कि झील को रामसर स्थल घोषित करने के बाद इसकी सुरक्षा या संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘सब कुछ राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया है। राज्य सरकार कदम उठा रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। झील के संरक्षण के संबंध में कई परियोजनाओं की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया है।’’


जेम्स ने कहा झील का प्रबंधन इस तरह से किया जाना चाहिए कि कृषि और मत्स्य पालन दोनों क्षेत्र एक दूसरे के पूरक हो सकें।

17 सितंबर: तेलंगाना का ‘रशोमोन’ आंदोलन,


           जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा की प्रसिद्ध फिल्म ‘रशोमोन’ की तरह हैदराबाद रियासत के वर्ष 1948 में भारतीय संघ में शामिल होने के दिन 17 सितंबर की तेलंगाना में अलग-अलग पार्टियों द्वारा अलग-अलग व्याख्या की गई है।


भाजपा के लिए यह ‘तेलंगाना मुक्ति दिवस’ है, जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार ने इस साल इस दिन को ‘तेलंगाना राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है।


भाकपा 17 सितंबर को वामपंथियों के नेतृत्व में ‘तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष’ की सफल परिणति के रूप में मनाती है। भाकपा का कहना है कि इसने निजाम को हैदराबाद राज्य को भारतीय संघ में विलय करने के लिए मजबूर किया।


केंद्र ने हाल ही में हैदराबाद रियासत के मुक्त होने के 75 साल पूरे होने के अवसर पर सालभर चलने वाले समारोहों का आयोजन करने का निर्णय लिया है।


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 17 सितंबर को हैदराबाद में उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।


निजाम शासन के अधीन रहे हैदराबाद राज्य का 17 सितंबर, 1948 को पुलिस कार्रवाई के बाद भारत संघ में विलय हो गया था। इस कार्रवाई का कोड नाम था ‘ऑपरेशन पोलो’।


तत्कालीन हैदराबाद राज्य में तेलंगाना के अलावा वर्तमान महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्से शामिल थे।


भाजपा कई वर्षों से मांग कर रही है कि राज्य सरकार इस दिन को आधिकारिक रूप से मनाए।


भगवा पार्टी ने बताया कि महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकारें उन जिलों में इस दिन को मनाती हैं, जो निजाम राज्य का हिस्सा थे।


भाजपा प्रवक्ता कृष्णा सागर राव ने ’पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जब भारत को आजादी मिली, तो ऐसा क्यों है कि हैदराबाद के निजाम भारतीय संघ में शामिल नहीं हुए, जबकि अन्य सभी रियासतों ने विलय को स्वीकार किया।’’


उन्होंने कहा कि यह निश्चित रूप से एक 'मुक्ति' है, क्योंकि हैदराबाद रियासत में सेना को उतरना पड़ा था।


मुनुगोड़े में पिछले महीने एक जनसभा को संबोधित करते हुए शाह ने आरोप लगाया था कि टीआरएस सरकार 17 सितंबर को मुक्ति दिवस के रूप में नहीं मना रही है जैसा कि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले एआईएमआईएम के ‘डर’ के कारण वादा किया गया था।


ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने तीन सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा था कि इस दिवस के लिए मुक्ति की बजाय ‘राष्ट्र एकता दिवस’ वाक्यांश का इस्तेमाल किया जाए।


भाकपा के राज्य सचिव कुनामनेनी संबाशिव राव ने आरोप लगाया कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस घटना को ‘एक मुस्लिम शासक से मुक्ति’ के रूप में वर्णित करके सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 17 सितंबर को ‘विलय दिवस’ के रूप में याद किया जाना चाहिए।