Tuesday 9 August 2016

#comentry on indian political system

#पत्रकार/ पत्रकारिता में कैसे-कैसे जीव -जंतु होते हैं ,इसका एक किस्सा याद आ रहा है । झारखण्ड  राज्यपाल प्रभात कुमार को पलामू आना था ,स्वाभाविक तौर पर उनके कार्यक्रमों को कवरेज लिए जिला प्रशासन ने विशेष "पास" स्थानीय संवाददाताओं को निर्गत किया था और इसके सहारे जब पत्रकारों ने 'समाचार संकलन' शुरू किये ,तब राज्यपाल के सुरक्षाकर्मियों के साथ पलामू पुलिस  असहयोगात्मक रुख अर्थात दुर्व्यहार वाला था । 
 बाद में कार्यक्रम वाले दिन शाम को पत्रकारों ने इसकी शिकायत जिलाधीश सियाराम चरण सिन्हा से करने को तय किया ,सो उस संध्या को निश्चित समय  हम पत्रकार उपयुक्त के आवास पर पंहुचे और उनसे स्व. महेंद्रनाथ त्रिपाठी एवं देवव्रत जी ने कहना शुरू किये कि आपके 'पास'  का तौहीन करते हुए पुलिस अफसर और  मातहत सुरक्षा बल  हमें बेइज्जत किया है ,इससे हम क्षुब्ध हैं ,इसलिए इसके विरुद्ध कार्रवाई किया जाये ! 
 यह सुनना था कि अचानक हमारे बीच चुपके से बैठ गए पत्रकार वासुदेव तिवारी ने हाथ जोड़ते हुए तपाक से  बोले कि " इस शिकायत से  मुझे अलग समझा जाए " अर्थात मेरी कोई शिकायत कवरेज को लेकर नहीं है । 
 यह मुझे काफी नागवार सा प्रतीत हुआ और अप्रत्याशित ढंग से तिवारी को संबोधित करते हुए मेरे मुख से  यह शब्द निकल पड़े 'गेट आउट फ्रॉम हियर ' तिवारी मेरे पीछे वाली कतार में बैठे थे ,मेरे अचानक बोल पड़ने से काफी देर तक चैम्बर में ख़ामोशी छायी रही ,फिर त्रिपाठी एवं अन्य मौजूद साथी पत्रकारो ने मुझे पुचकारते हुए मेरे गुस्से को शांत करने के  यत्न करने लगे । 
 फिर थोड़ी देर बाद तिवारी जी  उपायुक्त को यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि ' सर चैम्बर आपका और मुझे निकलने की धमकी दूसरे  दे रहे हैं और आप चुप हैं 'इसपर जिलाधीश मुस्करा भर दिए --

#बसपा/ मायावती को यह नहीं भूलना चाहिए कि एक भाजपाई (दयाशंकर सिंह) ने उनको गाली दी ,लेकिन दूसरे भाजपाई (राजनाथ सिंह) ने उनकी अस्मत लूटने से रक्षा की थी ! याद है ,गेस्ट हाउस कांड ,इसलिए महाकवि रहिमन का यह दोहा बसपा को सदा स्मरण रखना चाहिए -"रहिमन धागा प्रेम का ,मत तोड़ो चटकाये ,टूटे तो फिर न जुड़े ,जुड़े पर  गांठ पड़  जाये " 

#सलमानखान / फिल्म स्टार सलमान खान एवं अन्य सिने कलाकार को चिंकारा शिकार में रिहा होने का मतलब है ,अभियोजन एवं न्यायिक प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है ! 

#कूटनीति/ भारत की #कश्मीर अर्थात #पाकिस्तान नीति में बहुत जल्द गुणात्मक बदलाव के आसार हैं ! 

#कांग्रेस /कांग्रेसियों के खेल देखिये -छत्तीसगढ़ में भाजपा से पैसे लेकर कमजोर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारते हैं ,तो राहुल गाँधी गुजरात में जाकर फर्जी माँ से मिलते हैं ,है न मानसिक ढीलापन का बेजोड़ नमूना  --

#system /राजशाही में अर्थात एकतंत्र में अर्थात अधिनायकवादी सत्ता में सिर्फ और सिर्फ एक शख्स की "रंगदारी" को लोग झेलते हैं ,लेकिन हमारे देश की मौजूदा लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में तक़रीबन 4000 सामन्तों (सांसद /विधायक/विधान पार्षद)की रंगदारी से आम लोगों को गुजरना पड़ता है ! 

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर-कांग्रेस के छात्र इकाई के नेता नौशाद आलम हैं ,आज मिलते ही करने लगे सदर अस्पताल के डॉक्टरों की शिकायत ,कहने लगे देखिये न संजय भैया , कल हम बहन को मौसमी बुखार के इलाज वास्ते अस्पताल गए ,तब बगैर जाँच किये ही चिकित्सक ने तीन हज़ार के दवा लिख दी और वह भी बाहर  से खरीदने के लिए ! क्या जमाना आ गया -----
#आमआदमीपार्टी / #आप में पागलों की जमात है अर्थात यथार्थवादी व्यवस्था से लड़ने वाले समूहों की शरण स्थली है ,फिर कैसे कोई इससे झूझ सकता है ! पंजाब में अगले विधान सभा के चुनाव में इसी का परीक्षण  होने जा रहा है । 

उनने आज गिफ्ट में अचानक मोबाइल थमा दिए ,एक नहीं ,बल्कि दो -दो ,एक हजार का तो दूसरा लाख का ,साथ ही इस हिदायत के साथ कि अब आप घर पर रहेगे ,बाहर बहुत जरूरी हुआ तब ही निकलेंगे ,और हाँ ब्रांडबैंड का बीएसएनएल कनेक्शन ख़त्म कर दें ,इसमें अनावश्यक पैसा खर्च होता है ,अब मैं उनको कैसे बताऊँ कि इस सांसारिक दुनिया में मुझे मन लगता नहीं। अगर मैं रुक गया ,तब मुझे वह खो देंगी !  

#झारखण्ड/ आखिर मुख्य मंत्री रघुबर दास गत राज्य सभा के चुनाव में मतदान के ३६ घंटे पहले कांग्रेस के विधायक निर्मला देवी के आवास पर क्या करने पहुंचे थे ? क्या योगेंद्र साव के साथ काफी याराना था ,या फिर तैलिकवाद का जश्न था या कहें वणिकवाद की घनिष्ठता का अलख जगाने गए थे !

#झारखण्ड/ #कांग्रेस को राज्य में फक्र होना चाहिए कि उसके पास योगेंद्र साव जैसे संघर्षशील नेता मौजूद हैं ,जिसने जात -पात से परे विगत राज्य सभा के चुनाव में भूमिका निभाई ,ध्यान रहे साव और रघुबर दास स्वजातीय है ,फिर भी राजनीती की दिशा इनके बीच विपरीत है ,इसका दिग्दर्शन उक्त चुनाव में हुआ ,इसका कांग्रेसियों को भरपूर स्वागत करना चाहिए । 

#झारखण्ड/ मात्र छह दिन में विधान सभा की मानसून सत्र समाप्त हो गई । कोई बहस नहीं -- क्या लोकतान्त्रिक दृश्य है ? 

#कांग्रेस /इस राजनैतिक दाल का उत्थान गुजरात से होगा और --

उनने मेरे हाथ में 'झुनझुना' तो थमा दी, मगर यह मेरे लिए जी-का जंजाल प्रतीत सा  है ,देखिये आज मैंने उसके जरिये अपने दिल अजीज को सबसे पहले 'नमस्ते' किया ,फिर एक news item को भेजने में इतनी परेशानी हुई कि मत पूछिये ,मेरे ब्यूरो ने बार-बार मेरे लिखे शब्द को ताड लिया ,जो उन्हें रुक -रुक मिल रहा था ,सो ब्यूरो ने कॉल करके मुझसे समाचार की ब्रीफ ली । हम ठहरे डेस्क/लैप टॉप के माध्यम से काम करने वाले ,इस स्मार्ट फोन तो सिरदर्द लग रहा ! बेटी यह जानकार हँसते हुए कहती है ,प्रैक्टिस कीजिये पापा ,सब सिख जाएंगे ,--

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर- #खासमहल भूमि के पट्टे को लेकर नवीनीकरण का मामला यथार्थ में राज्य सरकार की भूमिका जमींदार जैसी है ,जब पूर्व में पट्टे का नवीनीकरण एक बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार हो चूका है ,तब फिर से सलामी कैसी ? 

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर- #खासमहल के जमीन पर लोग पौने दो साल से वैध तरीके से काबिज है , फिर इनको सलामी के जरिये भारी भरकम "टैक्स" वसूलने के लिए सरकार / प्रशासन का दबाव क्यों ,जैसे पहले आसान प्रक्रिया से पट्टे का नवीनीनकरण होता था ,वैसे ही प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई जा रही ! 

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर - #खासमहल की भूमि को लेकर इस शहर  नहीं ,बल्कि राज्य  अन्य शहर के  लोग भी   वर्षों  परेशान हैं, लेकिन सरकार अर्थात विधायकगण अर्थात सत्ता में आसिन्न नेता/अफसर  इस मुद्दे को समझने  लिए तैयार ही  नहीं हैं ! 

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर #खासमहल की भूमि को दिल्ली ,मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ समेत छह राज्यों में  'फ्री होल्ड  ' काफी पहले कर दिया गया है ,फिर यहाँ वैसा करने में क्या दिक्कत है ? 

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर - #खासमहल जैसे ही प्रकृति  को जमशेदपुर में अपने मुख्य मंत्रित्व काल में अर्जुन मुंडा ने रियायती दर पर 'टाटा कंपनी' के जमीन को सहज ढंग से नवीनीकरण कर दिया और राज्य के लोगों के लिए वही मंहगे सलामी को रहने दिया था ,इस मुद्दे पर मैंने जब मेदिनीनगर दौरे पर आए मुंडा से जवाब -तलब की थी ,तब उनकी घिग्घी बध गई थी । इस दिलचस्प  कहानी को फिर कभी बताऊंगा ,मौके पर जिले के कई वरिष्ठ भाजपाई ,अफसर ,विधायक और राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह मौजूद थे ,तबतक इंतजार कीजिये --

#झारखण्ड/ मेदिनीनगर - #खासमहल जमीन के नवीनीकरण नहीं होने से लोगों को बैंक से कर्ज नहीं मिल रहे, घरों के नक्शा पारित नहीं हो रहे हैं , घर/जमीन न तो ख़रीदा जा रहा और न ही बेचा  जा रहा ,व्यापार/कारोबार प्रायः ठप्प हैं ,शादी/ब्याह में भी दिक्कत है ,फिर भी सरकार इसकी गंभीरता को समझ नहीं रही ! 

 " तो क्या शहर में हवाई अड्डा बनाने की योजना है या सैनिक छावनी में खासमहल की भूमि में बसे नगरों को तब्दील करने पर सरकार विचार कर रही ।" 
 "नहीं, नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है ,लीज की शर्तों को हमने सभी के लिए आसान कर दिया है "
 सवाल मेरे थे और जवाब तत्कालीन मुख्य मंत्री अर्जुन मुंडा के थे । यह बात उस दौर का है ,जब मुंडा अपने तीसरे मुख्य मंत्रित्व काल में #डालटनगंज  आये थे ,इस दौरे के पखवारे भर पहले उनकी सरकार  ने जमशेदपुर में टाटा कंपनी के लीज अर्थात [पटटे को रियायती दर पर आसानी से रिन्यूल अर्थात नवीनीकर कर दिया था ,लेकिन अन्य शहरों के बारे में कोई रियायत नहीं थी । 
  स्थानीय परिसदन में मुंडा प्रेस प्रतिनिधियों से मुखातिब थे ,इनके आजू - बाजू तत्कालीन उपायुक्त पूजा सिंघल और वर्तमान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा बैठी थी । मुख्य मंत्री विकास के बाबत लंबी -चौड़ी जानकारी पत्रकारों को दे रहे थे और संवाददातागण चुप चाप नोट कर रहे थे ,किसी ने सामयिक मुद्दे पर कोई प्रश्न नहीं पूछ रहे थे ,गोया जैसे मुंडा हमारे बॉस हो । 
 तभी मैंने मुंडा को रोकते हुए खासमहल नवनीकरण पर सीधे सवाल किया ,"मुंडाजी आपने टाटा के जमीन को आसानी से नवीनीकरण कर दिया ,फिर अन्य नागरिकों के मामले में कोई कदम नहीं उठाया ,क्यों ? "
मुंडा - आपके लिए भी तो हमने निर्धारित रकम के दो और पांच फीसदी के भुगतान पर रिन्यूल करने का आदेश दे दिया है । 
सवाल - आप झूठ बोल रहे हैं ,क्या कोई उक्त प्रतिशत की राशि दे पायेगा ?पहले की तरह नवीनीकरण किये जाने के हुक्म क्यों नहीं देते ? क्या सरकार जमींदार हो गई है ? लोकतान्त्रिक व्यवस्था में  सलामी कैसी ? 
  इसके बाद आस-पास के माहौल में अचानक सन्नाटा छा गई ,निगाहे मेरी ओर उपस्थित अफसर,नेता एवं अन्य की मेरी तरफ घूम गई और फिर मुंडा यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि "सब तो कर ही दिया है " अर्थात भनभनाते ,बड़बड़ाते हुए चलने के लिए खड़े हो गए । 
   बाद में मुंडा के जाने पर कई नामी -गिरामी भाजपाई मुझे लगे बधाई देने कि सच्चाई को आपने ही सामने रखा ,लेकिन मैं सोच रहा था कि क्या वास्तव में  भाजपा में मरे हुए लोग हैं ,जो अपने नेता अर्थात मुख्य मंत्री को वस्तु स्थिति बताने से भी डरते हैं !  

प्रतिपक्ष को कब समझ में आएगा कि हिन्दू कर्म-कांडो की आलोचना करके कभी भी वे अब भारतीय सामाजिक/राजनैतिक तौर पर भाजपा अर्थात नरेंद्र मोदी को मात नहीं दे सकते ! #शरद यादव/ #शरद पवार के पिछले दो दिनों  के बयानों पर गौर करे --
 
#हिंदुत्व को अब गाली देकर कोई भी भारतीय राज व्यवस्था में काबिज नहीं हो सकता !

#दिराष्ट का सिंद्धान्त आज के भारतीय के जेहन में उतर गई है कि कैसे #पाकिस्तान अस्तित्व में आया ! अर्थात बना । 

#हिंदुत्व को आप जितना गाली दें ,आलोचना करें ,इससे आरएसएस ,भाजपा और धुर दक्षिणपंथी तत्व ही मजबूत होंगे ! 

जहां तक मेरी दृष्टि जा रही है ,वहां तक देख रहा हूँ कि #नरेंद्र मोदी का राष्टीय फलक में निकट भविष्य में कोई विकल्प नहीं है ! हाँ ,यह हो सकता है कि राज्यों में #भाजपा खत्म हो जाये ! 

#विकास चाहिए ,तब #पूंजीवाद को गले लगाना ही होगा । 

#झारखण्ड में अराजकता इसलिए है कि मुख्य मंत्री #रघुबर दास के पास अपनी कोई मौलिक दृष्टि अर्थात विचार नहीं है ! 

एक बात जो करीने से साफ है ,जो गहराई #लालकृष्णआडवाणी और #अटलबिहारीबाजपेयी में कभी दिखती थी ,वह #नरेन्द्रमोदी में  परिलक्षित नहीं होती ,क्यों ? 

 #जो मित्र , #उत्तरप्रदेश के अगले विधान सभा के चुनाव में दिलचस्पी रखते हैं, उनको मेरा मशवरा है कि पिछले विधान सभा के चुनाव(२०१२) से जुडी मेरे पोस्ट का अध्ययन कर लें ,तब इसबार काफी मजा आएगा !
 

Saturday 23 July 2016

#comentry on indian political syastem

लोकतान्त्रिक व्यवस्था "खीझ" पैदा करने वाली सत्ता है ,लेकिन मुश्किल है कि इससे बेहतर कोई  आविष्कार भी तो नहीं हो सका  है दुनिया में अबतक ! 

# प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश में सक्रिय रूप से चुनावी समर में भाग लेने का मतलब है ,भाजपा के लिए सिरदर्द पैदा होना ! मौटे तौर पर भाजपा और कांग्रेस के वोट बैंक एक ही हैं ,फिर खाते -पीते -अघाते परिवारों के युवा समाज में राजनीती का अर्थ 'ग्लैमर' के साथ होने में सौभाग्य समझने की प्रवृति का होना है --
झारखण्ड में प्रशासन की कार्य पद्धति देखिये- कांग्रेस के विधायक देवेन्द्र कुमार सिंह के कथित माओवादी से बातचीत को लेकर उनपर दबिश पुलिस की  इतना बढ़ी कि वह राज्य सभा के चुनाव में वोट नहीं दे सके ,यह चुनाव ख़त्म क्या हुआ ,प्रशासन भी खामोश हो गया ,दूसरी तरफ ताला मरांडी के बेटे मुन्ना मरांडी पर दुष्कर्म के आरोप लगे और नाबालिग से शादी करने की बात हुई और प्रशासन के कच्छप चाल को देखिये , क्या यह सब सरकार के इशारे नहीं हैं ? 

कल  की ही बात है, देर रात घर पहुंचा ,तब बेटा ने चिंहुकते हुए बोला ,पापा -पापा , गुलु अंकल का फोन आया था , मैंने पूछा ,क्या बात है ,उसने कहा, आपसे ही जरूरी बात करने के लिए बोल रहे थे , बात बेसिक फोन पर करने के लिए कहे हैं । 
ठीक है , यह कहकर खाना वगैरह खा-पीकर मैं बिस्तर पर लेट गया , रात को वैसे भी मुझे नींद नहीं आती ,लेकिन कल कैसे झपकी आ गई ,पता ही नहीं चला , फिर अचानक रात दो बजे के करीब लैंड लाइन पर फोन की घंटी घनघना उठी ,इस बार बेटी ने फोन उठाया और मुझे आवाज दी -पापा गुलु पापा फोन है , अन्मयस्क मन से फोन का रिसीवर जैसे ही कान  से लगाया ,उधर से धीर-गंभीर आवाज आई -संजय तुम जल्दी से लखनऊ पहुंचो ,तुझसे जरूरी बात 'नेताजी' को करना है ,अरे हाँ अगर वहां नहीं पहुँच सके तो, बनारस आ जाओ ,यहाँ से लखनऊ साथ चलेंगे , मैंने पूछा ,क्या बात है भैया जी ,तो उन्होंने कहा कि 'तुम्हारी जरूरत है ,लाखों रुपए मिलेंगे और अगर  जीत गए ,तब तो पूछना ही क्या ?'
 यह सुनना था कि मैं समझ गया ,आगे गुलु भैया ने कहा कि झारखण्ड में क्या रख है ,यही आकर 'राजनैतिक रणनीतिक प्रचारात्मक भूमिका में आकर काम करो ,तुम्हारी पोस्ट को ध्यान से हमलोग पढ़ते हैं ,नेताजी तुमसे प्रभावित हैं ,मिलना चाहते हैं ' मैंने जवाब दिया ,सोचकर बताएंगे । 
 वैसे मित्रों आपको बता दूँ कि गुलु भैया मेरे फुफेरा भाई हैं अर्थात मेरी बुआ बनारस की है और भाई  एक खास नेता के विशेष सचिव हैं । 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ताबड़ -तोड़ विदेश दौरे का अर्थ है ,दुनिया के देशों को अपने नजरिए से आंक लेना ,ताकि भारत जब भविष्य में अपने राष्टीय हितों को साधने के लिए कूटनीतिक क्षेत्रों में कठोर कदम उठाये ,तब दुश्मनों की तायदाद कम और मित्रों की संख्या अधिक हो ! 

" किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार,,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ,
रिश्ता दिल से दिल के एतबार का , 
हमी से जिन्दा है नाम प्यार का , 
मरकर भी याद आएंगें ,
किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे ,
जीना इसी का नाम है " 

जिस नेता में "मौलिकता" का अभाव हो, वह और उसका दल थोड़े समय के लिए लोगों को दिग्भ्रमित कर सकता है ,लेकिन स्थायित्व का वह मोहताज ही रहेंगे  ! 

मुझे भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी में जर्मन एकीकरण के नायक "बिस्मार्क" का दिग्दर्शन होता है ,यह काफी कुछ वैसा ही है ,जैसे कांग्रेसियों को  प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी के दर्शन होते हैं ! 

जाकिर नाईक के विरूद्ध उनके  विचारों के अभिव्यक्तिकरण को लेकर भारतीय संविधान /कानून विशेष करवाई करने में प्रभावी नहीं हो सकता ,क्योंकि वह सीधे आतंकी गतिविधियों में सलग्न नहीं है ,बेहतर होता उनकी आय के स्रोतों एवं उसकी उपयोगिता को विधिक तरीके से जाँच किया जाये ! 

आपको याद है ,दस वर्ष पूर्व रूस में हिन्दू धर्म ग्रन्थ "गीता" को प्रतिबंधित कर दिया गया था सिर्फ इस आधार पर कि उसमे श्री कृष्ण के मुख से अधर्मियों को हिंसा के जरिये मार् डालने की बात थी अर्थात सन्दर्भ से हट कर रूसी सरकार ने भगवान श्रीकृष्ण को आतंकी एवं उनके विचारों को हिंसक मान लिया गया था ,अतएव ,जाकिर नाईक के भाषणों को भी सन्दर्भ से काटकर अध्ययन करेंगे ,तब तो वह भी दुनिया के सबसे बड़ा आतंकी दिखेगा ! 

आजकल दुनिया काफी असहिष्णु वातारवरण  में है , आपकी बात की कौन सी शब्द बखेड़ा कर देगा कहना मुश्किल है ,इसकी वजह शिक्षा में है ,जहाँ "वस्तुपरक" पढाई में सन्दर्भ के लिए कौई  जगह नहीं होती और लोग मानसिक दिवालियेपन के शिकार होने के लिए अभिशप्त हैं ! 

  उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मुश्किल यह है कि उसके पास मुलायम सिंह यादव/सपा और मायावती/बसपा के जोड़ के व्यापक जनाधार वाले नेता का घोर अभाव है ! 

# अच्छा होता ,कांग्रेस प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की जगह गुजरात में "लांच" करती ! अर्थात थोड़ा  और इंतजार --

उत्तर प्रदेश के मौजूदा स्थिति में शख्त शासक की आवश्यकता है और इसमें आजमाए गए नेताओं  में राजनाथ सिंह/भाजपा के अतिरिक्त मायावती /बसपा ही उपयुक्त प्रतीत हैं !

राजनीती में हैं तो किसी नेता अर्थात सांसद /विधायक/ मंत्री के चमचे बन जाएँ और अगर यह भी न हो सके तब, अरविन्द केजरीवाल जैसे पागल बन जाएँ ,मतलब अपने कार्यों के प्रति जीवटता का प्रदर्शन करें, सफलता आपके क़दमों को चूमेगी ! 

क्या यह सच है कि झारखण्ड के मुख्य मंत्री रघुबर दास से  राज्य के वरीय/ कनीय भाजपाई नेता/कार्यकर्ता मिलने - जुलने में कतराने लगे हैं अर्थात अपनी बात रखने से इसलिए खौफ खाते  हैं कि पत्ता नहीं वह कब ,किसे "बेइज्जत " कर दें !  अगर ऐसा तब तो ,यह गंभीर बात है । 

#शीला दीक्षित/ कांग्रेस लोगों को बेवकूफ बनाने एवं लोगों को तिकड़म से मोहने की कला को नहीं छोड़ती ,उसका  प्रदेश में उत्थान मुश्किल है ,देखिये अब शीला दीक्षित को राज्य के मुख्य बनाने का 'लालीपाप '  परोसने जा रही है ,वह दिल्ली की मुख्य मंत्री रह चुकी है और अब वहां से अपना वोटर लिस्ट से नाम हटवा कर यूपी के मतदाता सूची में जुडवाएंगी ! 
यह आम लोगों को बेवकूफ मानने की ही मानसिकता  है ,पहली बार मनमोहन सिंह को असम से राज्य सभा में कांग्रेस ने लाया था , उच्च सदन में तब 'राज्यवासी' को ही सदस्यता दिए जाने के प्रावधान थे , आपत्ति आने पर  की 'राजसत्ता' ने पूरी बाध्यकारी बंधन को ही हटा दिया ,तब से उच्च सदन राजनीती का खिलौना बनकर भर रह गया है । अर्थात नैतिक पतन --

# नरेंद्र मोदी/ देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी राजविज्ञानी हैं उनके चमचे नहीं ,तभी तो उत्तराखंड के बाद उच्च्तम न्यायालय ने अरूणाचल प्रदेश  में केंद्रीय सरकार को जबरदस्त झटका दिया है ! 

# ठुल्ला/ अरविन्द केजरीवाल के कहे शब्द "ठुल्ला" के अर्थ दिल्ली उच्च अदालत नहीं समझ पाई अर्थात  तलाश करने में विफल हो गई ,सो उसने केजरीवाल को उसके मतलब समझाने के लिए बुलाया है । है न दिलचस्प स्थिति ,
अदालत को अव्वल तो उसके  अर्थ  जानने के लिए 'भाषाविद'  का सहयोग लेना चाहिए था ,लेकिन खैर -उक्त शब्द से इसके अर्थ इस रूप में प्रतिध्वनित होते हैं -निककमा /विमूढ़ ! 

# सर्वोच्च न्यायालय / छह माह बाद अरूणाचल प्रदेश  के मामले में फैसले आने का क्या तुक है ? क्या अदालत उक्त अवधियों में घटित अर्थात समय को वापस ला  सकता है ! इससे से बेहतर उत्तराखंड उच्च अदालत ने त्वरित कार्यवाही पूरी करके के संविधान/राज्य/ कानून/ व्यवस्थापिका/लोगों को इंसाफ उपलब्ध कराने  में अप्रतिम कदम उठाकर योगदान दिए 

narendramodi@ लगता है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना 'डिजिटल इंडिया'  दम तोड़ने के कगार पर है ,पलामू एक बेहतर उदाहरण है ,जहाँ बीएसएनएल की सेवा २४ घंटे क्या ,हफ्ते /माह भर ठप्प रही है ! 

#कूटनीति / संयुक्त राज्य अमेरिका पहली बार पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए 'कश्मीर' को भारत का आंतरिक मामला करार दिया है । इससे साफ है कि विश्व राजनय में गुणात्मक परिवर्तन आ गए हैं ! 

#प्रियंका गांधी / प्रियंका गांधी का सार्वजनिक जीवन अर्थात राजनैतिक क्षेत्र में आगाज हो ,जीत के साथ ,इसलिए यूपी के आसन्न विधान सभा में इन्हें अपने ग्लैमरपूर्ण अर्थात चमक-दमक/लटके-झटके को बचा कर रखने की जरूरत है ! कांग्रेस का नेतृत्व इसे जितना जल्द समझ जाये ,उतना ,उसके भविष्य के लिए बेहतर है । 

#प्रशांत किशोर/ पहले मोदी ,फिर नीतीश के साथ चुनावी प्रचारात्मक रणनीतिक में कामयाबी पाकर वह कांग्रेस के साथ यूपी/पंजाब में फंस गए हैं । अपने "ब्रांड'  के उपयोगिता उनकी सही थी ,तब क्यों नहीं जदयू को राजद से अधिक सीट बिहार में दिलवा सके !  किशोर तो केवल नीतीश कुमार के लिए चुनावी ब्रांडिग कर रहे थे ,इसमें लालू/राजद तो शामिल नहीं थे ,फिर --ब्रांडिंग तभी चमकती  है जब पार्टी/नेता के प्रति लोगों में क्रेज/आकर्षण रहे ! 

#झारखण्ड/ राज्य में बाबूलाल मरांडी धीर-गंभीर नेता हैं ,जब इन्होने विगत राज्य सभा के चुनाव में हुए अनैतिक हरकत होने की बात मुख्य मंत्री रघुबर दास  और इनके राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के साथ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता पर चस्पा  की है ,तब यह गंभीर बात है । मामला सीडी में कैद टेप का है ,जिसका तकनीकी जाँच के बाद ही खुलासा हो पायेगा ,लेकिन दास कम से कम यह बताएं  कि मतदान के चौबीस घंटे पूर्व कांग्रेस विधायक निर्मला देवी के आवास पर क्यों और किसलिए गए थे ? 

#झारखण्ड/ क्या यह सच नहीं है कि झाविमो के नवीन जायसवाल और अलोक चौरसिया को " वैश्य-वैश्य " भाईचारे के चारा फेंक कर इनके जरिये अन्य चार विधायकों को तोडा गया था ? काफी कुछ कांग्रेस के विधायक निर्मला देवी को उनके पति योगेन्द्र साव के जरिये साधने की कोशिश राज्य सभा के चुनाव में उसी तर्ज़ पर की गई थी ! 

#प्यार/ मुझे आज दो व्यक्तियों  की याद बेहद आ रही है ,इनमे एक का नाम भानु प्रताप सिंह और दूसरे का राजेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ़ खोखन सिंह हैं ,जिसे मैं उनको चाचा कहा करता था । संयोग से दोनों अब इस दुनिया  में नहीं हैं ।  
 यह याद इसलिए महत्वपूर्ण है कि मेरे कदम डालटनगंज कचहरी में रखते ही इनकी दीवानगी मेरे प्रति देखते बनती थी , जिस दिन मैं कचहरी नहीं आ पता था ,उस दिन दोनों चाचा बिन पानी के मछली समान तड़पते थे ,जिसके प्रत्यक्षदर्शी नन्दलाल सिंह ,सुबोध सिन्हा सूर्यपत सिंह सहित कई वकील ,ताईद ,मुंशी के अतिरिक्त होटलों के मालिक एवं इनके कर्मचारी रहे हैं , साथ मैं कचहरी में बैठकबाजी करने वाले सामाजिक/राजनैतिक क्रियाविद भी इस परस्पर लगाव के साक्षी हैं । 
 उनके प्यार इस मायने में मेरे प्रति था कि जबतक मुझे दोनों भरपेट मिठाइयां नहीं खिला  लेते ,उनको चैन नहीं मिलता और घर/ कचहरी में नहीं मिल पाता ,तब शहर में खोजकर मुझे पंचमुहान स्थित नवप्रभात होटल में ले जाकर खिलते-पिलाते । इन दोनों में प्रतियोगिता इस रूप में रहती थी कि कौन संजय को ज्यादा मानता  अर्थात प्यार करता हैं । 
 दोनों दिवंगत चाचा मुझे नहीं पाने पर लोगों से मेरे बारे में पूछते रहते कि 'संजय आइल हव ' एक बार सूर्यपत सिंह ने भानु चाचा को कहे कि ' आप संजय को ही क्यों खोजते हैं ,जवाब था ,लइका हई ,जबकि उस वक्त भी मैं newsman था और आज भी newsman हूँ ,मगर उनके समाचार मेरे हाथ से कभी नहीं प्रसारित हुए और न ही उन्होंने कभी किसी समाचार के लिए जोर/दबाव दिए ,ऐसा इसलिए बता रहा हूँ कि दोनों अलग-अलग क्षेत्रों के राजनितिक प्राणी थे ,मगर मुझ पर इतना स्नेह वर्षा करते थे कि  क्या बताऊँ -भानु चाचा रोज आने वाले थे लेकिन खोखन चाचा सफ्ताह में दो -तिन बार कचहरी में आते थे और इनकी नजर में मैं क्या था ,इसे मैं आज तक नहीं जान सका हूँ ,दोनों को मेरा विनम्र श्रद्धांजलि --

#kashmir / मौजूदा काश्मीर के हालात उतने बिगड़े नहीं हैं ,जैसा कि पिछली सदी के अस्सी/नब्बे दशक में थी । आपको याद करा दूँ कि उस दौर में एक साथ पंजाब और कश्मीर में इतना जबरदस्त मारकाट /मुठभेड़ /विस्फोट विदेशी शक्तियों से प्रायोजित आतंक की छाया विधमान थी कि उसके प्रभाव में आम जन क्या ,विशिष्ट लोग क्या ,मिडिया भी दहशत के साये में दब्बूपन की शिकार हो गई थी और इसका उदाहरण है कि आतंकी को आतंकी नहीं ,बल्कि जंगजू और खाड़कू शब्द से विभूषित करने के लिए प्रेस/ अखबार अर्थात कहें मीडिया अभिशप्त थे तथा केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी ।  

#प्रियंकागांधी / उत्तर प्रदेश में आसन्न विधान सभा के चुनाव के पहले राहुल गांधी जगह प्रियंका गांधी के होर्डिंग/पोस्टर/बैनर/कटआउट के प्रदर्शन से क्या कांग्रेस खो चुकी प्रतिष्ठा / शक्ति में  कुछेक इजाफा कर पायेगी ! 

#कांग्रेस/ इंदिरा की पोती और राजीव की  बेटी प्रियंका गांधी को बचा कर सोनिया गांधी को रखने की जरूरत है ,इसका आगाज जीत के साथ होना चाहिए और गुजरात चुनाव में प्रियंका को पूरी शक्ति से कांग्रेस को झोंक देने  लिए अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए ,फिर देखिये राष्टीय राजनीती का पहिया कैसे तेजी से घूमता है है ! 

 #BJP /  भाजपा की क्या बदतमीजी है ? सुना आपने भाजपा  प्रादेशिक उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बसपा प्रमुख मायावती को "वैश्या" से तुलना की है ! 

#भाजपा/  भाजपा धुर दक्षिणपंथी तत्वों की सामूहिक पार्टी है ,इसमें "मंहगाई"  दर में वृद्धि होना स्वभाविक है ,याद है आपको बाजपेयी इरा में किरोसिन तेल के दामों में इजाफा एकाएक तीन रूपये से अठ्ठारह रूपये प्रति लीटर कर दिया गया था । 

" मेरे काशिद जब तू पहुंचे , 
मेरे दिलदार के आगे ,
अदब से सर झुकाना ,
हुस्न के सरकार के आगे ,
जुबां से गर कह न पाये तो , 
आँखों से बयां करना ,
मेरे गम का हरेक किस्सा ,
मेरे गमखार के आगे " 

#झारखण्ड / रघुबर राज की खुशकिस्मती है कि बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन दो छोर पर हैं और कहीं भाजपा के दुर्योग से दोनों में 'राजनैतिक मतैक्य' स्थापित हो गया ,तब राज्य की ईंट से ईंट बजा देने में इन दोनों का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ! 

दोनों भाई -बहन अपने लॉन में आपस में बॉलीवाल खेल रहे थे ,तभी बॉल छिटक कर वहां पहुंचा ,जहाँ मैं अपने मित्र के साथ गप्पे लड़ा रहा था और अचानक पास आई गेंद को मैंने बगैर सोचे-समझे एक किक जोरदार तरीके से जमा दिया ,जो सामने आती बहन के छाती में लग गया और वह भी इस तरह से कैच पकड़ी ,जैसे वह गोलकीपर सा चैम्पियन हो । 
 इस अप्रत्याशित घटना से मेरा दोस्त अकबका गया ,कहने लगा 'तू मुझे मरवा दिया ,नौकरी गई सो अलग ,मैं बर्बाद हो गया ' और मैं अवाक् सा रहने को विवश गया ,बीच बॉल लिए बहन सधे कदमों से धीरे-धीरे मेरे पास पहुंची और धीमा आवाज में यह बोलते हुए तेज़ी से घूम गई 'थैंक्स' । 
 यह सुनना था कि मेरे यार के चेहरे पर मुस्कराहट छा  गई और लंबे-लंबे सांस लेते हुए अपने काबिलियत के किस्से सुनाने लगा । 
  यह बात उस दौर की है ,जब हम तीन बिहारी आजीविका अर्जित करने के लिए दिल्ली में संघर्ष कर रहे थे । इस दरम्यान एक स्वैच्छिक संस्थान लिए एक स्टेनोग्राफर कम टाइपिस्ट लिए वेंकेंसी अखबार में निकली ,सो हम तीनों ने उसमे आवेदन डाल दिए । नियत दिन और नियत समय में  कुल छियालीस प्रतियोगियों ने उसमे शिरकत की ,जिसमे मैं फेल कर गया ,लेकिन उसमे उतने प्रतियोगियों में  मेरे दोस्त का चयन हो गया । यह अलग बात है कि बाद में मेरा चयन एक  वर्ल्ड न्यूज एजेंसी के 'सब एडिटर'  के रूप में हुआ । 
  बदलते समय के साथ मेरे मित्र की प्रतिनियुक्ति उस संस्थान से देश के बड़े राजनैतिक हस्ती के आवास पर हुई ,जहाँ मैं अक्सर उससे समय काटने जाया करता था । विशेष बाद में --

तैयार हो जाये ,वो मित्रगण ,जिन्होंने मेरे पोस्ट उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव   ( २०१२) में अध्ययन कर चुके  हों और अगर जिन दोस्तों को मेरे पोस्ट में दिलचस्पी है ,वे २०१२ पोस्ट पढ़ सकते हैं ,फिर बातें होंगी --

Tuesday 5 July 2016

commentry on indian political system



मेरा ख्याल है कि देश में १०१९ में नियत समय में लोक सभा के चुनाव नहीं होंगें और अगर हुआ भी तो ,उसमे भाजपा /नरेंद्र मोदी  की इच्छा पर होगी , जिसमे उनको विजयश्री मिल जाएगी ! ऐसा मानने की  वजह  'वर्तमान में विकासमान हो गई राजनीतिक प्रवृत्तियां हैं ' ! 

प्रचार की तकनीक अर्थात प्रविधि तभी काम करती है ,जब उसके नायक में खुद के बल जनमानस को समझने अर्थात जिनमे बुद्धि -विवेक होता है ,राजनैतिक क्षेत्र में इसके सुन्दर उदाहरण नरेंद्र मोदी हैं ,लेकिन क्या कांग्रेस नेतृत्व के साथ ऐसा है ? अकेले प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश में कैसे खोई जमीन को कांग्रेस के पास वापस दिला  पाएंगे ! 

कूटनीती /  अब ऊंट आया पहाड़ के नीचे ,वाली कहावत चीन के साथ चरितार्थ  रही है , इसकी विस्तारवादी नीति से उसके सभी पड़ोसियों के साथ तनाव है और अगर भारत समेत वियतनाम ,ताइवान,ब्रुनेई ,दक्षिण कोरिया,जापान , मलेशिया फिलीपींस वगैरह के युद्धक बमवर्षक एक साथ उसके आसमान में मंडराने लगे तब ,उसकी शक्ति कहाँ अधुनातन रहते टिक पायेगी ! 

कूटनीति/ अगर एनएसजी में भारत को जगह नहीं मिलेगी ,तब भी तो कोई चिंता नहीं है ,आखिर अमेरिका दिपक्षीय सबंध के आधार पर सब-कुछ देने के लिए तैयार है ,फिर चीन क्या कर लेगा ? उसकी रणनीति तो फेल हो जाएगी । ब्रिटेन ,फ़्रांस ,जर्मनी, आस्ट्रेलिया जैसे देश दिपक्षीय रिश्ते में उसे पहले ही अप्रासंगिक बन चुके हैं ! 

बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार कल मेदिनीनगर में आएंगे ,कुछ सोचिये इस आगमन के बाद झारखण्ड में कैसी आग भभकेगी ! 

उत्तर प्रदेश में अब समाजवादी पार्टी के दिन लदने वाले हैं ! 

चलिए - उत्तर प्रदेश में अगले विधान सभा के चुनाव में मुख्य मुकाबला बसपा और भाजपा के मध्य होने जा रही है ! 

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और राज्य मंत्री गिरिराज सिंह का परसों मेदिनीनगर में प्रेस कांफ्रेंस था ,स्वाभाविक था कि उसमे मैं भी शामिल था ,अचानक प्रेस से बातचीत करते  दोनों यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि अन्य कार्यक्रमों में भाग लेना है ,तभी मैंने गिरिराज जी की ओर मुखातिब होकर कहा कि दो मिनट थोड़ा बैठे , मेरे एक प्रश्न हैं ,यह इसलिए भी कि "  आप मोदी मंत्री परिषद में दिलचस्प item हैं ", लेकिन उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ते  हुए चल दिए कि छोडिए इसे, आपकी पार्टी फंड में दे दिया है । मेरी समझ में अबतक नहीं आ पाया है कि इसके क्या मतलब हैं ? दोनों मंत्री केंद्रीय सरकार के दो वरसों के उपलब्धियां बताने यहाँ आये हुए थे । 

 झारखण्ड/ बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने आज मेदिनीनगर में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही ,वह यह कि "लोकतान्त्रिक राज्य की मूल अवधारणा कल्याणकारी है ,इसलिए राजस्व चिंता छोड़कर अपने प्रान्त में शराबबंदी क्रियांविंत किया है ,अगर राज्य में बेहतर उद्योग धंधे-व्यापार के लिए स्थितियां हैं ,तब क्या ?सरकार को उत्पाद से मिलने वाली राजस्व से कई गुने टैक्स मिल जाएंगे " ! 

कूटनीति / चीन -पाकिस्तान को चाहिए कि भारतीय दर्शन में चाणक्य समेत यथा,रामायण,महाभारत जैसे मनीषा का अध्ययन करे ,अन्यथा नरेंद्र मोदी के हाथों बुरी तरह पिटे जायेंगे । मित्र राज्यों और शत्रु राज्यों से कैसे व्यव्हार किया जाता है ,वैसा विशद ज्ञान दुनिया में किसी शास्त्रों में नहीं है और यह रणनीतिक बातें भारतीय प्रधान मंत्री के जेहन में है ,फिर क्या होगा ,कल्पना कर सकते हैं ! 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के २१ विधायकों की सदस्यता ख़त्म हो भी जाती है ,तो क्या होगा ? अरविन्द केजरीवाल की सरकार के सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ,हाँ इतना हो सकता है कि भाजपा/ कांग्रेस के  लार टपकने लगेंगे  ! 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के २१ विधायकों की सदस्यता ख़त्म हो भी जाती है ,तो क्या होगा ? अरविन्द केजरीवाल की सरकार के सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ,हाँ इतना हो सकता है कि भाजपा/ कांग्रेस के  लार टपकने लगेंगे  ! 

दो रुपये की रकम खर्च करके राज्य सभा में पहुंचने का दावा करने वाले हरिवंश नारायण सिंह ,क्या बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के 'प्रेस सलाहकार' की भूमिका में हैं ? जैसा कि उन्होंने कल मेदिनीनगर में कुमार के भाषण के बाबत एक न्यूज एजेंसी द्वारा प्रसारित समाचार कथा पर मीन -मेख निकाला है ! सिंह जदयू के सौजन्य से संसद के उच्च सदन की सदस्यता हासिल की है । 

एनएसजी  (परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह) में अगर भारत सदस्यता हासिल नहीं कर पाता है ,तब यह विश्व व्यापी संगठन टूट जायेगा ! भारत को परवाह  भी नहीं है ,जैसा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की प्रवृति है । इसके बाद ,सुरक्षा और नि;शस्त्रीकरण के सवाल उभरेंगे और इसमें पहले सुरक्षा को प्राथमिकता दिए जाएंगे अथवा निशस्त्रीकरण को , इसपर दुनिया में बहस तेज़ हो जाएगी ! 

सुना आपने ,पाक सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ ने कल नागरिक सरकार के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के गैर हाजिरी में केंद्रीय मंत्रियों को अपने दफ्तर बुलाकर "क्लास " ली है ! 

अब दुनिया को साफ तौर पर लोकतान्त्रिक सत्ता और गैर जनतांत्रिक व्यवस्था में बंट कर कूटनीतिक रिश्ते स्थापित करने की दिशा में तेज़ी से  कदम बढ़ाने पर विचार करना चाहिए ! 

बाजपेयी इरा में सीटीबीटी (व्यापक परमाणु प्रतिषेध संधि) की चर्चा काफी तेज है और अब मोदी काल में एनपीटी पर बहस दुनिया में गर्म है ! कुछ आप समझ रहे हैं मित्रों--

झारखण्ड/ क्या आपको मालूम है कि रघुबर राज में एक स्वायत इकाई अर्थात राज्य बाल संरक्षण आयोग में मनोनीत सदस्य अदालत द्वारा फरार घोषित एवं कुर्की जब्ती के वारंट निर्गत अभियुक्त भी सदस्य हैं ? 
यह सदस्य कोई और नहीं ,लोजपा के प्रदेश प्रमुख बब्बन गुप्ता हैं ,जिनपर डालटनगंज रेलवे न्यायालय ने उक्त आदेश जारी किया है । मामला २००२ का है ,यह मामला फिलवक्त लबित है । 

उत्तर प्रदेश में  विधान सभा के चुनाव में भाजपा वही कहानी दोहराएगी ,जो उसने झारखण्ड/बिहार में कर चुकी है ! तब ,फिर !

झामुमो के नेता एवं पूर्व मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन ने "योग" को "भोग" कहकर इस आध्यात्मिक प्रक्रिया की खिल्ली उड़ाई है अर्थात तुकबन्दी में इशारा कर दिया है कि 'वह भोग को जानते हैं ,योग को नहीं ,अगर उनके भोगवादी  किस्से की चर्चा यहाँ शुरू कर दूँ ,तब ! 

गत लोक सभा के चुनाव के दौरान अर्थात २०१४ में अरहर दाल ४०/५० रूपये किलोग्राम थी ,मगर परिणाम आने के साथ  ही दो माह बाद से अबतक १२०/१४० रूपये किलोग्राम है ,यही कीमत चना में जानिए कि उस वक्त यह २५/३० और अब ७०/७५ रूपये किलोग्राम है । मोदी सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि 'भावनात्मक उद्वेग' की एक सीमा  होती है और हर भारतीय के लिए आहार की मंहगाई खास महत्त्व की होती है , ऐसे में अपना भविष्य सोच लेना चाहिए केंद्र सरकार अर्थात भाजपा नेतृतव को --

बसपा प्रमुख मायावती पैसे लेकर टिकट बेचती है ,यह इनके लिए नई बात नहीं है ,इसे सभी जानते हैं ,स्वामी प्रसाद मौर्य कोई नई खुलासा नहीं किये हैं ,जिससे चुनावी राजनीती में असर करता हो ! 

एनएसजी  में भारत को सदस्यता नहीं मिलने का मतलब है विश्व राजनय में अमेरिका का अपमान !   

युद्ध ,युद्ध युद्ध के लिए हम तैयार हो जाये,चीन  ने एनएसजी में भारत के प्रवेश को बाधित कर अच्छा नहीं किया , इस कूटनीतिक पराजय को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत हार के रूप में स्वीकारा है ,इसकी कीमत चीन को चुकाना ही पड़ेगा ! 

कूटनीति के जानकारों का कहना है कि प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सौ फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत के दरवाजा खोले जाने का अर्थ है ,अपने को सामरिक मामले में अपने को   परनिर्भरता से छुटकारा प्राप्त करना अर्थात महाशक्ति के रूप में स्थापित होना  !

पूर्व विदेश मंत्री यशवंत  सिन्हा एकदम ठीक कहते हैं कि एनएसजी की सदस्यता का कोई महत्व भारत के लिए नहीं है अर्थात यह जानिए कि 'परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह' एक बाजार है ,जो तकनीक एवं उत्पाद को अपने -अपने रुचि /जरूरत के अनुसार बगैर रोक-टोक के ४८ देशों में संचालित है। फिर इसकी सदस्यता हासिल  किये बगैर ही भारत को उम्दा पदार्थ/प्रावैधिकी उपलब्ध है दिपक्षीय समझौते के तहत ,तब इसके लिए हाय-तौबा करने की क्या जरूरत है ? 

कूटनीति/ स्विट्जरलैंड ने भारत के साथ एन एस  जी के मुद्दे पर जिस तरह पलटी मारी है अर्थात घोषित समर्थन से मुकर  जाना,भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए  आँख खोलने वाली  बात है ,फिर भारत भविष्य में कैसे न किसी देश के साथ वैसा ही बर्ताव करे ! 

केंद्र सरकार अर्थात भाजपा शासन अर्थात नरेंद्र मोदी के हुकूमत के पुरे हुए दो साल की उपलब्धियों को गांव-गांव प्रचार करने के लिए क्या समर्पित कार्यकर्त्ता के अभाव  हो गए हैं ? आखिर इसके  प्रति रुचि क्यों नहीं दिखती भाजपाइयों में ! 

पूजा सिंघल, झारखण्ड की चर्चित आईएएस अफसर, कभी पलामू  की जिलाधिकारी थी ,सो एक किस्सा याद आ रहा है और यह वाक्या एक प्रेस कांफ्रेंस की है । 
जिला प्रशासन ने उक्त संवाददाता सम्मेलन चुनाव के बाबत बुलाई थी ,जिसके मुख्य विषय छत्तरपुर के दर्जनाधिक मतदान केंद्रों के स्थानांतरण का मामला था,बूथ बदलने को लेकर उन दिनों काफी राजनैतिक क्षेत्रों में वितण्डा /विवाद/हंगामा हो रहे थे । 
 उपायुक्त सिंघल ने  बूथ स्थांतरित किये जाने की आधिकारिक जानकारी शुरू की और शांत भाव से मौजूद सभी पत्रकारों ने नोट करते रहे । इसपर मुझे रहा नहीं गया ,सो मैंने झट से एक सवाल दागते हुए पूछा कि " मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या मतदान केंद्रों को निर्वाचन एजेंसी मतलब जिला प्रशासन ने सीधे अपनी निर्णय के तहत अन्य जगहों पर शिफ्ट किया है ?" 
यह सुनना था कि वह आश्चर्यित होकर रूक गई ,फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोलना शुरू की ,कि " मैं बेवकूफ थोड़े ही हूँ , दस लाख प्रतियोगियों के बीच चयनित होकर आईएएस  हुई हूँ , बूथों को स्थान्तरिंत करने के पहले एक कमिटी बनाकर जाँच एवं उसके औचित्य पूर्ण अनुशंसा के बाद ही उसे बदले जाने का फैसला जिला प्रशासन ने किया है ,यह मैं अपने तरफ से कैसे सीधे परिवर्तित कर सकते हैं " 
मतलब यह कि जिलाधीश सिंघल एक सांस में अपनी लंबी चौड़ी बात तबतक रखती रही ,जबतक कि मैं खुद उनको बस,बस थैंक्स ,थैंक्स नहीं किया और इस दौरान अन्य साथी पत्रकार एकदम खामोश रहे ,फिर जैसा कि हर प्रेस कांफ्रेंस की तरह होता है ,वही औपचारिकता वगैरह -- 

;वकील ,वह भी बगैर बैंक एकाउंट के ,है न दिलचस्प बात ,जी हाँ , आपको मिलवाता हूँ नन्दलाल सिंह से, जो कभी पलामू अधिवक्ता संघ के पूर्व में अध्यक्ष रह चुके हैं ,जिनके पास एक भी बैंक खाता नहीं है ,यह खुलासा आज उस वक्त हुआ ,जब डालटनगंज दूरदर्शन द्वारा आयोजित एक परिचर्चा के दौरान दस्तावेजी औपचारिकता पूरी करने के लिए उनसे एकाउंट माँगा गया ,तब वह बोले कि मेरे पास नहीं है ! 
मौके पर मौजूद इप्टा के कलाकार प्रेम प्रकाश ने यह सुनते  ही चुस्की ली कि " लगता है संजय भैया ,नन्दलाल भैय्या ,नरेंद्र मोदी के जन-धन योजना को फेल करके ही दम लेंगे " जोरदार ठहाका के बीच मेरे मुख से निकला - ऐसा मत कहो प्रेम भाई ,भैया के गोदी में ही हम खेल कर बढे हुए हैं , फिर हंसी --इस दरम्यान परिचर्चा में सहभागी दो महिला वक्ता समेत अन्य मुस्कराते रहे --

झारखण्ड/ कहावत सुना है न आपने ,सिर मुड़ाते ओले पड़े, काफी कुछ यह बात नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ताला मराण्डी पर फिट बैठता है । अल्पव्यस्क बाला से बीटा की शादी के साथ यौन शोषण के आरोप चस्पा होने से जो किरकिरी उनको व्यक्तिगत हुई है ,वाही नुकसान सामाजिक/राजनैतिक हल्कों में भाजपा को हुई है । साथ ही ,यह भी पर्दाफाश हुआ कि नौकरशाही अर्थात मुख्य सचिव /पुलिस महानिदेशक "कानून का राज" स्थापित करने में कंजूस सिद्ध हुए ,वैसे आज  वहां के पुलिस अधीक्षक ने अल्पव्यस्क विवाह को लेकर प्राथमिकी दर्जकी है  ,देखें होता है ? है न त्वरित कदम का यह बेजोड़ नमूना ! 

इतिहास बोध/ १८५७  स्वाधीनता संघर्ष इसलिए विफल हुआ कि ,उसमे रियासतें लड़ रही थी , जैसे ही समय ने करवट बदला ,तब १९४२ में 'अंग्रेजो भारत छोडो/करो या मरो, की आवाज बुलंद हुई , वैसे ही क्या ब्रिटिश भारत  के नागरिक और क्या  रियासतों के आम लोग ,सभी एकजुट होकर अंग्रेजो के विरूद्ध सड़कों पर निकल आये ,नतीजतन ब्रिटिश सरकार स्वतंत्रता दिए जाने की दिशा में   कदम बढ़ाने को विवश हो गई । 


क्या रसोई गैस के मंत्री धर्मेंद्र प्रधान चोर हैं अर्थात कमीशनखोर हैं ? क्या उनको पत्ता है कि सिलेंडर आपूर्ति करने में कैसे -कैसे वितरण एजेंसी /डीलर निर्धारित दर से अधिक वसूली कर रहे हैं ,घरेलु दर ६११ रूपये ५० पैसे में सिलेंडर को घर तक पहुँचाना है ,लेकिन इसके अतिरिक्त राशि ३० रूपये घर तक पहुँचाने में वसूले जा रहे हैं । क्या इस गोरखधंधे से वह वाकिफ नहीं हैं ? क्या उनके देश भर के वितरण एजेंसिया ईमानदार हैं या फिर इस वसूली की रकम में हिस्सेदारी उन तक भी पहुंचती है ! 

रिश्ते की डोर की अहमियत एक बार फिर झारखण्ड के हजारीबाग में ममत्व की छाँव में लोगों को रूला गई ,जो आज के भागम -भाग जिंदगी में खास मायने रखती है , यह दृश्य उस वक्त लोगों के समक्ष उत्पन्न हुआ ,जब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के  महानिदेशक दीपक मिश्र अपनी स्वर्गवासी धर्म माता संध्या देवी के लिए अस्थियां चुनने खुद पहुंचे थे ,जिसमे धर्म पुत्र के निर्वहन में कांपते हाथों से और अश्रुपूरित नयनो से अग्नि को समर्पित देह से खोजते दिखे । 

देश के महत्वपूर्ण टीकाकारों में शुमार विष्णु गुप्त इन दिनों गंभीर रूप से बीमार हैं , वह एक पखवारे पूर्व दिल्ली से भोपाल एक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे ,जहाँ अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई , इनको सर्वोत्तम हॉस्पिटल में भर्ती करके उनके शुभ चिंतकों ने इलाज में योगदान किये हैं ,ईश्वर इनके शीघ्र स्वास्थ्य में सहायक हो ,ऐसी कामना है । 

क्या नरेंद्र मोदी वाकई में "अराजनीतिक" वैक्तित्व हैं ? जैसा कि दो दिन पूर्व उन्होंने 'टाइम्स नाउ' को दिए साक्षात्कार में अपने बारे में कहा है । अगर ऐसा है ,तब तो बहुत गड़बड़ है दोस्तों -- ! 

मेदिनीनगर / शहर में पिछले चार दिनों से गंदला पेयजल की आपूर्ति हो रही है ,लेकिन इस संकट पर सामाजिक-राजनैतिक क्रियाविद परशुराम ओझा को छोड़कर कोई भी अन्य नेता/कार्यकर्त्ता सक्रिय नहीं है ,इस स्थिति को क्या कहा जाय ? इस नगर में जलापूर्ति को लेकर जितना ओझा सक्रिय एवं चिंतित रहते हैं ,उतना रत्ती भर भी डींग हांकने वाले नेता इस समस्या के निदान के लिए प्रयास करते अबतक नहीं दिखे हैं । ओझा ही वह शख्स हैं ,जो खुद के बुते क्या सुबह ,क्या दोपहर और क्या शाम पंपुकल /पीएचईडी दफ्तर में धावा बोलकर पेयजल के लिए जूझते हैं , ऐसे में शहर को मुर्दे का घर कहा जाये ,तो क्या गलत होगा ! 

झारखण्ड/ प्रदेश भाजपा प्रमुख ताला मरांडी के बेटा मुन्ना पर दुष्कर्म और अल्पव्यस्क लड़की से विवाह को लेकर उत्पन्न विवाद /प्राथमिकी से जितना नुकसान पार्टी को राजनैतिक तौर पर होना था ,वह  हो चूका ,अब सामाजिक हलकों में भी धीरे -धीरे क्षति होते जाने के लिए भाजपा तैयार रहे । भाजपाइयों को समझना चाहिए कि  ज्यादा  चीँ -पोँ करने से खोई "शक्ति"वापस नहीं हो सकती ! कोई लाभ नहीं ! 

उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती सत्ता सत्ता में आती है तब, नहीं आती है तब भी, "एक प्रमुख शक्ति" के रूप में राज्य में बनी रहेगी ! 

खबर मिल रही है कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में अगले विधान सभा के चुनाव में 'खेवनहार' के रूप में प्रचारात्मक भूमिका में अवतरित होने वाली है और अगर ऐसा है तब तो, कांग्रेस विरोधियों को प्रियंका से भी ज्यादा 'ग्लैमरस' (चमक-दमक) को मैदान लाना होगा ! 

Thursday 16 June 2016

commentry on indian political system

रसोई गैस / कल की बात है ,उनने दोपहर अचानक कहा कि रसोई गैस के बर्नर का पाइप टूट गया है ,इसे आज ही बदल दें या मरम्मत करा लें , चूल्हा बीस साल पुराना  बलु लाइन का था ,लेकिन था चकाचक ,सो मैंने बर्नर की तलाश में शहर के प्राय हर दुकान को तलाशा ,दूसरे बर्नर  के लिए ,उसे न मिलना था और न ही मिला ,फिर देशी इंजिनियर अर्थात ठठेरा के पास दूसरा बर्नर के नीचे वाले पुर्जे को ठीक कराकर उनको सौंप दिया, मतलब यह कि अगर आप ब्रांडेड कंपनियों के वस्तु खरीद रहे हों ,तब लगे हाथ दुकानदार से उसके कल पुर्जे/पार्ट्स वगैरह भी खरीद लें , क्योंकि आजकल बाजार का फंडा यह है कि कंपनियां खास अवधि के बाद उक्त माल का उत्पादन बंद कर देती है और जरूरत के वक्त वह आपको मिलती नहीं !  

कांग्रेस का कैसे उत्थान होगा ? झारखण्ड को एक उदहारण माने, तब जाहिर होगा कि कि 'राजनीती के प्रति उसकी स्पष्ट दिशा अर्थात नीति का आभाव है ' राज्य सभा के चुनाव होना है और इसका गठबंधन राजद, जदयू और झाविमो के साथ है ,लेकिन यह यहाँ झामुमो के उम्मीदवार को समर्थन कर रही है ,क्या तटस्थ / बहिष्कार बेहत्तर विकल्प नहीं होता कांग्रेस के लिए ! सीधी सी बात है , चुनाव में विधायकों के 'लार ' टपकने और भाजपा को नीचा दिखाने की प्रवृति ने कांग्रेस को जनाधार से वंचित करने में अहम भूमिका निभाई है । 

क्या वाकई राहुल गांधी चालू माह में सोनिया गांधी के स्थान पर कांग्रेसध्यक्ष होने जा रहे हैं ? 

राहुल गांधी कांग्रेस प्रमुख के पद पर विराजते हैं,तब तय मानिये 'तदर्थ नीतियों' की बाढ़ आ जाएगी , ऐसी स्थिति में कैसे पार्टी का उत्थान होगा ? मुख्य समस्या कांग्रेस की राजनीती में यही है !

राजनैतिक प्रतिदन्दिता में भाजपा अर्थात नरेंद्र मोदी की दिलों इच्छा है कि अर्थात नारा है कि "कांग्रेस मुक्त भारत " इसके जवाब में कांग्रेस नेतृत्व को चाहिए कि वह अपने अतीत में जाये और नए तेवर के साथ रचनात्मक संघर्ष में कूद जाये ,जिसमे " संपन्न भारत, सबल देश " नारे में अन्तर्निहित अवधारणा को आत्मसात करे । 

झारखण्ड/कांग्रेस के प्रोमिनेन्ट लीडर योगेन्द्र साव (पूर्व विधायक) को हजारीबाग प्रशासन ने जिला बदर कर दिया है और प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व खामोश है ,  ऐसे में कैसे पार्टी अपने खोये जनाधार को प्राप्त कर पायेगी ?  

अपने समय में स्वपन सुंदरी के रूप में चर्चित सिने तारिका हेमामालिनी को देखिये ,जब मथुरा कांड में कल  दो पुलिसकर्मियों सहित चौबीस लोग मारे जा रहे थे ,तब वह अपने बदन की नुमाइश का फिल्मांकन किये फिल्म को यु ट्यूब में उसे लोड करने में मस्त थी ! मौजूदा काल में वह मथुरा की भाजपाई सांसद है । 

लोकतंत्र की खूबसूरती और बदसूरती मूल रूप से यही है कि जाहिल/विद्वान तथा चरित्रवान/चरित्रहीन समान रूप से प्रतिस्थापित होने के अवसर पा जाते हैं ! 

आप माने या न माने ,नरेंद्र मोदी के साथ एक बात जबर्दस्त रेखांकित हो गई है ,और यह है उनके विदेशी दौरे के कीर्तिमान , इसके पहले के प्रधान मंत्रियों के परराष्ट् गमन कभी चर्चा के विषय नहीं बने अर्थात मोदी के गूढ़ कूटनीतिक कदमों के रहस्य क्या हो सकते हैं ,जरा सोचिये दोस्तों - पूंजी निवेश/रोजगार तो  कोई भी बता सकता है , लेकिन मकसद इससे इतर भी है, उसे समझने की कोशिश करें ! 

क्या आपको नहीं लगता कि देश में राजनीती का अर्थ " मक्कारी " में तब्दील हो गया है ? 

मथुरा कांड और मथुरा जैसी स्थितियां पुरे देश के हिस्सों में हैं , सस्ती राजनैतिक लोकप्रियता के आड़ में कैसे कैसे गोरखधंधे चल रहे है , इससे स्थानीय नेताओं से ज्यादा कौन समझ सकता है ! 

यह समाचार कथा, मधु कोड़ा के मुख्य मंत्रित्व काल की है , कोड़ा को मेदिनीनगर आना था ,और वह निर्धारित दिन को टाउन हॉल में कार्यक्रम को उद्घाटन करके चले भी गए ,मगर कुछ ऐसा उस दरम्यान घटा कि मत पूछिए -
कोड़ा काल भ्रष्ट संदेहों को  लेकर उन दिनों देश भर में चर्चित था , प्रेस से बचने की उनकी हरचंद कोशिश रहती , सो डालटनगंज के स्थानीय पत्रकारों ने तय किया कि उन्हें घेरा  जाये । 
कोड़ा, समारोह  को संबोधित किये ,फिर कुर्सी पर पांच मिनट बैठे, इसके बाद नजरे चुराते हुए खिसकने लगे , जिसे संवाददाताओं ने ताड लिया  , फिर खबरनवीसों की  टोली  उन्हें पकड़ने के  लिए पिल पड़ी । इस दौरान तेज़ गति से चलते हुए टाइम्स ऑफ़ इंडिया के रिपोर्टर फैयाज अहमद ने उनको आवाज दी - सीएम साहब ,सीएम साहेब ,दो मिनट प्रेस के लिए भी समय दें , चलते चलते कोड़ा ने कहा कि सर्किट हाउस में हम बात करेंगे , आप सभी वहीँ चलिए , इस मौके पर मैं भी मौजूद था ,मैंने कहा -कोड़ा जी ,अहमद साहेब सिर्फ पत्रकार ही नहीं हैं बल्कि प्रोफ़ेसर भी हैं ,जरा मिल लीजिए ,फिर ऐसा मौका नहीं मिलेगा ! 
    " हाँ , हाँ वही तो मैं कह रहा हूँ ,सर्किट हॉउस में प्रेस से बातचीत हो जाएगी " यह सुनना  था कि तपाक से मेरे मुंह से निकला -- " शर्म नहीं आती झूठ बोलते , मिनट टू मिनट में कहाँ ठहराव है सर्किट हॉउस , मुख्य मंत्री की कुर्सी को पैतृक सम्पति समझ रखा है क्या ? 
 तबतक कोड़ा अपनी सवारी में तेजी से चलते हुए बैठ  चुके थे , जहाँ से चियांकी हवाई अड्डे से उड़न खटोले में बैठकर रांची के लिए फुर्र हो गए । 
 बाद में इधर पत्रकारों में यही खुसुर-पुसुर होती रही ,जाने कैसे -कैसे मुख्य मंत्री हो जाते हैं ! 
 
न्यायविदों से एक सवाल -- आपराधिक मामले में राज्य अर्थात पुलिस/ सीबीआई वगैरह जाँच एजेंसी की भूमिका में रहती है , क्या कभी अदालतों ने विचार किया है कि अनुसन्धान अफसर के  आरोप पत्र में अभियुक्तों के हित में बेतरतीब, अतार्किक ,साक्ष्य जैसे प्रक्रिया को कमजोर जान बूझकर रखे जाते है ! ताकि इसका लाभ अवांछित तत्व को मिल सके ! कहने का मतलब कि राज्य/सरकार  की बातों  पर ही अदालत प्राथमिकता के साथ क्यों गौर करती है ? 

लोकतान्त्रिक सत्ता और मुख्य मंत्री के आवास पर सन्नाटा ! यह क्या जाहिर करता है ? जी हाँ, झारखण्ड़ के मुख्य मंत्री रघुबर दास के रांची में कांके रोड स्थित बंगले का है यह दृश्य ........ 

झारखण्ड/ झाविमो के छ विधायकों के नाम विधान सभा की सूची में भाजपाई के रूप में दर्ज़ है ,तो चुनाव आयोग में इनके उल्लेख झाविमो के विधायक के तौर पर उल्लेखित है ,जाहिर है कि आयोग निर्वाचित होने के बाद भर सिर्फ एक मरतबे ही सूची जारी करती है ,तब अचरज कैसा ? बदली स्थिति में झाविमो के उक्त छ विधायकों ने दल-बदल कर भाजपा में शामिल हो गए ,जिसकी पुष्टि विधान सभाध्यक्ष ने की है ,फिर इसमें उच्च न्यायालय क्या कर सकता है ,हकीकत में दोनों एजेंसियों की सूची सही है । झाविमो की दाखिल याचिका पर एक नजर.... 

उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने ठीक ही कहा है कि कार्यपालिका अर्थात सरकार अर्थात प्रशासन अपने क्षेत्राधिकार में आने वाली क्रिया- विधियों को खुद तटस्थ तरीके से क्रियांविंत करे, तब अदालत को दखल देने के अवसर नहीं मिल पाएंगे । लोग आते हैं तभी न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है । बात तो सही है ! 

झारखण्ड/ रघुबर दास के मुख्य मंत्री बनने के पूर्व और पद संभालने के बाद के व्यवहारों में क्या फर्क आपको नजर नहीं आता !

किस्सा कुर्सी का/आंधी फिल्म का नाम आपने सुना होगा ,कैसे उस ज़माने में कांग्रेसी तत्वों ने इन फिल्मों को लेकर नाच किया था ,काफी कुछ ऐसा ही है फिलवक्त के निर्मित फिल्म " उड़ता पंजाब " का मसला ,जिसमे ड्रग में डूबे पंजाब की तस्वीरों का चित्रण है और संयोग से सूबे में अकाली/भाजपा गठबंधन की सत्ता है । सोचिये--इस वितण्डा की वजह क्या हो सकती है ? 

कूटनीति/अमेरिका के साथ भारत की होती गलबहियां से ज्यादा खुश फहम होने की जरूरत नहीं है ,उसके राष्टहित बदली विश्व राजनय से उपजी स्थितियों का प्रतिफल है । कभी सोचा है ,इस अमेरिका ने लोकतान्त्रिक भारत को नजर अंदाज करके आधी शताब्दी तक पाकिस्तान को गले लगाए रखा था और अब पाक की उपयोगिता उसके के लिए समाप्त प्राय ; है ! 

कूटनीति / भारत ने जब १९९८ में दूसरी बार परमाणविक परीक्षण किया था ,तब दुनिया में काफी शोर हुए थे ,इस गलत फहमी को दूर करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज ने कहा था - भारत का दुश्मन पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन  है , क्या आज की अंतर्राष्टीय राजनीती में यह सच साबित होती नहीं प्रतीत होती ! 

झारखण्ड/ सरकारी हॉस्पिटल में इन दिनों डकैती हो रही है , मुफ्त में दवा तो मिलती नहीं लेकिन डॉक्टर मामूली झख्म में चार -पांच सौ रूपये की दवा लिखने से हिचकते नहीं ! मानो वह खुद दवा कंपनियों के एजेंट बन गए हों । ऐसा ही एक मसला आज मुझे उस वक्त देखने को मिला ,जब अचानक मेदिनीनगर सदर अस्पताल में कदम रखा तब मालूम हुआ कि पौने दस अपराह्न तक डॉक्टर अपने सीट पर नहीं बैठे थे और उनके क्लिनिक में मरीज इनके इंतजार में जहाँ-तहां खड़े-बैठे हैं ,तभी सिविल सर्जन को मैंने फोन से उनके अनुपस्थिति की जानकारी दी ,तब वह बोले कि ' देखता हूँ ,डॉक्टर क्यों नहीं बैठा है । ' खैर, किसी तरह चिकित्सक पहुंचे ,फिर दनादन पर्चियों में  बाहरी औषधियों के नाम लिखने लगे ,यह टेबलेट अस्पताल में मिल जायेगा ,बाकि बाजार से खरीद लें , उत्सुकतावश मैंने एक लड़के से पर्ची लेकर बाहर के दुकान में दवाइयों के दाम पूछा ,तो मालूम हुआ कि यह चार सौ पच्च्पन रूपये का है ,जबकि लड़की को हल्का जांघ में दाने निकले थे ,तो सरसरी तौर पर गर्मी के प्रभाव से प्रभावित प्रतीत था । यह कमाल काले रंग के डॉक्टर ने किया था ,जिसे पहचानने में मुझे हुआ । लाख का वेतन फिर भी काम में संजीदगी नहीं ,यह है सरकारी सेवा का स्वरूप --  

केंद्रीय मंत्री वेंकट नायडू ने कुछेक दिन पहले नरेंद्र मोदी को ईश्वर का विशेष तोहफा बताया था ,जिसे भारत को किस्मत से मिल गया है । इससे आपके जेहन में क्या तस्वीर उभरती है ? 

बिहार/ शासन क्या होता है ,यह तो देशवाशियों को इंटरमीडियट के नतीजे के बाद हुई सख्त कार्रवाई से पत्ता च ही गया होगा ! 

कोलिजियम व्यवस्था उस काल में न्यायपालिका में साकार हुई थी ,जब  लुंज-पुंज अर्थात मिली-जूली सरकार थी अर्थात १९९३ में ,जिसके कार्यपालिका के मुखिया पीवी नरसिंह राव थे ,अब सोचे जरा --

'डियर' शब्द को लेकर कोहराम मचाने वाली स्मृति जुबैर ईरानी पर यह कहावत  एकदम सटीक बैठती है -चोर के दाढ़ी में तिनका , बिहार के शिक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में उक्त शब्द का प्रयुक्त करके उनको अपमानित नहीं किया ,बल्कि 'अपनत्व' का इजहार किया है , यह ईरानी को नहीं भूलना चाहिए कि वह  एक देश के सार्वजनिक क्षेत्र के गंभीर पद पर बैठी है ,जिसे सभी जानते हैं कि यह नरेंद्र मोदी की मेहरबानी से मानव संसाधन मंत्री हैं ,तो क्या सिर्फ मोदी ही इनको डियर कहने के लिए अधिकृत हैं या उनके शौहर या कोई तीसरा भी  ,इस मुद्दे को महिला की आड़ में स्मृति को बात का बतगंड बनाने से  बाज  आना चाहिए । 

कूटनीति/ भारत और चीन के दौत्य रिश्ते में जमीन -आसमान का फर्क है , रणनीतिक दृष्टि से भारत के समक्ष चीन कहीं नहीं टिकता है ,उसके अपने सारे पड़ोसियों से अनबन खास रूप से भारत के लिए मुफीद है ,लेकिन भारत के साथ केवल पाकिस्तान ही तनातनी में है । 

बचपन मेरा लातेहार में बीता है , दोस्तों के साथ खेलते हुए मेरे मुंह से सिर्फ एक मित्र के  लिए 'डियर' शब्द मेरे जिह्वा से निकला था ,जो बार- बार मिलने के बाद उसके लिए ही संबोधित होता था ,उसका नाम अजय कुमार अग्रवाल है ,जिसे प्यार से हम 'आजु' कहते थे , मित्र मण्डली में यह होड़ रहती थी कि संजय हम सभी को भी डियर शब्द से पुकारे ,लेकिन ऐसा नहीं हो पाता था , कालांतर में प्रियंका ने मुझे डियर कहा ,मैंने नहीं ,अब मत पूछिए कि प्रियंका कौन है , अगर आप जानना ही चाहते हैं ,तब नियमित रूप से मेरे पोस्ट को पढ़ा करें ,आप जान जायेंगे , इधर एक और के लिए मुझसे डियर शब्द अनायास उच्चरित हो गया ,जानते हैं आप इसका उत्तर में मुझे रूखा जवाब मिला ,इसे आप क्या कहेंगे ? 

क्या मजाक है ? सुना आपने , नरेंद्र मोदी ने इलाहबाद में कहा कि -विकास देखना हो तो झारखण्ड चले जाइये ,हद हो गई ,इधर मुख्य मंत्री रघुबर दास ने घोषणा भी कर दिया कि राज्य में रिश्वतखोरी/भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है ! क्या देश में डॉ गोयबल्स का पुनर्जन्म हो गया है  दोस्तों  ! मेदिनीनगर -रांची पथ के १६५ किमी सड़क का ही जरा मुआयना कर लें ,विकास की क्या गति है ,पत्ता चल जायेगा ! 

कभी देश की राजनीती में लालू प्रसाद यादव 'हल्की /सतही बातों  को गंभीर और गंभीर मुद्दों को हल्का ' करने के विशेषज्ञ माने जाते थे ,लेकिन अब बदली स्थिति में इस मानसिकता के अनेकों शख्स पैदा हो गए हैं ,जिनको यथार्थ परक राजनीती से कोई लगाव नहीं है ,जरा अपने आस-पास सक्रीय राजनीतिज्ञों से पूछिए कि ' आप राजनैतिक क्षेत्र में क्यों हैं ? जवाब सुनिए और उनके क्रिया-कलाप देखिये ,वास्तविकता का पता चल जायेगा ! 

हुड्डा सरकार (हरियाणा ) से ज्यादा अबतक विज्ञापित रकम किसी ने खर्च नहीं किया , उसके क्या हश्र विधान सभा के चुनाव में हुए ,उसे आपने देख लिया , अब  संप्रगनीत सरकार के चमक-दमक पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है ,तो क्या इसका लाभ भाजपा को भविष्य के चुनावों में मिल पायेगा ?

कूटनीति/दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देशों में भारत और अमेरिका शुमार है ,फिर अमेरिका ,भारत की उपेक्षा करके कैसे आधी शताब्दी तक चीन को तरजीह देता रहा ! परिवर्तित विश्व राजनय किस ओर इशारा करता है ? हड़बड़ी में कहीं मोदी सरकार "राष्ट हित" को नजर अंदाज न कर दे ! राष्टहित ही वह स्थायी तत्व हैं ,जो किसी राष्ट/राज्य के वैदेशिक मामले में नीति का निर्धारण करने अपूर्व योगदान  देते हैं और यह राष्टहित क्या है ,इसे पहचानने की कला विरलों में ही होती है ,इतिहास देखिये -पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रखर /अधुनातन राजनेता भी चीन से मात खा गए ! 

Thursday 2 June 2016

commentry on political system


 बिहार/ राजद विधायक को बलात्कार के मामले में क्या दुर्दशा हुआ नितीश राज में आपने देखा और अब जद(यू) विधान पार्षद के बेटे को हत्या के जुर्म में उनको कैसी-कैसी मुसीबतें झेलनी पड़ रही है ,वह भी सामने है ,इधर सिवान में पत्रकार हत्या कांड में कैसी त्वरित करवाई हो रही है ,यह भी किसी से छिपा नहीं है ,फिर कैसे लोग राज्य की विधि-व्यवस्था पर पक्षपात पूर्ण रवैये अपनाए जाने के आरोप मढ़ते हैं ,समझ में नहीं आते  ! 

दुनिया "शक्ति" की भाषा ही समझती है ,इसे नरेंद्र मोदी से बेहतर कौन समझ सकता है ! 

झारखण्ड/ चतरा में मारे गए पत्रकार को लेकर खुलासा है कि कथित रंगदारी टैक्स नहीं देने की वजह से उसकी हत्या हुई , इसमें खास चिंता की बात है कि उनसे जब टीपीसी ने कथित रूप से लेवी की मांग की तब, उन्होंने पुलिस को इत्तिला क्यों नहीं की ? क्या पुलिस पर उनको भरोसा नहीं था ? 
याद कीजिये कुछ साल पहले जी न्यूज के दो विज्ञापन अधिकारी नवीन जिंदल से सौ करोड़ रूपये की मांग इसलिए किये थे कि उनके गोरखधंधे को पर्दाफाश नहीं किया जा सके । इस बातचीत को उक्त उद्दोगपति ने टेप/वीडियोग्राफी भी चालाकी से किया था , मामला सामने आने पर काफी हो-हंगामे हुए थे , उक्त चैनल के परिचालक तो जेल की हवा खाने से बच गए लेकिन विज्ञापनकर्मी बने दोनों पत्रकार कारागार में कई क़ानूनी जद्दोजहद के बाद पहुँच गए ,इस मामले में क्या फलाफल है ? 

मौलिक चिंतन/ बात आज की ही है , अधिवक्ता मुकुल चौबे ,इनके जूनियर मोहन पत्रकार अमरेंद्र और दो-तीन वकीलों के साथ आज की मौजूदा राजनीती पर बहस हो रही थी ,जिसमे मैं भी शरीक था , यह बातचीत चौबे के चैंबर में थी ,इसी क्रम  में उन्होंने कहा - वोट के सवाल जब सामने आते हैं ,तब लोग जाति / धर्म को खोजने लगते हैं  और जब अभियुक्त बनके समाज में व्यक्ति आता है ,तो उम्दा वकील की तलाश करते हैं ,इसी तरह मरीज को भी बेहतर डॉक्टर की खोज/सेवा की जरूरत होती है ,इसमें राजनीती लोग क्यों नहीं देखते ? बात वाकई दमदार मौजूद भाइयों को लगी , मैंने भी सहमति प्रकट की । सोचिये ऐसा क्यों होता है ? मुझे याद आता है महान लेखक एनसी चौधरी की बात ,जिन्होंने काफी पहले कहा था -भारतीयों के खून में ही भ्रष्टाचार है अर्थात देश की मिटटी में ही भ्रष्ट तत्व मौजूद हैं ! 

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के उप चुनाव के नतीजे से मुख्य मंत्री रघुबर दास को यह पत्ता चल गया होगा कि हमेशा दो और दो के मिलने से चार नहीं होता ! सामाजिक स्थितियां/ संवेदना बराबर राजनीती को प्रभावित करती आई है और भविष्य में भी करती रहेगी । यह मूलत; विज्ञानं नहीं है ,जिसे परिमापित किया जा सके । 

चार राज्यों के विधान सभा के चुनाव में भाजपा को खोने को कुछ नहीं था ,बल्कि हल्की सफलता भी उसे अन्य से ज्यादा कामयाबी के रूप में प्रतीत है ! 

मन बैचेन है,कुछ काम करने को मन नहीं कर रहा ,इसकी वजह क्या हो सकती है ,मुझे अनुभूत नहीं हो रहा, जो बातें फिलवक्त आपसे हो रही है यारों ,बेमन से है , लगता है इस आभासित दुनिया ने भी मुझे बहकने में मददगार बन गई है ,इसलिए सोचता हूँ ,इसका परित्याग कर दूँ और यह कुछ-कुछ पिछले डेढ़ सालों से दिल में हलचल मचाए है ,सलाह दें ,क्या करूँ ताकि सामान्य तरीके से रह सकूँ --

क्या चीन को इतनी क्षमता है कि वह पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था की जिम्मेदारी उठा सके ? पाक परजीवी देश है ,इसकी आर्थिकी अमेरिकी मदद पर निर्भर है ! फिर क्यों नहीं वह पाक को उपेक्षा करने की कूटनीतिक रणनीति की ओर कदम बढ़ाता ? 


तमिलनाडु/एम करूणानिधि " ललच " के रह गए । एग्जिट पोल ने उनकी गठबंधन को बढ़त दे ही दी थी । 
क्या कार्ल मार्क्स ' हिंसक ' थे ? 

वो " आसु " गीतकार हैं, पल में छन्द/गीत/नग्मे/शायरी रच देने में सानी नहीं है उनकी, 'ओठों' में नैसर्गिक मुस्कराहट ऐसी कि कोई भी कुर्बान होने में खुद को सौभाग्य समझे , वैसे नग्मेनिगार को भला कौन नहीं सान्निध्य चाहेगा ? 

केरल में वीएस अच्युतवर्धन को मुख्य मंत्री न  बनाकर माकपा भारी गलती कर रही है, अच्युतवर्धन पूर्व मुख्य मंत्री रह चुके हैं ,राष्टवादी सोच के वाहक के रूप में उसकी राज्य ही नहीं ,देश में अलग पहचान है । ऐसे में पी विजयन को पार्टी मुख्य मंत्री के दायित्व सौंपती है ,तब यह आने वाले कल में अंदरूनी संघर्ष को झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए ! 

भाजपा ,असम में चुनावी कामयाबी पाकर ज्यादा नहीं इतराए,यही उसके लिए ठीक होगा ,अगले वर्ष उत्तर प्रदेश-पंजाब विधान सभाओं चुनाव होश ठिकाने लगा देगा ,हार / जीत की स्थितियां हमेशा भिन्न रहती है ,खासकर लोकतान्त्रिक व्यवस्था के स्वरूप में ,इसे शाह -मोदी भी समझते होंगे ! 

दिग्विजय सिंह ने ठीक ही कहा है कि कांग्रेस को पूरी तरह से चीड़ -फार की जरूरत है ,ताकि वह मौजूदा और भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सके ,अब अात्म मंथन की आवश्यकता नहीं है ,लेकिन इसके ठीक उलटे अमरनाथ जैसे चाटुकार कहते हैं कि चार राज्यों के चुनाव परिणाम को सोनिया/राहुल की क्षमता को आंकने से बचा जाये । ऐसे में कांग्रेस कैसे पुनर्जीवित हो पायेगी ! 

कांग्रेस में हताशा इतनी है कि पार्टी में जान डालने अर्थात गति देने के लिए उत्तर प्रदेश के आसन्न विधान सभा  के चुनाव में राहुल/प्रियंका को प्रोजेक्ट करके की आवाज उठा रहे हैं और इसकी हवा प्रशांत किशोर जैसे पार्टी के रणनीतिक प्रचार विषेशज्ञ दे रहे हैं ,कहाँ दोनों भविष्य के प्रधान मंत्री  के ख्वाब में कांग्रेसियों के बीच थे ! 

क्या आपको नहीं लगता कि बसपा प्रमुख मायावती अपने चाल -ढाल से ब्राह्मणवादी व्यवस्था की पोषक है अर्थात सामंती संस्कृति की वाहक है ! 

क्या आपको यह अनुभूत नहीं होता कि देश में राजनीतिक क्षेत्र में  आपराधिक तत्वों के  प्रवेश करने के लिए न्यायपालिका भी एक जिम्मेदार है ? क्यों नहीं अदालतें समय की नजाकत को देखते हुए त्वरित सुनवाई करके अवांछित तत्वों को राजनैतिक अधिकार से वंचित करने में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिये योगदान देती है ! 

वो, साहित्य की लड़ी हैं और हम " जीवन मूल्यों " के पुजारी ,ऐसे में क्या इनमे मेल हो सकता है ? 

देश के निचले कतार के नेताओं को भ्रष्टाचार  अनुभव काफी होते हैं अर्थात इससे रूबरू रहते हैं ,फिर सांसद/विधायक निर्वाचित होकर कैसे इसकी उपेक्षा करते हैं ? क्या यह पूंजी का खेल नहीं है ?  

चीन ,स्थल मार्ग के जरिये समुन्द्र को छुआ और भारत समुन्द्र के रास्ते भूमि को पाया ,फिर कैसे ग्वादर और चाबहार को लेकर भारतीय कूटनीतिज्ञ बल्ले -बल्ले करने पर उतारू हैं ? 

क्या मैं सचमुच बिंदास हूँ ! जैसा कि गत रात अपने शहर शताब्दी मार्केट में बैठकबाजी कर रहे स्थानीय नटों/ पत्रकारों ने मुझे अपने बीच अचानक पाकर मुझे याद किया । 
मैं नित्य की भांति रात को अपने आवास लौट रहा था ,तभी कानों में भैया, संजय भैया की आवाज आई , घूमकर देखता हूँ ,तो मार्किट के प्रांगण में भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज सिंह ,दिलीप तिवारी संग ,पत्रकारों में ब्रजेश तिवारी ,संजीव नयन , अविनाश समेत अन्य बैठकी जमाए हुए थे , तब थोड़े देर के लिए मैं भी वहां जम गया , मेरे बैठने के साथ ही बीच पहले से चल रहा विषय पर बातचीत थम गई और लगे मेरे बारे में ही चर्चा करने वह भी पूर्व मुख्य मंत्री अर्जुन मुंडा , जिलाधीश पूजा सिंघल ,आराधना पटनायक ,सुबोधनाथ ठाकुर जैसे विशिष्ट व्यक्तियों के साथ हुई आँख -मिचौली ,धींगा-मुश्ती ,आमोद-प्रमोद  के क्षणों की बखान बड़े चाव से करने , कैसे मुंडा के प्रेस कांफ्रेंस का बायकाट  हुआ, सिंघल को कैसे चुभन हुई ,आराधना होली  कैसे मैंने रंग के बाबत किया ,ठाकुर को मैंने धमकी और बेइज्जत किया ,इन्हीं सब पर गप्पें होती रही । 
इस बातचीत के दौरान पहले चाय, फिर चना के बाद पिली वाली कोल्ड ड्रिंक का दौर चलता रहा और जब बैठक ख़त्म होने लगी तो तिवारी ने यह कहकर प्रशंसा की ,कि इसी अदा  पर तो हम आप पर फ़िदा हैं संजय भैया , क्या वाकई मैं मैं बिंदास हूँ ,सोचता हूँ तो --

प्रधान मंत्री नरेंद्र दास दामोदर मोदी की पिछले दो सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि /कामयाबी यह है कि देश में केंद्रीय/संघ स्तर पर भ्रष्टाचार की गति थम सी गई है ! इससे इत्तर कुछ भी नहीं --

लोकतान्त्रिक सरकार की खूबियों का पत्ता तब होता है ,जब नौकरशाही अर्थात लोक प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को समझे ! 

आप राजनैतिक क्षेत्र में गुंडों ,बदमाशों ,आवारों  और लथेरो से लड़ सकते हैं ,लेकिन आपराधिक तत्वों से नहीं ! क्योंकि इनके जेहन में किसी भी तरह से अपने हित के लिए 'हत्या' जैसे कृत्य छिपी रहती है और इसी से सामाजिक-राजनैतिक समाज खौफ खाता है । क्या भारतीय समाज के मौजूदा स्थिति में यह सच नहीं है ? 

उत्तर से मायावती ,तो दक्षिण से जयललिता के  बीच पूर्व से ममता का चेहरा क्या उन दोनों से ज्यादा जगमग नहीं है ? पहले के दोनों महिला नेत्रियों के चेहरे पैसे-कवडी के मामले में जो दागदार हैं ! मगर ममता के साथ ऐसा  नहीं दीखता ! 

उत्तर प्रदेश/ मायावती के संग भाजपा पूर्व में गलबहियां कर चुकी है , तो क्या इस बार 
विधान सभा के चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव के साथ रंगीन मिजाजी की फिजा होगी ! २०१७ में इस सूबे में चुनाव होना है । 

झारखण्ड/ चतरा पत्रकार हत्याकांड में दर्ज़ प्राथमिकी के नाम में से एक अभियुक्त के नाम उसमे से हटाने के एवज में कथित पुलिस अधीक्षक को दस लाख रूपये दिए जाने की कोशिश में गिरफ्तार उग्रवादियों के बाद यह सोचना पड़ता है कि आखिर कैसे हिम्मत हुई कातिलों को रिश्वत देने की ! इसका मतलब साफ है कि पूर्व में चतरा पुलिस नक्सली/उग्रवादी के साथ लेन -देन करती रही है ! तभी तो ऐसा मामला पहली दफे पकड़ में आया ! अर्थात जुर्रत की ! 

एक बात बताएं मित्रों--क्या प्यार -मोहब्बत में भी " वक्त " का महत्व होता है ? जहाँ तक मैं समझता हूँ ,यह " नैसर्गिक " प्रक्रिया है ! 

पाक की नागरिक सरकार या कहिए सैन्य प्रमुख ने भी परमाण्विक शक्ति के भारत के बाबत इस्तेमाल की बात नहीं की , बल्कि निदरलैैंड के एक चोर वैज्ञानिक अब्दुल कादिर ने धमकी दी , जो वहां परमाणु बम के जनक के रूप मेंख्यात है ! 

केंद्रीय दूर संचार मंत्री हैं रविशकर प्रसाद ,मूल काम में  दिलचस्पी नहीं , हल्कि  बातों में ज्यादा दिलचस्पी इनकी है ,देश के अस्सी फीसदी इलाकों में बीएसएनएल बदतर अवस्था में है , दुरूस्त करने की कोई चिंता नहीं ,और अब वह डाक से 'गंगा जल' बेचेंगे !है  न मोदी के काबिल मंत्री  की प्रवृति तारीफ करने लायक ! 

दिल में आग लगा के , भाग जाना उनकी फितरत है ! 
सोचा था कि उनको भूल जाऊ , मगर हर रह गुजर ,उनके घर के सामने है , 
दुनिया पगलाई है , ज़माने के रूप   देखकर,
आप भी मत बदल जाना , मेरी यायावरी देखकर !!  

Sunday 15 May 2016

commentry on political system


आंध्र प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी ए मोहन के पास से आठ सौ करोड़ के अचल-चल संपति का उत्भेदन कोई केंद्रीय एजेंसी ने नहीं किया है ,बल्कि राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने किया है ,इसके लिए राज्य सरकार बधाई के पात्र है ,लेकिन हमारे यहाँ अर्थात झारखण्ड में इसके अस्तित्व में आने के बाद एक भी आईएएस पकड़ में नहीं आ सके हैं ,जबकि भ्रष्टाचार के मामले में यह देश भर में अव्वल है , क्यों ?

आगस्ता उड़न खटोले में कांग्रेस की स्थिति 'जल बिन मछली ,नृत्य बिन बिजली' जैसी प्रतीत है । देखिये - गुलाम नबी आजाद ,कहते हैं कि उनकी सरकार के कार्यकाल में ही कंपनी को काली सूची में डालकर सौदा रद्द कर दिया गया था, तो तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि उनकी सरकार के समय में कंपनी को काली सूची में डालने व् सौदे को रद्द करने की प्रक्रिया  की गई थी , अब सवाल उठता है कि सच कौन बोल रहा है ,आजाद या सिंह ,या फिर मोदी सरकार  ! 

मई दिवस अर्थात मजदूर दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी ने  खुद को 'मजदूर' बता कर मनोवैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर दिया है कि " वह अभी भी गत लोक सभा चुनाव की मन:स्थिति से उबर नहीं पाए हैं " जबकि शनै ; शनै पैरों तले जमीन उनकी खिसक रही है ,इसकी भान उन्हें नहीं है ! वह अबतक 'दार्शनिक दुनिया' में ही खोये हुए हैं ! 

अरविन्द केजरीवाल अब चर्चा में बने रहने के लिए निम्न हरकत पर उतर आये प्रतीत हैं , क्या आपको नहीं लगता  कि मंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक प्रमाण पत्र की मांग सूचनाधिकार के तहत करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के कोशिश की है ! 

सुब्रह्मण्यम स्वामी को भाजपानीत केंद्रीय सरकार ने निर्वाचन के जरिये उनको उच्च सदन (राज्य सभा ) में नहीं भेजकर ,मनोनयन के माध्यम से सांसद बनाया है , इसके पीछे क्या मकसद हो सकता है ?

मायावती ,दलित को थामे है ,तो मुलायम सिंह यादव ,अहीर जमात को कसकर पकड़ें हैं ,इसमें अल्पसंख्यक समाज झुनझुना लिए घूम रहा है ,ऐसे में भाजपा/कांग्रेस उत्तर प्रदेश  चुनाव में कहाँ पर है ,इसकी खोज कर लीजिये ,परिणाम सामने होगा ! 

मुझे प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी के जीवित रहते अब दूसरा कोई प्रधान मंत्री नहीं हो सकेगा ! 

क्या आपने कभी  कल्पना की थी कि देश में " बगैर विचारधारा " वाली पार्टी भी 'सत्ता' में आ सकती है ? दिल्ली में सत्तासीन 'आम आदमी पार्टी' के बारे में आपका क्या ख्याल है ?

क्या आम आदमी पार्टी (आप) को 'यथार्थवादी' विचारधारा की राजनैतिक पार्टी कहा जा सकता है ! 

क्या आपको नहीं लगता कि राहुल गांधी , कांग्रेस के चूक गए नेताओं की कतार में शामिल हो गए हैं ! 

" प्रियंका गांधी " कांग्रेस के लिए 'कोहिनूर' हैं , फिर इनके इस्तेमाल तुरूप के पत्ते के रूप में पार्टी कब करेगी ? फ़िलहाल ,यक्ष सवाल कांग्रेस जनों के बीच यही है । गर्त में जाती कांग्रेस को इनके सक्रीय राजनीती में कदम रखने से , क्या पार्टी को कोरामिन (ऊर्जा) मिल सकती है ! 

उच्च्तम न्यायालय ने मध्य प्रदेश संदर्भित चिकित्सा शैक्षणिक संस्थाओं के मामले में कहा है  कि चिकित्सा /चिकित्सक ' पेशा ' है ,व्यापर नहीं ,अब जरा अदालत को साफ -साफ बताना चाहिए कि दोनों में क्या फर्क है ? 

अब सुब्रह्मण्यम स्वामी को वैध तरीके से बक-बक करने के लिए उपयुक्त मंच मिल गया है ! ज्ञातव्य है कि भारतीय विधायिका के सदस्यों पर 'सदन' के भीतर किसी भी तरह के अभिव्यक्त बातों / विचार  को लेकर केस/मुकदमा नहीं हो सकती अर्थात उसमे अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती । 

मैंने सुब्रमण्यम स्वामी को बक -बक करने वाले नेता के रूप में दो दिन पूर्व निरूपित किया ,तो कुछेक मित्रों को नागवार लगा ,ऐसा ही मुझे तब बुरा लगा था ,जब प्रियंका गांधी ने गत लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के एक बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देने से यह कह कर इंकार कर दी थी कि ' वह तुच्छ बातों के लिए जवाब नहीं देती ' इस तुच्छ शब्द को लेकर मोदी ने ' नीच ' शब्द के रूप में निरूपित इतने जोर से किया ,गोया वह दलित हों और इस 'नीच ' शब्द से मायावती इतनी विचलित हुई कि उन्होंने मोदी से खुद की 'जाति ' स्पष्ट करने की मांग कर डाली । और मित्रों आप स्वामी को भले सिर्फ नाम से जानते होंगे ,मगर वह मुझे व्यक्तिगत रूप से भी जानते हैं ,मेरे पोस्ट अगर नियमित रूप से पढ़ते होंगे तो आपको ऐसा आभास अवश्य हुआ होगा ! 

सोनिया गांधी ,मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के नेतृत्व में पिछले दिन दिल्ली में 'लोकतंत्र बचाओ मार्च' बगैर बरसात के छाता ओढ़ने जैसा क्या आपको नहीं लगता ! 

अरविन्द केजरीवाल अब जरूरत से ज्यादा किच -किच करते नजर आते हैं ,यह इनके और 'आप" के सेहत के लिए ठीक नहीं है । 

झारखण्ड/ पांकी और गोड्डा विधान सभा के उप चुनाव में स्थानीय भाजपाई खुद को उपेछित महसूस करते दीखते हैं ,सबसे दिलचस्प बात है कि पांकी में अधिसंख्य कांग्रेसी /भाजपा के नेता-कार्यकर्त्ता खुद अपनी- अपनी पार्टी उम्मीदवार को जीतते नहीं देखना चाहते ! गजब है इनकी अंदरूनी राजनितिक लड़ाई के स्वरूप ! 

उत्तराखंड पर सर्वोच्च अदालत का फैसला स्वाभाविक है ,यह इसलिए कि जब राज्यपाल ने सरकार को २९ अप्रैल तक विश्वास मत हासिल करने की तारीख मुकर्रर कर दी थी ,तब केंद्र सरकार को क्या जरूरत थी ,राष्टपति शासन के लिए कदम उठाना ,यहाँ यह दलील कदापि नहीं चलेगी कि राज्यपाल ने बाद में भेजे अपनी रपट में संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न होने की आशंका प्रकट की थी ,अतएव ,राष्टपति शासन लाजिमी था !

महिमा मंडन खुद को करने का क्या नई तरकीब ईजाद की है मुख्य मंत्री रघुबर दास ने , जनता की गाढ़ी कमाई को कैसे लुटाई जाती है ,इसे देखना हो ,तो आज के अख़बारों में विज्ञापित "स्थानीयता" संदर्भित बातों को देखें/पढ़ें । 

जिस तरीके से उत्तराखंड के मामले में भाजपानीत केंद्र सरकार की फजीहत हुई है ,उससे जाहिर है कि पार्टी और सरकार के नेतृत्व में मानसिक रूप से कमजोर तत्वों का प्रभाव बढ़ गया  है ! 

आपको एकबार फिर सावधान करते हुए आगाह कर रहा हूँ कि " अराजक माहौल में ही तानाशाही प्रवृति का जन्म होता है । " भारतीय राजनैतिक व्यवस्था में हो रहे आहिस्ते-आहिस्ते हो रहे बदलाव पर ध्यान देना शुरू कीजिये ,अन्यथा ! 

कई मित्र मुझे मैसेज भेज-भेज हर रोज टीका-टिप्पणी की अपेक्षा मुझसे करते हैं ,उनसे सिर्फ यही कहना है कि " मैं भी आपकी तरह हाड़-मांस का एक लोथड़ा हूँ ,इसलिए हर बात /चीज पर अपने विचार रख नहीं सकता " विशेष आप खुद समझदार हैं --

विजय माल्या को एक  "  प्रतिमान " मानिये तो जाहिर होगा कि देश में गैर निष्पादित परिसम्पत्तियां दिसंबर २०१५ में ३ करोड़ ६१ हजार थी,  सितमबर २००८ में यह ५३ हजार ९१७ करोड़ का एनपीए था ,इसमें ७७७० कारोबारी दिवालिया घोषित थे ,जिसे वित्त मंत्री अरूण जेटली विलफुल डिफालटर कहते हैं ,सवाल है कि जब ऐसा है ,तब सरकार /रिजर्व बैंक क्यों नहीं इनके संपत्तियों को अधिगृहीत करके उनको दण्डित करने में पहल करती है !

झारखण्ड/ क्या भाजपा कथित तौर  पर विधान सभा के गोड्डा -पांकी उप चुनाव बगैर ' चिरकुट' नेताओं के भरोसे जीत पायेगी  ? याद है आपको रघुबर दास ,मुख्य मंत्री के पद पर बैठते ही स्थानीय कार्यकर्त्ता /नेताओं को चिरकुट शब्द से विभूषित किये थे और आज उनके समर्थन/ सहयोग के लिए 'घिघियाते' नजर आ रहे । देखें ,नतीजे क्या आते हैं ? आखिर सत्ताधारी होने का कुछ भी तो लाभ मिलने की उम्मीद जो बंधी है ! 

मालेगांव विस्फोट कांड से प्रज्ञा ठाकुर को अब राष्टीय जाँच एजेंसी (एन आई ए ) ने मुक्त कर दिया है । आखिर माजरा क्या है ? कभी एजेंसी के आरोप पत्र में वह दोषी ठहराई जाती है ,तो कभी पूरक चार्जशीट दाखिल करके ठाकुर को मुक्त किये जाने की सुचना अदालत को देती है । जरा विचारिये जनाब , यह आने वाले कल के व्यवस्थापकीय( राजनैतिक/सामाजिक )  हालात के संकेत तो नहीं है ! 

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा क्षेत्र में कांग्रेस समर्थक कहते हैं कि उप चुनाव में उनका मुकाबला झामुमो से है ,तो भाजपा के लोग कहते हैं कि उनकी लड़ाई झामुमो से है ,इसका मतलब यही निकलता है कि झामुमो उम्मीदवार कुशवाहा शशिभूषण मेहता ने निशाने पर तीर मार दिया है  !   अर्थात ----    

कूटनीति / भारत के आतंकवाद पर बातचीत करने को पाकिस्तान तैयार नहीं है , वह कश्मीर समस्या पर वार्ता किये जाने पर जोर दिए है , इसका अर्थ यह हुआ कि इस्लामिक देश होने और कश्मीर में मुसलमानों की अधिसंख्य आबादी को धर्म के नजरिये से देखना चाहता है ,तब दो पड़ोसियों के मध्य रिश्ते सुधरेंगे कैसे ? अगर धर्म आधारित कूटनीतिक सिद्धांतों को विश्व राजनय में प्रश्रय मिला तब ,दुनिया में कैसी उथल-पुथल होगी ,इसकी कल्पना क्या पाक अर्थात इस्लाम/मुस्लिम  प्रभावित देशों के हुक्मरानों ने की है !     

पहले चतरा ,फिर सिवान और अब कौन ! दरअसल ,कारपोरेट संस्कृति  के वजह से पत्रकारों पर जीवन का संकट उत्पन्न है । मुफ्फसिल/कस्बाई पत्रकारिता में स्थानीय संवाददाता विज्ञापन एजेंट/दलाल बन गए हैं ! पत्रकारिता मुख्य तौर पर निजी पूंजी पर आश्रित है ,जिनकी परवाह पूंजीपतियों को प्राय ; नहीं होती । सरकार भी सिर्फ इसकी उपयोगिता को सस्ते लुभावन के जरिये वाहवाही लूटने में तल्लीन है ,भौतिकवादी असर का प्रतिफल है कि इस बारे में किसी तरफ से गंभीर चिंतन/विचार.प्रयास नहीं होते --

झारखण्ड/ खबर है कि  पांकी विधान सभा के उप  चुनाव में भाग ले रहे प्रमुख राजनीतिक दल के मुख्य  उम्मीदवार ने  जिला परिषद के  एक महिला सदस्य को चुनाव के बाद " सबक" सीखा देने की धमकी दी है ! यह चेतावनी ज्यादा यारी के बाद अर्जित संपत्ति/ख्याति से  बढ़ती महत्वकांक्षा से उपजी है ,जिसमे जहर ही जहर है अर्थात दोस्ती में दरार आने के बाद रिश्ते खतरनाक होने तय है अर्थात वह मित्रता बाघ -बकरी की रही है । वैसे, यहाँ आपको बता दूँ कि उक्त महिला पंचायत प्रतिनिधि ठेके/कारोबारी की अर्धांगिनी है ,खुद के स्थानीय चुनाव के वक्त धमकी देने वाले प्रत्याशी के विरोधी उम्मीदवार के सहयोग लेकर जिला बोर्ड के चुनाव जीत गई और जब विधान सभा के उपचुनाव के मौसम आये ,तब उसे भी धोखा देकर "सत्ता मंच " के साथ जुड़ गई ----धन्य है गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली यह  राजनीतिज्ञ !

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा क्षेत्र के मतदाताओं को चाहिए की ' वे धीर-गंभीर उम्मीदवार को ही अपना भाग्य विधाता चुने ' अन्यथा डालटनगंज क्षेत्र वासियों की तरह रोते रह जायेंगे ! 

मैं लेटी थी , वह लेटा था, 
मैं नीचे थी ,वह ऊपर था ,
वो देता था , मैं लेती थी, 
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वह मेरा राज दुलारा था ,
 रहस्यवादी / छायावाद के प्रमुख स्तम्भ कवियत्री महादेवी वर्मा के बहुचर्चित उक्त काव्य में आज के आभासी संसार में काफी महत्त्व है । तब नेट वगैरह नहीं थे ,लेकिन संकेत होते थे ,तात्पर्य यह कि नैसर्गिक रोमांच ,प्रेम ,वात्सल्य के मध्य गजब की तारतमयता होती थी , मगर आज के वर्चुअल वर्ल्ड में सिर्फ छलावा ही छलावा है । 
कल्पना करें ,जब महादेवी उस कविता को पहली बार बनारस की गोष्ठी में पाठ करते हुए दो पंक्तियों के पश्चात थोड़ा रुक गई ,तब क्या दृश्य /सन्नाटा होंगे  । वर्मा के अंतिम पंक्ति में ही यह रहस्य बेपर्द हुआ कि वह उनका अपना बेटा था । इसके पहले मंच में विराजमान कवि और श्रोता की उत्कंठा इतनी तीव्र थी कि लोग  उस काव्य पाठ को कुछ और ही समझ गए थे और आज की इस अभासी दुनिया में कौन किसकी परवाह करता है ,यह सोचना ही बेकार सा प्रतीत है !