Thursday 28 April 2016

commentry on political system


भारतीय कूटनीति में अब गुणात्मक बदलाव के संकेत हैं अर्थात जैसा को तैसा के तर्ज़ पर चीनी उईगर मुस्लिम नेता को दिया वीसा ,तो पाक के प्रति अचानक लचीले रूख के अवलंबन से अब तेज़ कूटनीति के ही आसार दिखेंगे और इसके फलाफल भी तेज़ी से घटित होंगे ,इसके लिए भारत लाभ-हानि दोनों को झेलने/ग्रहण /अंजाम देने-करने के लिए अपने को तैयार कर  रहा है --

लोकतान्त्रिक व्यवस्था के संसदीय प्रणाली की सत्ता में राष्टपति / राष्ट प्रमुख सिर्फ " राज " करता है , "शासन" नहीं ,इसकी भी समझ उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायधीशों को नहीं है ,काफी चिंता जनक स्थिति को बयां करता है । राज्य में राष्टपति लागू किया जाना अवैध है ,तब इसके लिए आलोचना के पात्र संघ/केंद्र सरकार है ,न कि राष्टपति के पद पर आरूढ़ व्यक्ति प्रणव मुखर्जी , राष्टपति कैसे संघ सरकार /मंत्रिमंडल के सलाह/परामर्श को ठुकरा सकते हैं, यदि वह पहली बार अपनी सहमति/हस्ताक्षर देने /करने से इंकार करते हैं ,तब फिर पुन ; उसी सिफारिश को उनके पास सरकार प्रस्तुत करती है ,तब वह हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य हैं ,नहीं किये जाने पर उसे राष्टपति की सहमति मान लिया जाता है । ऐसी संवैधानिक प्रावधानों के तहत कैसे मुखर्जी साहेब इंकार कर सकते थे ? ज्ञातव्य है कि संसदीय सत्ता में मंत्रिमंडल लोक सभा के प्रति उत्तरदायी है , न कि राष्टपति के प्रति ,इसका भी उक्त न्यायालय ने ख्याल नहीं किया । आखिर " वैक्तिव " रूप में राष्टपति प्रणव मुखर्जी से भी गलती हो सकती है ,ऐसी टिप्पणी का क्या तुक ? क्या आपको इन सन्दर्भों में नहीं प्रतीत होता कि पिछले कुछेक अर्से से न्यायपालिका अपनी क्षेत्राधिकार से आगे बढ़कर अनावश्यक विवाद को जन्म दे रही है ? 

देश में आपने अक्सर सुना होगा कि राष्टपति/ राज्यपाल , सरकारों को निश्चित अवधि में विश्वास प्राप्त करने के हिदायत/निर्देश देती रही है । क्या ऐसा कहने के अधिकार उन्हें है ? नहीं, इसका कोई  संवैधानिक मूल्य नहीं है ,इसके बावजूद प्रधान मंत्री/ मुख्य मंत्री उक्त हिदायतों को इसलिए मानने के लिए विवश होते हैं कि " उसमे इतना नैतिक बल " अंतर्निहित है कि उसकी उपेक्षा करना किसी सरकार के लिए असंभव तो नहीं ,लेकिन मुश्किल जरूर होता है ,यह उस स्थिति में ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ,जब संविद सरकार की सत्ता होती है । 

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के चुनाव में कांग्रेस हो या भाजपा ,इन दोनों का मुकाबला तो झामुमो प्रत्याशी डॉ शशि भूषण मेहता से ही होना तय है  अर्थात अबतक के सामाजिक समीकरण में डॉ मेहता ही अन्य उम्मीदवारों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं !

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के  उप चुनाव में भाजपा पास दमदार उम्मीदवार का टोटा है ,तो कांग्रेस के पास दिवंगत विधायक के पुत्र का आसरा है । ऐसी स्थिति में कैसे दोनों झामुमो के डॉ शशिभूषण मेहता से जीत की होड़ कर पाएंगे ? 

मैंने कहा -नहीं ,नहीं  उनने कहा-- ' ऐसे कैसे हो सकता है , आप पहली बार मिले हैं, पी कर ही जाना होगा' मैंने पुन :  कहा-  'फिर कभी मुलाकात में पी लेंगे'  उन्होंने जोर देकर कहा - "कल को किसने देखा है ,आज भेंट हुई है तो आज ही क्यों नहीं ' यह सुनना था कि मुझे आभास हुआ कि 'उनके मन में तूफान चल रहा है ,तभी तो उनके मुख से अनायास वैसी बात निकली'  क्षणभर के लिए मैं सिहर उठा और अबतक मेरे कानों में वो  शब्द गूंज रहे हैं , सोचता हूँ कि  कहीं उनने कोई ऐसा-वैसा कदम न  उठा ले ! 

कूटनीति/चीन सरकार द्वारा घोषित उईगर मुस्लिम  आतंकी ईसा को दिए गए भारतीय वीसा  को सरकार ने रद्द कर दिया है , आपके नजरों में मोदी सरकार का यह कदम कैसा है ?

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के उप चुनाव में झामुमो-कांग्रेस के उम्मीदवार करीब -करीब तय हैं ,फिर भाजपा के प्रत्याशी तय करने में देर का मतलब क्या है ? क्या भाजपा आयातित उम्मीदवार के बल  चुनाव जीतने की कसरत कर रही है ?

झारखण्ड/ गोड्डा में थोड़ा संशय है ,संदेह इसलिए कि वहां उलट-पुलट होते रहे हैं ,लेकिन पांकी में भाजपा की उप चुनाव में हार निश्चित है !  

झारखण्ड/ क्या पांकी विधान सभा क्षेत्र के लोग डालटनगंज की तरह अधकचरे प्रतिनिधित्व को अपनी नुमाइंदगी करना पसंद करेंगे ,जैसा कि दो राष्टीय पार्टियों से युवा लेकिन अनुभवहीन उम्मीदवारों के उप चुनाव में कूदने की बात सामने आई है ।

झारखण्ड/ मेदिनीनगर- शहर में अवांछित तत्वों की दुस्साहस इतनी बढ़ती जा रही है कि उसका एक शिकार होते-होते मैं खुद बचा हूँ । वाक्यां गत रात तक़रीबन दस बजे की है ,हर रोज की भांति मैं जेलहाता निवास से सुदना स्थित अपने आवास की तरफ कदम बढ़ा रहा था ,तभी रेलवे ओवरब्रिज  मध्य पहुँचने पर अचानक बाइक में सवार दो युवक मुझे घेरते हुए स्टेशन जाने  रास्ते पूछने लगे ,जिसे बताते हुए मैंने अपनी चाल तेज़ कर दी । अंकल ,अंकल कहते हुए तभी पीछे बैठा हुआ शख्स उतरा और एक झपटे में मुझे गला दबाने में ताकत झोंक दी ,इस अप्रत्याशित  हमले से खौफ खाकर मैंने अपने बचाव में उसके जबड़े पर कसकर मुक्का दे मारा ,जिससे वह गिर पड़ा , फिर तेज़ आवाज में दौड़ते हुए ब्रिज के नीचे पहुंचा ,लेकिन तबतक दोनों भाग चुके थे ,शोर सुनने पर आस-पास के लोग जमा हुए ,फिर उनको ढूंढने की बात हुई ,खैर ,इस वारदात में मेरे  गर्दन -चेहरे में बदमाश के नाख़ून गड़े , इस तरह की घटना ओवर ब्रिज पर पहले भी कई दफे हो चुकी है इसके बावजूद पुलिस सचेत नहीं रहती ,प्राथमिकी दर्ज़ कराने लिए कदम बढ़ाये ,मगर क्या बगैर प्रत्यक्ष नुक्सान के पुलिस कभी किसी के मामले आजतक दर्ज़ की है ! यह सोचकर मैंने इसकी उपेक्षा कर दी ।  यह हमला तात्कालिक था या फिर सुनियोजित ,इस बारे में  फिलवक्त निश्चित होकर कह नहीं सकता । 

झारखण्ड के पांकी विधान सभा के उप चुनाव में भाजपा द्वारा लाल सूरज को दिए गए टिकट को अगर " प्रतिमान " माने ,तो साफ जाहिर होगा कि यह पार्टी अब दल न होकर " गिरोह " में तब्दील हो गई है ! सूरज कल तक झामुमो के थे । 

कभी - कभी यह जीवन " निस्सार " होने की अनुभूति देती है , न जाने कब ,कौन ,क्या अनहोनी प्रत्यक्षमान  हो जाये ,निश्चित नहीं है ,शायद यह भौतिकवादी प्रवृत्तियों के प्रभावी होने की वजह से है ,या फिर और कुछ ,जिसमे एक लक्षण  "अभिसार" की प्रक्रिया भी है ! 

Friday 22 April 2016

commentry on political system in india

क्या आपने गौर किया है ? अपने को इस्लामिक देश कहलाने में गौरवान्वित होने वाले दुनिया में ही सर्वाधिक हिंसा होते है !
कूटनीति - भारत के लिए पड़ोसियों में एकमात्र पाकिस्तान सिरदर्द है ,लेकिन प्रतिस्पर्धी चीन तो सभी पड़ोसियों से तीखा मतभेद है , ऐसे में चीन किस भ्रम में है ! वह भारत के विरूद्ध साज़िश रचने में पाक का सहारा लेता है ,मगर भारत उसे घेरने में जापान, ताइवान,वियतनाम ,सिंगापूर ,थाईलैंड ,दक्षिण कोरिया ,मलेशिया या समझें उसके ही पीली नस्ल वाले देशों साथ है ,इसलिए चिन से खौफ खाने की जरूरत नहीं है !

पेयजल/पानी संकट  से निजात पाने  का  एकमात्र उपाय और हल यह कि समुन्द्र में गिरते पानी को नदियों में बांध जहाँ-तहां बनाकर रोक दिया जाय अर्थात भगीरथ प्रयास की जरूरत है । 

आर्थिकी/ विजय माल्या एक नमूना है , आखिर विकास और उससे पैदा होने वाले रोजगार को ध्यान में रखकर सरकार/बैंक कबतक नब्बे फीसदी लोगों के अरमानों को कुचला जाता रहेगा ? जो बड़े कर्जदार हैं ,उनके संपत्तियों /उद्योगों/उपक्रमों को क्यों नहीं ,उनके ही कामगारों के बीच वितरित कर दिया जाता ? देश के टैक्सों से ही तो आखिर धूर्त कारोबारी/ अफसर/नेता/मंत्री वगैरह पलते हैं ,फिर व्यवस्था भी तो लोकतान्त्रिक है ,ऐसे में कठोर कदम उठाने से परहेज कैसा ?

अरस्तु ने कहा - मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है ,मगर हॉब्स ने कहा - नहीं , मनुष्य स्वार्थ से सामाजिक प्राणी है । अब बताइए ,दोनों में कौन सत्य के करीब है ?

मार्क्स ने कहा कि -दुनिया ,पदार्थ अर्थात अर्थ से गतिमान है अर्थात पैसे की ही महत्ता है ,लेकिन हीगल ने बताया कि -नहीं ,व्यक्ति की जीवन शैली में 'विचार' ही वह तत्व है ,जिससे संसार संचरित है । इन दोनों ,दार्शनिकों में किनका कथन सच प्रतीत है ? 

भारतीय राजनीती इतनी घटियापन में उतर गई है कि मत पूछिए , नरेंद्र मोदी से उनके माँ और पत्नी को कोई शिकायत नहीं है ,इसके बावजूद इन दोनों को लेकर विकृत मानसिकता  राजनीतिज्ञ जब-तब आलोचना/ व्यंग्य बाण करते रहते हैं । इनके हवाले से अगर कोई आपत्ति/विरोध  होती ,तब बात समझ में आता ,लेकिन अबतक वैसा कुछ भी सामने नहीं आया है , फिर मोदी की परस्पर रिश्ते को लेकर सार्वजनिक क्षेत्र/ चर्चा में ,हाय-तौबा क्यों ? 


झारखण्ड/ क्या आजसू सचमुच में घोषित स्थानीयता नीति के विरूद्ध है ? इस दल का शीर्ष नेतृत्व राज्य स्थापना काल से 'चिकनी-चुपड़ी' राजनीती करता रहा है ,फिर कैसे सत्ता से अपने को विलग रख सकता है ? याद है आपको , आजसू के चन्द्र प्रकाश चौधरी ,भाजपा विरोधी दल में मंत्री रहे है तो पार्टी प्रमुख सुदेश महतो ,भाजपा के साथ विरोधी बेंच पर बैठते रहे थे !दोगली  राजनीती का यह चेहरा --

पाकिस्तानी हुक्मरान/कूटनीतिज्ञ ,नरेंद्र मोदी को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं ,जितना जल्द पाक ,मोदी के व्यक्तित्व अर्थात प्रवृति  को जान ले ,उतना उसके अस्तित्व के लिए  में बेहतर होगा ,अन्यथा दुनिया से मिटने के लिए तैयार रहे ! अमरीका-चीन कुछ भी पाकिस्तान के काम नहीं आएगा । 

चीन के साथ भारत ने मसूद अजहर को लेकर जिस तरह की विश्व राजनय की नीति अपनाने की रणनीतिक चेष्टा कर रहा ,तय मानिए ,आने वाले समय में संयुक्त राष्ट संघ अप्रसांगिक हो जायेगा ! 

झारखण्ड/ क्या घोषित स्थानीयता नीति को लेकर प्रतिपक्ष रघुबर सरकार के विरुद्ध सशक्त आंदोलन कर पायेगें ?

इस आभासी संसार में भांति- भांति के जीव -जंतु विचरण करते हैं और इसमें कुछेक प्राणी ऐसे भी हैं ,जो इसे दिल से लगा बैठते हैं । इस बारे में आपके क्या ख्याल है ?

क्या आपको ऐसा प्रतीत नहीं होता कि बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार अब भाजपा के मुकाबले में खुद के चेहरे  चमकाने के खातिर अतिरेक भरी राजनितिक चालबाजियों को हवा दे रहे  हैं ! 

कांग्रेस  दोगली चाल देखिये -बंगाल में वामपंथ से नरम रिश्ते रखकर भविष्य की राजनीती के आसरे हैं ,तो केरल में वामपंथियों से खुल्ला विरोध में है !

कूटनीति/ क्या भारत "बाज़ारू माल " हो गया  है, जैसा कि चीन सरकार नियंत्रित अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने कहा है । उसके मुताबिक हमारा देश अमेरिका और चीन को रिझाने के प्रयास में है ,ताकि खुद को सुन्दर नारी(अंतराष्टीय  वधु) की तरह प्रस्तुत करके विकास/रोजगार के निमित्त पूंजी निवेश आकर्षित कर सके ! 

झारखण्ड/ राज्य में सड़कों पर अराजकता देखिए-रोज दुर्घटनाओं में मरने की ख़बरें आती हैं ,मगर सरकार/प्रशासन चेतने को तैयार नहीं , अराजकता का आलम यह है कि दो पहिया हो या चार पहिया या फिर भारी  गाड़ियां ,सभी के रोशनियाँ रोड़ों पर नहीं बल्कि छितराए हुए ऊपर की ओर है  तब लोग मरें नहीं तो क्या करें ? ध्यान रहे ,अधिकांश मार्ग दुर्घटनाओं में अस्सी फीसदी शिकार रौशनी में आँखों के चौंधियाने से होती है !

झारखण्ड/ बोकारो-हजारीबाग में हुए सांप्रदायिक दंगे नियोजित दिखे ,फिर कहां है राज्य का ख़ुफ़िया महकमा ,आखिर यह किस मर्ज़ की दवा है ? सरकार / पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय की निगरानी में यह चूक एक बानगी भर है । पिछले डेढ़ सालों के आपराधिक/उग्रवादिक घटनाओं के तफ़सीलात में जायेंगे ,तब पाएंगे कि नब्बे फीसदी मामले सुनियोजित थे और इसके पूर्व सुचना/ जानकारी स्थानीय पुलिस/ख़ुफ़िया तंत्र को नहीं थी । फिर क्यों मुखबिरी / विशेष पुलिस अधिकारी (spo ) के ऊपर करोड़ों रूपये खर्च करने का क्या मतलब ? क्या इस मद में लूट होने की आशंका नहीं दिखती ?
 जिस देश में ,विशेषकर लोकतान्त्रिक सत्ता में लोग पानी के लिए 'बिलबिलाते' हों ,उस राष्ट में सरकार होने का कोई अर्थ नहीं !

लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सरकारें 'मूल काम' क्यों नहीं करने में दिलचस्पी लेती ? पानी ,बिजली,चिकित्सा और आहार ही तो मुख्य जरुरत राजा भोज से लेकर गंगुआ तेली तक को दरकार रहती है ,फिर भी इसे उच्च प्राथमिकता न देकर 'अय्यासी वाले' कामों में अभिरुचि लेती सत्ता नजर आती है ,ताकि उसमे ऊपरी आमद अर्थात कमीशन प्राप्त किया जा सके ! 

नरेंद्र मोदी बार -बार जोर देकर कहते हैं कि २१ वीं सदी भारत की होगी । इसके निहितार्थ अगर आप समझते हैं ,तब सोचिये जनाब ! इस शब्दावली के क्या तात्पर्य हो सकते हैं ?

झारखण्ड/ क्या आपने एक बार भी मुख्य मंत्री रघुबर दास को  मुख्य सचिव/पुलिस महानिदेशक से किसी आपत्तिजनक मामले/घटनाओं के बारे में जवाब -तलब करते देखा/पूछते पाया है ?

पी चिदबरम्ब क्या बोलेंगे इशरत जहाँ मामले में , यह वही शख्स है न ,जिसने केंद्रीय गृह मंत्री रहते मुसलमानों की तरफदारी करते हुए 'भगवा आतंकवाद' शब्द को गढ़ा था !
उत्तराखंड मामले में उच्च अदालत ने केंद्र सरकार/भाजपा को ऐसी चपत लगाई है कि मत पूछिए , संसदीय प्रणाली की सत्ता में जब राज्यपाल् ने विश्वास मत की तारीख तय कर दी थी ,तब उसके बीच में ही राष्टपति शासन थोपने की क्या जरूरत थी ? , लोग लोक-लाज और संवैधानिक स्थितियों का इतनी सतही  जानकारी  भाजपा के लीडरान को है ,यह मुझे नहीं मालूम था !
देश में अब वामपंथ की राजनीती के दिन लदने लगे हैं ! यद्धपि वाम दलों के पास बेहतरीन नेताओं की जमावड़ा है ,लेकिन दिक्कत है कि प्राय सारे  के सारे जन जुड़ाव से "वैक्तिव " रूप में कट चुके हैं और रही -सही कसर पूंजी पर आधारित राजनीती ने इनको राष्टीय स्तर पर अप्रासंगिक बना दिया है --
मुख्य मंत्री रघुबर दास के लिए गोड्डा-पांकी विधान सभा के उप चुनाव अग्नि-परीक्षा है ! क्या वह भाजपाई अंतर्विरोधों से उबर कर सरकार के डेढ़ सालों में किये गए कामों को लेकर उक्त चुनाव में अपनी सार्थकता सिद्ध कर पाएंगे ?

Sunday 10 April 2016

commentry on political system

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वाशिंगटन में 'संयुक्त राष्ट संघ को आतंक के प्रश्न पर  अप्रसांगिक होने के   खतरे  ओर इशारा करके भविष्य की भारतीय कूटनीतिक कदमो के संकेत कर दिए हैं !' अब दुनिया अपने -अपने हितों के अनुरूप अभी से मित्र चुन ले ,तो बेहतर होगा । 

झारखण्ड/ राज्य में पहले लोहरदगा विधान सभा के उप चुनाव ने सत्ताधारी समूह को झटके दिए और अब पून ; गोड्डा/पांकी में उसकी पुनरावृति होने के आसार हैं , ऐसा सामाजिक समीकरण की स्थिति बताती है ! 

झारखण्ड/ मुख्य मंत्री रघुबर दास के लिए आसन्न गोड्डा /पांकी विधान सभा के उप चुनाव 'क्या वाटर लू ' सिद्ध होने जा रहे हैं ?

झारखण्ड-- पांकी/गोड्डा की सामाजिक स्थिति राजद और भाजपा के माफिक है ,जिसमे पांकी में 'शख्सियत'  एक जबरदस्त कोण है ,जिसे झामुमो पकड़ कर दोनों  खेल बिगाड़ सकती है अर्थात एक तरफ संप्रग   तो दूसरी तरफ राजग के बीच कल्पना के विपरीत परिणाम की 
संभावना भी उत्पन्न है !

क्या आपको नहीं प्रतीत होता कि " भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था (indian democratic system) मुर्ख बनाने वाली व्यवस्था में तब्दील हो गई है ? "

कला के क्षेत्र में "व्यभिचार" काफी है अर्थात कला का दूसरा स्वरूप व्यभिचार पूर्ण रिश्ते से है !

भारतीय बैंकों में भारतीय नागरिको द्वारा टैक्स चोरी अर्थात काला धन विदेशी बैंकों में जमा करने वाले देश द्रोही हैं ,यह जानते हुए कि हमारा देश 'विकसित नहीं बल्कि विकास उन्मुखी' है ,जबकि  जमा  पूंजी की दरकार सतत रूप से भारत को है । 

अमिताभ बच्चन ,ऐश्वर्या रॉय जैसे भारतीय नागरिक सार्वजनिक रूप से अर्थात सरकारों द्वारा "नायकत्व" के तौर पर प्रेरित किये जाने वाले शख्सियत रहे हैं ,फिर पनामा पेपर्स में विदेशी बैंकों में इनके धन पाए जाने से यह मालूम होता है कि अधिसंख्य सेलीब्रेटीज अर्थात चर्चित हस्तियों  के अपने -अपने गोरख धंधे रहे हैं ,फिर लोग प्रेरणा लें तो किससे ? 

सेठ लोगों का अर्थात पूंजीपतियों के विदेशों में धन जमा है , यह बात तो समझ में आती है ,जो कारोबारी हैं ,मगर जो गोल-गोल बात करने वाले राजनीतिज्ञ/क्रियाविद  हैं ,खासकर जिनके व्यक्तित्व फक्कडनुमा दिखती रही है ,उनके पास अकूत दौलत जमा रहने का  क्या मतलब ?

अगर नरेंद्र मोदी विदेशी धन के उजागर होने के बाद इसके चपेट में आये तत्वों के खिलाफ त्वरित कदम नहीं उठाते ,तब तय मानिये इनके व्यक्तित्व में शनै -शनै क्षरण होना शुरू हो जायेगा !

खबर है कि बिहार में 'स्काईट्रांन' के जरिये नितीश कुमार राज्य की परिवहन व्यवस्था में गुणात्मक परिवर्तन लाने के प्रति निशचय कर लिया है अर्थात खंभों के जरिये कारनुमा डिब्बे के जरिये चुंबकत्व के बल यह अट्ठारह-बीस फीट की ऊंचाई पर दौड़ेगी ,जिसे 'नासा' के ईजाद तरकीब से पूर्ण किये जाने हैं ,है न बुलेट ट्रेन का जवाब ,जो सस्ता और आसान होने के साथ  कम समय में दुरी नापने की कोशिश ,गति २६० किमी प्रति घंटा --

बिहार/ ताड़ी को प्रतिबंध से बाहर कीजिये मुख्य मंत्री नितीश कुमार जी ,कुछ सामाजिक संवेदनशीलता को बूझिये ,अन्यथा --

योगगुरू रामदेव के  दिमाग में भूंसा भी है ,यह मैं नहीं जानता  था ,मगर जब उन्होंने यह कहा कि ' कानून का ख्याल नहीं होता ,तो भारत माता की जय नहीं बोलने वाले लाखों के सिर कलम कर  देता' का अर्थ है कि यह शख्स  घोर अराजकतावादी है ,इसे कैद में होना चाहिए ! 

क्या झारखण्ड के पांकी विधान सभा के आसन्न उप चुनाव में भाजपा आयातित उम्मीदवार के बुते मैदान में कूदने पर विचार कर रही है ? 

झारखण्ड / राज्य में सरकारी तंत्र कैसे हैं ? इसे जानिए --पलामू जिले में के श्रीनिवासन के जगह पर कुछेक दिन पहले अमित कुमार जिलाधीश के रूप में पद  स्थापित हुए और पद ग्रहण के अगले दिन उन्होंने अचानक पांच प्रखंडों के निरीक्षण करके २७ कर्मचारियों के अनुपस्थित पाए जाने पर उनके एक दिन  वेतन काटने के आदेश दे डाले । सवाल है कि गैर हाज़िर रहने वाले सहायकों,लिपिको और अन्य कर्मियों के विरूद्ध प्रखण्डधिकरी (BDO) भी तो उक्त कदम उठा सकते थे ! फिर उपायुक्त ने लापरवाह,अकर्मण्य ,काम में दिलचस्पी नहीं लेने वाले प्रखंडाधिकारियों के ऊपर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की ?

जिन भारतीय नागरिको के विदेशी बैंकों में वैध-अवैध खातों में क़ानूनी -गैर क़ानूनी तरीके से 'धन' जमा है ,क्या उनको देशभक्त माना जा सकता है ? जबकि यह जानते हुए कि देश को फिलवक्त तेजी से विकास करने  लिए काफी पैसे की जरूरत है ! 

टीवी तारिका  प्रत्युषा बनर्जी की मौत को एक वाक्य  में समझिए कि 'वह चकाचौध की दुनिया में अपनी कामयाबी को संभाल नहीं पाने की वजह से शिकार हो गई ' ! 

लालकृष्ण आडवाणी की अर्धांगिनी कमला जी नहीं रहीं, यह जानकर मुझे काफी दुःख हुआ ,कभी मैं पंडारा पार्क में उनके पिछवाड़े के बंगले में रहा करता था ,बात १९९०-९४ की है ,अक्सर वह कुतूहलवश मुझे देखते हुए बोलती थी कि दिल्ली में क्या पाते हो , मेरा मजाकिया जवाब होता था ,आपको पाता हूँ  न , तब वह कर्कश आवाज में कहती थी ,आओ तुमको मिठाई खिलाती हूँ ,सचमुच में एक अनजान युवा के प्रति उनका स्नेह ऐसे उमड़ता प्रतीत होता ,जैसे में उनके अपना ही पुत्र था ,मेरी विनम्र श्र्द्धांजलि -- विशेष बाद में --

झारखण्ड/ गोड्डा और पांकी विधान सभा में क्रमश; एक में भाजपा डूबती-उगती रही है ,लेकिन दूसरे में आजादी के बाद अबतक एक भी खाता नहीं खोल सकी है , ऐसे में आसन्न उप चुनाव में कैसा रहेगा नतीजा ? यह जानना सत्ताधारी वर्ग के लिए काफी दिलचस्प होगा । 

झारखण्ड/ राज्य सरकार में अब तू -तू, मैं -मैं की शुरूआत हो चुकी है और यह शुरू किया है मुख्य मंत्री रघुबर दास ने ,जिसके प्रत्युत्तर में हाजिर हुए हैं उनके मातहत मंत्री सरयू राय !

कश्मीर में एनआईटी में हुए दो छात्र समूहों के बीच झड़प में स्थानीय पुलिस ने देश समर्थक छात्रों पर लाठियां भांज कर अच्छा  संकेत नहीं दिया है ,क्योकि पाक झंडे के साथ अपने को जोड़े छात्र समूह स्थानीय थे ,तब भविष्य  क्या होगा ,सोच ले मोदी सरकार --

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ,चीनी राष्टपति शी जिन पिंग के साथ अपने घर में एक  ही झूले में गलबहियां कर रहे थे ,तो अमरीकी राष्टपति बराक ओबामा के साथ अपने हाथों से चाय पिलाकर मिजाज पुर्सी में तल्लीन नजर आये थे , अब जबकि चीन ने मंसूर अजहर के सवाल पर संयुक्त राष्ट संघ में भारत को ठेंगा दिखा दिया ,तो अमेरिका ने लड़ाकू विमान/हेलीकाप्टर देकर पाकिस्तानं को सज्जित कर दिया । क्या यह मोदी की कूटनीतिक विफलता नहीं है ? 

बिहार/ राज्य में शराब बंदी लेकर कतिपय अर्थवेत्ताओं /राजनीतिज्ञों ने राजस्व की क्षति पर गहरी चिंता प्रकट की ,इसपर मुख्य मंत्री नितीश कुमार का जवाब था- लोक कल्याण से बड़ा राजस्व नहीं हो सकता । यथार्थ में राजकोष आखिर लोकतंत्र में क्या  मतलब ?  वाह नितीश ,तेरा जवाब नहीं -

इस सदी का सबसे बड़े 'नाटकबाज' का दुनिया में अभ्युदय हो चूका है मित्रों ,सावधान  !

क्या नरेंद्र मोदी आएसएस का मोहरा हैं ? नहीं ,जो सोचते हैं कि वह संघ के इशारों पर नाचने वाले कठपुतली मात्र हैं ,तो वे मुगालते में हैं । मोदी ,सिर्फ इतना भर आरएसएस का ख्याल करते हैं कि यह उनके महत्वकांक्षा में सहायक की भूमिका में रहे । इससे अधिक नहीं । मोदी को इतिहास पुरूष/ युग पुरूष होना है ,इंतजार सिर्फ प्रणव मुखर्जी के राष्टपति के पद से निवृत होने भर का है ,फिर देखिये इनकी तूफानी चाल !

साबुन / मैं हफ्ते भर से अपने शहर मेदिनीनगर में 'मोती' साबुन को तलाश रहा हूँ ,लेकिन मुझे लाख खोजने के बाद भी नहीं मिला । वैसे ,मैट्रिक के बाद मैं अफगान ऑटो के खस साबुन सेवन करने का अभ्यस्त हूँ , यह खोज मेरे लाडले की पहल पर थी ,जिसे मालूम था कि दिल्ली प्रवास के दौरान मुझे वहां अफगान खस आसानी से उपलब्ध नहीं होता था ,तब विवशता में मोती के गुलाब इस्तेमाल किया  करता था ,सो उसे दिखाने के वास्ते उसे खोज मारा । लगता है मोती प्रचार/विज्ञापन के बाजार की भेंट चढ़ गया ! 

झारखण्ड/ राज्य के घोषित अधिवास नीति को लेकर विरोधी मुख्य मंत्री रघुबर दास का क्या बिगाड़ लेंगे ? आखिर खिलाफत करने वाले तत्व अर्थात प्रतिपक्ष/पक्ष के जेहन में क्या है ? है हिम्मत तो उसके बारे में अपने -अपने नजरिये को क्यों नहीं सामने रखते ? चित्त भी मेरी और पट भी मेरी ,ऐसा नहीं होता । दोगली /दोहरी राजनैतिक मंशा से लोगों को ज्यादा दिनों तक गुमराह नहीं किया जा सकता ! इसे विरोधी जितनी जल्द समझ लें ,उनके हित  में बेहतर होगा ।