Wednesday 14 September 2011

अमर के पैरवीकार जेठमलानी

                                              एसके सहाय
राम जेठमलानी ,अब अमर सिंह को नोट के वोट मामले में पैरवी करेंगे ,यह  वह शख्स है जो भाजपा का सांसद है और अपने व्यावसायिक वसूलों केलिए किसी विचार धारा और सिन्धांत को मानता नहीं , ऐसे में इसकी निष्ठा दलगत और देश हित से परे है ,सिर्फ इस दलील पर कि  "वकालत उसका पेशा है " इसलिए वह इससे समझौता नहीं कर सकता ,तब प्रश्न है कि फिर राजनीति के नियमीकरण में इनकी क्या उपयोगिता है ,यह सवाल भाजपा के नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए ,यह इसलिए जरूरी है कि दलगत लोकतंत्र में सिन्धांत और विचार धारा ही किसी रजनीतिक दल के मुख्य शक्ति होते हैं और उसके एक जिम्मेदार सदस्य जेठमलानी है |
                                   बेशक कोई भी अधिवक्ता व्यावसायिक कार्यों में किसी दखलंदाजी को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं , लेकिन यदि वह किसी खास विचार धारा के वाहक भी  बनने  का ढोंग करे  और ठीक उसके आदर्शों के विपरीत आचरण करे ,तब इसकी गंभीरता बढ़ जाती है ,ऐसे में जेठमलानी का निर्णय एक बार फिर अवसरवादी राजनीति का परिचय दिया है ,यदि यह निर्दलीय होते ,तब बात कुछ और होती मगर भाजपा के संग होकर ठीक इसके वसूलों के विपरीत काम करने से जाहिर है कि ,इस शख्स के लिए राजनीति का कोई मतलब नहीं है सिर्फ नाम-- पैसा ही महत्वपूर्ण है ,जिसका परिचय इन्होने अमर सिंह के मामले में दिया है |
                                                 वैसे ,जेठमलानी के लिए यह पहला मौका नहीं है ,जो व्यवस्थागत खामियों से जुड़े मामलों में  अपने मुव्वकिल के लिए अदालत में खड़े हुए हों ,,इसके पूर्व भी कई ऐसे मामले हैं ,जिनकी पैरवी इन्होने किया है और क़ानूनी नुक्ताचीनी के बीच कामयाबी भी हासिल की है ,चाहे इंदिरा गाँधी या राजीव गाँधी से जुड़े मुकदमे हों या फिर वैसे विषय ,जिसमे राज्य की शक्ति को नीचा दिखाने का अवसर मिल सकने की गुंजाईश हो  ,प्राय: चर्चित मामलों में एक वकील के रूप में यह हमेशा मौजूद रहे है , २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले में करूणानिधि की सांसद बेटी कनिमोझी के भी यही पैरवीकार हैं |
                                                 नाम ,दाम और यश के चक्कर  में जेठमलानी ने अपनी एक अलग ही छवि बनाई है ,जिसका कोई जवाब नहीं , राजनीति में भी अटल बिहारी बाजपेयी जैसे शख्स के विरूद्ध  चुनाव लड़ने से परहेज नहीं ,जब मन में आया भाजप में घुस गए और जब दिल भर गया ,इससे अलग हो गए ,यह इनकी फितरत में है ,फिर भाजपा क्या सोच कर राजनीतिक तौर पर विचारहीन जेठमलानी को आत्मसात करती रही है ,,यह आम लोगों के लिए समझ से परे है |
                                             यहाँ  सिर्फ इतना ही कहना है कि दलीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में  राजनीति का सामान्यीकरण ,दल के  आदर्श होते हैं ,जिससे सिन्धांत ,विचार धारा ,कार्यक्रम ,नीति का उदभव स्वभाविक तौर  पर ,निसृत होती है ,ऐसे में अगर भाजपा को शर्मिन्दिगी झेलनी पड़े तो कोई अचरज नहीं , ,आखिर उसने ही जेठमलानी जैसे अराजक वकील को अपने यहाँ पनाह दे रखी है ,जिसका अपना कोई वसूल सामुदायिक हितों के परिप्रेक्ष्य  में नहीं है ,फिर भी वह व्यवस्था के मौजूदा स्वरूप को स्वीकारता है लेकिन व्यावहारिक जीवन में ऐसा नहीं है ,यही आज देश के समक्ष रोना है ,जिस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं !