Monday 6 June 2011

लोकतान्त्रिक अधिकारों को दबाने की कोशिश

                                                           एसके सहाय
काला धन और भ्रष्टाचार के सवाल पर बाबा रामदेव और इनके समर्थन में जुटे सत्याग्रहियों पर गत रात देहली पुलिस के अचानक धावा बोल देने से एक बात साफ हो गई है कि विदेशों में जमा धन को लाने और भ्रष्ट तत्वों के विरूद्ध गंभीर कारवाई करने के प्रति केंद्र सरकार का रूख ठीक नहीं है |
बाबा रामदेव की पृष्ठभूमि  को लेकर संशय हो सकती है लेकिन इन्होने जिस प्रश्न को लेकर जनतांत्रिक  तरीके से भूख हड़ताल पर बैठे थे ,वह इतना बड़ा कानून व् व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करेगी ,इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती | इसलिए जो भी कुछ कल  रात रामलीला मैदान में हुआ ,उसका संकेत है कि  आने वाले दिनों में जबर्दस्त जन आन्दोलन होने वाले हैं ,जिससे निपटने की तैयारी अभी से कांग्रेस की केंद्र और राज्य सरकारों को शुरू कर देनी चाहिए |
लोकतंत्र में अपनी बात रखने और उससे सहमत होने और न होने पर अर्थात दोनों स्थिति में सरकार को संयम का परिचय देना चाहिए ,तभी सरकार टिकाऊ हो सकती है | आखिर धरना ,प्रदर्शन ,रैली ,सभा -गोष्ठी ,घेराव ,बंद ,पुतला दहन ,भूख हड़ताल ,नारेबाजी ,जन संपर्क ,सत्याग्रह , सविनय अवज्ञा जैसी प्रक्रिया लोकतंत्र के आधार स्तंभ   ही तो है ,जिसका अनुसरण करने से कैसे सरकार आपने नागरिकों को रोक सकती है ,मगर दुर्भाग्य से केंद्र सरकार में ऐसे मानसिकता वाले तत्व शामिल हैं ,जो  लोकतंत्र से अन्योन्याश्रय  रूप से जुड़े मानवाधिकारों को भी लात मारने से गुरेज नहीं करते ,यही देश की राजनितिक अनुभवों का तकाजा है ,जिसका दिग्दर्शन कल राष्टीय    राजधानी में हुआ है  ,जिसका प्रतिकार किया ही जाना चाहिए |
शांति [पूर्ण आन्दोलन में अचानक व्यवस्था के तकनीकी पहलुओं को हथियार बना कर लाठी चार्ज करना और आश्रू गैस का इस्तेमाल करना जिससे लोग चोटिल हों ,ताकि भय के वातावरण तैयार करके भ्रष्टाचार पर से देश का ध्यान हट सके ,यह कोशिश प्राय: हर सत्ताधारी करता है ,विशेष कर अधिनायकवादी प्रवृति के राजनीतिज्ञों के लोकतंत्र के नाम पर सत्तासीन होने पर, ,इसके दिग्दर्शन आसानी से हो जाते है |ठीक वैसा ही कल की घटना में दिखा है ,जो जल्द ही व्यापक स्वरूप में देश के सामने आने को परिलक्षित है |
भ्रष्ट तत्व और काला धन से किसे प्रेम हो सकता है ? दो नंबर  के तत्व भी बोल -चल में इसके खिलाफ ही आपने विचार प्रकट करने को विवश होते है ,भले ही वे कितना ही निकृष्ट हों ,लेकिन लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति दिखावा प्रकट करने में वे परहेज नहीं करते, जैसे की कपिल सिब्बल ,पी चिदम्बरम ,दिग्विजय सिंह सरीखे कांग्रेसी इन दिनों कर रहे है |
अतएव , घटना को लेकर उत्पन्न राजनितिक परिद्रश्य में एक बार फिर पिछली सदी के सत्तर और नब्बे दशक की हालात सामने आ जाये ,तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए | ऐसा इसलिए कि बर्बर कारवाई से ही लोग तेजी से आपस में धुर्वीकरण के प्रति अनायास ही जुटते  रहे है  और काफी कुछ माहौल ऐसा ही प्रतिपक्ष के जाहिर भी हैं |