Friday 29 January 2016

माने -मतलब / एसके सहाय

   कोलकाता में मुख्य मंत्री ममता मुखर्जी ने जो गुप्त संचिकाओं को सार्वजनिक की थी, उसमे  स्पष्ट था कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के गुमशुदगी के बाद भी लंबे अरसे तक उनके पारिवारिक सदस्यों की ख़ुफ़ियागिरी होती रही थी , इसके क्या मतलब हो सकते थे ,उसी वक्त जाहिर हो गया था अर्थात दाल में काला ,यह काला कांग्रेस के नेताओं के लिए था ,जिसमे जवाहर लाल नेहरू स्वयं अंतलिप्त थे !
मीडिया /उदारवादी एवं मुख्य अर्थव्यवस्था के प्रारंभ होने के पूर्व मुफ्फसिल/कस्बों  में अख़बार वाले पत्रकार नियुक्त करने के क्रम में वकील/प्रोफ़ेसर की तलाश करते थे और अगर वैसा व्यक्ति नहीं मिलता  ,तब कम से कम पढ़ने-लिखने में दिलचस्पी रखने वालों  की तलाश होती थी ,जिनकी सामाजिक/राजनितिक मामलों में समझ रहती थी , लेकिन बाद में विज्ञापन की प्रतिस्पर्धा ने पत्रकारिता के मूल्यों का क्षरण इतनी तेज़ी से हुआ है  कि अब' "जाहिल"  किस्म के तत्व भी पत्रकार बन बैठे हैं और संपादकों की ऐसी टोली सामने आई है ,जो बिन पेंदी के लोटा के समान हैं !

झारखण्ड/ इन दिनों इन्दर सिंह नामधारी को केएन त्रिपाठी के साथ 'चिठ्ठी' लिख कर राजनीती करना बहुत रास आ रहा है , यह इसलिए कि वह जानते हैं कि त्रिपाठी हिंसक नहीं है ,काश वह विधान सभाध्यक्ष रहते यही राजनीती कमलेश-भानू के साथ करते तो आज राज्य की राजनीती की तस्वीर कुछ और होती, दल-बदल पर फैसला देने की तारीख तय हो गई थी, लेकिन यह क्या उन्होंने एक दिन पहले ही विधायिका प्रमुख के पद से इस्तीफा देकर भाग खड़े हो गए अर्थात मैदान छोड़कर भाग गए !

झारखण्ड/ पॉकेटमार पकड़ में अाये ,तब SP तो SP ,DGP भी प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर यह सुचना देने में गौरवान्वित महसूस करते थे ,जैसे उन्होंने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो , लेकिन कल पलामू जिले में सात पुलिसकर्मियों के मारे जाने के १२ घंटे से अधिक बीत गए ,मगर ब्रीफ तो नहीं हुए ही ,बयान भी सामने नहीं आये !

झारखण्ड/ तब पलामू में अनूप टी मैथ्यू पुलिस अधीक्षक थे और पुलिस महानिदेशक के पद पर गौरी शंकर रथ विराजमान थे, पलामू में  एक, चार दिन से कथित  नक्सली को स्थानीय परिसदन में पुरे आव -भगत के साथ रखा गया था ,जिसे पांचवें दिन रांची ले जाकर रथ के सामने पूरे ताम -झाम के साथ आत्म समर्णण करवाया गया ,यह नौटंकी बाद में इतना मशहूर हुआ कि जब भी राज्य का किसी पुलिस अफसर की तबियत होती है ,समारोह आयोजित करके ड्रामा समर्पण की कर डालता है ,हाल में DGP डीके पाण्डेय ने भी वैसा ही किया है ,अरे भाई कोई आत्म समर्पण करता है तो उसे स्वाभाविक तरीके से  करने दो ,इसमें नाटक  की क्या जरूरत !अर्थात महिमा मंडन का कैसा सवाल ?