Sunday 15 May 2016

commentry on political system


आंध्र प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी ए मोहन के पास से आठ सौ करोड़ के अचल-चल संपति का उत्भेदन कोई केंद्रीय एजेंसी ने नहीं किया है ,बल्कि राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने किया है ,इसके लिए राज्य सरकार बधाई के पात्र है ,लेकिन हमारे यहाँ अर्थात झारखण्ड में इसके अस्तित्व में आने के बाद एक भी आईएएस पकड़ में नहीं आ सके हैं ,जबकि भ्रष्टाचार के मामले में यह देश भर में अव्वल है , क्यों ?

आगस्ता उड़न खटोले में कांग्रेस की स्थिति 'जल बिन मछली ,नृत्य बिन बिजली' जैसी प्रतीत है । देखिये - गुलाम नबी आजाद ,कहते हैं कि उनकी सरकार के कार्यकाल में ही कंपनी को काली सूची में डालकर सौदा रद्द कर दिया गया था, तो तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि उनकी सरकार के समय में कंपनी को काली सूची में डालने व् सौदे को रद्द करने की प्रक्रिया  की गई थी , अब सवाल उठता है कि सच कौन बोल रहा है ,आजाद या सिंह ,या फिर मोदी सरकार  ! 

मई दिवस अर्थात मजदूर दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी ने  खुद को 'मजदूर' बता कर मनोवैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर दिया है कि " वह अभी भी गत लोक सभा चुनाव की मन:स्थिति से उबर नहीं पाए हैं " जबकि शनै ; शनै पैरों तले जमीन उनकी खिसक रही है ,इसकी भान उन्हें नहीं है ! वह अबतक 'दार्शनिक दुनिया' में ही खोये हुए हैं ! 

अरविन्द केजरीवाल अब चर्चा में बने रहने के लिए निम्न हरकत पर उतर आये प्रतीत हैं , क्या आपको नहीं लगता  कि मंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक प्रमाण पत्र की मांग सूचनाधिकार के तहत करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के कोशिश की है ! 

सुब्रह्मण्यम स्वामी को भाजपानीत केंद्रीय सरकार ने निर्वाचन के जरिये उनको उच्च सदन (राज्य सभा ) में नहीं भेजकर ,मनोनयन के माध्यम से सांसद बनाया है , इसके पीछे क्या मकसद हो सकता है ?

मायावती ,दलित को थामे है ,तो मुलायम सिंह यादव ,अहीर जमात को कसकर पकड़ें हैं ,इसमें अल्पसंख्यक समाज झुनझुना लिए घूम रहा है ,ऐसे में भाजपा/कांग्रेस उत्तर प्रदेश  चुनाव में कहाँ पर है ,इसकी खोज कर लीजिये ,परिणाम सामने होगा ! 

मुझे प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी के जीवित रहते अब दूसरा कोई प्रधान मंत्री नहीं हो सकेगा ! 

क्या आपने कभी  कल्पना की थी कि देश में " बगैर विचारधारा " वाली पार्टी भी 'सत्ता' में आ सकती है ? दिल्ली में सत्तासीन 'आम आदमी पार्टी' के बारे में आपका क्या ख्याल है ?

क्या आम आदमी पार्टी (आप) को 'यथार्थवादी' विचारधारा की राजनैतिक पार्टी कहा जा सकता है ! 

क्या आपको नहीं लगता कि राहुल गांधी , कांग्रेस के चूक गए नेताओं की कतार में शामिल हो गए हैं ! 

" प्रियंका गांधी " कांग्रेस के लिए 'कोहिनूर' हैं , फिर इनके इस्तेमाल तुरूप के पत्ते के रूप में पार्टी कब करेगी ? फ़िलहाल ,यक्ष सवाल कांग्रेस जनों के बीच यही है । गर्त में जाती कांग्रेस को इनके सक्रीय राजनीती में कदम रखने से , क्या पार्टी को कोरामिन (ऊर्जा) मिल सकती है ! 

उच्च्तम न्यायालय ने मध्य प्रदेश संदर्भित चिकित्सा शैक्षणिक संस्थाओं के मामले में कहा है  कि चिकित्सा /चिकित्सक ' पेशा ' है ,व्यापर नहीं ,अब जरा अदालत को साफ -साफ बताना चाहिए कि दोनों में क्या फर्क है ? 

अब सुब्रह्मण्यम स्वामी को वैध तरीके से बक-बक करने के लिए उपयुक्त मंच मिल गया है ! ज्ञातव्य है कि भारतीय विधायिका के सदस्यों पर 'सदन' के भीतर किसी भी तरह के अभिव्यक्त बातों / विचार  को लेकर केस/मुकदमा नहीं हो सकती अर्थात उसमे अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती । 

मैंने सुब्रमण्यम स्वामी को बक -बक करने वाले नेता के रूप में दो दिन पूर्व निरूपित किया ,तो कुछेक मित्रों को नागवार लगा ,ऐसा ही मुझे तब बुरा लगा था ,जब प्रियंका गांधी ने गत लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के एक बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देने से यह कह कर इंकार कर दी थी कि ' वह तुच्छ बातों के लिए जवाब नहीं देती ' इस तुच्छ शब्द को लेकर मोदी ने ' नीच ' शब्द के रूप में निरूपित इतने जोर से किया ,गोया वह दलित हों और इस 'नीच ' शब्द से मायावती इतनी विचलित हुई कि उन्होंने मोदी से खुद की 'जाति ' स्पष्ट करने की मांग कर डाली । और मित्रों आप स्वामी को भले सिर्फ नाम से जानते होंगे ,मगर वह मुझे व्यक्तिगत रूप से भी जानते हैं ,मेरे पोस्ट अगर नियमित रूप से पढ़ते होंगे तो आपको ऐसा आभास अवश्य हुआ होगा ! 

सोनिया गांधी ,मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के नेतृत्व में पिछले दिन दिल्ली में 'लोकतंत्र बचाओ मार्च' बगैर बरसात के छाता ओढ़ने जैसा क्या आपको नहीं लगता ! 

अरविन्द केजरीवाल अब जरूरत से ज्यादा किच -किच करते नजर आते हैं ,यह इनके और 'आप" के सेहत के लिए ठीक नहीं है । 

झारखण्ड/ पांकी और गोड्डा विधान सभा के उप चुनाव में स्थानीय भाजपाई खुद को उपेछित महसूस करते दीखते हैं ,सबसे दिलचस्प बात है कि पांकी में अधिसंख्य कांग्रेसी /भाजपा के नेता-कार्यकर्त्ता खुद अपनी- अपनी पार्टी उम्मीदवार को जीतते नहीं देखना चाहते ! गजब है इनकी अंदरूनी राजनितिक लड़ाई के स्वरूप ! 

उत्तराखंड पर सर्वोच्च अदालत का फैसला स्वाभाविक है ,यह इसलिए कि जब राज्यपाल ने सरकार को २९ अप्रैल तक विश्वास मत हासिल करने की तारीख मुकर्रर कर दी थी ,तब केंद्र सरकार को क्या जरूरत थी ,राष्टपति शासन के लिए कदम उठाना ,यहाँ यह दलील कदापि नहीं चलेगी कि राज्यपाल ने बाद में भेजे अपनी रपट में संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न होने की आशंका प्रकट की थी ,अतएव ,राष्टपति शासन लाजिमी था !

महिमा मंडन खुद को करने का क्या नई तरकीब ईजाद की है मुख्य मंत्री रघुबर दास ने , जनता की गाढ़ी कमाई को कैसे लुटाई जाती है ,इसे देखना हो ,तो आज के अख़बारों में विज्ञापित "स्थानीयता" संदर्भित बातों को देखें/पढ़ें । 

जिस तरीके से उत्तराखंड के मामले में भाजपानीत केंद्र सरकार की फजीहत हुई है ,उससे जाहिर है कि पार्टी और सरकार के नेतृत्व में मानसिक रूप से कमजोर तत्वों का प्रभाव बढ़ गया  है ! 

आपको एकबार फिर सावधान करते हुए आगाह कर रहा हूँ कि " अराजक माहौल में ही तानाशाही प्रवृति का जन्म होता है । " भारतीय राजनैतिक व्यवस्था में हो रहे आहिस्ते-आहिस्ते हो रहे बदलाव पर ध्यान देना शुरू कीजिये ,अन्यथा ! 

कई मित्र मुझे मैसेज भेज-भेज हर रोज टीका-टिप्पणी की अपेक्षा मुझसे करते हैं ,उनसे सिर्फ यही कहना है कि " मैं भी आपकी तरह हाड़-मांस का एक लोथड़ा हूँ ,इसलिए हर बात /चीज पर अपने विचार रख नहीं सकता " विशेष आप खुद समझदार हैं --

विजय माल्या को एक  "  प्रतिमान " मानिये तो जाहिर होगा कि देश में गैर निष्पादित परिसम्पत्तियां दिसंबर २०१५ में ३ करोड़ ६१ हजार थी,  सितमबर २००८ में यह ५३ हजार ९१७ करोड़ का एनपीए था ,इसमें ७७७० कारोबारी दिवालिया घोषित थे ,जिसे वित्त मंत्री अरूण जेटली विलफुल डिफालटर कहते हैं ,सवाल है कि जब ऐसा है ,तब सरकार /रिजर्व बैंक क्यों नहीं इनके संपत्तियों को अधिगृहीत करके उनको दण्डित करने में पहल करती है !

झारखण्ड/ क्या भाजपा कथित तौर  पर विधान सभा के गोड्डा -पांकी उप चुनाव बगैर ' चिरकुट' नेताओं के भरोसे जीत पायेगी  ? याद है आपको रघुबर दास ,मुख्य मंत्री के पद पर बैठते ही स्थानीय कार्यकर्त्ता /नेताओं को चिरकुट शब्द से विभूषित किये थे और आज उनके समर्थन/ सहयोग के लिए 'घिघियाते' नजर आ रहे । देखें ,नतीजे क्या आते हैं ? आखिर सत्ताधारी होने का कुछ भी तो लाभ मिलने की उम्मीद जो बंधी है ! 

मालेगांव विस्फोट कांड से प्रज्ञा ठाकुर को अब राष्टीय जाँच एजेंसी (एन आई ए ) ने मुक्त कर दिया है । आखिर माजरा क्या है ? कभी एजेंसी के आरोप पत्र में वह दोषी ठहराई जाती है ,तो कभी पूरक चार्जशीट दाखिल करके ठाकुर को मुक्त किये जाने की सुचना अदालत को देती है । जरा विचारिये जनाब , यह आने वाले कल के व्यवस्थापकीय( राजनैतिक/सामाजिक )  हालात के संकेत तो नहीं है ! 

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा क्षेत्र में कांग्रेस समर्थक कहते हैं कि उप चुनाव में उनका मुकाबला झामुमो से है ,तो भाजपा के लोग कहते हैं कि उनकी लड़ाई झामुमो से है ,इसका मतलब यही निकलता है कि झामुमो उम्मीदवार कुशवाहा शशिभूषण मेहता ने निशाने पर तीर मार दिया है  !   अर्थात ----    

कूटनीति / भारत के आतंकवाद पर बातचीत करने को पाकिस्तान तैयार नहीं है , वह कश्मीर समस्या पर वार्ता किये जाने पर जोर दिए है , इसका अर्थ यह हुआ कि इस्लामिक देश होने और कश्मीर में मुसलमानों की अधिसंख्य आबादी को धर्म के नजरिये से देखना चाहता है ,तब दो पड़ोसियों के मध्य रिश्ते सुधरेंगे कैसे ? अगर धर्म आधारित कूटनीतिक सिद्धांतों को विश्व राजनय में प्रश्रय मिला तब ,दुनिया में कैसी उथल-पुथल होगी ,इसकी कल्पना क्या पाक अर्थात इस्लाम/मुस्लिम  प्रभावित देशों के हुक्मरानों ने की है !     

पहले चतरा ,फिर सिवान और अब कौन ! दरअसल ,कारपोरेट संस्कृति  के वजह से पत्रकारों पर जीवन का संकट उत्पन्न है । मुफ्फसिल/कस्बाई पत्रकारिता में स्थानीय संवाददाता विज्ञापन एजेंट/दलाल बन गए हैं ! पत्रकारिता मुख्य तौर पर निजी पूंजी पर आश्रित है ,जिनकी परवाह पूंजीपतियों को प्राय ; नहीं होती । सरकार भी सिर्फ इसकी उपयोगिता को सस्ते लुभावन के जरिये वाहवाही लूटने में तल्लीन है ,भौतिकवादी असर का प्रतिफल है कि इस बारे में किसी तरफ से गंभीर चिंतन/विचार.प्रयास नहीं होते --

झारखण्ड/ खबर है कि  पांकी विधान सभा के उप  चुनाव में भाग ले रहे प्रमुख राजनीतिक दल के मुख्य  उम्मीदवार ने  जिला परिषद के  एक महिला सदस्य को चुनाव के बाद " सबक" सीखा देने की धमकी दी है ! यह चेतावनी ज्यादा यारी के बाद अर्जित संपत्ति/ख्याति से  बढ़ती महत्वकांक्षा से उपजी है ,जिसमे जहर ही जहर है अर्थात दोस्ती में दरार आने के बाद रिश्ते खतरनाक होने तय है अर्थात वह मित्रता बाघ -बकरी की रही है । वैसे, यहाँ आपको बता दूँ कि उक्त महिला पंचायत प्रतिनिधि ठेके/कारोबारी की अर्धांगिनी है ,खुद के स्थानीय चुनाव के वक्त धमकी देने वाले प्रत्याशी के विरोधी उम्मीदवार के सहयोग लेकर जिला बोर्ड के चुनाव जीत गई और जब विधान सभा के उपचुनाव के मौसम आये ,तब उसे भी धोखा देकर "सत्ता मंच " के साथ जुड़ गई ----धन्य है गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली यह  राजनीतिज्ञ !

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा क्षेत्र के मतदाताओं को चाहिए की ' वे धीर-गंभीर उम्मीदवार को ही अपना भाग्य विधाता चुने ' अन्यथा डालटनगंज क्षेत्र वासियों की तरह रोते रह जायेंगे ! 

मैं लेटी थी , वह लेटा था, 
मैं नीचे थी ,वह ऊपर था ,
वो देता था , मैं लेती थी, 
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वह मेरा राज दुलारा था ,
 रहस्यवादी / छायावाद के प्रमुख स्तम्भ कवियत्री महादेवी वर्मा के बहुचर्चित उक्त काव्य में आज के आभासी संसार में काफी महत्त्व है । तब नेट वगैरह नहीं थे ,लेकिन संकेत होते थे ,तात्पर्य यह कि नैसर्गिक रोमांच ,प्रेम ,वात्सल्य के मध्य गजब की तारतमयता होती थी , मगर आज के वर्चुअल वर्ल्ड में सिर्फ छलावा ही छलावा है । 
कल्पना करें ,जब महादेवी उस कविता को पहली बार बनारस की गोष्ठी में पाठ करते हुए दो पंक्तियों के पश्चात थोड़ा रुक गई ,तब क्या दृश्य /सन्नाटा होंगे  । वर्मा के अंतिम पंक्ति में ही यह रहस्य बेपर्द हुआ कि वह उनका अपना बेटा था । इसके पहले मंच में विराजमान कवि और श्रोता की उत्कंठा इतनी तीव्र थी कि लोग  उस काव्य पाठ को कुछ और ही समझ गए थे और आज की इस अभासी दुनिया में कौन किसकी परवाह करता है ,यह सोचना ही बेकार सा प्रतीत है !