Thursday 25 February 2016

टीका -टिप्पणी /एसके सहाय

 झारखण्ड में अगले वित्तीय वर्ष २०१६-१७  के लिए प्रस्तुत किया गया बजट लीक के फ़क़ीर है ,खासियत यह कि कृषि क्षेत्र में यह पिछले बजट की तुलना में दुगना राशि के प्रबंध किये जाने की बात है ,तो विधायकों को तीन की जगह अब चार करोड़ रूपये की राशि उक्त मद में की गई है ,यह भी नहीं सोचा कि बगल के राज्य बिहार में विधायक कोटे की राशि सैंद्धांतिक रूप से पिछले पांच सालों  से ही बंद है । दिलचस्प बात यह कि पलामू में मेडिकल कॉलेज स्थापित किये जाने की बातें मुख्य मंत्री रघुबर दास के साथ -साथ पलामूवासी स्वास्थ्य मंत्री रामचन्द्र चंद्रवंशी विगत एक साल  से करते रहे हैं ,मगर इसकी  कोई घोषणा नहीं है ,जबकि  अन्य क्षेत्रों में खोले जाने की घोषणा बजट में है --

झारखण्ड/मेदिनीनगर - भाजपा के पलामू जिलाध्यक्ष के पद पर निर्विरोध काबिज अमित तिवारी 'कोरा  कागज' की तरह हैं ,जिनमे अभी रंग भरा जाना है । विद्यार्थी परिषद के जरिये चुनावी राजनीति में पांकी विधान सभा क्षेत्र से पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमा कर मात खाने के बावजूद सक्रीय राजनीती में सीधे हस्तक्षेप के बाद क्या -क्या गुल खिलना है ,इसके दीदार का इंतजार है !
     
क्या आपको यह नहीं  लगता कि 'इस्लाम और साम्यवाद' में राष्ट-राज्य की स्पष्ट संकल्पना नहीं होने से आतंकवाद को स्वाभाविक बढ़ावा मिला है !
   
क्या आपने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बदलते कवरेज रूख पर गौर किया है ?  नहीं न ,तो ध्यान दीजिये - नरेंद्र दामोदर दास मोदी के प्रधान मंत्री के पद पर आसीन्न होने के साथ ही खबरिया चैनलों पर प्राय हर दिन सामरिक शक्तियों के बारे में जानकारियां दी जा रही है ,इसमें भारत समेत देश -विदेश के हर कोणों के मुद्दे  पर प्रसारण हो रहे हैं । क्या इसके संकेत को आप समझ रहे हैं ? 
   
   
किडनी /कल शाम की ही बात है ,मै अपने शहर के बेहतरीन होटल 'ज्योतिलोक' के लॉबी में अकेला बैठकर एक हाथ में टीवी के रिमोट थामे और दूसरे हाथ में टोस्ट-कॉफी के साथ अपनी तन्हाई को दूर करने की कोशिश में था ,तभी वहां अप्रत्याशित ढंग से मुझे खोजते -खोजते बचपन के यार अजय कुमार सिन्हा तशरीफ़ रखते ही कहने लगे , तुम तो सबसे बड़े मीडिया के पत्रकार हो ,एक काम मेरे लिए करो , मैंने पूछा क्या - उसने कहा कि एक सज्जन को अपनी किडनी दान करनी है और उसे सर्व साधारण को अवगत कराना है ,यह ए प्लस ग्रुप रक्त का है ,इसके लिए ९४३१५५५८११--७२०९३८६०७७ से लोग संपर्क कर सकते हैं ,सो आपके सेवा के लिए इसे जारी कर रहा हूँ मित्रो ,धन्य है मेरा मित्र --


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को लेकर हुए विवाद की जड़ में राहुल गांधी है ,यह न वहां जाते और न भाजपा इसे तूल  देती ! यह अधकचरे/अपरिपक्व  छात्रों के जरिये खड़ा किये गए हंगामा है ,जो शैक्षणिक जीवन में अक्सर गुमराह होते रहे हैं ,देश के छात्र आंदोलन के इतिहास पर नजर दौड़ाये - 

   क्या आपको नहीं लगता कि राहुल गांधी "निठल्ले" होने की वजह से ऊट -पटांग बयानबाजी अर्थात विचार अभिव्यक्त करते रहते हैं ? निठल्ला का आशय है- व्यक्तिगत/सार्वजनिक जीवन में कर्तव्य बोध का अभाव अर्थात जिम्मेदारी के अहसास से परे होना ।  

राष्ट भक्त/ राष्ट द्रोही के मुद्दे पर बहस बेमानी अर्थात व्यर्थ है । देश में वाम दल हों या भाजपा ,इनके पूर्वजों की अहम भूमिका आजादी के  संघर्ष में विशेष नहीं है ,लेकिन मौजूदा लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इनके योगदान की उपेक्षा नहीं की  सकती अर्थात इनको नकार नहीं  सकते  ,ठीक इसके उलट कांग्रेस पर भी यही मापदंड लागू है ,जिसमे पराधीन भारत में अप्रतिम योगदान है ,मगर आज की मौजूदा राजनीती में जज्बे,त्याग,समर्पण,ईमानदारी , परोपकार ,सकारात्मक/रचनात्मक सोच से यह कोसों दूर है ! 

क्या आपको यह आभास नहीं होता कि रघुबर दास का मुख्य मंत्री के रूप में सत्ता/शासन/प्रशासन पर पकड़ (वेट) नहीं है !

जो राजनीतिक  भावनात्मक मुद्दे   को लेकर सामाजिक/राजनीतिक क्षेत्रों  क्रियाशील तत्व होते हैं ,वे बेहद घटिया किस्म  इंसान होते हैं ! 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विगत ९ फ़रवरी को घटित मामले को लेकर  हो रही बहस में राज्य (देश)और सरकार  के बीच के फर्क को  क्या बहसबाज समझते भी हैं या फिर   दलबन्दी के तहत हो-पों-चीं  कर अपने को तीसमार खां भुझने की  भूल में हैं ! 

  राजीव  गांधी  के हत्यारे को रिहा करने पर तमिलनाडु में जयललिता सरकार  उतारू है ,फिर अफजल गुरू तो भारतीय हैं ,फिर इनकी फांसी की सजा पर हुई  मौत को लेकर  न्यायिक /सामाजिक बहस  पर एतराज कैसा ? उधर बेअंत सिंह के हत्यारे को लेकर अकाली सरकार की नीयत पर क्या विचार  है आपके दोस्तों --  

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में घटित मुद्दे पर प्रतिपक्ष ने बहस की मांग करके अपनी फजीहत को ही न्यौता दिया है ! राष्टवाद/देशभक्ति/देशद्रोह जैसे मुद्दे पर आरएसएस जनित नेताओं की इस विषय में महारथ (मास्टरी)हासिल है ! इनकी चुनौती सब कोई स्वीकार नहीं कर सकते !

ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया जा रहा था ,तब इनके मुख से यह निकला-'प्रभु इन्हे माफ़ करना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं ' सचमुच में यह प्रेम एवं करूणा की अथाह सागर की गहराई से उदभुत मानवता के प्रति अमूल्य विचार आज भी प्रासगिक हैं । 
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आजादी के बाद रेलवे एक बार को छोड़कर कभी घाटा में नहीं रही ,सिर्फ रेल मंत्री रामसुभग सिंह के कार्यकाल में घाटा साफ -साफ दिखा था ,बाद में यह हमेशा मुनाफे में रही है ,हाँ इसमें सत्तासीन तत्व अपने राजनैतिक हितों को ख्याल कर रेल बजट को प्रचारित करते रहे हैं ! लालू इरा इसका बेहतरीन उदहारण है -

Saturday 20 February 2016

हिमगिरी से हिमवानो के संघर्ष


                                                                      (एसके सहाय)
       बात नेहरू-लोहिया युग की है , भारत  १९६२ के चीन युद्ध में मात खा चूका था , लोक सभा में इस युद्ध के बारे में प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू, बहस के दौरान  चीन -भारत युद्ध के प्रसंग में यह कहा कि 'चीन ने जिस भारतीय भूभाग पर बलात कब्ज़ा किया है , वह चिंता के लायक नहीं है,क्योंकि वहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता ,वह देश  का महत्वहीन  हिस्सा है ' यह सुनकर डॉ राममनोहर लोहिया ने तपाक से बोले कि 'प्रधान मंत्री महोदय ,आपके सिर पर भी एक बाल नहीं है ,तो क्या आप उसे दुश्मनों को इसे हवाले कर देंगे ? ' 
  यह प्रतिक्रिया होना था कि पूरा सदन स्तब्ध हो गया ,अंतत नेहरू ने अपनी गलती स्वीकारी ,फिर सदन ने एक स्वर से अर्थात सर्व सम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर संकल्प लिया  कि भारत ,चीन से तबतक चैन से नहीं बैठेगा ,जबतक हड़पे गए भूमि को वह चीन से वापस नहीं ले लेता ।  और अब जरा ,सियाचिन गलेशियर में बर्फ के टुकड़ों से शहीद हुए दस जवानों के बारे में विचार करें ,तब  अजोबो-गरीब स्थिति से आपको सबका पड़ेगा । 
     ऐसा इसलिए कि ,अबतक ज्ञात इतिहासों में युद्ध दो देशों या कहिये दो समूहों के बीच हथियारों के जरिये लड़े जाते रहे हैं ,लेकिन यह जो युद्ध ऊँचे हिमपर्वतों के साथ भारतीय जवानों का है ,यह सतत चलने वाला है ,जिसका कोई मारक उद्देश्य/लक्ष्य नहीं है अर्थात देश की सीमाओं की चौकसी रखने के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध है ,जिससे बच निकलने की कोई वैज्ञानिक प्रविधि अबतक ईजाद नहीं है ,सो शहीद होने के लिए भारतीय सैनिक अभिशप्त हैं । 
  सियाचिन गलेशियर पर निगहबानी के दौरान अबतक ८३६ सैनिक अपनी जीवन को होम कर चुके हैं और यह पिछले ३५ सालों में हुआ है अर्थात १९८६ के बाद , मगर तकनीक के अभाव में सीमा की रखवाली में कोई नई प्रविधि अभी तक सामने नहीं आ पाई है , जिससे भविष्य में और अधिक जवानों के खोने की आशंका बानी हुई है और हम हैं कि पडोसी देश पाकिस्तान को विश्वास में लेकर उसे सुरक्षित करने की दिशा में खोई उल्लेखनीय कदम नहीं बढ़ा सके हैं ।  
   वैसे, भारत -पाक दुश्मनी परम्परागत है,इसके बावजूद इसकी रखवाली के लिए समुचित एवं ठोस विकल्प नहीं ढूंढ पाना यह हमारी सामरिक कमजोरी को इंगित की है । पाकिस्तान का भी यही हाल है ,जिसकी विश्वसनीयता शुरू से संदिग्ध है ,फिर इसके हल हो तो कैसे यह यक्ष सवाल आज देश के समक्ष  बना हुआ है । \
     सियाचिन गलेशियर भारत के लिए ऐसा क्षेत्र है ,जहाँ जीवन के साथ प्राकृतिक संसाधनों का भी कोई मूल्य नहीं है ,इसके बावजूद इसकी प्रहरी में कोताही बरतना ठीक नहीं है । युद्ध अर्थात संघर्ष सीधे सैनिकों के मध्य होता है ,लेकिन यहाँ तो प्रकृति ही जवानो पर कहर बरपाती दिखती है ,ऐसे में भौगोलिक सीमा अर्थात संप्रभुता की रक्षा एक राष्ट-राज्य के लिए सर्वोपरि रूप से अपरिहार्य है । 
   बर्फ के शोलों के तौर पर तब्दीली कैसे होती है ,यह बलिदान हुए जवानों से प्रकट है । सियाचिन का महत्व १९८५ के पहले कभी नहीं था ,लेकिन जब पाक में सैनिक तानाशाह मो जिया उल हक़ सत्ता की बागडोर संभाली ,तभी से इसको लेकर भारतीय सीमाओं में खतरे की घंटी सुनाई दी । छदम युद्ध के नाम पर जेहादी जत्थे को धर्म की चाशनी में सीमापार से चुनौती मिलने के साथ ही  हलचल बढ़ गई ,तभी भारत को अचानक इसके महत्व का भान हुआ । चौकसी पहले भी थी ,लेकिन यह न्यूनाधिक मात्र में थी ,पर बाद के वर्षों में पूर्णकालीन तैनाती हिमवानों की जरूरत बन गई ,जो अब के अन्तराष्टिय परिवेश में पीछे हटना जोखिम से कम नहीं रहा । 
   ऐसे में प्रश्न  उत्पन्न है कि आखिर उपाय क्या है , उपाय है और यह बहुत ही सीधा सा मसला है ,हम सैटेलाइट के उपयोग करने में माहिर हैं ,फिर क्यों न इसकी निगहबानी में उसे इस्तेमाल करने को तैयार हों ! टुकड़े -टुकड़े में सीमा की रखवाली में व्यष्टि की जगह समष्टि रूप से सीमा सुरक्षा बल/सेना को इसके लिए अभ्यस्त/प्रशिक्षण दिए जाने की  आवश्यकता है । प्रकृति पर विज्ञानं ने काफी फतह पाई है ,मगर कुछेक ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ प्रकृति अब भी मनुष्य जनित शक्तियों पर भारी है ,जिसकी हम उपेक्षा  नहीं कर सकते । 
   नेहरू अपनी अक्षमता छिपाने के वास्ते चीन द्वारा हड़पी भूमि की अनुपयोगिता की बात कर रहे थे ,मगर आज भारत इतना सक्षम है कि खुद के ईजाद तकनीक से अपनी सीमाओं की सुरक्षा कर सके । 

Wednesday 17 February 2016

तदर्थवाद आर्थिकी पर मोदी सरकार

                                                                       एसके सहाय 
देश में अार्थिक उन्नयन  के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अबतक के विकास के निमित्त उठाये गए क़दमों को विश्लेषित करने पर स्पष्ट प्रतीत है कि "योजनागत" जरूरतों पर केंद्रीय सरकार का बल नहीं है । मौजूदा स्थितियों को ही फौरी तौर पर ठीक करने पर सरकार का जोर परिलक्षित है । ऐसे में ,प्रश्न है कि भविष्य की तस्वीर 'समृद्ध भारत' की कैसी होगी ? इसपर संशय के बादल घनीभूत हैं । 
       कहने को योजना आयोग की जगह अब नीति आयोग अस्तित्व में है ,तो क्या यह नव गठित आयोग पूरे देश को समान रुप से आत्मसात करके  प्रगति की रूपरेखा खिंच पाने में कामयाब हो पायेगा ? यह यक्ष सवाल अभी से ही चोटी के अर्थ विशेषज्ञों को मथ रहा है । सरसरी तौर पर मोदी सरकार दो क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देती प्रतीत है ,इसमें सामरिक और विनिर्माण के क्षेत्र हैं ,लेकिन इसमें भी आम लोगों की सहभागिता नगण्य है ,जो कुछ भी अबतक दिखा है ,उसमे पैसेवालों का ही हित साधन दीखता । 
      सिर्फ नाम परिवर्तित कर देने से किसी संस्थान की सार्थकता सिद्ध नहीं होती ,बल्कि उसकी जरूरत की उपयोगिता ही महत्व रखती है । इस परिप्रेक्ष्य में शब्दों के कोई मायने  होते ,योजना  या नीति इसकी उपयोगिता तभी है ,जब दूरदर्शी सोच  तहत उसकी क्रियान्वयन हो ,अन्यथा विकास की सभी क्षितिज व्यर्थ है । 
  अतएव, पिछले दो केंद्र सरकार के पेश बजटों को देखें ,तो जाहिर होगा कि मौजूदा सरकार सामाजिक क्षेत्रों के कल्याणकारी योजनाओ में भारी कटौती की ओर कदम बढ़ा दी है और उद्योग स्थापना एवं मुलभुत संरचना पर इसकी विशेष जोर है । विकास का यह जोर पर्यावरण की कीमत पर है । कृषि,सिंचाई ,पेयजल ,दवा दारू ,भोजन अर्थात खाद्यान को नजर अंदाज करने की प्रवृति है ,जो की देश के लिए तीन चौथाई आबादी को यही मूल रूप से जरूरत है । 
       इस बात को ऐसे समझें ,मोदी सरकार शुरू से अपने मनमाफिक भूमि अधिग्रहण अधिनियम बनाने के प्रति उतारू थी ,फिर अब वस्तू सेवाकर (जीएसटी) के लिए जोर लगाई है । रसोई गैस हो या फिर रेलभाड़ा ,मछली बाजार की तरह कीमतों के दाम ऊपर -निचे करके क्या सन्देश देना चाहती है ? भूमि/सेवाकर सरकार के अनुसार नहीं लागू हो पाया ,तो कौन सा पहाड़ टूट जायेगा ! आर्थिक विकास में रोजगार सृजन एवं इसकी सहज उपलब्धता ही महत्वपूर्ण होती है । संगठित क्षेत्रों के लोगों को राहत देना बड़ी बात नहीं है ,यह शुरू से हर सरकार करते आई है ,बल्कि अधिसंख्य आबादी को दूरदर्शी संकल्पना के तहत कदम बढ़ाने की आवश्यकता है,जहाँ तत्कालीन आधार के कदम बेमानी हैं । 

टीका -टिप्पणी/एसके सहाय

मुझे जान से मारने की धमकी मिली है ,यह धमकी हत्या के जुर्म में सजायाफ्ता एवं झारखण्ड हाई कोर्ट से जमानत पर जेल से बाहर आये पुलिस संरक्षित दलाल ,मुखबिर, एसपीओ संतोष उर्फ़ प्रियरंजन उर्फ़ सद्दाम वगैरह नामों से पहचान वाले आपराधिक तत्व ने दिया है । इस बाबत जब मैंने स्थानीय थानेदार एसके मालवीय को आवेदन देकर उसके विरूद्ध कार्रवाई करने एवं अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई ,तब उन्होंने उसे लेने में आनाकानी की, फिर अन्यमयस्क होकर ठाणे के मुंशी से रिसीव कराकर उसकी एक प्रति देते हुए मेरे आरोपी को आवाज देकर बुलवाया , फिर पुलिसिया रॉब में उसे डांटते हुए धमकी देने की मनाही की , पर यह क्या घटना के दूसरे दिन थानेदार(मेदिनीनगर) के बुलावे पर दोपहर उनसे मिलने गया ,तप उन्होंने कहा कि शाम को आइयेगा । पर यह क्या ? शाम को घर से फोन आया कि मेरे आरोपी एक पुलिस दल के साथ मुझे तलाशने आया है ,सो मै ,भागे भागे घर पहुंचा ,तो ASI अरविन्द सिंह ने तैश में बोला कि आपके द्वारा और इसके द्वारा दी गई आवेदन पर जाँच करने आया हूँ ,आप अपना पक्ष रखिये ,मैंने उसे अपने प्रधान एवं जिला सत्र अदालत के कागजातों को उसे देते हुए बतलाया कि पिस्तौल तानने एवं गोली मरने की वजह यही है , तो उसने मुझे धौंस पट्टी में लाकर अपमानित करने की कोशिश की ,तभी तत्क्षण मैंने पलामू रेंज के DIG साकेत कुमार सिंह को फोन करके एक पुलिस अफसर द्वारा मेरे साथ किये जाने वाली बर्ताव की सुचना देते हुए अपनी जान बचाने की गुहार लगाई,तो उन्होंने आश्वस्त किया की "धैर्य रखिये ,सभी का इलाज " है ,इस बातचीत के सेकंड बाद जाँच के बहाने मुझे धमकाने पहुंचे अफसर को उसके मोबाइल पर फोन आया ,तब वह चुपचाप यह कहते हुए मेरे आवास से चला गया कि मैंने कइयों को ठीक किया है ,आपको भी ठीक कर दूंगा ,कोई नेता /अफसर मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं पायेगा ! अब मुझे सचमुच में भय लग रहा है ,मेदिनीनगर पुलिस के किस्से पहले से ही बदनाम एवं चर्चित है ,सुनियोजित अपराध और उसमे इसकी भूमिका संदिग्ध रहे हैं ,जाये तो जाये कहाँ विशेष बाद में -- यह वाक्या गत बुधवार एवं गुरूवार की है । 

कभी इलाहबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति तेज़ नारायण मुल्ला ने एक मामले की सुनवाई हुए कहा था - "देश की पुलिस संघटित आपराधिक गिरोह है।" काफी कुछ मामला झारखण्ड के मेदिनीनगर पुलिस के साथ यह समान्तर  है । मैंने हत्यारे संतोष उर्फ़ प्रियरंजन ,जो अदालत से आजीवन कारावास में दण्डित है ,के विरूद्ध प्राथमिकी के लिए लिखित अाग्रह किया ,तब पुलिस ने बड़े आदर के साथ उसे बुलाकर मेरे खिलाफ भी मामला दर्ज़ करने के लिए उसे उकसा कर  आवेदन देने को प्रेरित किया और इसमें पुलिस कामयाब रही । वैसे ,पलामू जिले में अलग-अलग हुए दो  हत्याओं में दो spo / दलाल/मुखबिर हत्या के अपराध 
में पूर्व में जेल की हवा खा चुके हैं । इनकी गिरफ्तारी तभी हुई ,जब इनकी सेवा लेने वाले पुलिस अधीक्षक का पलामू से तबादला हो चूका था और इसमें एक संतोष भी है, जिसने मुझे जान मारने की धमकी दी है ,उसने ऐसा क्यों किया ,इसे समझने /जानने के लिए पुलिस के पास समय नहीं है  ,क्योंकि वह इनके चहेता है ,आमद-रफत का रिश्ता है । इसलिए कभी भी मेरे साथ अनहोनी हो सकती है ,मित्रो --
 
राहुल  गांधी 'हम कभी नहीं सुधरेंगे' वाली राजनीती  शिकार हैं , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय  जाकर सिर्फ यह कहना कि 'अभिव्यक्ति की आजादी' को ख़त्म नहीं  होने देंगे,उनकी नकारात्मक विचारधारा का  द्योतक है । मूल सवाल पर अर्थात देश विरोधी व्यवहार पर वह आखिर मुंह क्यों नहीं खोलते ? अगर ,वह मानते हैं कि अफजल गुरू और पाक परस्ती  को लेकर  कोई बात विश्वविद्यालय  नहीं हुई ,उसे भी  बेबाक  ढंग से देश  के सामने  रखना चाहिए । 

झारखण्ड/ चालू वित्तीय वर्ष के समाप्त होने में अब ४५ दिन  शेष रह गए  हैं ,फिर गांव-गांव योजना बनाओ अभियान का  मतलब ?  अभी तो योजना मद की  राशि को निर्माण कार्य में  युद्ध स्तर पर खर्च किये जाने की आवश्यकता है ,ताकि वह वापस नहीं हो सके । ऐसी नौटंकी से बाज़ आना चाहिए । योजना बनानी है ,तो अगले  वित्तीय वर्ष २०१६-१७  शुरूआत में ,फिर जलसा आयोजन करके अभी तमाशा खड़ा करने की  जरूरत है ?  

मौजूदा भारतीय लोकतान्त्रिक सत्ता में क्या आपको यह महसूस नहीं होता कि उसमे "लेढ़ प्रवृति"के लोग काबिज हैं ! 

अमरीका को नहीं समझना ही भारतीय कूटनीति की विफलता है , वह तो पाकिस्तान को एफ -१६ ही नहीं , बल्कि उससे भी ज्यादा देगा , लेकिन हम कैसे उन दोनों देशों को अपने अनुकूल साधे ,यह कूटनीति आजादी के बाद से ही नहीं समझ पाये हैं , अमरीका की प्रवृति देखें - प्रथम महायुद्ध में वह खुद शामिल नहीं था लेकिन उसमे उलझे पक्ष-विपक्ष  समान रूप से हथियार बेचकर अपने को दौलतमंद रहा ,फिर दितीय  युद्ध में भी वह तभी कूदा ,जब जापानियों  पर्ल हार्बर पर आक्रमण कर दिया अर्थात मजबूर होकर वह उसमे शामिल हुआ ,फिर वर्तमान अन्तराष्टिय परिवेश में भारत की फिक्र वह क्यों करेगा ? 


Wednesday 10 February 2016

माने -मतलब /एसके सहाय

भारतीय संस्कृति के चेहरे देखिये-- प्राचीन काल में "अर्थचोर" को समाज बहिष्कृत कर देता था अर्थात भ्रष्ट तत्वों को "हेय" दृष्टि से देखता था ,लेकिन अब अर्थात मौजूदा दौर में ,जो जितना भी बड़ा 'आर्थिकीय चोर हो ,समाज के नजरों में उसकी पूछ अर्थात सम्मान की नजरों से देखे जाने की प्रवृति विकास कर गई प्रतीत है ! 

 झारखण्ड/राजकर्मचारियों में काम  प्रति अभिरूचि नहीं हो ,तब कितने भी आदेश/निर्देश सरकार जारी करे, डांट -फटकार हो ,'कार्य संस्कृति' में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होने वाला है ! मुख्य मंत्री रघुबर दास बार-बार चिन्हित कर-कर के कई छोटे-बड़े अफसरों को अमुक-अमुक कार्य करने और नहीं करने की बात सार्वजनिक तौर पर पिछले साल भर से करते रहे हैं , इसका कोई प्रभाव पड़ा ! जिलाधीश क्षेत्र में जाएँ.यह तकिया कलाम अक्सर सुनने को मिलता है ,क्या क्षेत्र भ्रमण भर  से समस्याएं हल हो  जाएगी और अगर अफसर घूमते  रहेंगे ,तब काम कौन करेगा ? " मूल संकट  पहचान" का अभाव मौजूदा सरकार में साफ-साफ दिखता है ! 

झारखण्ड/बिहार में राजकर्मचारियों के  विरूद्ध चलने वाला विभागीय कार्यवाही की मियाद आठ माह तय है अर्थात इस अवधि के भीतर सेवा मुक्त/युक्त  अथवा बर्खास्तगी निश्चित है और झारखण्ड में ! यहाँ तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के प्रमुख मुरारीलाल मीणा के नेतृत्व में लगातार भ्रष्ट(घूसखोर) कर्मचारी गिरफ्त में आये हैं ,फिर इनकी नौकरी को लंबे समय तक बरक़रार रखने का क्या औचित्य ? है न दिलचस्प विषय --

 नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्रित्व में दो क्षेत्रों में सर्वाधिक तेजी से विकास करने पर जोर है - प्रतिरक्षा और विनिर्माण !इसके क्या महत्व हैं ? 

   पाकिस्तान में सक्रिय और अमरीका द्वारा एक  करोड़  का घोषित आतंकी एवं जमात-उद -दावा प्रमुख हाफिज सईद ने फिर आज गुलाम कश्मीर में एक रैली के दौरान धमकी दी है कि वह पठानकोट जैसे दर्द भारत को देते रहेंगे ! अब देश को किस  बात का इंतजार है ? सीधे ड्रोन/मिसाइल दाग कर किस्सा ही ख़त्म क्यों नहीं कर देती केंद्र सरकार -

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति अरूण चौधरी ने भ्रष्टाचार के एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि "लोग अपना हक़ प्राप्त करने के लिए टैक्स अदा करना बंद करें " सचमुच यह जो कर अदायगी है न दोस्तों ,सारी लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं के बुराइयों की जड़ है । मैंने पहले भी कई दफा ध्यान आकृष्ट किया है कि टैक्स सुविधा/सेवा के लिए है , न कि अय्यासी(भ्रष्टाचार) के लिए ! 

झारखण्ड/ मुख्य मंत्री रघुबर दास ने एक भ्रष्ट अभियंता यादवेन्द्र सिंह को भ्रष्ट कारनामों को लेकर बर्खास्त कर स्वागत योग्य पहल की है ,लेकिन कम से कम यह भी देखने की जरूरत है कि  उनके कार्यकाल में जो रंगे हाथ घूस लेते राजकर्मचारी पकड़ में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा आये हैं ,उन सभी को तेज़ी से बर्खास्त करें और जेल में दण्डित  करें ।अब देर बहुत हो चुकी है ,उलटी गिनती शुरू होने के आसार हैं !  

झारखण्ड/ क्या आपको नहीं लगता कि मुख्य मंत्री रघुबर दास 'किलकिश" व्यक्तित्व के स्वामी हैं ? याद कीजिये , मुख्य मंत्री  पद पर विराजमान होने के  साथ ही अपने निचले कतार  के नेताओं  लिए "चिरकुट"  शब्द का संबोधन उनके मुख से निकला था ,जिसपर काफी बवाल हुए थे । दास कैसे भूल गए कि दलगत व्यवस्था में "कार्यकर्त्ता" किसी पार्टी के "प्राणवायु" होते हैं ! नौकरशाही अर्थात राजकर्मचारी कैसे काम कर रहे हैं ,इसकी धरातल से कौन गैर अधिकृत  तौर पर सरकार को अवगत करायेगा ?

समुन्द्र में धाक / चार से आठ फ़रवरी तक हिन्द महासागर में भारतीय नौ सेना के नेतृत्व में अमरीका,रूस,चीन ,जापान समेत  ५२ देशों की नौसेनाओं के संग युद्धाभ्यास का अर्थ है ,भविष्य की सामरिक तैयारियों के साथ मित्र/दुश्मन को पहचानना , कभी खैबर दर्रे अर्थात पश्चिमी सीमांत से देश के भीतर घुसपैठ होने से भारत ७०० सालों तक आक्रांत रहा और बाद में समुंद्री रास्ते से आये घुसपैठिये अर्थात अँगरेज़,डच, पुर्तगाली,और फ्रेंच तत्वों से २०० वर्षों तक पददलित रहा । 

अमरीका में राष्टपति के चुनाव होना है और पक्ष/विपक्ष अभी से मुस्लिम-मुस्लिम ,इस्लाम -इस्लाम के नाप का जाप अपनी सुविधानुसार करने लगे हैं ,जिसका प्रभाव तीसरी दुनिया के देशों के लिए खतरनाक हो सकता है ! क्या ओबामा,क्या ट्रम और क्या हिलेरी सभी अब हर बहसों-मुबाहिसों में हर दिन  एक न एक बार मुस्लिम आतंकी की चर्चा अपने हिसाब से करते हैं,तब स्वाभाविक है कि इसके दुष्परिणाम प्रकट हो ! 

भारत जैसे देश में मोदी सरकार को समझना चाहिए कि विकास की शुरूआत  नीचे  से शुरू होती  है ,न कि ऊपर से अर्थात पैसेंजर ट्रेन को एक्सप्रेस में बदला जा सकता है ,लेकिन बुलेट ट्रेन को फिर कैसे नीचे लाया जा सकता है ! हम आज भी गांवों के देश में है ,जहाँ आबादी के तीन चौथाई हिस्से को पीने के शुद्ध जल मयस्सर  नहीं हैं ,फिर मुठी भर लोगों के लिए पैसे का खेल क्यों ?

झारखण्ड/ क्या राज्य के मुख्य मंत्री रघुबर दास बाहरी तत्व हैं ? जैसा कि कुत्सित मानसिकता के शिकार राजनीतिक तत्वों ने झारखंडी समाज में हवा छोड़ कर अपनी जमीन तैयार करने की कवायद शुरू की है ? यदि दास ,बाहरी हैं ,तब सभी गैर आदिवासी लोग भी बाहरी हैं ! यदि संकुचित अर्थ में बाहरी तत्वों की शिनाख्त हो ,तो सबसे बड़े दिकू अर्थात बाहरी शिबू सोरेन और उनका पारिवारिक कुनबा है, जो रामगढ़ जिले के गोला क्षेत्र के मूल व्यक्ति हैं ,जो संथाल में वहां के संथालियों को बेवकूफ बनाकर राजनीती में अबतक जिन्दा बने हुए हैं !तो क्या जमशेद जी(टाटा) का भी पारसी कुनबा बाहरी हैं ?

झारखण्ड/ रघुबर दास , मुख्य मंत्री बनने के बाद तीन माह में "अधिवास"नीति घोषित किये जाने की बात की थी ,लेकिन उसे घोषित कर पाने में कामयाब नहीं हुए ,तो कौन सा प्रतिपक्ष ,झाविमो  को छोड़कर लिखित सुझाव देने की हिमाकत की !राजद,कांग्रेस और झामुमो ने अबतक स्थानीय नीति कैसी हो ,पर लिखित सुझाव नहीं दी है ,इसपर आनाकानी क्यों ? सच तो यह है कि स्थानीय नीति के प्रश्न पर गैर भाजपाइयों के दिमाग में कीड़ा राजनितिक लाभ के लिए कुलबुलाता रहता है !

परसों मध्य रात की बात है ,मै डालटनगंज रेलवे स्टेशन अपने बेटा को रिसीव करने वहां पंहुचा था ,ट्रेन को आने में देर थी ,सो स्टेशन पर लगे नई कुर्सियों के बीच एक पर बैठ कर उसके आने की प्रतीक्षा  करने लगा , वहां पहले से भी कई मुसाफिर बैठे थे ,तभी दो अनजान से सज्जन खाली पड़े कुर्सी में आकर विराजमान हो गए । कुछेक क्षण के बीच एक सज्जन ने बातचीत के मूड में कहा कि 'आज ठण्ड'ज्यादा है ,देखिये न कनकनी लग रही है ,यह कहते हुए उसने कुर्सी के मुययना करते हुए कहा कि लगता है ,यह नई है , यह सुनकर मेरे मुंह से अनायास जानकारी देने वाले अंदाज में निकला कि यह स्थानीय सांसद बीड़ी राम के सौजन्य से है ,दो -तीन दिन पहले ही लगा है -यह सुनना था कि उनके मुंह से अचानक निकला , और क्या करेंगे ? सांसद निधि से प्राप्त राशि को खर्च करना है न , हलकी कामों में नेता लोग अपने को तीसमार समझते हैं , उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ठोस कामों में सांसदों /विधायकों को दिलचस्पी होती नहीं ,कमीशन कहाँ से मिले ,इसकी जुगत में भिड़े रहते हैं ,एक अरूण शौरी भी सांसद थे ,जिन्होंने अपने पुरे पांचों साल के सांसद मद की राशि कानपूर आईआईटी को दे दिए ,तो एक बेहतर काम हुआ ,जीर्ण-शीर्ण भवन में जान आ गई , यह सीट तो रेलवे भी अपने खर्च से लगा सकता था । सोचता हूँ , शहर में एक जिला स्कुल है , जो अपनी गौरव गाथा के लिए प्रसिद्ध है और आज इसकी स्थिति काफी दयनीय है ,इसपर किसी सांसद /विधायक की नजर क्यों नहीं जाती ?

दाऊद गिलानी अर्थात डेविड कौलमेन हेडली ने पूरी तफ्सील से भारतीय अदालत को पाक आतंकियों द्वारा किये गए मुंबई हमले के बारे में जानकारी दे दी है ,तो क्या अब भारत कूटनीतक और सैन्य तरीके से अपनी शर्तों पर दुश्मनों के साथ इंसाफ के लिए जरूरी व्यवहार करेगा ? 

Wednesday 3 February 2016

माने -मतलब / एसके सहाय



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  यह कहना कि भारतीय नीति दुनिया में " सकारात्मक योगदान "के प्रति प्रतिबद्ध है , का क्या मतलब है ?

निचली अदालत ने सौलर घोटाले में केरल के मुख्य मंत्री ओमान चाण्डी के विरूद्ध आपराधिक अभियोग दर्ज़ करने के आदेश दिए और उच्च न्यायालय ने उसपर रोक लगा दिया , से क्या यह प्रतिध्वनित नहीं होता कि न्यायपालिका के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन करने का वक्त आ गया है !ऐसे ढ़ेरों उदाहरण हैं, ,जिसमे निचली, उच्चऔर सर्वोच्च अदालत के फैसले, आदेश, निर्देश और विचार आपस में अंतर्विरोधों से भरे पड़े हैं अब खबर यह है कि fir दर्ज़ करने के आदेश देने वाले न्याधीश एसएस वासन ने इस घटना को लेकर अनिवार्य स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए गुहार लगा दी है अर्थात इस्तीफा दे दिया हैं । 

उच्चतम न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त के पद पर सेवा निवृत न्यायमूर्ति संजय मिश्रा की नियुक्ति कर देने से ,क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि न्यायपालिका ने कार्यपालिका की शक्ति का हनन किया  है ! क्षेत्राधिकार में सीधा हस्तक्षेप --

अब जब साफ हो गया है कि आत्महत्या करने वाला छात्र रोहित वेमुला दलित  नहीं, बल्कि अत्यंत पिछड़ी जाति से ताल्लुकात रखता था ,तो क्या दलित प्रेम को लेकर उपजा आक्रोश ठंडा पद जायेगा ! जैसा कि रोहित के दादी राघवमया ने अपने बीटा/बहु को पिछड़े वर्ग से जुड़ा होने की बात कही है ।म्रितक छात्र "वडेरा"जाति से था ,जो पिछड़ेवर्ग में सूचीबद्ध आंध्र प्रदेश में है । 

हेमामालिनी/ इस तारिका एवं भाजपाई सांसद को कला के क्षेत्र में केंद्र खोलने के लिए पहले रियायती दर पर भूमि सरकार ने दी ,लेकिन उसका विकास नहीं कर पाई ,फिर अब महाराष्ट सरकार ने मुंबई के अँधेरी इलाके में ४० करोड़ रूपये की भूमि को मात्र  ७० हजार रूपये पर आवंटित किया है ताकि वह 'डांस अकादमी' खोल सके । क्या उदार भाव है ? सूचनाधिकार के तहत प्राप्त एक रिपोर्ट ---

हलाल की कूटनीति- खबर है कि फ़्रांस ने ईरानी राष्टपति रफ़संजानी के सम्मान में दिए जाने वाले भोज में "हलाल" किये गए मांस अर्थात रेतकर काटा गया जीव अर्थात तड़पा -तड़पा के मरे गए पशु के मांस परोसने से इंकार कर दिया ,वहीँ दूसरी ओर इटली ने ईरानी संस्कृति-सभ्यता के सम्मान में अपने यहाँ ईरानी राष्टपति को 'नग्न तस्वीर' दिखे नहीं ,सो उसने उन्हें ढंक दिया । साफ है कि यूरोप के दो देशों की वैदेशिक मामले में सोच अर्थात कूटनीति अलग-अलग है ,इसका कारण ईरान की उपयोगिता है ,जिसे फ़्रांस के राष्टपति फ्रांस्वा ओलांद ने अपने तरीके से इजहार किया और इटली ने अपने तरीके से प्रकट किया है । ऊपरी तौर पर यह परस्पर सामान्य मामले प्रतीत हैं ,लेकिन नहीं ,इसमें भविष्य के संकेत छिपे हैं ,फ़्रांस आधुनिक सोच का देश है ,मगर इटली में अपने परम्परागत रूझान कायम है , विदेशियों के लिए थोड़ा झुकना इटली की फितरत में है ,तो फ़्रांस अपने राष्टहित में उत्पन्न संकट को साधने की उत्कंठा है । कुल जमा ईरान का महत्त्व सिर्फ उसके अकूत तेल भंडार का है ,इससे अधिक उसकी उपयोगिता शेष दुनिया के लिए कुछ भी नहीं है । धार्मिक कटटरता के मध्य उसकी विश्व राजनय में उपयोगिता सिर्फ अपनी भौगोलिक स्थिति के लिए है ,जो मध्य एशिया में इसको महत्वपूर्ण बनाये हुए है इससे अधिक कुछ नहीं । आर्य जाति का उदभव स्थल भी कुछ इतिहासकार ईरान को ही मानते हैं ,जिसे एडोल्फ हिटलर , इसकी श्रेष्ठता को मान कर अभिभूत होता था और इसमें भारत के क्या 
कहने ! 

झारखण्ड/ ओम प्रकाश 'अमरेंद्र' ने आज मिलते ही मुझे जानकारी दी कि 'संजय भाई ,बहुित ही दुखद समाचार है ,मैंने उत्सुकतावश पूछा ,क्या ,उन्होंने बताया कि महेन्द्रनाथ उपाध्याय का निधन हो गया ' यह सुनते ही मेरे नजरों के सामने १९८५ ९०  तैर गया ,जब श्याम बिहारी श्यामल के साथ पहली मुलाकात उनसे हुई थी, तब महेंद्र जी अपने 'रावण जिन्दा है' नामक  साहित्यिक कृति को लेकर चर्चा में आने ; लिए जदोजहद कर रहे थे ,तब वह बेरोजगार थे ,बाद  में प्राथमिक शिक्षक होकर आजीविका अर्जित करने में तन्मयता से जुटे ,लेकिन साहित्यिक यात्रा जारी रही । "विषधर" उनका 'उपनाम था ,जिसे उन्होंने मेदिनीनगर से प्रकाशित दैनिक 'राष्टीय नवीन मेल,  जरिये स्तम्भ चलाकर नया आयाम दिए । श्यामल ,सम्प्रति यूपी में दैनिक जागरण में भदोही के प्रभारी हैं । उपाध्याय को मेरी शत-शत नमन है। 

खादी का अर्थ स्वदेशी उत्पादन और इसके उपभोग से है ,इससे इत्तर कुछ भी नहीं =

संप्रग सरकार 'अराजक माहौल" में काम करना ज्यादा पसंद करती थी फिर क्या पड़ी है कि राजग सरकार मौजूदा परिवेश को बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाये ! अपने 'एजेंडे' को लागु करने/लादने का, जो सही मौका है !

पहले आडवाणी और अब यशवंत सिन्हा ने 'आपात्त काल ' जनित आशंकाएं प्रकट की है ,मैंने तो उनसे काफी पहले से ही भविष्य की झलक नरेंद्र मोदी के भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर उदय के साथ देखी है अर्थात "सर्वाधिकरवाद" का उदभव !

क्या आपको अहसास नहीं होता कि पिछले एक दशक से देश में न्यायिक सक्रियता बढ़ गई है ! ऐसा क्यों ? शासन/प्रशासन का मर जाना इसे ही  कहते हैं । हाल में यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति/संप्रग काल में सतर्कता आयुक्त पद पर थॉमस की उच्चतम अदालत द्वारा नियुक्ति समेत ढेरों उदाहरण सामने हैं --

झारखण्ड / मेदिनीनगर - शैलेंद्रनाथ चतुर्वेदी आज पूरे रौ में थे ,वकालतखाना के अपने चैंबर में कुछेक वकील साथियों और सामाजिक क्रियाविदों के साथ फरमाते हुए कहते हैं कि ' आम लोगों के पॉकेट में सीधे डाका डालने की जुर्रत मनमोहन सरकार ने कभी नहीं की ,मगर मोदी सरकार सीधे साधारण लोगों के जेब से पैसे निकालने में तूल गई है ,देखिये भला संजय भैया, अब तीन घंटे में ट्रेन यात्री नहीं पकड़ पाये तो आपका टिकट रद्द हो जायेगा ,क्या भारतीय ट्रेने कभी टाइम पर चली है ! 

जम्मू कश्मीर मामले में भाजपा/पीडीपी राजवासियों से "पाजीपन" का खेल कर रही है ,आखिर इनके बीच स्वर्गीय मुफ़्ती मोहम्मद सईद के साथ क्या समझौता था? लोकतान्त्रिक राज है तो उसे सार्वजनिक करने से परहेज़ क्यों ?