Wednesday 30 March 2016

commentry on indian political system


दाम्पत्य जीवन में आवारगी की तरह रहने वाले शशि थरूर क्या जाने कि "भगत सिंह " क्या थे ! 

झारखण्ड/ राज्य में कांग्रेसियों का दिमाग ख़राब हो गया है , वे आजकल लातेहार में लुटेरों के हाथों मारे गए दो पशु व्यापारियों के मामले को 'राष्टीय मुद्दा' बनाने की कोशिश में हैं , जो इत्तफाक से अल्प संख्यक समुदाय से जुड़े थे,जबकि यह विशुद्ध रूप से आपराधिक मामला है । इनकी चाल देखिये , कांग्रेस हत्या के शिकार परिवार को एक-एक लाख रूपये दिए ,उसे आश्रितों ने ले भी लिया ,लेकिन इसके पहले सरकार ने एक-एक लाख रूपये देने की पहल अनुग्रह राशि के तौर पर की ,जिसे ग्रहण करने से उनके परिजन यह कहकर  इंकार किया कि मुख्य मंत्री आकर उनसे मिले तब वह मानेंगे । क्या सामाजिक/राजनैतिक स्थिति है ?
झारखण्ड/ राज्य के शीर्ष नौकरशाह राजीव गौबा अब केंद्र सरकार की सेवा में हैं ,इनके मुख्य सचिव काल को आप किस रूप में देखते हैं ?
" मिस्टर प्राइम मिनिस्टर , बेतला नेशनल पार्क में १४ लंगूर इसलिए मर गए कि उनके पेट में पानी और भोजन नहीं थे ,यह मैं नहीं कह रहा , उनके हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट ऐसा कह रही है , क्या इसके बावजूद पलामू 'अकाल' क्षेत्र घोषित किये जाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है ? 
   ' वही तो बात करने के लिए यहाँ आया हूँ, बिहार को १८८ करोड़ रूपये के पैकेज राशि सूखे से निजात पाने के लिए दे रहा हूँ'
मेरे इस सवाल पर यह कहते हुए प्रधान मंत्री पीवी नरसिंह राव मेदिनीनगर के चियांकी हवाई अड्डे पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस से उठ गए । यह वाक्या १९९३-९४ की है ,जब पलामू में जानवर क्या आदमी क्या , सूखे/अकाल जनित प्रभावों से काफी मर रहे थे और सरकार अकाल की स्थिति तो मान ही  नहीं रही थी ,सूखे की विभीषिका भी मानने से परहेज कर रही थी । तब मैं uni का प्रतिनिधि था । 

देश में जहाँ कहीं भी अंतरधार्मिक व्यक्ति या व्यक्तियों के  बीच आपराधिक कृत्य होता है ,तो क्या वह सांप्रदायिक हो जाता है ? जैसा कि झारखण्ड के लातेहार जिले में विगत दिनों अल्पसंख्यक समाज के दो पशु व्यापारियों की हुई हत्या के मामले में कतिपय क्षेत्रों में प्रतिक्रिया हुई है ! इस सिलसिले में आज पलामू  जिला झामुमो के सचिव मनुव्वर जम्मा खान से स्थानीय मेदिनीनगर के वकलतखाना  में मुलाकात हुई ,तब उन्होंने कहा कि " आप कैसे कहते हैं कि पशु व्यापारियों की हत्या सिर्फ अपराध भर है ? उनका कहना था कि उनकी हत्या सुनियोजित है और यह असहिष्णुता से जुड़ा है और इसको शह देने वाले भाजपा और आरएसएस से जुड़े तत्वों का है । इसके प्रत्युत्तर में मैंने उनको जवाब दिया कि अगर हर आपराधिक वारदात को अंतरजातीय / अंतरधार्मिक नजरिये से देखा जायेगा ,तब कानून व् व्यवस्था के साथ न्यायिक क्षेत्रों में विकट स्थिति पैदा होगी ,जोर जबरदस्ती का साम्राज्य उत्पन्न होंगें और व्यवस्था  समक्ष हर वक्त संकटापन्न के हालात मौजूद रहेंगे । वैसे ,इन जैसे मामलों के लिए विपक्ष/पक्ष का अपना दृष्टिकोण तो दलगत आधार पर होते ही हैं जो आजकल दिख भी रहा है ! यह बातचीत थोड़ी लंबी खिंच गई जिसमे उन्होंने सवाल खड़ा किया कि "हिन्दुओं के लिए जैसे 'गाय' आस्था का प्रश्न है ,वैसे मुसलमानों के लिए 'सूअर' नापाक पशु है ,फिर इसकी खुलेआम मारे जाने और खाने की क्या जरूरत ? इसपर  भी प्रतिबन्ध लगना चाहिए । 

व्यवस्था अर्थात सिस्टम क्या होता है ,यदि इसे जानना है तो हाल में बिहार में घटित तीन मामलों का अध्यन कीजिये । पहला - सत्ताधारी वर्ग से बलात्कार में आरोपित एक विधायक(राजद) की क्या दुर्दशा हुई ,इसे बताने की जरूरत नहीं है । दूसरा - सत्ताधारी वर्ग के ही दो विधान मंडल सदस्यों  (जदयू) ने अलग-अलग विषयों पर ऊंट-पटांग बात कही ,फलत; दोनों पार्टी से तुरत निलम्बित हुए और तीसरा यह कि कुछेक दिन पहले एक मंत्री ने सजा -याफ्ता कैदी से जेल में जाकर मुलाकात की ,परिणामत;जेल अफसर मुअतल हुए । अब कितने लोग है ,जो जानते हैं कि " व्यवस्था का अर्थ अनुशासन है " ! 

झारखण्ड/ राज्य में अराजकता कैसी है ? इसे समझिए - पेयजल अफसर बाजार में है ,उसके नजरों में पाइप से पानी रिसता दीखता है ,वह उपेक्षा करके आगे बढ़ जाता है , बिजली अभियंता टहलने निकलते है और देखते है कि बिजली खंबा टेढ़ा है तथा बिजली के तार निचे झुके हुए हैं ,यह  कभी हादसे को अंजाम दे सकते है ,वह भी इसे नजरअंदाज   करते हुए चल देते हैं , डाक्टर सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त एवं घायल व्यक्ति को देखकर आगे बढ़ जाते हैं , पुलिस सामने मारपीट या कहिये अपराध होते देखते हैं ,उसे ओझल होने देते हैं ,फिर किसी के प्राथमिकी दर्ज़ कराने  के इंतज़ार करते हैं ,स्थानीय निकाय अफसर रोज गंदगी के अम्बार देखते रहते हैं ,मगर उसके समाधान की दिशा में पहल करने से कतराते हैं । उच्च राज कर्मी अपने मातहत कर्मचारियों को रोज आदेश/निर्देश देते हैं ,फिर उसके परिपालन भी हो रहा है ,क्या उसे संज्ञान में रखते भी हैं ?इसी तरह के नज़ारे प्राय  हर क्षेत्रों में हैं । सवाल है कि आखिर ऐसी  क्यों स्थिति उत्पन्न हो गई है ? 

क्या आपको नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी की केंद्रीय सरकार " राजकीय टैक्स वृद्धि" पर जरूरत से ज्यादा जोर दे रही है ?

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का यह बयान कि निजी क्षेत्रों में भी 'आरक्षण' लागू किया जाना चाहिए ,क्या आपको बचकाना  नहीं लगता ? अब उनको कौन समझाए कि निजी हल्कों में पूंजी निवेश भी निजी जोखिम पर होते हैं ,फिर सार्वजनिक क्षेत्रों की तरह इनके कारोबार 'कल्याणकारी अवधरणा' से उत्प्रेरित नहीं होते ,इनके लिए सिर्फ और सिर्फ मुनाफा ही मुख्य ध्येय होते हैं ,फिर आरक्षण कैसे ?

हे रामा गोरे ,
गोरे ये बहियां ,
में हरी-हरी चूड़ियां हे रामा , 
हरी -हरी , 
लीलरा पर शौभेला टिकुलिया , 
ये रामा ,हरी -हरी । 
चैत माह में गया जाने वाला यह लोक गीत मैंने किशोर वय के दौरान  लातेहार में रहने के दौरान सुना था ,जो आज भी दिल को गुदगुदाती है , उस काल में वहां अक्सर रईसों के आवास/प्रतिष्ठानों में "चैता गीत" के आयोजन होते रहते थे ,जो अभीतक मेरे मानस पटल में सचित्र अंकित पाता हूँ--

फिल्म अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ,क्रिकेटर विराट कोहली की कौन लगती है ,जिसे मजाक बनाना उनको बुरा लगता है ? क्या अनुष्का ,विराट की 'व्यक्तिगत सम्पति' है ? जीवन में हर कोई का किसी से भावनात्मक रिश्ते होते हैं ,फिर कौन-कौन को किससे -कैसे प्रतिक्रिया करने पर रोक सकेंगे ! सार्वजानिक जीवन में यह सब हमेशा चलते रहने वाली प्रक्रिया है कोहली साहेब, दिल-दिमाग को जरा खोल कर रखिये - भारतीय सभ्यता-संस्कृति के विपरीत  पाश्चात्य जीवन शैली के अनुरूप आपके अनुष्का से रिश्ते हैं ,जिसे कई भारतीयों को बुरा लगता है, तो क्या आपको --  

वर्ष १९८४ में सिख विरोधी दंगे और २००२ में हुए गोधरा कांड के बाद हुई प्रतिक्रिया में क्या फर्क है ? दोनों में ही तो केंद्र और राज्य सरकार  उसे रोकने में अनमने  थी ! 

उत्तराखंड के बाद अब मणिपुर/हिमाचल की बारी है ,राजनीतिक अस्थिरता के लिए !

Wednesday 23 March 2016

commentry on political system/ sk sahay

झारखण्ड में चुनावी दौरे में नरेंद्र मोदी मेदिनीनगर आये थे और स्थानीय भाजपाई अपने हाथों में गुलदस्ता लिए उनके स्वागत में स्थानीय चियांकी हवाई अड्डे पर कतारबद्ध खड़े थे ,लेकिन उस पंक्ति में एक ऐसा भी शख्स था ,जिसके हाथों में पुष्प गुच्छ नहीं थे ,मगर मोदी ने सबसे पहले उन्हीं से हाथ मिलाकर पूछा कि आपके खाली हाथों में गुलदस्ते नहीं ! जवाब मिला ,मैं अपने इन्हीं खाली हाथों से स्वागत आपका करना चाहता हूँ ,बगैर आडम्बर के ,फिर मोदी ने उनसे गले मिलकर ऐसे भाजपाई से सिख लेने के उपदेश अन्य मौजूद नेताओं / कार्यकर्त्ताओं  को दिया । जानते हैं वह शख्स कौन था - परशुराम ओझा ,जिसे आम स्थानीय एवं पालमुवासी जमीन से जुड़े भाजपाई के रूप में संजीदगी के साथ अपने से जुड़ा पाते हैं ! 

क्या आपको यह अनुभूति नहीं होती कि फेसबुक "भावनात्मक शोषण" करता है अर्थात यह शोषण के उपक्रम/ साधन/ औजार बन गया है ! 

धर्म क्या है ? और सभ्यत -संस्कृति क्या है ? इन्हीं प्रश्नों पर मनुष्य के समाज की परस्पर चिंता/ संकट शुरू से है , जो आज भी राष्ट-राज्य के गठन/निर्माण में अनिवार्य तत्व की भूमिका में बानी हुई है ।इससे  पिण्ड छूटे तो कैसे ? यही मूल सवाल आज संसार की है ।"संघर्ष" इसी का दूसरा पहलु है ,इसे समझिए --

पहले अरूणाचल प्रदेश और अब उत्तराखंड में भाजपा ने राजनैतिक अस्थिरता के लिए कदम बढ़ा दिया है ,इसमें परदे के पीछे के खेल को समझने की जरूरत है ,इसके भविष्य में दूरगामी और गंभीर परिणाम के संकेत छिपे हैं ,जिसे जितना जल्द प्रतिपक्ष पढ़ ले ,उतना ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए बेहतर होगा ! 

उप राष्टपति हामिद अंसारी ने वर्तमान मीडिया के  स्वरूप पर चर्चा करते हुए बहुत ही सारगर्भित बात कही है ,वह यह कि " पत्रकारिता के संसार में संपादकीय साहस , उच्चतम पेशेवराना अंदाज और नैतिक मानकों के उच्च प्रदर्शन के अभाव ने चिंता के विषय बन गए हैं "  उन्होंने आगे कहा कि " एक समय था,जब अखबारों (मीडिया ) के संपादक, बौद्धिक दिग्गज होते थे ,जो देश के लिए दिमाग का काम करते थे " सचमुच में मौजूदा पत्रकारिता  का माहौल अराजकतापूर्ण एवं कूपमण्डूकता ही परिलक्षित है ! 

सुब्रमण्यम स्वामी का यह कहना कि " भारत को धर्म निरपेक्ष बनाने का फैसला हिन्दुओं ने ही किया था " कोई अचरज पैदा नहीं करता । यह तो राष्ट-राज्य के अस्तित्व में आने के क्रम में शुरू से होता आया है कि ' बहुसंख्यक समाज" ही अपनी समाज./देश की दिशा/रूपरेखा तय करती रही है ! 

आरएसएस प्रमुख मोहन  भागवत के यह कहने का  क्या मतलब है कि " भारत एक महान देश बनेगा ही ,लेकिन इस  प्रक्रिया में कोई  हिटलर पैदा नहीं  होगा  "  यह विचार उन्होंने  कल पुणे के संत तुका राम के जन्म स्थान 'देहु' में एक  स्कुल के उद्घाटन  कार्यक्रम में व्यक्त किया  है ।  इसका एक अर्थ तो यह है कि उनके जेहन में हिटलर सा भाव है ! यह एक मुहावरा में एक  शख्स की परिवर्तित कारनामों का भाव ही तो है ! याद रहे ,एडोल्फ हिटलर अपने सख्त फैसलों/आदेशों के बदौलत प्रथम महायुद्ध में बर्बाद हो चुके जर्मनी को मात्र तीन साल के भीतर फ़्रांस/ ब्रिटेन जैसा मजबूत राष्ट बना चूका था ,यह कार्यकाल १९३३--१९३६ का था , समृद्ध होने के बाद ही वह विस्तारवादी नीतियों का अनुसरण कूटनीतिक/युद्ध के तरीको से शुरू किया था । वह १९३३ में ही अपने देश का चांसलर बन चूका था । 

भारतीय संविधान में  मोहन दास कर्मचन्द गांधी अर्थात महात्मा गांधी को भी राष्ट पिता के रूप में घोषित नहीं किया गया है , लेकिन हम उनके नाम से गौरवान्वित होते हैं या नहीं ! काफी कुछ यही मसला 'भारत माता के जयकारे' के नारा के साथ है ,यह एकतागामी /अखंडता /अटूट/विश्वास/श्रद्धा के भावभियक्ति के संकेत भर से है ,इससे किसी को परहेज कैसा ?

हम रहें या नहीं रहे ,हमारी शुभेच्छा हमेशा आपके साथ रहेगी साथियों ---

झारखण्ड/ राज्य में कानून व व्यवस्था क्या है ? इसे समझें - पलामू में दो घटित मामले ऐसे हैं ,जिसमे सामाजिक/प्रशासनिक हल्कों की स्थिति साफ ढंग से उजागर करने में मददगार है ,जिसके परिप्रेक्ष्य में यथार्थ बोध करने के लिए पर्याप्त है ! लातेहार जिले के बालूमाथ  दो पशु व्यापारी को लुटेरों के गिरोह ने हत्या कर दी और इसके लिए बवाल है ,प्रतिपक्ष अब सत्तारूढ़ पर हावी है ,आंदोलन भी तूफान पर है ,मगर सत्ताधारी वर्ग से कोइसी ने खुलकर अपराध को अपराध के रूप में मामले को नहीं समझते हुए मूकदर्शक की भूमिका में है ,इनसे जुडी पार्टियों के नेता भी खामोश राजनैतिक तमाशा देख रहे हैं । इसके लिए मुख्य मंत्री रघुबर दास को ही बोलना पड़ा है । दूसरी घटना , आपराधिक पृष्टभूमि के एक युवक की हत्या का है ,जिसे लेकर भी चैनपुर में बवाल हुआ । दोनों मामले में लोग सड़क पर उतरे , दोनों मामले की प्रकृति अलग-अलग है , सवाल लोगों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेने का है । एक स्पष्ट तौर पर आपराधिक है ,तो दूसरा अपने गलत हरकतों का प्रतिफल है ,फिर समान तौर पर दोनों मामलों में "लोग" उत्तेजित है , क्यों ? इतफ़ाक से दोनों मामले अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े हैं । एक में सुनियिजित लूट है ,तो दूसरे में प्रेम के अवैध रिश्ते का सवाल है ? आंदोलन की मानसिकता दोनों में एक सा दिखा है , एक में राजनीती  ज्यादा है ,तो दूसरे में चुप्पी है ,मगर सामाजिकता एक सा है । इनके बीच कानून-व्यवस्था के पहरेदार की भूमिका नापने योग्य प्रतीत है ! 

झारखण्ड/ क्या सचमुच में रघुबर दास ,मुख्य मंत्री के सिंहासन पर बैठने  के बाद मदहोश हो गए हैं ? 

झारखण्ड/ रघुबर दास जब विधायक थे ,तब वह जमशेदपुर में  स्थानीय कार्यकर्त्ताओं के दुलारे थे, मंत्री बने तो कड़क मिजाज होने की छवि बनी ,फिर प्रदेश भाजपाध्यक्ष हुए ,तब कार्यकर्त्ताओं के दुःख-सुख में भागीदार होने वाले नेता की ख्याति अर्जित की , उप मुख्य मंत्री पद पर काबिज होने के पश्चात महत्वकांक्षा बढ़ी और इसके बाद जैसे ही मुख्य मंत्री के पद मिला  ,वैसे ही भाजपाई इनको 'चिरकुट" नजर आने लगे ! 

अरूणाचल प्रदेश में शह देकर भाजपा ने सरकार के स्थायित्व को   संकट उत्पन्न करने में सफलता पाई और यही हथकंडे उत्तराखंड में पुन : कांग्रेसनीत सरकार के विरूद्ध अपनाये गए है ,इसलिए तब तय मानिये देर-सबेर झारखण्ड में भी प्रतिपक्ष ,रघुबर सरकार के स्थायित्व को संकट पैदा करेगी ! 
 
पेरिस के बाद ब्रसेल्स में हुआ आतंकी हमला अगले विश्व युद्ध के पृष्ठभूमि तैयार करने में खाद-पानी का काम करने जा रहा है ,थोड़ा इंतजार करें , अमेरिका में रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम को राष्टपति के पद पर बैठने तो दीजिये ,फिर कैसे विश्व राजनीती की पहिया   तेजी से घूमती  है ,वह दुनिया को पत्ता चल जायेगा ! 

नरेंद्र मोदी ,खुद में अदभूत व्यक्तित्व के स्वामी हैं ,इनके नेतृत्व में देश तेज़ी से उगेगा या फिर डूबेगा । अतएव , इनके राजनैतिक/कूटनैतिक पहलकदमियों की प्रवृतियों को जितना तेज़ी से आप पढ़ लें ,उतना ही अच्छा होगा । 

Thursday 17 March 2016

माने - मतलब /एसके सहाय

जीने की राह' सिखाने वाले गुरू के रूप में प्रसिद्ध श्री श्री रविशंकर अब राजनीतिक भाषा बोलने लगे हैं ,जैसा कि उन्होंने कहा है कि वह जुर्माना नहीं देगें ,इसके बदले जेल जाना पसंद करेंगे अर्थात कानून के प्रचलित आदेशों की अवहेलना करने को वह तैयार हैं ! इनपर gnt ने पांच करोड़ के अर्थ दंड लगाये हैं । 

राजनीती में तू-तू- मै- मै क्या होती है और जिम्मेदारी से बच निकलने के लिए कैसे कैसे तर्क गढ़ लिए जाते हैं ,उसे देखिये - राहुल गांधी ने पूछा कि विजय माल्या कैसे विदेश भाग गया ,इनका आशय था कि सरकार ने उसे देश से बाहर निकलने का मौका दिया ,इसके जवाब में वित्त मंत्री ने सीधा उत्तर न देकर  पूछा कि कवात्रोची कैसे खिसक गए थे ? स्पष्ट है कि मूल सवाल से कैसे सरकार बचती है ,इसमें साफ तौर पर झलकती है । 

विजय माल्या कैसे फरार हो गया । क्या यह व्यवस्था (system) की खामी की वजह से निकल भागा ? नहीं ,दुनिया की कोई भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देशों में व्यवस्था की खामी नहीं होती ! खामी उसके संचालन करने वाले की होती है अर्थात चारित्रिक पतन की वजह अर्थात मिलीभगत अर्थात अकर्मण्यता अर्थात अराजकता अर्थात व्यवस्था के शीर्ष पर बैठे शख्स की कमजोरियां होती है ! 

 झारखण्ड/जब से रघुबर दास ,मुख्य मंत्री बने हैं ,मैंने नोट किया है कि इनपर हुए हमले/आलोचना/ विरोध के  प्रतिकार लिए सत्ता पक्ष से कोई भी खुलकर सामने नहीं आया है और न ही राजनैतिक/सामाजिक हल्कों से किसी ने प्रतिरोध भरी आवाज बुलंद की है । इससे जाहिर है कि प्रदेश की भाजपाई राजनीती में गड्ड-मड्ड है ! 

झारखण्ड/खबर है कि रांची एक्सप्रेस का प्रबंधन अगले एक अप्रैल से बदल जायेगा !क्या प्रबंधन परिवर्तित होने से रांची से प्रकाशित होने वाले इस दैनिक पत्र के पुराने दिन बहुर जाने की संभावना उत्पन्न हो पायेगी ?

क्या आपको आभास नहीं होता कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , बिस्मार्क बनने की राह पर हैं ! ध्यान रहे, बिस्मार्क ,जर्मन एकीकरण के नायक के तौर पर स्थापित ऐतिहासिक शख्स के रूप में पहचान रखते हैं । इन्हीं से अभिभूत एवं प्रथम महायुद्ध के बाद वर्साय की संधि के तीखे प्रतिरोध से एडोल्फ हिटलर का जर्मनी में आर्विभाव हुआ  था ! 

भारतीय प्रेस/मीडिया अधिकांश  सिर्फ "हौआ" खड़ा करना जानती है । गंभीर मुद्दों/विषयों/बातों को चलताऊ /सतही नजरिये से ग्रहण करने की प्रवृति से यह अभिशप्त है । मूलभूत जरूरतों/संकटों /समस्याओं से रूबरू होना इसके फितरत में नहीं  बदा है ! 

केदारनाथ सिंह ,पलामू जिला कांग्रेस के पूर्व महामंत्री , वह भी पंडित स्व जगनारायण पाठक जैसे कांग्रेस के खुद्दार जिलाध्यक्ष के कार्यकाल के, जो प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को इंदिरा जी कहकर संबोधित करने वाले एवं बातचीत करने वाले , से अचानक मेदिनीनगर कचहरी परिसर में आज  मुलाकात हुई , तो वह मेरे एक प्रश्न के जवाब में बताया कि मौजूदा कांग्रेस के सांगठनिक ताकत  और सोनिया/ राहुल गांधी में वह क्षमता नहीं  है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सत्ता को केंद्र से उखाड फेंके ,कांग्रेस तभी अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करेगी ,जब वर्तमान मंहगाई जारी रहेगा । आम भारतीय के लिए मंहगाई ही महत्वपूर्ण होती है ,अन्य बातों/मुद्दे से विशेष मतलब नहीं होता ! इनसे भेंट काफी अरसे बाद हुई ,जब वह खैनी मल रहे थे, कभी मैंने बचपन में इनको गिलौरी पान चबाते देखा करता था ,तब इनके उद्दाम शरीर के गजब ही प्रभाव होता था । खैनी उनके प्रिय तम्बाकू नहीं होते थे ,मुंह में पान ही होते थे , कितना परिवर्तन तब और में हो गया ,इसे कहते हैं समय का चक्र !   

मेरा बाल सखा अभिमन्यु ओझा ,मुझसे  इन दिनों मुंह फुला लिया है ,वजह है ,मेरे जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर मेरे किये गए कुछेक पोस्ट , उसे मेरे बारे में गलत फहमी हो गई है कि मैं राष्ट द्रोहियों को साथ दे रहा हूँ , है वह भाजपाई ,इसलिए वह ऐसा सोचता है ,इसका ख्याल मुझे है ,लेकिन वह मेरे तर्कों को सुनने को तैयार नहीं है ,कैसे उसे मनाऊं ,यह समस्या आ खड़ी  है ,वह रोज मुझे छेड़ता है लेकिन अनमने ढंग से , आखिर हैं तो बाल मित्र , मैंने उसे समझाने के क्रम में बतलाया कि रूबिया सईद का अपहरण हुआ था ,तब अटल बिहारी बाजपेयी ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा था-- काश मेरी भी बेटी होती ,तो वह देश के लिए बलिदान कर देते ,मगर कतई आतंकवादियों को  नहीं छोड़ते । बाद में इन्हीं बाजपेयी के प्रधान मंत्रित्व में दुर्दांत अातंकियों को कंधार ले जाकर छोड़ा गया था ,क्या उसे भूल गए मेरे यार ! इसके बावजूद भी मेरा यार कुछ सुनने को तैयार नहीं , अब मैं क्या करूं , वैसे मनु चाय -पानी रोज कराता है ,लेकिन नजर उसकी मुझसे  रूठने जैसी है ---

पाकिस्तान में चीनी फौज के कदम रखने का मतलब उसकी संप्रभुता पर आने वाले दिनों में खतरे से है ,जिसे पाक कूटनीतिज्ञों ने तव्वजो न देकर भारी भूल कर दी है , चीन अब आसानी से पाक भूमि से नहीं हटने वाला ! 

गुलाब नबी आजाद (कांग्रेस) ने आरएसएस और आईएसआईएस को एक ही तराजू में तौलने की कोशिश उनके खुद के बहुसंख्यक समाज का ही सोच बताता है ,इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए , भारत समेत दुनिया में जहाँ भी मुस्लिम कहर बरपती है ,देखा गया है कि उसके रहनुमा जोरदार तरीके से प्रतिकार करने में झिझकते हैं और जरूरी हुआ तो विरोध का श्वर काफी धीमा होता है ,इसी को ठीक से समझते हुए अमरीकी राष्टपति बराक हुसैन ओबामा को कहना पड़ा था कि 'आखिर मुसलमानों में ही दहशतगर्द क्यों पनाह लेते हैं ,मुस्लिमो के अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों पर ध्यान दें ' और अब वहां के एक रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम ने इसे ही अपनी चुनावी मुद्दा बना लिया है ,जो भविष्य के लिए अंतत दो मान्यताओं वाले कथित सम्प्रदायों के मध्य व्यापक संघर्ष के संकेत है ,जिसमे भारत में  जाने-अनजाने उलझ जाने के खतरे मंडराने के संकेत दे रहे हैं !  

झारखण्ड/ बाबूलाल मरांडी में गजब का आत्म विश्वास है ,जैसे उन्होंने थकावट को मात दे दी हो , इनके पास फिलवक्त दलगत राजनीती की वजह से भांति -भांति के जीव -जंतु जमा है ,इन्हीं के  बदौलत इनको राज्य जितना है ,आज इनको मेदिनीनगर में बढ़ती अपराध को लेकर झाविमो द्वारा आयोजित धरना में बोलते देखा -सुना ,तो लगा ,देर -सबेर एक दिन उनको  फिर सत्ता के केंद्र बिंदु बनना निश्चित है ! 

क्या किसी ने 'ईश्वर' को देखा है ? क्या यह सत्य नहीं है कि 'परम्परागत विश्वास' का नाम ही ईश्वर है ! 

यह जो आभासी दुनिया (वर्चुअल वर्ल्ड) है न मित्रों ,काफी मायावी है ,कब किससे आपका मन -मिजाज जुड़-टूट जाये ,कहना मुश्किल है ! 

लोकतंत्र में, विशेषकर लिखित संविधान वाले राष्ट-राज्य में , संविधान,संविधान संविधान की रट कौन लगाता है अर्थात दुहाई कौन देता है ? ऐसा जाहिल राजनीतिज्ञ करते हैं क्यों ? उन्हें यह अहसास ही नहीं होता कि संविधान लोग/जनप्रतिनिधि ही बनाते हैं ,कोई ऊपर से आया फरिश्ता इसे दस्तावेज का रूप नहीं देता । इसलिए यह हर वक्त परिवर्तनशील रहने वाली प्रक्रिया/ संविधान है । जैसे 'लोग और जनता' में भेद हैं ,इसे कितने आज के नेता/राजनीतिज्ञ बुझते हैं,इसलिए दोस्तों थोड़ी से झलक आपको जानने के लिए संक्षिप्त रूप में बताता हूँ । लोग अर्थात विधायिका अर्थात बहुमत अर्थात अस्थायी से अर्थ लोकतंत्र में है ,लेकिन जनता अर्थात राज्य अर्थात स्थायित्व से इसके अर्थ लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में होते हैं । मतलब कि संविधान सहज रूप से परिवर्तित हो सकते हैं ,मगर राज्य निर्माण/ गठन आसान प्रक्रिया नहीं होती ! विशेष बाद में --

कल झाविमो प्रमुख बाबू लाल मरांडी को मेदिनीनगर में देखने -सुनने के लिए गजब का आकर्षण लोगों/ विभिन्न दलों के नेताओं /कार्यकर्त्ताओं में दिखा, खुद भाकपा के राज्य सचिव केडी सिंह कार्यक्रम स्थल के आस-पास चहल-कदमी करते एवं मरांडी के भाषण को संजीदगी के साथ सुनते देखा गया ,यही हाल राजद, भाजपा, कांग्रेस, झामुमो ,बसपा समेत अन्य स्थानीय नेताओं में बेसब्री थी । मानना होगा कि मरांडी को  लेकर राज्य में  एक अलग ही 'आकर्षण' लोगों में व्याप्त है । क्या इसका प्रतिदान भविष्य में राजवासी मरांडी को देंगे ? 

झामुमो नेता हेमंत सोरेन को बाहरी तत्वों के विरूद्ध संघर्ष तेज़ करके अपने अधिवास नीति का खुलासा करते हुए आगे बढ़ना चाहिए और इसमें पूर्व मुख्य मंत्री बाबूलाल मरांडी के अपने कार्यकाल में घोषित १९३२ के खतियान को समावेशित करके प्रतिपक्ष का साझा मंच से व्यापक स्तर पर जन आंदोलन छेड़ना के लिए तत्पर रहें । वैसे भी २००३ में मरांडी घोषित अधिवास नीति का विरोधः रांची, जमशेदपुर और बोकारो में ही हुआ था ,अन्य राज्य के इलाके में इसे लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं थी ! 

झारखण्ड/ रघुबर राज तभी  तक है ,जबतक हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी एक -दूसरे के विपरीत धुर्व में हैं ,जिस दिन दोनों एकमत हुए ,उसी दिन से मौजूदा सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी ! 

भारतीय विधायिकाओं में १९८० के बाद "छेछड़" प्रवृति के राजनीतिज्ञों का प्रवेश तेज़ी से एवं काफी मात्रा में हुआ है ! 

Thursday 10 March 2016

टीका -टिप्पणी / एसके सहाय

प्रधान मंत्री नरेंद्र  मोदी  ने अपने अभिभाषण  में  मंद बुद्धि / हीन भावना जैसे उपमा जड़ित शब्दों का  प्रयोग किया लेकिन  राहुल गांधी  का नाम  नहीं लिए , क्या इस लाक्षणिक बातों का राजनितिक  असर होगा ! क्योंकि राहुल के कल दिए गए भाषण का यह  जवाब था ।   

 भावावेश में व्यक्त किये गए विचारों की कोई अहमियत नहीं  होती ! भारतीय न्यायिक पद्धति में इसके कोई मतलब नहीं हैं ! कन्हैया हो या  अन्य कोई  मामला ,यह न्यायिक बहसों में टिकाऊ नहीं  होती ,इसके ढेरों उदाहरण हैं । सबसे बड़ा उदाहरण -राम मंदिर-बाबरी मस्जिद आन्दोलनों के काल में  कई विध्वंसक नारे लगे ,उसके क्या फलाफल हैं ,यह किसी से छुपा नहीं है ! 

दिन में शादी करो/ बात मेदिनीनगर कचहरी के सतीश भैया के  होटल में चाय के  बीच आज  हुई गप्प-शप्प की है ,टेबल के इर्द-गिर्द राज्य सचिव केडी सिंह ,नोटरी पब्लिक प्रदीप नारायण सिंह  के साथ आधा दर्शन वकीलों में शादी-विवाह में होने वाले ताम-झाम और उसमे खर्च होने वाली अनावश्यक धन को लेकर बहस  रही , जिसे मै भी चाव सुन था ,इसी बातचीत में सिंह ने कहा कि सफ़ेद दौलत के  बुते वैवाहिक कार्यक्रम को पूर्ण  करने वालों को चाहिए कि वे अपने बाल -बच्चों की शादी दिन में करें ,इसे अभियान के  तौर पर लिया जाने की जरूरत है  । बात में संजदिगी थी, वास्तव में आजकल काली कमाई से अर्जित धन से ही वैवाहिक समारोहों में आन-बान -शान का प्रदर्शन ही प्रतिष्ठा का विषय दीखता है । समय/ पैसे की बचत इसमें जाहिर है !

केरल उच्च अदालत के एक न्यायधीश बी कमाल पाशा ने सवाल किया है कि 'जब मुस्लिम पति चार बीवी रख सकते हैं ,तब उनकी पत्नियां चार शौहर क्यों नहीं रख सकती ?' यह बात उन्होंने गत रविवार को कोझिकोड में एक विचार -गोष्ठी में व्यक्त किया है । 

स्मृति जुबैद ईरानी को क्या सोच कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन जैसे भारी -भरकम मंत्रालय का दायित्व सौंपा है ? यब बात अभी तक भारतीयों को समझ में नहीं आ सकी है ! 

स्मृति ईरानी के काफिले से दुर्घटनावश एक शख्स की मौत होती है और वह अर्थात उनका महकमा पूरी ऊर्जा इस बात  में लगाती है कि उनके गाड़ी से टक्कर  नहीं हुई है । यह सब क्या है ? बात जो छनकर आई है उसमे  मानवीय संवेदना का ही प्रश्न है ,अगर हुए वह खुद के गाड़ी से घायल व्यक्ति को तुरत अस्पताल ले जाती तो उनकी "संवेदनशीलता" की  प्रशंसा होती ,मगर यह क्या ,वह फोन करके राहत उपलब्ध करने में ही व्यस्त दिखी है,अर्थात उपचार में अनावश्यक विलम्ब !  

नरेंद्र दामोदर दास मोदी  वो नहीं जिसे भारतीय और पूरी दुनिया जानती है ,मोदी  वह हैं जिसे मै समझ रहा हूँ ! 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ,पक्ष-प्रतिपक्ष को अपने तरीके से राजनीती "खेला" रहे हैं ,चित्त भी मेरी और पट भी मेरी ,क्या इस कहावत को आपने सुना है ! कूटनीतिक मोर्चे पर भी विश्व को अपने मनमाफिक साधने की कला भी कम निराली नहीं है ! 

उत्तर कोरिया का तानाशाह शासक किम जोन उन सिरफिरा शख्स है ,फिलवक्त उसे चिढ़ाने वाली कदमों से अमरीका-दक्षिण कोरिया को बाज़ आने  की जरूरत है । मौके की तलाश में उसे व्यक्तिगत रूप में दबोचने की आवश्यकता है,अन्यथा चूक होने पर मानवता के समक्ष गंभीर स्थितियां उत्पन्न होगी ।  

झारखण्ड/ पहले चीनी की राशनिंग और अब फिर धोती-साड़ी योजना के पुन चालू होने की खबर ,यह सब क्या है ? मूल योजना पर तो लगता है राज्य में किसी का ध्यान /जोर  ही नहीं है ! सब कमीशनखोरी वाली  स्कीम पर ही रस्सा -कस्सी के नज़ारे  हैं !  

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों के एक समूह ने 'मनुस्मृति' की प्रतियां जलाकर क्या सन्देश देना चाहा है ? क्या उन्हें उनके गुरूओं ने यह नहीं बताया कि हिन्दू समाज उस सोच से काफी आगे निकल चूका  है ,जो उनके विरोध प्रदर्शन  को लेकर कोई उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया /प्रतिकार नहीं देने वाला है ! अगर वो सचमुच प्रगतिशील विचारों के वाहक है ,तो शरीयत/हदीश के  रूढ़िवादी परम्पराओं/ सोच के विरूद्ध वैसी ही प्रतियां जलाकर दिखाएँ , कैसे  खौफनाक नतीजे होते हैं ,सामने आ जायेंगे अर्थात दिन में तारे दिखने लगेंगे ! 

लोकतान्त्रिक सत्ता की सबसे बड़ी खामी यह है  कि इसमें शासन/प्रशासन मंद गति से कार्य है ! बहुधा जन आक्रोश इसी वजह से उत्पन्न होते हैं । 

आर्ट ऑफ़ लिविंग फाऊंडेशन अर्थात श्री श्री रविशकर अन्तराष्टिय स्तर का  नटवर लाल है । दिल्ली  यमुना नदी  तट पर ११ -१३ मार्च के हो रहे तमाशा का क्या मतलब है ? अाखिर इसमें खर्च होने वाली राशि कहाँ से आ रही है ? क्या इसका हिसाब-किताब केंद्र सरकार लेगी ! यह काफी कुछ वैसा ही मामला है ,जैसे योग गुरू रामदेव 'योग साधना' नाम पर अपनी दुकान को उत्पादों से सज़ा कर व्यापार में संलिप्त हैं ! पूर्ववर्ती सरकार ने जब रामदेव के धंधे की जाँच शुरू की ,तब कैसे वह छटपटाये थे ,लोग उसे भूले  नहीं हैं ।  

मित्रों, जो विचार मुझे कौंधते हैं ,वही आपके लिए पोस्ट करता हूँ ,फर्क आप में और मुझमें यह है कि आप 'व्यष्टि'  में सोचते  हैं और मैं 'समष्टि' में , अर्थात दलगत भावना से परे होकर बेलौसअर्थात बगैर लाग -लपेट के ,  कहने का मैं अभ्यस्त हूँ ,इसके लिए काफी कीमत अपने जीवन में चुकानी पड़ी है और चूका भी रहा हूँ , पक्ष-विपक्ष मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ,किसी के दिल दुखाना मेरा मकसद नहीं । वैसे , मैं अपने बारे में आपको क्या बताऊँ ! 

क्या आप जानते हैं , राष्ट पिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे ने अपने जीवन में प्रथम और अंतिम बार केवल एक हत्या की ,लेकिन माओ त्से तुंग ने दस करोड़ अपने ही चीनी भाइयों को मौत की नींद सुला दी ,काफी कुछ ऐसा ही दृश्य देखिये कंबोडिया ,में जहाँ पोलपोत ने अपने ही  देशवासियों के लाखो क़त्ल कर दिया । विचारिये जरा ,यह सब क्या है ?

लगता है अब छात्र नेता कन्हैया कुमार की भूमिका बदल गई है ,वह राजनीतिक शब्दावलियों में विचार प्रकट कर रहा है ,शायद उसकी सीधी तौर पर सार्वजनिक जीवन में सक्रीय राजनीती में अर्थात दलगत भूमिका में  भाग लेने के यह संकेत है !

Thursday 3 March 2016

माने -मतलब/ एसके सहाय

आरक्षण पर क्या बहस करना है ,यदि इसे ख़त्म करना है ,तब दृढ़ता से अंतरजातीय /अंतर्धार्मिक परिणय सूत्र में बंधने वाले युवाओं  को इसके लाभ मिले,  इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है । देश को जाति/धर्म ही भीतर से खोखला किये हुए है ! 

आखिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अपना दृष्टिकोण आरक्षण पर क्यों नहीं साफ -साफ रखते ? गैर राजनीतिक समिति के गठन करके इसके समीक्षात्मक परिणाम से क्या हल होगा ? विवाद तो होने ही है ,इससे बेहतर होगा कि ,जो जेहन में है ,उसे स्पष्ट तरीके से देश के मानस को अवगत कराएं -

संजय दत्त जेल की सजा काट कर आज निकल गए ,देखना है -वालीवुड में इनके क्या जलवे होते हैं !

चलिए आपको अग्रिम सुचना दे रहा हूँ ,वह यह कि 'पंजाब  में अगली सरकार 'आम आदमी पार्टी' की बनने जा रही हैं '

हरियाणा/आरक्षण की आड़ में जानते हैं आप ,राज्य में क्या हुआ ? गैर जाटों की सम्पति  सुनियोजित  ढंग से लुटे गए और बर्बाद किये गए और इसमें ही सार्वजनिक सम्पदा  को कैसे  तहस-नहस  किया गया ,यह कोई छुपी हुई बात नहीं है !

वर्ष २०१६ -१७ के रेल बजट व्यवहारिक और व्यावसायिक नजरिये का सूचक है !

लोकतंत्र में ,विशेषकर दलगत राजनीती की सत्ता  में "कार्यकर्त्ता" प्राणवायु होते हैं , सरकार की नीतियों/योजनाओ का धरातल पर कैसे क्रियान्वयन राजकर्मचारी करते है ,इसकी सुचना तो दलीय नेता/कार्यकर्त्ता ही सही -सही  दे सकते हैं और नौकरशाही केवल अपने नफे-नुक्सान को ही तरजीह  देने के आदी होते हैं ,आखिर इनकी आजीविका के स्थायित्व का प्रश्न  जो  ठहरा !

सावधान पाकिस्तान, भारत तुझे ठुकाई करने के अभियान में तेज़ी से उपक्रम कर रहा है । अवसर पाक ने ही कूटनीतिक लहजे में भारत को दी है ,नागरिक सरकार के ऊपर सैन्य प्रभुत्व को भारत ने जान लिया है ,इसलिए वह बच सके तो बच जाये ,मोदी सरकार के मूड को जानने में पाकिस्तान भूल कर गया है ,इसलिए पठानकोट आतंकी हमले के बाद भी भारत उसे रियायत देने की कूटनीतिक सदाचार से देने के उपक्रम में है । कभी संसद पर हुए हमले के बाद बाजपेयी सरकार ने 'ऑपरेशन पराक्रम के माध्यम से चढ़ाई करने के निर्णय लिया था ,तब क्या दशा हुई थी ,उसे अब याद करने के वक्त पाक को आ गया है अर्थात वह थर्रा उठा था ,पश्चिमी देशों अमेरिका ,रूस जैसों के जरिये बाजपेयी से कैसे गिड़गिड़ाया था पाकिस्तान ने ,यह किसी से छिपा नहीं ! 

प्राचीन काल में राजा जो धर्म अपनाता था ,प्रजा उसी का अनुसरण करती थी , इसका सुन्दर उदाहरण सम्राट अशोक है ,जिसने बौद्ध धर्म को नई ऊंचाई दी ,बाद में आदि शंकराचार्य ने पुन :वेदान्त दर्शन को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई ,जिसे भौगोलिक पहचान 'सिंधु' के  उच्चारणवश हिन्दू' के जरिये अस्तित्व में जाना/पहचाना गया ,लेकिन देश की सत्ता मुस्लिम शासकों के हाथों में दंसवीं शताब्दी के बाद मध्यकाल में देश में रही ,मगर आम लोगों ने इसे(इस्लाम) तवज्जो ने दिया ,क्यों ?  

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे आम बजट में अगले वित्तीय वर्ष २०१६-१७ के लिए कोई लाम - काफ नहीं है , वैसे कृषि , आधारभूत संरचना और सामाजिक क्षेत्रों पर विशेष जोर है , उत्पादों के दामों में वृद्धि/कमी प्राय हर बजट में किया जाना वाले  किस्से हैं ,आयकर जस के तस हैं और बीमा/पेंशन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को ४९ प्रतिशत तक की छूट है । अब आपको कैसा प्रतीत होता है बजट दोस्तों ,बताएं -

पंजाब/ राज्य की मुख्य समस्या ड्रग्स अर्थात नशे से तबाह होते समाज है और इसी को अरविन्द केजरीवाल (आप) ने दौरे करके अपने अगले विधान सभा  के चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाने का निश्चय कर लिया है ,क्या दुखती नब्ज पकड़ी है आम आदमी पार्टी के प्रमुख ने, जवाब नहीं  ? 

हाँ मामू,अब केंद्रीय और दिल्ली सरकार के सचिवालय में पहले जैसी अराजकता नहीं है ,मोदी /केजरीवाल के गद्दीनशीन होने से बहुत तेजी से आप संस्कृति गायब हो रही है ,यह जानकारी आपकी सच्ची है ,यह बात मेरे भांजे ने कुछ दिन पहले टेलीफोनिक बातचीत में बताई थी , वह वहां वरिष्ठ नौकरशाह के पद पर है ,कुछेक साल पहले वह प्रतिनियुक्ति पर बिहार में भी पदस्थापित था , वह जहानाबाद से ताल्लुकात रखता है और मूलवासी पटना का ही है ,नाम उल्लेखित करना उचित नहीं समझता हूँ दोस्तों ,वैसे कभी इसके पटना  आवास में डकैती हुई थी और खोजी कुत्ते ने जिस जगह कदम रखा था ,वह काफी चर्चित भी था ,विशेष अब आप अपना दिमाग लगावे मित्रों --वह कह रहा था ,दोनों सचिवालयों में पारदर्शिता को लेकर प्रतिस्पर्धा है ----

कल के पोस्ट में मैंने बतलाया था कि कैसे मोदी /केजरीवाल के केंद्रीय एवं राजकीय सचिवालय में कदम रखने  के साथ कार्य संस्कृति अर्थात अप संस्कृति में गिरावट की मात्रा महसूस की जा रही । दरअसल यह दो व्यक्तित्वों  उपजे चारित्रिक बल का कमाल है ,  जो आने वाले दिनों  इनकी प्रभावी भूमिका को लेकर इनमे तेज संघर्ष  संकेत हैं । यही देश को नई  दिशा देगी ! 

देश की विधायिकाओं में  अक्सर शोर-शराबे,हंगामा, मारपीट,गाली -गलोच ,बहिष्कार आम है ,इसी को ध्यान में रखकर हाल में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर व्यग्यं करते हुए कई बार कहा है कि 'जिसे जनता ने नकार दिया ,वे संसद ठप्प कर रहे हैं ' सचमुच यह वाकई गंभीर स्थिति के संकेत है ,तो सवाल है कि इसका हल क्या है ? समाधान है और इसकी कुंजी विधायिका प्रमुख अर्थात अध्यक्ष के हाथ में है । इनको करना सिर्फ यह है कि संसद/विधान मंडलों में संख्या बल अर्थात सदस्य संख्या  के आधार पर पक्ष-विपक्ष को "समय' निर्धारित कर सदन संचालित कठोरता से एवं तटस्थ भाव से करना होगा । क्या यह साहस भरा कदम कोई अध्यक्ष उठा सकता है ? 

झारखण्ड/ राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा पांचवी परीक्षा के सफल प्रतियोगियों को नियुक्त किये जाने सबंधी सिफारिश को लेकर बवाल है । हो भी क्यों नहीं ? आखिर इसी प्रदेश में पूर्व में  आयोग के  करामात भरी परीक्षा ,साक्षात्कार और नियुक्ति के तमाशा सामने है ,परीक्षार्थी ने परीक्षा दी नहीं और वह सफल हो गया ! भाई-भतीजावाद के खेल लोग भूले नहीं है । पर्दाफाश होने पर dsp / उप समाहर्ताओं समेत अन्य सेवा वर्ग के नियुक्त अफसरों को हटाया गया ,गिरफ्तार किया गया ,फिर  उच्च/ उच्चतम अदालत में सौ रूपये के शुल्क  वाले वकील को रखकर मुकदमे को कमजोर होने दिया गया , फिर क्या था ? सर्वोच्च न्यायालय ने  पुन इनको रखने के निर्देश दिए और  जाँच रिपोर्ट के आने तक इंतज़ार करने के आदेश दिए ,नतीजन अयोग्य अधिकारी एकाध साल बाद फिर सेवा में पद स्थापित हो गए । इसी राज्य ने आयोग के अध्यक्ष/सदस्य समेत कई को नियुक्ति को लेकर जेल जाते भी देखा है ! 

झारखण्ड/ क्या आपने राज्य के अस्तित्व में आने के बाद विकास के सन्दर्भ में सरकार द्वारा उठाये गए एक खास कदमों पर गौर किया है ? नहीं न , तो जानिए , मरांडी से लेकर दास तक जितने भी सरकार सामने आई है ,सभी ने DPR , कंसल्टेंट, सलाहकार ,प्रोजेक्ट वगैरह के लिए सरकारी संस्थाओं से काम न लेकर गैर सरकारी एजेंसियों से कार्य करवाती है ,क्यों ?जबकि खुद सरकार के मातहत तकनीकी प्रतिष्ठानों की कोई कमी नहीं है । यह इसलिए कि इसमें भी ऊपरी कमाई अर्थात कमीशनखोरी का खुला क्षेत्र निहित होता है !