Tuesday 29 March 2011

wild life pix. elephant at betla national park few day ago







Monday 28 March 2011

public problem

                                       एलपीजी संकट और बाजपेयी युग
                                               एसके सहाय

मेदिनीनगर :स्थानीय स्तर पर एलपीजी की समस्या पूरे देश में है लेकिन बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा की यह कैसे संकट  के रूप में उत्पन्न हुआ, सो इसे जानने लिए आपको  प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को जानना होगा ,तब यह पता चल सकेगा कि कैसे इसकी आपूर्ति में संकट पैदा होने की शिकायत बराबर  मिलती रहती है . 
                          एलपीजी के बारे में सबसे ज्यादा शिकायत यह है कि स्थानीय स्तर पर गैस आपूर्ति के लिए वितरक के पास सूचना दर्ज कराने के बाद भी यह तय अवधि में सिलिंडर  की आपूर्ति नहीं  करती है ,इससे क्षोभ होना स्वाभाविक है , आखिर तय समय में आपको रिफिल  क्यों नहीं पहुँचाया गया  ,इस पर कभी आम आदमी सोचता नहीं , सिर्फ अपने फायदे को ध्यान में रख कर ही काम करने की प्रवृति से संकट और अधिक गहरा जाने की स्थिति उत्पन्न होती है ,जो समाज में आलस्य पैदा  करने में सहायक  होती है .
                              यहाँ पर किसी सरकार के पक्ष -विपक्ष में विचार करना या अच्छा -बुरा बताना मकसद नहीं है ,केवल यह याद दिलाने की कोशिश है कि " कैसे  नीतियों के परिवर्तन से पूरा समाज प्रभावित होता है ,इसकी जानकारी सत्ता  में बैठे लोगों को नहीं होती, " जैसा कि बाजपेयी सरकार में हुआ .घरेलु गैस आसानी से मिले ,इसकी  परिकल्पना खुद बाजपेयी जी  ने की थी और यह भी सच्चाई है कि   राष्टीय जन्त्तान्त्रिक गठबंधन की सरकार केंद्र में रही ,तबतक एलपीजी के लिए विशेष चिंता के विषय उपभोक्ताओं के लिए नहीं बने थे ,  इसमें एक प्रमुख वजह यह थी कि सरकार ने "नीति "ही इसप्रकार तय  कर दिए कि "जो भी नागरिक ,जहाँ भी रहे ,वे पूरे भारत में कहीं से भी एलपीजी के लिए आवेदन कर उसे प्राप्त कर सकतेहैं ,केवल भारतीय पहचान होने की पुष्टि होना जरूरी घोषित  किया गया "   
                      इस नीति से सभी केलिए गैस मिलना सुलभ हो गया ,स्थानीयता का बंधन नहीं रहने से इसका लाभ समान रूप से सभो को मिला ,लेकिन परवर्ती काल में यही अब समस्या पैदा कर दी है ,जो आये दिन एलपीजी के लिए शोर सुनने को मिलता रहता है ,यहाँ यह भी ध्यान देने लायक तथ्य है कि बाजपेयी की सरकार जब तक  थी  सिलेंडर के आपूर्ति में कोई भी शिकायत नहीं थी ,इस बात को आज भी लोग बड़े जोर देकर तस्दीक करते  है लेकिन अब इसकी आपूर्ति में अनियमितता की शिकायत लगभग हर शहरों -कस्बों से मिल रही है .
                                  देखा जाय तो , मालूम होगा कि      "स्थानीयता के बंधन के नहीं रहने से एक बितरक के पास अचानक कनेक्शन के लिए आवेदनों की  बाढ़  आ गई ,जो उसके क्षमता के अनुकूल नहीं थे , ऐसे में किसी को कनेक्शन के लिए मना करना भी क़ानूनी तौर पर जुर्म होता ,ऐसे में सभी को समान रूप से कनेक्शन के लिए मंजूरी दी गई इससे घरेलु आपूर्ति में बाधा होना सवाभाविक था .
                          इस संदर्भ में एक बात और ध्यान देने की है, वह यह कि " बाजपेयी सरकार के  पहले   वितरकों के लिए आपूर्ति क्षेत्र का निर्धारण किया जाता था , जिसके बाहर गैस आपूर्ति की मंजूरी नहीं दी जाती थी ,इससे आपूर्ति में अनावश्यक दबाव वितरक पर नहीं होता  था "     अर्थात नगरपालिका ,पंचायत ,प्रखंड जिले वगैरह को क्षेत्राधिकार घोषित करके वितरक को लाइसेंस दिए जाते थे ,जिससे भी आपूर्ति सहज होने में मदद मिलती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है ,जिस के कारण    बराबर एलपीजी के लिए आन्दोलन होते रहन की खबरें मिलती रहती है .
                            इन बातों को समझने के लिए उदाहरण के तौर पर  डालटनगंज (मेदिनीनगर ) के एक वितरक की हालत को जानिए , १९९८ के पहले इसके पास गैस के मात्र ६ हज़ार उपभोक्ता थे ,इसे सिलेंडर की आपूर्ति केवल नगरपालिका क्षेत्र में करने के लिए ही आदेश था ,इसके बाहर के नागरिकों को  कनेक्शन देने की क़ानूनी मनाही थी ,इसतरह के क्षेत्राधिकार  देश में वितरकों के निश्चित थे,इससे समयबद्ध तरीके से  रिफिल उपभोक्ताओ को होता था ,लेकिन जब बाजपेयी ने गैस कनेक्शन लेने की प्रक्रिया आसान बन दिए तब   उस वितरक के पास डेढ़ सालों में २२ हज़ार उपभोक्ता पंजीकृत हो गए और इसके आपूर्ति करने के क्षमता पर यह बोझ बन गया   और आज   हालत यह है कि  इस बितरक के पास से माह मेंकेवल करीब ७००० -८०००   उपभोक्ताओं को ही सिलिंडर का लाभ मिल पता है ,
        मजे की बात है कि    इस वितरक के पास ५०० से १०० किलोमीटर पर रहने वालों का भी कनेक्शन है यह स्थिति सिर्फ इसकी नहीं है ,यह सारे देश के गैस वितरकों की है जहाँ से कनेक्शन  बेहिसाब जारी हुए है,इसी से आपूर्ति प्रभावित है तो ताज्जुब नहीं .
                               मतलब यह कि नीतियों के परिवर्तन से लाभ हैं ,तो हानि भी है ,इन दोनों में कौन सी नीति ज्यादा कारगर है  यह खुद सरकार  को ही मालूम  नहीं है           
           







Saturday 26 March 2011

mane-matlab


                    बेबसी में मनमोहन की बातें
                                                एसके सहाय
                               प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का पिछले दिनों संसद और इसके बाहर लगातार भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में यह कहना कि "उनको पत्ता नहीं है, सरकार को स्थायित्व  की मज़बूरी  में  ए राजा जैसे  को मंत्री मंडल में बनाये रखना पड़ा"  काफी हद तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार को बेपर्द करने के लिए एक मजबूत आधार विपक्ष को अनायास दे दिया है.साथ ही रूपये के लेनदेन को  अपनी जानकारी में नहीं होने की बात करके यह स्पष्ट कर दिए कि मामला बहुत ही गंभीर है, अतएव आने वाले दिन केन्द्रीय सत्ता के लिए काफी चुनौती वाल होगा, ऐसा प्रतीत  है.
                                       इन निहितार्थों को समझने के पूर्व मनमोहन सिंह के राजनीतिक जीवन और इसके पूर्व के जिन्दगी को जानना जरूरी है, ताकि यह बात देशवाशियों को मालूम पड़े कि इस प्रधान मंत्री से विशेष की उम्मीद बांधे रखना बेकार की बातें हैं .ऐसा इसलिए कि यह  इनके सार्वजनिक जीवन कि शुरूआत १९९१ में केन्द्रीय वित्त मंत्री के रूप में हुआ , इसमें यह लोगों को मालूम नहीं था कि प्रधान मंत्री कौन होगा , लेकिन यह सभी पहले से जानते थे कि "प्रधानमंत्री कोई भी होगा,  मगर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ही होगे." ऐसा कयास और विश्वास क्यों देश को था ,यह बताने की जरूरत नहीं है ,सोवियत संघ का पतन ,भूमंडलीकरण , उदारवाद और बाजार को एक साथ मिला कर देखे , जिसमें मनमोहन को विश्व बैंक में कार्यकाल के तरीके को जाने,  तब यह बताने कि आवश्यकता नहीं है कि इनके पीछे कि पृष्ठभूमि  क्या रही है .
                                इतना ही नहीं ,मनमोहन को जानने का एक उदहारण काफी है ,वह यह कि अपनी सरक्षण कर्त्ता सोनिया गाँधी के चापलूसी में या कहिये कि उनकी कृपा बनी रहे इसके लिए अपने से कई गुणे छोटे शख्स के लिए कैसे साष्टांग दंडवत करते है ,उसका मिसाल इंडियन एक्सप्रेस कि वह तस्वीर है " जिसमें इनको प्रियंका गाँधी के बेटे को दोनों हाथ  जोड़े प्रणाम की मुद्रा में दीखते है " यह घटना करीब दस साल पहले की है , जो बयां करती है "चारण प्रवृति " से  यह बाहर नहीं हैं .
                                             दरअसल मनमोहन सिंह सारी जिन्दगी नौकरी करते  रहे है ,सेवा निवृति के बाद का जीवन कांग्रेस से सीधे जुड़ा, इसमें इनको अहसास हुआ कि नेहरू -गाँधी परिवार का वंदना  करके सत्ता से अपने को जोड़ा रखा जा सकता है और इसी को उन्होंने अपना मूल सीढ़ी बनाया , जिसका नतीजा है कि वह आज देश के कल्याण के नाम पर ' भ्रष्टाचारियों के हाथों की कठपुतली बन कर रह  गए हैं" 
                                मनमोहन सिंह वास्तव में निहायत शरीफ लेकिन अराजनीतिक प्राणी है ,तभी तो बार -बार यह कहना कि "उन्होंने अपनी तरफ से कोई लाभ नहीं लिया है ,जो कुछ भी हुआ वह राजनीतिक जरूरतों कि पूर्ति के लिए हुआ " इस बात में दम है और प्राय लोग विश्वास भी करते है लेकिन जिस तरह से "सत्ता" में बने रहने के लिए अपनी बैटन को सामने रख रहें हैं ,वह साफ परिलक्षित करता है किसी के इशारों में ही उन्होंने अपने विचार रखे है और जाँच हेतु कदम बढ़ाये हैं ,वह शख्स कौन है ,यह सभी जानते है मगर राजनीतिक क्षमता के अभाव में प्रतिपक्ष वह जन आन्दोलन खड़ी करने  में लाचार हैं ,ऐसा इसलिए कि खुद राष्टीय जनतांत्रिक गठबन्धन का चेहरा पाक साफ नहीं है ,यहाँ भी कई दागदार चेहरे हैं "जो सिर्फ राजनीती के लिए राजनीती  करने में विश्वास करते है ,जैसा कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने खुद के व्यावहार से परिचय दिया है , जो राजनीती का केवल एक भाग है अर्थात "किसी तरह सत्ता में बने रहो "  यही राजनीती का अर्थ है .
                                    बहरहाल , आज जो भी कुछ देश में हो रहा है ,उसके पीछे मनमोहन सिंह का विशेष योगदान नहीं है ,बल्कि इनके आधार को समझने के लिए आपको थोड़ी मगजमारी करनी होगो और यदि वह भी आप नहीं कर सकते तो हम आपको खुद बता देते हैंकि सिंह प्रधान मंत्री के पद पर तब तक बने रहेगें ,जबतक सोनिया जी की इच्छा होगी ,इस परिप्रेक्ष्य में थोडा पीछे  जाएँ तब मालूम होगा कि "सत्ता" पर अपनी पकड मजबूत रखने के लिए कैसे  -कैसे कदम बढ़ाये गए .
                                   यहाँ दो दृष्टान्त का उल्लेख करना जरूरी है ,पहले यह कि जब महिला राष्टपति  को लेकर पक्ष -विपक्ष में जवाब सवाल  के बीच वामपंथियों  ने जोर दिया कि महिला वर्ग से ही उक्त पद पर कांग्रेस अपना उम्मीदवार दे ,तब कांग्रेस ने या कहिये  सोनिया जी के संकेत पर प्रतिभा पाटिल का नाम सामने आया , जब यह नाम पहली बार देश के लोगों को सुनने को मिला , तब काफी ताज्जुब और आश्चर्य कि स्थिति सार्वजनिक क्षेत्रों में थी ,क्यों कि इनसे कई गुणे स्थापित और चर्चित  महिला नेत्री  कांग्रेस के पास थी मगर इनके नाम की जगह पर अनजाने से नाम पर सहमती बनी . दूसरा यह कि प्रधान मंत्री के लिए नामों पर कांग्रेस बिचार कर रही थी तब मौजूदा प्रधान मंत्री से ज्यादा काबिल और सजग राजनीतिक पार्टी में मौजूद थे लेकिन इनकों नजरदांज करके मनमोहन सिंह को ही  चुनने का मतलब आज की पैदा हुई हालातों से खुद को बचाने का उपक्रम करना भर है ,ऐसा इसलिए कि कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ,जो थोडा भी सार्वजनिक जीवन में सक्रीय रह कर उक्त पद हासिल करेगा वह कम से कम बचकानी बयान तो नहीं ही देगा ,जैसा कि मनमोहन सिंह ने खुद कहा कि "मुझे तो कुछ भी पत्ता नहीं "
                      प्रधान मंत्री के खुद की बात ने करीने से साफ कर दिया है कि संप्रग की वर्तमान सरकार सिर्फ सत्ता के लिए है ,जिसका केवल एक मात्र लक्ष्य  अपने आका के राजनीतिक हितों का प्रबंधन करना है .
             मन    

Thursday 24 March 2011

woman IAS accused officer

कारनामे महिला आई ए एस अधिकारी के
एसके सहाय
रांची /मेदिनीनगर : राज्य में भारतीय  प्रशासनिक सेवा  के एक महिला  अधिकारी भ्रष्टाचार के घेरे में है लेकिन इस प्रान्त की सरकार  का ही यह रूप है कि जिस आरोप में महिला अधिकारी आरोपित है, उसी आरोप में दो अभियंता जेल में हैं  और आरोपित अधिकारी पूजा सिंघल आराम से पलामू  के जिलाधिकारी के पद पर विराजमान हैं 
         इस आई ए एस के विरूद्ध खूंटी के अलावा पलामू जिले में   वित्तीय गबन के आरोप लगें हैं इस सिलसिले में बकायादा सोलह प्राथमिकी भी दर्ज है ,जिसमे ग्रामीण विकास और महात्मा गाँधी राष्टीय रोजगार योजना के १८ करोड़ २७ लाख रूपये गबन कर ली गई है . यह मामला तब उजागर हुआ, जब ग्रामीण विकास सचिव संतोष कुमार सत्पथी ने वर्तमान खूंटी के जिलाधिकारी राकेश कुमार शर्मा को 
सिंघल के कार्यकाल की जाँच करने के लिए आदेश दिए थे . यह गबन फरवरी २००९ से जून २०१० के बीच हुआ. तब खूंटी के जिलाधिकारी के पद  पर सिंघल ही वहां पद स्थापित थी.
    खूंटी में हुए गबन के मामले में दो अभियंता राम विनोद सिन्हा और आर के  जैन  जेल में हैं जब कि यह महिला अधिकारी मजे में उसी पद पर पलामू में कायम है. इस अधिकारी नें काफी चालाकी बरतते हुए खूंटी  के ही उप विकास आयुक्त के पीएल खाते से तीन करोड़ रूपये की
निकासी कर ली, कागजो पर ही चेक डैम, राजीव गाँधी सेवा केंद्र, दस ग्राम कचहरी ,तहसील-पंचायत  भवन जैसे कामो को पूर्ण दिखला दी और इसके लिए ग्रामीण  विकास के विशेष प्रमंडल तथा जिला परिषद् के अभियंताओं के सहयोग से राशि का  गबन कर लिया,  इस घोटाले की एक बानगी देखिये - जिला परिषद् के एक अभियंता पर सिंघल इतना मेहरबान हुई कि  उसे एक ही बार में
दस करोड़ रुपये  अग्रिम दे दी ताकि उस राशि का गबन किया जा सके, यह  सब विभागीय काम के नाम पर हुआ .
    अब खूंटी जिले की हालत यह है कि सरकार एक ही काम के लिए दोबारा राशि आवंटित करने में
नियमतः असहज महसूस कर रही है, जिससे वहां के ग्रामीण विकास के कामो में रूकावट आ गई है 
 इस जिले को ५४ करोड़ ४७ लाख रूपये विकास मद में आवंटित हुए थे जिसमें ३५० योजनाओं में लुट की गई ऐसा जाँच रिपोर्ट में कहा गया है इस राशि में ३१ करोड़ ३७ लाख रूपये खर्च करने की बात की गई है लेकिन इसमें १८ करोड़ २७ लाख रूपये का कोई  काम दृष्टिगत नहीं है ,जिससे सिंघल पहली बार संदेह के घेरे में आ गई है .
 इस महिला अधिकारी के काम करने के एक तरीका को जानना काफी दिलचस्प होगा . सिंघल ने आठ माह पूर्व मेदिनीनगर में पत्रकारों को बताया कि "पांकी  प्रखंड विकास पदाधिकारी कानू राम नाग ने इंदिरा आवास योजना में सवा दो करोड़ का घोटाला किया है और इसके विरूद्ध दो दिनों के भीतर पुलिस में आपराधिक प्राथमिकी दर्ज करा दी जाएगी ,इस घोटाले कि जाँच पूरी हो गई है"   लेकिन इतने दिनों बाद भी नाग के विरूद्ध कोई मुकदमे दर्ज नहीं हुए ,यह क्यों दर्ज नहीं हुए यह भी  एक रहस्य है जब कि यह पहले से ही सभी को पत्ता था कि नाग की नियुक्ति  को ही सरकार ने रद्द कर दिया है ,तब से यह भागे फिर रहा है फिर प्राथमिकी दर्ज करने में हिचक क्यों ? इतना ही नहीं सिंघल ने बिना निविदा निकाले ६ करोड़ रूपये के आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिय तरह -तरह के सामान ख़रीदे जब कि सरकारी नियमावली में साफ लिखा है कि डेढ़ लाख से अधिक के क्रय के लिए प्रति स्पर्धा तरीके अपनाये जाये, इसके लिए निविदा के विज्ञापित किया जाना जरूरी है  
   अब पूरा मामला सरकार के समक्ष विचाराधीन है .इसमें खास बात यह है कि एक ही मामले में दो अभियंता जेल में है और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बाहर है, यह दोहरी नीति से जाहिर है सरकार में इच्छा शक्ति का अभाव है ,जो विगत दस सालों से राज्य कि नियति रही है

Wednesday 23 March 2011

palamu men vany-jiv ka shikar

  पानी की खोज  में गाँव पहुंचे हिरन का शिकार
              एसके सहाय 
मेदिनीनगर : इन दिनों पलामू में पेयजल संकट से सिर्फ सामान्य जन -जीवन ही नहीं , बल्कि वन्य जीव भी काफी प्रभावित हैं . इसकी एक मिसाल पाटन थाना के मुर्मू की है ,जहाँ बुधवार को शिकारियों के एक दल ने एक  हिरन को गोली से मार डाला .
  मारा गया हिरन पानी की तलाश में पास के जंगल से  मुर्मू पहुंचा था .हालाँकि इस मामले में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत पुलिस में मामला दर्ज किया गया है लेकिन इस मामले में कोई ठोस उपाय करने के प्रश्न पर जिला प्रशासन खामोश है
      गोलियों का शिकार हुआ हिरन किस वन क्षेत्र से मुर्मू पहुंचा था , इसबारे में भी वन अधिकारियों को ज्ञात नहीं है ,जब कि पाटन और इसे सटा हुआ इलाका जंगलों से  भरा -पूरा है जो विश्व विख्यात पलामू बाघ रिजर्व का १०२६ वर्ग किलोमीटर में विस्तृत अभ्यारण्य  भी है . इस वन्य प्राणी के शिकार को लेकर आम जन -जीवन में विशेष हलचल या चिंता  नहीं है लेकिन पानी का संकट किस कदर पलामू में है इसकी यह ताज़ा मिसाल है .
   पलामू वैसे भी  पिछले तीन वर्षों से लगातार सूखे की चपेट में है . इस जल संकट को लेकर लगातार सामाजिक -राजनितिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में  विचार विमर्श का दौर तथा जन आक्रोश प्रदर्शित होते रहे है लेकिन इसका ठोस धरातल पर कोई विशेष परिणाम नहीं निकला है ,जो कुछ भी पानी को लेकर योजना बनी या क्रियान्वित हुई है वह केवल मनुष्य को ध्यान में रख कर ही प्रदर्शित  है  ,इसमें वन्य प्राणियों के लिए अलग से कोई प्रबंध नहीं किये गये हैं .
    पलामू बाघ रिजर्व के एक अधिकारी ने बताया कि चालू वित्तीय वर्ष के ख़त्म होने में अब मात्र चंद दिन बाक़ी हैं   लेकिन योजना क्षेत्र के वन्य जीवन के लिए कोई योजनागत राशी राज्य सरकार ने निर्गत नहीं किए . रिजर्व के कर्मचारी अपने पास मौजूदा संसाधनों के बूते ही जानवरों के लिए टैंकरों से चुआडों में पानी भर रहे है जो कि पर्याप्त नहीं है .पानी लाना भी इनके लिए काफी   दुष्कर है .
  यहाँ ध्यान देने लायक बात है कि वर्ष १९९४ के २४ अप्रैल को तत्कालीन प्रधान मंत्री प़ी व़ी नरसिह राव को पलामू बाघ रिजर्व क्षेत्र के १४ लगुरों के पानी और भोजन के अभाव में मौत होने से अवगत कराया गया था लेकिन इस पर कोई विशेष बात नहीं हुई ,जब लगुरों के हुए पोस्त्मर्तम में साफ कहा गया था कि इनकी मौत पानी के अभाव में हुई है ,साथ  ही पेट में अनाज के कोई दाने भी नहीं थे .