Saturday 30 July 2022

लैंडफिल : दिल्ली के सीने पर बड़ा बोझ-

 

        दिल्ली में लैंडफिल के आसपास रहने वाले लोगों के लिए ‘खुली हवा में सांस लेने’ की बात मजाक सी लगती है। इनमें से कई लोग दमा सहित अन्य गंभीर श्वास रोगों से जूझ रहे हैं। कूड़े के पहाड़ों के नजदीक रह रहे लोगों में एनीमिया भी एक आम बीमारी है।


स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ‘डंपिंग यार्ड’ (कूड़ा जमा करने की जगह) के आसपास रह रही गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु के जन्मजात विकृति का शिकार होने का खतरा रहता है। ऐसी महिलाओं को समय पूर्व प्रसव का भी सामना करना पड़ सकता है।


विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसी महिलाओं के बच्चों में फेफड़ों का संक्रमण होने का खतरा भी बहुत अधिक मिला है, क्योंकि जीवन के शुरुआती दौर से ही वे जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं।


भलस्वा लैंडफिल के पास कबाड़ का कारोबार करने वाली 45 वर्षीय शायरा बानो कहती हैं कि महज पेट पालने की मजबूरी के चलते वह पिछले छह साल से अधिक समय से अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रही हैं।


शायरा जब लैंडफिल के पास रहने पहुंची थीं, तब एक साल के भीतर उन्हें सांस की गंभीर बीमारी हो गई और उनके बच्चे अब त्वचा की एलर्जी के शिकार हैं।


शायरा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं काफी लंबे समय से सांस की बीमारी से पीड़ित हूं। चूंकि, मैं कबाड़ का काम करती हूं, इसलिए मुझे अपनी आजीविका के लिए इस इलाके के नजदीक ही रहना पड़ रहा है। हम जानते हैं कि हम अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं, लेकिन कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मेरे चार बच्चे हैं, जिनमें से दो को त्वचा एलर्जी हो गई है।’’


वहीं, गाजीपुर लैंडफिल के बगल में रह रहीं 32 वर्षीय तस्नीम अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि वे इलाके में फैली जहरीली गैस और बदबू की वजह से अक्सर बीमार रहते हैं।


तस्नीम ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत करते हुए कहा, ‘‘मेरे बच्चे सांस की बीमारी का सामना कर रहे हैं। उनकी आंखों में खुजली होती है और वे त्वचा एलर्जी से भी जूझ रहे हैं। डंपिंग यार्ड में हर साल गर्मियों में आग लग जाती है और उस समय यहां रह रहे बच्चों में ये समस्याएं और आम हो जाती हैं।’’


लैंडफिल के आसपास के इलाकों में श्वास रोगों के खतरों पर बात करते हुए गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल के वरिष्ठ सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. अरविंद कुमार ने कहा कि उन इलाकों में रहने वाले लोगों की कम से कम एक दशक की जिंदगी लगातार जहरीली गैस में सांस लेने की वजह से कम हो जाती है।


कुमार ने बताया कि गर्मियों में लैंडफिल में लगने वाली आग से निकला धुआं सिगरेट और चूल्हे के धुएं से कहीं घातक होता है।


उन्होंने कहा, ‘‘इलाके में रहने वाले बुजुर्गों में दमा का गंभीर दौरा पड़ने, एनीमिया और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम रहता है। उन इलाकों के लोग जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से जिंदगी का कम से कम एक दशक गंवा देते हैं।’’


कुमार ने बताया, ‘‘इलाके में रहने वाली गर्भवती महिलाएं जहरीली हवा में सांस लेती हैं और उनके खून व गर्भनाल के रास्ते हवा में मौजूद प्रदूषक उनके गर्भ में पल रहे भ्रूण तक पहुंच जाते हैं। इससे जन्मजात विकृत का खतरा होता है। समय पूर्व प्रसव की भी आशंका रहती है।’’


दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में रोजाना 11 हजार टन ठोस कचरा निकलता है, जिसमें से केवल पांच हजार टन कचरे का प्रसंस्करण किया जाता है। बाकी का छह हजार टन कचरा यानी सालाना 216 लाख टन कचरा लैंडफिल में जमा होता है।

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