Wednesday, 8 January 2014

हेमंत : युवा मुख्य मंत्री और यह अवसान

                                           (एसके सहाय)
     झारखण्ड में झामुमोनीत सरकार का गठन हेमंत सोरेन के नेतृत्व में  हुआ , तब कल्पना थी कि युवा मन की हिलोंरे लेती तस्वीरों को  राज्य में उतरने के लिये माकूल मौका मिलेगी ,ऐसा सोचने के पर्याप्त वजहें भी थी ,लेकिन कुछेक माह गुजरने के बाद प्रतीत है कि निकट भविष्य में वैसा कुछ भी नहीं होने वाला है , जिससे लगे कि शिबू सोरेन का यह बेटा बदलाव करने की तमन्ना भी रखता है |बस ,जैसे -तैसे सत्ता को बचाए रखने में ही समय , श्रम और शक्ति जाया हो रही है , गोया उन्हें लगता है कि उनके अपने टोटके से ज्यादा दिनों तक सत्ता सुख मिल सकेगा |  
      यहाँ यह बात इसलिए प्रासंगिक है कि हेमंत ने कहा है कि 'विकास के लिये गठबंधन की जगह स्पष्ट जनादेश की जरूरत है , इस सरकार में वह विवश हैं ,इसमें समझौते की मज़बूरी है, अपेक्षाकृत कदम नहीं उठा सकते हैं |' यही नहीं वह कहते हैं कि अरविन्द केजरीवाल जैसे ही लालबत्ती एवं रोब -दाब का प्रदर्शन नहीं करेंगे , अच्छे कामों का "नक़ल" करने में कोई दिक्कत नहीं है |
           यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि जिस नेता को नक़ल और अनुसरण में फर्क पत्ता नहीं और जिसकी अपनी मौलिक सोच नहीं हो , उससे आम लोगों का क्या भला हो सकता है ? 'आप' के प्रभाव हेमंत पर दिखा तो है ,मगर यह वैसा ही है , जैसे  पानी का बुलबुला, यह इसलिए कि इनमे राजनीतिक जोखिम उठाने का मादा नहीं है और यह दृढ़ता होती , तब तीन माह में राज्य के भीतर दिख जाती , लेकिन ऐसा कुछ भी खास नहीं है ,जो हेमंत के व्यक्तित्व में चार चाँद राजनीतिक तौर पर  नजर आते | यह ताज उनकी लोलुपता का नतीजा है ,यही नहीं अपने पिता शिबू सोरेन की सोची -समझी योजना का फल है , बीमार शिबू को यह मालूम है कि उनके जीवित रहते पुत्र की ताजपोशी होने से पार्टी में अगले कतार में यह स्वत: रहेगा | इसीलिए अपने जीवित अवस्था में ही हेमंत को मुख्य मन्त्री बना देना इनकी शातिर दिमाग की उपज माना गया है |
     काफी हद तक यह सच भी है , शिबू सोरेन के गैर मौजूदगी में हेमंत आसानी से सत्ता की बागडोर नहीं संभाल पाते , दल में ही उनके कई कद्दावर नेता हैं ,जो जब -तब झामिमो के नेतृत्व को खरी -खोटी सुनाने में जरा भी देर नहीं करते रहे हैं और शिबू भी दबाव में आते रहे हैं |
      खैर , आज जिस स्वरूप में हेमंत सोरेन है , उसमे सत्ता में बने रहने और कांग्रेस -राजद के आगे नत -मस्तक रहना ही है | सत्ता इनके लिये इतनी प्यारी है कि केंद्र में कांग्रेसनीत सरकार की योजना के तहत २०१४ में होने वाली लोक सभा में मात्र चार सीटों पर  झामुमो को  लड़ने के लिये कांग्रेस ने रजामंद कर लिया और झारखण्ड में इन्हें कमान सरकार सौंप दी ,ताकि केन्द्रीय सत्ता को अक्षुण्य बनाये रखने में मदद मिल सके |
                  यह बातें इसलिए रेखांकित है कि वक्त किसी का मोहताज नहीं होता , मौका मिला है ,तो अल्प अवधि में ही जन हितों की दिशा में सख्त एवं जोखिम उठाते हुए पहल करने की , यह अवसर हेमंत को मिला है ,मगर हिचक क्यों ? वह वैसे भी झामुमो के सबसे काबिल नेताओं में कभी शुमार नहीं रहे , पिता की तिकड़मी एवं तदर्थ राजनीति का फल है कि उन्हें मुख्य मंत्री के पद पर आसानी से ताजपोशी हो गई | झामुमो का अपना इतिहास उतना उजाला नहीं है कि इसके लार्टी लाइन को लोग सहज ढंग से मंजूर कर लेंगे | यह प्राय: सभी झारखण्ड वासी जानते हैं कि झामुमो जब दक्षिण बिहार अब झारखंड  में गठित हुई तो , उसके सिरमौर बिनोद बिहारी महतो और निर्मल महतो थे ,इसमें तीसरे पायदान में शिबू सोरेन थे | इस जानकारी के पीछे और जाएँ ,तब विदित होगा कि शिबू को इस लायक बनाने में धनबाद के कभी उपायुक्त रहे केबी सक्सेना और बिनोद बिहारी महतो का अहम योगदान रहा है | इतना ही नहीं , निर्मल महतो की हत्या (१९८५) के बाद ही धीरे -धीरे शिबू की खास पहचान झारखण्ड की राजनीति में  हुई |
       इतना ही नहीं , जब ३ सितम्बर १९९३  को तत्कालीन गृह राज्य मंत्री एसवी पाटिल ने झारखण्ड निर्माण सबंधी बयान दिया ,तब मौजूदा मुख्य मंत्री के पिता शिबू कांग्रेस के साथ गलबहियां कर रहे थे , उम्मीद बनी कि जल्द ही राज्य का गठन हो जायेगा , गृह मंत्री के बयान में ऐसा ही संकेत था ,लेकिन बाद में सार्वजनिक हुआ कि पीवी नरसिंह राव के विश्वास मत के दौरान झामुमो रिश्वत कांड हुए थे | जाहिर है कि राजनीति को जैसे -तैसे मनमाफिक हांकने के यत्न ही पिछले दो दशक से इस पार्टी ने किया है और अब जब इनके आशाओं पर तुषारापात की झलक मंडराने लगी है ,तो झामुमो प्रमुख के इस लाडले ने साफ बहुमत के भाव का रोना रोया है |
        ध्यान रहे , गृह मंत्री ने पुणे में कही अपनी बात को दूसरे दिन गौहाटी में दुहरा दिया था , तब दक्षिण बिहार में आशा बांध गई थी शीघ्र ही अलग प्रान्त की विधिवत घोषणा हो जायेगी | मगर ,उस वक्त यह मृग मरीचिका ही साबित हुई |
       यह कई दफे प्रकट हो चूका है कि सत्ता के लिये झामुमो का कोई साफ -सुथरा नीति -सिन्धांत कभी नहीं रहा | यह राज्य बन रहा था , तब यह राजग के साथ थी , भाजपा ने शिबू को मुख्य मंत्री बनाना नहीं गंवारा ,तब यह कांग्रेस के खेमे में चली गई | यह सिलसिला इसके काफी लंबे हैं | ऐसे में हेमंत सोरेन की बात बेमानी परिलक्षित हो तो कोई आश्चर्य नहीं |
         झारखण्ड में हेमंत सोरेन को मुख्य मंत्री बनने का अवसर मिल गया ,मगर इनके मंत्रिमंडल में इनके मंत्रियों के बीच इतना अंतर्विरोध -तीखा मतभेद है कि इसके होने न होने का कोई मतलब ही नहीं है | नतीजतन ,राज्य राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता के दौर में है लेकिन इसके सुधरने के लिये हेमंत के पास फिलवक्त कोई सख्त योजना नहीं है |
       कम उम्र के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल भी हैं , इनकी भी सरकार कांग्रेस के रहमो -करम पर टिकी है , मगर इनको फिक्र नहीं है कि सरकार रहे यह जाये , इसके बावजूद जिस दृढ़ता से जनोपयोगी निर्णय दिल्ली की सरकार ने लिया है , वह सराहनीय एवं स्वागत योग्य है |  आखिर सरकार है किसके लिये ? "जनता" के लिये ही न , फिर जन कल्याण के मामलों में गुणा-भाग कैसा ? वह भी लोकतंत्र में नफे - नुक्सान को लेकर , कम से कम बुनियादी जरूरतों के मामले में लाभ -हानि को दरकिनार होनी ही चाहिए |

       लोक सभा चुनाव हेमंत सोरेन के लिये अहम है | इसमें राजनीति की चतुरंगी फांस को कैसे तोडा जाये , यह फिलवक्त मुख्य सवाल है |१०-४ के बीच सीटों के बंटवारे की बात ठीक उसी तरह सामने आई है ,जैसे भाजपा के संग में २८-२८ माहों के सरकार के कार्यकाल का कथित तय होना कहा जाता था , यह अविश्वसनीयता क्या एक बार फिर खंडित होगी ? 

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