Monday, 13 January 2014

इन दौरों से क्या

                      (एसके सहाय)
    केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश गत दिन झारखण्ड के मेदिनीनगर में डेढ़ घंटे के लिये कदम रखे और एक 'आँख जाँच शिविर' का उदघाटन करके वापस लौट गए | इस कार्यक्रम में उनके भाग लेने के क्या निहितार्थ थे , वही समझें कोई अन्य इसके मतलब जानने की कोशिश के झमेले में पड़ने की जरूरत नहीं समझा | अतएव , इस आगमन को यों ही आसानी से पचने वाली मामले की तरह सहज तौर पर नहीं लिया जा सकता |
      पहली बात तो यह कि रमेश का पलामू जिले के मुख्यालय में दूसरा आगमन था | इसके पूर्व वह पिछले साल के अप्रैल में यहाँ कदम रखे थे , यही नहीं चैनपुर प्रखंड के बसरियाकला में एक जन सभा को ताम -झाम के साथ संबोधित किया था | साथ ही ,काफी संजीदगी का प्रदर्शन करते हुए जिला मुखिया संघ द्वारा आयोजित "पंचायत प्रतिनिधियों" के सम्मेलन में भी अपने सत्ता के विकेन्द्रीकृत लाभों की विस्तार से चर्चा की थी | मगर इस दफे ,वैसा कोई बात नहीं हुई , वह सीधे कार्यक्रम स्थल पहुंचे और जल्द ही अपनी बात रखकर एक नजर से शिविर का निरीक्षण करते हुए चलते बने |
       इस वापसी ने ही उनके आगमन के मकसद की झलक थोड़ी सी बाहर निकली है | इसे राजनीतिक एवं सामाजिक हल्कों में इस रूप में ग्रहण किया गया है | दूसरी बात यह कि रमेश अपनी विकास परक क्रिया -कलापों के लिये जाने जाते हैं | यहाँ उनसे उम्मीद थी कि वह अपने पूर्व घोषणाओं के बारे में जिला प्रशासन एवं विकास एजेंसियों से उनके क्रियान्वयन के बारे में जानकारी लेते , मदद करने के लिये उनके दल के ही स्थानीय विधायक कृष्णानंद त्रिपाठी उनके साथ थे ही , मगर इनकी रूचि इसमें नहीं थे , जो इनके मुख मंडल से प्रतीत भी हो रहा था | मसलन , उन्होंने नौ माह पूर्व बसरियाकला में चैनपुर के ग्यारह आदिवासी बहुल पंचायतों को " सरयू कार्य योजना " में शामिल किये जाने की बात उदघोषित की थी ,मगर यह आज तक वैसा नहीं हो सका | यही नहीं उक्त योजना का शुभारंभ भी अबतक नहीं हो सका है , जो इनके अपने ही बातों का कोई एतबार नहीं |
             यहाँ यह भी जाने , जिस कार्यक्रम में रमेश शरीक हुए , उसमे आँखों के जाँच का दायित्व रांची स्थित पब्लिक - प्राइवेट मोड पर संचालित अस्पताल का था , इसे कई एजेंसियों ने पलामू में प्रयोजित किया था | प्रकट है कि  इसमें सरकारी धन का निवेश समझौते के तहत है | सरकार के अपने हॉस्पिटल हैं ,पर इनमे विश्वास नहीं है , यह काफी हद तक आम लोगों को बरगलाने जैसी  ही प्रक्रिया है , जिसमे "निजी" सेवा उपलब्ध कराकर लोगों को अपनी उत्कृष्ट कामों से सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने की मंशा छिपी है | इसमें एक केन्द्रीय मंत्री के "मन" में क्या थे , वह ठीक बता सकते थे , यह काम वह बिना आये भी कर सकते थे |
         रमेश को देश , अपने ही अंदाज़ वाले मंत्री के रूप में जानता है | ऐसे में चुपचाप आने ,फिर कार्यक्रम में भागीदारी निभाने भर से "बात" पल्ले नहीं पड़ती | विशेष बात यह कि वह केंद्र सरकार के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का जिम्मा वहां किये हैं और इस कार्य्रक्रम में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री चंद्रशेखर दुबे ही नदारद थे | यह इसलिये महत्व की बात है कि दुबे कांग्रेस के ही विधायक हैं ,साथ ही इनके साथ एक विशेषता यह भी चस्पां है कि वह पलामू के ही विधायक हैं और अपने ही पार्टी के केन्द्रीय सरकार के मंत्री के समारोह में शिरकत नहीं करने का प्रयोजन क्या हो सकता है ? इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है |
        जयराम  की अभिरुचि झारखण्ड में उग्रवाद को लेकर है , वह मानते हैं कि विकास के जरीये इसे खत्म किया जा सकता है और इसके लिये सारंडा में इनके पहल से ग्राम -वन विकास /योजनाओं के माध्यम से कार्य भी शुरू हुए , जिसके बहुप्रचारित बाते भि८ सामने आई , मगर यहाँ तो सरयू एक्शन प्लान की चर्चा बहुत जोर से की गई ,मगर इसका फलाफल कुछ नहीं निकला है ,जबकि इसके लिये २०१२ में ही रमेश ने लातेहार में कदम रख दिए थे | यह क्यों नहीं सुरू हो सका , इसका उलेख तक नहीं हुआ |इस जिले के चार प्रखंडो के चुनिदे गांवों में सड़क , इंदिरा आवास , पुल -पुलिया , बिजली , स्वास्थ्य , कृषि , सिंचाई ,पेयजल ,शिक्षा , रोजगार परक योजनाओं के लिये कार्य किये जाने थे ,इसके ;इये जिला प्रशासन ने बृहद रूपरेखा तैयार कर रखें हैं ,मगर चार सौ करोड के घोषित राशि के अनुलाब्ध रहने से यह ठंडे बस्ते में पड़ा है ,आखिर इसकी जिम्मेदारी किस पर है ?
      सस्ते सपने दिखाकर पीछे हट जाना भारतीय राजनेताओं की फितरत रही है , गंभीरता से विकास से जुडी बातों को नहीं लिये जाने का ही नतीजा है कि पलामू के परिक्षेत्रों में उग्रवाद और इससे जुडी कई समस्याए सुलझ नहीं पाई है | राज्य की राजनीतिक गतिविधियों में अपने निराले अंदाज़ में ग्रामीण विकास के बूते कदम रखने वाले जयराम क्या कांग्रेस को मौजूदा सामाजिक -राजनीतिक- आर्थिक उन्नयन में थोड़ योगदान दे पाए हैं , यह यक्ष प्रश् उठ खड़ा हुआ है |

   केवल दौरों के सतही पहल से रोजी-रोटी के संकट हल नहीं होते , उसमे तांक -झांक करने की जरूरत होती है , इसमें जयराम खुद अपने वायदे से पीछे मुड़ते दीखते हों ,तो आश्चर्य नहीं |

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