(एसके सहाय)
लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले दो देशों की
दोस्ती के मध्य कब कौन सा मसला किसके लिये महत्वपूर्ण हो जायेगी , यह थाह पाना
मुश्किल एवं जटिल प्रक्रिया है |ऐसे में , लौह महिला के रूप में विश्व प्रसिद्ध ब्रिटेन के स्वर्गवासी
प्रधान मंत्री मार्ग्रेट थैचर के भूमिका
की जाँच उस सन्दर्भ में किये जाने की जरूरत वर्तमान प्रधान मंत्री डेविड कैमरन
अपरिहार्य समझा है ,ताकि असलियत सामने आ सके |
संक्षिप्त कहानी यह है कि जून १९८४ में
सिक्ख आतंकवादियों के विरूद्ध अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर कारवाई में ब्रिटेन की
सहभागिता को लेकर ब्रिटेन में विवाद उत्पन्न है | यह मसला इसलिए तूल पकड़ गया है कि
हाल में इस देश में गोपनीयता सूची से इत्तर जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक किये गए हैं |
इसी में एक बात सामने आई है कि थैचर ने ब्लू स्टार आपरेशन में अपने देश की विशेष
वायु सेवा का उपयोग भारत के अंदरूनी आतंकी अभियानों में करने के आदेश दी थी |
बस ,इसी मुद्दे को लेबर पार्टी के सांसद टाम
वाटसन एवं सिक्ख लार्ड्स इन्द्रजीत सिंह ने लपक लिया है और इससे जुड़े सभी मामलों
पर तत्कालीन प्रधान मंत्री थैचर की भूमिका को बेनकाब करने के लिये अपने देश की
सरकार पर दबाव बढ़ा दिया और कैमरन ने भी बिना विचार - विमर्श किये तत्काल इसकी जाँच
की जिम्मेदारी कैबिनेट सचिव को तथ्य के साथ पेश करने के आदेश दिए | यहाँ ,ध्यान
रहे थैचर कंजर्वेटिव पार्टी से ताल्लुकात रखने वाली राजनीतिक थी और इसके तह में
जाकर मुद्दे खड़े करने वाले इन्द्रजीत नेटवर्क ऑफ सिक्क संघठन के निदेशक हैं,
जिन्होंने इसकी जाँच की वकालत " स्वतन्त्र अंतराष्टीय एजेंसी " से की है
| जाहिर है कि ऐसे अंत हो चुके मामले के ढाई दशक से अधिक गुजर जाने के बाद तूल
देने के क्या मतलब हैं ?
यह मामला ऐसे वक्त सामने आया है ,जब भारत में
कुछेक माह बाद आम चुनाव होने हैं और इसमें एक सिरा तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा
गाँधी के कांग्रेस से जुड़ा हैं , जो मौजूदा केन्द्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रही है
तथा गाँधी के ही वंशज राहुल -सोनिया-प्रियंका इसकी अगुवाई कर रहे हैं , वहीँ दूसरी
तरफ कांग्रेस के प्रतिद्न्दी भाजपा का गठजोड़ अकाली दल के साथ है , जो कथित तौर पर
सिक्ख समाज के निकट मानी जाती है | इन परिस्थितियों में यह मामला फिलवक्त ब्रिटेन
के लिये कम लेकिन भारत के लिये ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतीत है |
अतएव , ब्रिटेन में बवाल बने ब्लू स्टार के
छींटे से भारत को बच पाना मुश्किल है | वैसे , जग जाहिर है कि सिक्ख आतंकवाद के
खिलाफ भारत के सैन्य कारवाई में किसी विदेशी शक्ति का उपयोग सीधा कभी नहीं हुआ |
इतना जरूर उस कालखण्डों में हुआ और दिखा कि सिक्ख आतंकवाद का पोषण पाकिस्तान ,
कनाडा , आस्ट्रेलिया या कहें यूरोप के कई देशों में छिपे और गुप्त तरीके से होता
रहा था | कनिष्क विमान विस्फोट कांड इसकी एक झलक थी , जिसे लेकर काफी उलझन पूर्ण
जाँच की प्रक्रिया रही | यह कनाडा से प्रत्यक्ष जुड़ा अपराध था | इसमें तक़रीबन चार
सौ यात्री मारे गए थे |इनके गुनहगारों को सजा भी ठीक से अबतक नहीं हो पाई है | जो
गिरफ्त में हैं , वे सभी चार इतफाक से सिक्ख आतंकवादी ही चिन्हित हैं |ऐसा
लोकतंत्र के लचीले व्यवस्था के वजह से है |
इन कूटनीतिकयुक्त हालातों को देखें , तब दो
परस्पर देशों के दौत्य संबंध को समझना आसान होगा | दोनों प्रजातान्त्रिक व्यवस्था
में विश्वास करने वाले देश हैं | इनके रिश्ते ओपनिवेशिक काल से जुड़े हैं ,
स्वाभाविक बात है कि एक -दूसरे के अंदरूनी खतरे के तौर पर मौजूद विखंडनखारी ताकतों
से निपटने की बातें होती रहे | यह ठीक उसी तरह की बातें हैं ,जब चीन ने भारत पर
१९६२ में हमला किया और तेज़ी से परभूमि पर कब्जे करने शुरू किये और तत्कालीन प्रधान
मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिका से मदद मांगने में देर की ,तब अमरीकी राष्टपति
जान एफ कैनेडी को कहना पड़ा था , कि " वह भारत के याचना का इंतज़ार नहीं करेंगे
कि वह चीन से लड़ने के लिये सहयोग करे ,बल्कि अमरीका खुद मोर्चा संभालेगा |"
इस बेबाक विश्व कूटनीति की बात इतनी प्रभावकारी सिद्ध हुई कि अमरीका, भारत के हित
में चीन के विरूद्ध मोर्चा लेता कि युद्ध बंद हो गए |
प्रश्न यह नहीं कि "ब्लू स्टार"
में कितने मारे गए , सवाल यह है कि स्वर्ण मंदिर में हुआ सैन्य कारवाई देशहित में
था या नहीं | इस कारवाई की योजना में विदेशी सहयोग हो या नहीं ,यह भारत के लिये
कोई मायने नहीं रखता | ऐसे में ,भाजपा के अरूण जेटली का यह कहना कि " तथ्य
सामने रखे जाने चाहिए ,का क्या अभिप्राय: है ?" यह तो एक विशेष समुदाय की
भावनाओं के साथ खेलने जैसा है , जैसा कि ब्रिटेन ने गुजरात के मुख्य मंत्री एवं
भाजपा के प्रधान मंत्री के पद के घोषित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को "वीजा
" देने से इंकार करना ,फिर भारत में भाजपा के केन्द्रीय राजनीति में
प्रभावकारी तौर पर उभरने की संभावना देखकर "रंग" बदलने के आसार से यह
विवाद उभरा प्रतीत है , जो दोनों देशों के दौत्य संबंध के लिये दूरगामी तौर पर
उचित नहीं परिलक्षित होती |
बहरहाल , अब जब ब्रिटेन में ब्लू स्टार को लेकर
आंतरिक राजनीति में चर्चा -परिचर्चा तेज है ,तब सरसरी तौर पर विगत सदी के आठवें दशक
को थोडा याद करने की जरूरत है | पाक सरकार के साथ कुछेक यूरोपीय देश जम्मू -कश्मीर
और खालिस्तान को लेकर जब -तब भारत विरोधी बयानबाजी करते रहते थे , इसका असर देश में
इस कदर क्षेत्रीय रूप में खौफजदा था कि प्रसार -प्रचार के माध्यमों में राष्ट विरोधी
तत्वों को क्रमश: जंगजू एवं खाड़कू शब्दों से विभूषित करने की बाध्यता स्थानीय तौर पर
थी | इस गंभीर स्थिति का आकलन केंद्र सरकार ने अपने तरीके से किया ,तब हालात काफी बिगड
चुके थे | इस विषम परिस्थिति में दुनिया के समक्ष अपनी अखंडता को सुरक्षित रखने की
चुनौती थी और इसमें विश्व राजनय का अपने अनुकूल कूटनीतिक स्थितियां पैदा करना जरूरी
था , जिसमे प्रधान मंत्री इन्दिरा गाँधी तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री मार्ग्रेट
थैचर को अपने लिये अर्थात देश हित में जरूरी समझी ताकि विश्व में यह सन्देश स्पष्ट
जा सके कि " एक संप्रभुता संपन्न राष्ट " को अपने अंदरूनी विद्रोह को शांत
/दमित करने का नैसर्गिक अधिकार है |
इस परिप्रेक्ष्य में ब्लू स्टार अभियान में
ब्रिटेन का उपयोग भारत ने अपने हितों के लिये जिस प्रकार भी किया हो , इसे लेकर मतभिन्नता
नहीं होनी चाहिए | ऐसे में ,ब्रिटेन में इसे लेकर उठा तूफान का कोई मतलब नहीं कि उसमे
हज़ार मारे गए हों या उससे कम -अधिक | गड़े -मुरदे को उखाड़ कर ब्रिटेन को क्या हासिल
होगा ? भारत में तो लोक सभा के चुनाव नजदीक है , इसमें धन -जन की हुई क्षति को कांग्रेस
विरोधी पार्टियां सिक्खों को प्रदर्शित करके लाभ लेने की जुगत में हो तो , कोई विशेष
बात नहीं |
वैसे भी दौत्य रिश्ते में कई मामले अलिखित होते
हैं , इसका केवल अहसास होता है , ऐसा प्राय: सभी देश अपने -अपने तरीके से गोपनीय ढंग
से परिपालन करते हैं ,तब ब्रिटेन का साथ भारत के लिये हो भी ,तो इसका बेजा इस्तेमाल
" भावनाओं " के दोहन के लिये किया जाना उचित प्रतीत नहीं है ,विशेष कर उस
अवस्था में ,जबकि भारत -ब्रिटेन लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देश हैं ,जहाँ अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता के साथ व्यक्ति की आजादी नागरिकों को प्राप्त हो |
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