(एसके सहाय)
एक नौकर वृति अर्थात चित्त वाले व्यक्ति
से क्या अपेक्षा हो सकती है ? जैसा कि आसन्न लोक सभा चुनाव के पूर्व प्रधान मंत्री
मनमोहन सिंह ने प्रेस प्रतिनिधियों से बातचीत में अपने विचार व्यक्त किये हैं ,
जिसमे अर्थकीय पहलुओं पर कम और राजनीतिक सन्दर्भों में अधिक बातें की है | इसलिए
यह जरूरी है कि इनके व्यक्त विचारों पर गंभीर परिचर्चा हो |
खासकर , गुजरात के मुख्य मंत्री
नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के परिप्रेक्ष्य में सिंह के
दिए गए बयानों पर विचार मंथन प्रमुख है | यह सर्व विदित है कि मनमोहन सिंह की
पृष्ठभूमि किसी भी कोण से सामाजिक -राजनीतिक नहीं रही है , यह इतफाक कहें या सिंह
की किस्मत कि वह देश-विदेश में एक गंभीर अर्थशास्त्री के रूप में अपनी लगन से लब्ध
प्रतिष्ठित होने में कामयाब है , जो इनके व्यक्तित्व का विशेष पहलू है | इस स्थिति
में इनके भारत जैसे नानाविध संस्कृतियों वाले देश भारत के सत्ता शीर्ष पर काबिज
होना अचरज जैसा है | यह कैसे प्रधान मंत्री के पद पर पहुंचे , इसे यहाँ बतलाना कोई
जरूरी नहीं | कांग्रेस की दलगत संस्कृति में एक परिवार अर्थात नेहरू -गाँधी वंश का
विशेष महत्व रहा है और इसके प्रति एकनिष्ठ भाव ही किसी कांग्रेसी नेता
-कार्यकर्त्ता के आगे बढ़ने के एकमात्र रास्ते हैं , जिसे मनमोहन ने करीने से
अनुगमन किया और शासन के शिखर पर विराजमान होने में सफल रहे |
इन परिप्रेक्ष्यों में नरेन्द्र मोदी की
तुलना सिंह से किया जाना लाजिमी है | स्वाभाविक इसलिए कि वह भाजपा के प्रधान
मंत्री के घोषित उम्मीदवार हैं , सो इनपर शब्दों के हमले कांग्रेस नेता बन के सिंह
करने के लिये मजबूर हैं , वैसे स्वभाव से मनमोहन एक शांत चित्त मनोवृति के शख्स
हैं , मगर नेता के गुणों से कोसों दूर हैं और अपनी पार्टी निष्ठ "लाइन"
पर बोलने के लिये भी आवश्यक है ,अन्यथा वह कभी -किसी पर कोई आक्षेपात्मक बातें
करते नहीं दीखते ,इसलिए दल भेद में नजर आना इनके पद के स्थायित्व के लिये
अपरिहार्य है |
मनमोहन की तरह विषयगत क्षेत्रों के
मेधा क्षमता से मोदी कोसों दूर हैं , इनकी जमा कुल पूंजी इनके अपनी संघर्ष गाथा से
जुडी हैं , जो एक अदने से कार्यकर्त्ता के अपने बूते आगे बढ़ने की कहानी बताता हैं
| भाजपा के साथ इनकी माता जन्य राष्टीय स्वयंसेवक संघ विचार धारा में अपनी
राजनीतिक सोच की अलग छटा ने २०१४ में इनको महत्वपूर्ण बना दिया है , सो मनमोहन
सिंह ने साफ लफ्जों में कहा कि 'अगर मोदी प्रधान मंत्री होते हैं ,तो देश बर्बाद
हो जायेगा |' इस बात ने इंगित किया है कि कांग्रेस एक बार फिर कथित धर्म
निरपेक्षता को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाकर मैदान में उतरने वाली है | गुजरात दंगे
का डर अल्पसंख्यक समाज में उत्पन्न करना और भाजपा को अन्य दलों से दूर रखने के
यत्न सिंह ने प्रेसवार्ता में की है |
सिंह ने दूसरी महत्वपूर्ण रेखांकन
राहुल गाँधी को लेकर की है ,जिसमे अगले चुनाव परिणाम के बाद खुद को 'प्रधान
मंत्री' की दौड़ से अलग रखने और राहुल को ताजपोशी में सहयोग करने की बात है | यह
विचार उनके अंतरमन मन की है या भविष्य के नतीजे को देखकर , यह तय कर पाना थोडा
मुश्किल है ,मुश्किल इसलिए कि वह खुद अपनी मर्जी से कांग्रेस के निर्णयों को दिशा
देने में असमर्थ हैं , जो खुद पार्टी प्रमुख सोनिया गाँधी के हुक्मों का गुलाम हो
, वह कैसे ऐसी बातें कर सकता है ? यह आश्चर्य जनक है |
दरअसल , मनमोहन सिंह कभी राजनीतिक
जगत के प्राणी नहीं रहे | बैंकिग और अर्थ के क्षेत्रों में इनके अप्रतिम योगदान को
कांग्रेस ने अपने तरीके से भुनाया | तब पिछली सदी का अंतिम दशक की शुरूआत हो रही
थी और वह कांग्रेस में 'पद' की चाह में शामिल हो गये थे और संयोग से कांग्रेस पीवी
नरसिंह राव के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री का दायित्व भी इस उम्मीद के साथ मिल
गया कि पटरी से उतरी देश की अर्थ व्यवस्था को संभालने में मदद मिलेगी | यह जमाना ,
उदारवाद ,बाजारवाद , भूमंडलीकृत और खुलापन का था और पूरा विश्व, व्यापक 'गांव' में
तब्दील होने के लिये जगह -जगह , अपने -अपने देश ,समाज ,राज्य में संक्रमणकालीन दौर
से गुजर रहे थे |
इन्हीं समय में सिंह को सोनिया गाँधी
के साथ सटने अर्थात सामीप्य प्राप्त करने के लगातार अवसर मिले , जिसका पूरा
सदुपयोग उन्होंने की | सोनिया से जब भी मिले एक स्वामी भक्त की तरह मिले और यही
विश्वास सिंह को प्रधान मंत्री के पद पर आसीन् करवाने में सफल हो गया |बस , इतनी
भर योग्यता ने पहली बार देश ने एक गैर राजनीतिज्ञ प्राणी को लोकतान्त्रिक सामाजिक
-राजनीतिक सत्ता के शिखर पर पहुंचे देखा |प्रणव मुखर्जी ,एके अन्तोनी सरीखे वरिष्ठ
कांग्रेसी नेता को नजर अंदाज करके एक नौकरी करने वाले मानसिकता लिये व्यक्ति को
प्रधान मंत्री जैसे पद पर बिठ्लाना के क्या मायने थे ?
जाहिर सी बात है कि इसमें एक परिवार की
''जी हजूरी'' के लाभ सिंह को मिले और यह सब कांग्रेस में खूब चलता है | देखें , जब
महिला राष्टपति को लेकर वाम दलों ने कांग्रेस पर दबाव बनाया , तब सोनिया कैसे अपने
पसंद एवं सेवाभावी प्रतिभा सिंह पाटिल को उस पद पर निर्वाचित करवाने में सफल हो गई
थी , जबकि उस समय एक से बढ़ कर एक महिला शख्सियतें देश में सार्वजनिक जीवन में
पाटिल से अधिक सक्रिय थी | यानि 'यसमैन' ही देश के लिये लोकतंत्र के नाम पर पसंद
किया गया , जहाँ योग्यता एवं सामाजिक -राजनीतिक योगदान का कोई 'मूल्य' नहीं |
अंत में एक बात और , मनमोहन सिंह एक
अर्थवेत्ता के तौर पर दुनिया में प्रसिद्ध हैं , फिर भी मौजूदा मंहगाई , बेरोजगारी
, मुद्रा स्फीति , विकास दर जैसे मामलों में फिस्सडी ही दिखे हैं | इनके
ज्ञानार्जन का फायदा आखिर देश को क्यों नहीं मिल रहा ? भ्रष्टाचार की अनंत कहानी
क्यों चौक -चौराहों पर तीखी बहस का विषय बनी है ? केवल व्यक्तिगत 'ईमानदारी' ही
देश को गतिमान नहीं बनाती , इस समझ के अभाव ने इनके प्रधान मंत्रित्व काल को इतना
दागदार बना दिया है कि इनको इतिहास के काल खण्डों में "अकर्मण्य प्रधान
मंत्री" के रूप में ही दर्ज होना है |इससे इत्तर इनकी खास विशेषताओं का कोई
मोल नहीं , जिसमे सामाजिकता -राजनितिकता का समावेश न हो |
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