एसके सहाय
झारखण्ड की प्रांतीय राजधानी रांची में गत दिन एक मजेदार घटना हुई लेकिन यह गंभीर किस्म का प्रकरण है ,जिसमें व्यक्त डायलाग किसी फ़िल्मी अंदाज से कम नहीं अहसास करते |सो , इसपर विचार किया ही जाना चाहिए कि "अधिकार बड़ा है या फिर कर्तव्य " इस मामले में दोनों बिंदु समाहित हैं ,जिसमें अखडपन् है तो विशिष्ट होने का दंभ भी दृष्टिगत है |
घटना बिरसा चौक की है ,जहाँ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आंदोलन में भाग लिये जत्था धरना पर बैठा था और इसमें शांति भंग न हो ,इसके लिये स्थानीय प्रशासन ने एक पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति की थी ,तभी अचानक दो विधायक धरना स्थल पर आ धमके और उनसे मिलने की जुर्रत करने लगे ,जिसे मौके पर पुलिसकर्मियों ने रोक दिया ,जिससे वहां पर थोड़े समय के लिये नोंक -झोंक की स्थिति उत्पन्न हो गई और इसी क्रम में दरोगा ने अपने चिर -परिचित शैली में बोला कि- "क्या आपके माथे पर विधायक होने का तमगा लगा है" |
इस फ़िल्मी अंदाज में कही गई बात से निराश होकर दोनों विधायक वापस विधान सभा लौट गए ,जहाँ सत्र के दौरान आपबीती सुनाई ,जिसपर बवाल मच गए और सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष मिलकर घटना पर तीखी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त किये और एक स्वर से दोषी पुलिसकर्मियों नके विरूद्ध करवाई करने की मांग करने लगे , नतीजत: दरोगा रामकृष्ण महतो और जमादार लुईस मिंज को तत्काल मुअतल कर दिए जाने की घोषणा की गई |
वैसे ,पुलिस प्रताडना के शिकार हुए भाजपा विधायक उमाशंकर अकेला और राजद के विधायक जनार्दन पासवान ने यह भी बताया कि दोनों ने अपना परिचय पत्र दिखला कर पुलिस से धरना पर बैठे आंदोलनकारियों से भेंट करने की अनुनय की मगर उनकी एक भी नहीं सुनी गई | अपने को पिटे जाने तक की बात विधायकों ने सदन में रखी | प्रकट है कि पक्ष -विपक्ष दोनों के विधायक पुलिस अपमान के शिकार हुए और इनके खीझ में उन दो पुलिसकर्मियों को निलंबन होना पड़ा ,जिनको कानून -व्यवस्था बनाये रखने कि जिम्मेदारी दी गई थी |
इस घटना क्रम को ध्यान से देखें तो, जाहिर होगा कि इस प्रकरण में दोनों ने गैर जिम्मेवारी का परिचय दिया है | अव्वल तो दोनों विधायकों को धरना स्थल पर जाना नहीं चाहिए , विशेष कर यह जानते हुए कि वहां पर पुलिसकर्मी प्रतिनियुक्त हैं ,जो इनके आंदोलन को नियंत्रित करने के लिये तैनात है और यदि मिलने जाना ही था ,तब पुलिस बल के उच्चाधिकारियों से अनुमति लेकर जाना चाहिए था .ऐसा इसलिए कि वहां पर पुलिस बल अपने कर्तव्य के पालन में दृढ थी ,यह उस हालात में और गंभीर था कि निकट ही विधान सभा के सत्र चल रहे थे , और यह सब विधायकों को इसलिए भी ध्यान रखना चाहिए था कि वह खुद कानून -व्यवस्था बनाये रखने के लिये नियमों -परिनियमों का इजाद किये है ,जिसका पालन पुलिस धरना स्थल पर कर रही थी ,ऐसे में यदि पुलिस के नुमाइंदे ने उनके साथ जो बर्ताव किये वह ज्यादा गंभीर नहीं कहे जा सकते लेकिन यह तो लोग जान ही गए कि विधायक खुद नियमों की परवाह नहीं करते ,तब साधारण लोगों से क्या अपेक्षा की जा सकती है !
दूसरी तरफ , पुलिस ने यह जानते हुए कि दोनों विधायक हैं ,इनके साथ गंभीरता से पेश होने चाहिए थे और जब स्थितियां अनुकूल है ,तब मिलने -मिलाने में कोई विशेष हर्ज भी नहीं था | ऐसे में कौन कसूरवार है और कौन बे कसूरवार यह तय कर पाना मुश्किल सा है |फ़िलहाल तो दोनों पुलिसकर्मी निलंबित है |
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