Saturday, 10 March 2012

युवा नेतृत्व के भरोसे पर


      युवा नेतृत्व के भरोसे पर 
                                                                            (एसके सहाय )
                                    अब ,जब उत्तर प्रदेश में युवा नेतृत्व के हाथों में सत्ता की  बागडोर कुछेक दिन में होगी ,तब यह विचारणीय प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि किस परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के नाम पर एक बार जुआ खेलने का निर्णय लेने को मजबूर  हुई ,जुआ इसलिए कि खुद अखिलेश और मुलायम सिंह यादव के निकट के साथी इस नेतृत्व के फैसले से अनमने से थे और इसका दिक्दर्शन आजम खान के रूख से परिलक्षित हुआ भी ,इसके बावजूद ,इस युवा नेतृत्व के मुख्य मंत्री बने का मार्ग साफ हुआ | अतएव ,एक बार फिर नए सिरे से अनुभव शून्य नेतृत्व का साबका ठीक उस प्रकार देश के सबसे बड़े सूबे में दिखने को मिलेगा ,जैसा कि राजीव गाँधी के प्रधान मंत्री बनने  के वक्त था |
                                  फ़िलहाल , अखिलेश, मुख्य मंत्री के पद संभालेंगे और मुलायम छाया की तरह उनके मार्गदर्शन करेंगे | भारतीय राजनीति का  यह चेहरा  अगले छ माह तक काफी दिलचस्प होगा | रोचक इसलिए कि इतिहास को देखें ,तब आय काफी कुछ -कुछ राजीव गाँधी के सिंहासनारूढ़ की तरह है ,वह ऐसा इसलिए कि ,जब राजीव गाँधी प्रधान मंत्री  बने थे , तब कांग्रेस के अगले वर्ष शताब्दी वर्ष था और इसके उपलक्ष्य में 1985 में पार्टी के आयिजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि " देश के विकास मद की 100     फीसदी राशि र्मे से मात्र पांच प्रतिशत ही निर्धनों  याने आम देश वाशियों के पल्ले पड़ती है ,बाक़ी बिचौलिये रास्ते में ही खा जाते हैं और इस स्थिति को बदलना उनकी सरकार का प्रथम कर्तव्य है "  परवर्ती काल में क्या हुआ और क्या हस्र कांग्रेस की सरकार को प्रचंड बहुमत रहते झेलना पड़ा ,इसे बताने की जरूरत यहाँ नहीं है |
                               बहरहाल , अखिलेश ,राजीव के बनिस्पत ज्यादा खुशहाल हैं ,वह इसलिए कि इनके प[इत मुलायम अभी जीवित हैं और सक्रिय राजनीति में पूरे -दम -ख़म के साथ  मौजूद भी है ,जो राजनीति के उचित -अनुचित परिणामों के प्रति आगाह करते रहेंगे लेकिन क्या इतने से भर से अखिलेश का काम चल जायेगा  ? कदापि नहीं | फिर तो हल क्या है ? हल है .लेकिन उसके लिए "दृढ इच्छा "  की जरूरत है और यह  फौलादी इरादा वैसे अखिलेश में चुनावी दौरे और भाषणों के दौरान दिखा भी है  .जिसे मूर्त रूप होते देखना भी प्रान्त के लोग चाहते भी है |
                                उत्तर प्रदेश  के लिए ,वर्तमान  समय में "कानून एवं व्यवस्था " ही मुख्य समस्या है ,जिसे सत्ता से ख़ारिज किए गए मायावती ने हार के बाद बहुत ही स्पष्ट शब्दों में रेखांकित किया है कि " बसपा के कार्यकर्त्ताओं को निराश होने की जरूरत नहीं है ,सपा के राज -काज में कानून -व्यवस्था के हालात बिगड़ेगी ,2007 की तरह ही स्थितियां , राज्य में गुंडागर्दी का नजारा होगा  ,जिससे लोगों का मोह भंग होना निश्चित है " इस नपे -तुले बयान के बाद ही तुरत जीत के बाद पहले संवाददाता सम्मलेन में अखिलेश ने भी अपनी और सपा के सर्वोच्च प्राथमिकता कानून -व्यवस्था को ही बनाये रखने की बात की है ,इससे उम्मीद है कि बसपा और सपा  याने दोनों को यह पत्ता है कि यदि राज्य में शांति बनी रहती है ,तभी उनका टिकाऊपन   होगा ,सो इसके खतरे से पक्ष -विपक्ष वाकिफ हैं | इस मुदे कि गंभीरता का अहसास अखिलेश को है ,तभी तो विधायक दल एक नेता चुने के बाद अपनी पहली बोल में ही "कानून -व्यवस्था को पुन: रेखांकित किए |इसलिए ,अभी तो भरोसा ही किए जाने के क्षण हैं |
                               इन परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्पष्ट होगा कि देश के सबसे बड़े राज्य की राजनीति पर इन दिनों राजनीतिक समीक्षकों का ध्यान स्वाभाविक तौर पर है और अगले कदम का इंतजार है कि अखिलेश की रहनुमाई में कैसे कार्यक्रम का प्रदर्शन यहाँ होता है ? यह इसलिए भी भारतीय राजनीति में वंशवाद अब प्रयोग की उतनी महत्पूर्ण विधा नहीं रही ,जैसा कि नेहरू -गाँधी के ज़माने में हुआ करती थी और अब लोकप्रियता है तो योग्यता  भी है ,जिसका निर्धारण मतदाता ही अपने मनोयोग से कर रही है और यदि ऐसा नहीं होता तब , राहुल गाँधी को यूपी के लोग नहीं ठुकराते बल्कि अच्छी -खासी वोट देकर कम से कम विपक्ष में बैठने लायक बहुमत तो देते ही .लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि सिर छुपाने के लिए भी  जगह नहीं दी ,जिसका मतलब बहुत ही साफ है और यह कि केवल  हवाबाजी के बातों से काम नहीं चलने वाला ,वरन कथनी  -करनी  में साम्य का भी दिक्दर्शन होना चाहिए ,जैसा कि अखिलेश ने डी पी यादव ,अमर सिंह और  अपने चाचाओं    के प्रति किया है  और यही पूंजी भरोसे का अभी अखिलेश के पास है ,जिसका अभाव अन्य युवा नेतृत्व को  हैं |
                            वैसे में अखिलेश की बातों में अभी भरोसा किया ही जाना चाहिए ,ताकि इनके प्रवृतियों  का परीक्षण हो सके |किसी भी राज्य का पहला दायित्व कानून -व्यवस्था को बनाये रखने का है फिर विकास की गति को धैर्यपूर्ण  तरीके से अमली जामा पहनने से है ,जिसका बैचेनी से उत्तर प्रदेश को इंतजार है | इसके लिए अखिलेश के पास समय भी काफी है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह दूसरों के मीन-मेख निकलने में अपना वक्त जाया करें ,वक्त किसी का इंतजार नहीं करता बल्कि लोग समय की प्रतीक्षा करते है ताकि अपनी सोची योजना को मूर्त स्वरूप   दिया  जा सके .ठीक उसी  प्रकार जैसा कि मुलायम सिंह यादव ने पांच साल का इंतजार किए और इन वर्षों में समूचे सूबे में मायावती के खिलाफ अलख जगाते रहने में अपने को कभी अकेला नहीं माने और अब यही तेवर -धैर्य  अखिलेश में देखना बाक़ी है |
                          और एक सलाह अखिलेश को ,वह यह कि आपराधिक तत्वों से दोस्ती मत करो और न ही प्रोत्साहन दो ,केवल जन कल्याण के मद्देनजर समग्रता में निर्णय लो ,फिर सिर्फ पानी -बिजली और सडक के विकास को फिलवक्त प्राथमिकता दो .देखो भविष्य के रास्ते और सुखद एवं आश्चर्यित होंगे | फ़िलहाल इतना ही --
                               

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