( एसके सहाय )
अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल के बहाने संसद में निंदा प्रस्ताव पर हुई बहस का लब्बो -लुआब यह है कि आज भारत समेत पूरी दुनिया जान गई है कि सत्ता और प्रतिपक्ष के शिखर पर कूपमंडूक चरित्र के लोग काबिज हैं ,जिन्हें थोड़ी कवायद के के साथ साधा जा सकता है और हाल में यूरोपियन -अमेरिकन हितों ने श्रीलंका के परिप्रेक्ष्य में साधा भी,लेकिन इसका "भान " केन्द्रीय सत्ता को नहीं है |
बहरहाल ,लोकपाल के लिए संघर्ष कर रहे हजारे और केजरीवाल ने "संसद " का अपमान नहीं किया और न ही इसके अस्तित्व को समाप्त करने की मांग की ,बल्कि यह दुनिया को खुलेआम यह बताया कि भारतीय संसद में लोक प्रतिनिधि के तौर पर १६२ सदस्य अपराधिक प्रवृति के है या इनपर फौजदारी मुकदमे न्यायालयों में लंबित हैं |
क्या इस सच्चाई से मुंह मोड़ा जा सकता है या यह दलील काफी है कि अबतक किसी न्यायिक निर्णयों में दोषी इनको नहीं ठहराया गया है |
बोलचाल की भाषा में कही गई बात को इतने गंभीरता से लोकसभा के कुछेक और वाचाल सदस्यों ने ले लिया कि इनके निंदा प्रस्ताव का कोई अर्थ ही नहीं निकला |
देश में इनदिनों यूँ कहिये पिछले दशक से कथित नेतागण अपने संबोधनो में बार -बार "जनता " शब्द का उल्लेख करते आ रहे हैं और इनके हितों-कल्याण की बातें कर रहे हैं | इन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे "जनता " का मतलब से अवगत है या फिर बरगलाने केलिए ही उसका उपयोग् करने में अपने को महारथी समझते है |
मैं समझता हूँ कि मौजूदा समय में दस फीसदी ही ऐसे नेता -राजनीतिज्ञ होंगे ,जो "जनता " का मतलब समझने के योग्य होंगे |
इसलिए अपने जबान के पक्के नेता अपनी जबान से बार -बार "जनता ' की जगह "लोग -नागरिक "शब्द का उच्चारण करते हैं |
एक उदाहरण से आपको बता दूँ कि आर्ट आफ लिविंग के गुरू श्री श्री रविशंकर ने एक पखवारे पहले एक बयान दिया ,जिसमे कहा गया कि "सरकारी स्कूलों में नक्सली पैदा होते हैं ,इसलिए सभी सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया जाना चाहिए "
इस बयान में सरकारी स्कूलों को एकदम बंद कर देने की बात निहित है ,जो सैन्द्दंतिक एवं व्यवहार्य में कभी एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाले देश में संभव नहीं है और इई अधर पर रविशंकर की कटु आलोचनाएं भी हुई
इसी सन्दर्भ में केजरीवाल की बातों को समझे ,तब खुद प्रतीत होगा कि उन्होंने किसी भी कोण से संसद की मुखालपत नहीं की केवल आपराधिक अभियुक्त बने लोक सभा के सदस्यों पर प्रश्न चिन्ह खड़े किये ,जो वर्तमान हालात में एक जाज्यवालमन विचार बन कर पुरे भारत को उद्वेलित और मथ रहा है |
अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल के बहाने संसद में निंदा प्रस्ताव पर हुई बहस का लब्बो -लुआब यह है कि आज भारत समेत पूरी दुनिया जान गई है कि सत्ता और प्रतिपक्ष के शिखर पर कूपमंडूक चरित्र के लोग काबिज हैं ,जिन्हें थोड़ी कवायद के के साथ साधा जा सकता है और हाल में यूरोपियन -अमेरिकन हितों ने श्रीलंका के परिप्रेक्ष्य में साधा भी,लेकिन इसका "भान " केन्द्रीय सत्ता को नहीं है |
बहरहाल ,लोकपाल के लिए संघर्ष कर रहे हजारे और केजरीवाल ने "संसद " का अपमान नहीं किया और न ही इसके अस्तित्व को समाप्त करने की मांग की ,बल्कि यह दुनिया को खुलेआम यह बताया कि भारतीय संसद में लोक प्रतिनिधि के तौर पर १६२ सदस्य अपराधिक प्रवृति के है या इनपर फौजदारी मुकदमे न्यायालयों में लंबित हैं |
क्या इस सच्चाई से मुंह मोड़ा जा सकता है या यह दलील काफी है कि अबतक किसी न्यायिक निर्णयों में दोषी इनको नहीं ठहराया गया है |
बोलचाल की भाषा में कही गई बात को इतने गंभीरता से लोकसभा के कुछेक और वाचाल सदस्यों ने ले लिया कि इनके निंदा प्रस्ताव का कोई अर्थ ही नहीं निकला |
देश में इनदिनों यूँ कहिये पिछले दशक से कथित नेतागण अपने संबोधनो में बार -बार "जनता " शब्द का उल्लेख करते आ रहे हैं और इनके हितों-कल्याण की बातें कर रहे हैं | इन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे "जनता " का मतलब से अवगत है या फिर बरगलाने केलिए ही उसका उपयोग् करने में अपने को महारथी समझते है |
मैं समझता हूँ कि मौजूदा समय में दस फीसदी ही ऐसे नेता -राजनीतिज्ञ होंगे ,जो "जनता " का मतलब समझने के योग्य होंगे |
इसलिए अपने जबान के पक्के नेता अपनी जबान से बार -बार "जनता ' की जगह "लोग -नागरिक "शब्द का उच्चारण करते हैं |
एक उदाहरण से आपको बता दूँ कि आर्ट आफ लिविंग के गुरू श्री श्री रविशंकर ने एक पखवारे पहले एक बयान दिया ,जिसमे कहा गया कि "सरकारी स्कूलों में नक्सली पैदा होते हैं ,इसलिए सभी सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया जाना चाहिए "
इस बयान में सरकारी स्कूलों को एकदम बंद कर देने की बात निहित है ,जो सैन्द्दंतिक एवं व्यवहार्य में कभी एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाले देश में संभव नहीं है और इई अधर पर रविशंकर की कटु आलोचनाएं भी हुई
इसी सन्दर्भ में केजरीवाल की बातों को समझे ,तब खुद प्रतीत होगा कि उन्होंने किसी भी कोण से संसद की मुखालपत नहीं की केवल आपराधिक अभियुक्त बने लोक सभा के सदस्यों पर प्रश्न चिन्ह खड़े किये ,जो वर्तमान हालात में एक जाज्यवालमन विचार बन कर पुरे भारत को उद्वेलित और मथ रहा है |
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