Tuesday, 27 March 2012

आजादी के दीवाने


        आजादी का जूनून क्या होता है ,यह देखना है तो कल नई दिल्ली में घटित उस दृश्य को देखें ,जहाँ तिब्बत के एक मतवाले ने खुद को आग के हवाले कर लिया और विश्व को यह सन्देश दे गया कि स्वतंत्रता ही उसके जीवन का ध्येय है ,जो फिलवक्त चीन के कब्जे में है |
जानफेल नाम के तिब्बती युवक ने अपने देश के प्रति विवशता में जो प्रदर्शित किया ,वह मानवता के लिहाज़ से उचित नहीं कहा जा सकता लेकिन इसके भीतर छिपे उस भावना के अतिरेक को क्या कहेंगे ,जिसे पिछले छ दशकों से भारत सहित पूरा विश्व असहाय सा तिब्बत के प्रति रूख का इजहार किये हुए है |-कल्पना करें ,स्वंय के बारे में ,जब स्वाधीनता संघर्ष में कितने युवा अपने को आत्मोत्सर्ग इसी तरह कर दिए या कहिये जान हथेली पर लेकर हँसते -हँसते फांसी के फंदे पर झूल गए ,गोलियों के अनगिनत शिकार होकर बलिदान हो गए और आज जब हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है ,तो सत्ता पर काबिज शक्तियां हम देशवाशियों को ही "भ्रष्ट तंत्र " से निजात दिलाने के नाम पर कुत्सित बातें कर रही है ,गोया लोक विश्वास -लोक शक्ति उनके ही आश्रित है |
देश में लोकतंत्र के प्रतिनिधियात्मक स्वरूप ने ऐसी व्यवस्था जन्य तंत्र का जन्म दिया है कि आज इस मुद्दे पर टाल  -मटोल की बातें ही संसद में हो रही है ,जिस खीझ ही पैदा हो रही है और यह खीझ कब ज्वाला बन जाए इसकी कल्पना ही की जा सकती है | लोकपाल के मुद्दे हों या अन्य कोई लोककल्याणकारी विषय, बराबर नुक्ता-चीनी की प्रवृति ने लोगों को नैराश्य ही किया है और इसका प्रतिकार किस रूप में प्रकट होगा ,फिलवक्त साफ -साफ नहीं कहा जा सकता |
इस तथ्य को विधायिका के अधिसंख्य सदस्य समझने में विफल है कि "व्यक्ति " से ज्यादा "तंत्र " में व्याप्त भ्रष्टाचार ने रोष पैदा किया है | तंत्र की अवैध दोहन की प्रवृति ने पुरे व्यवस्था को अविश्वनीय बना दिया है जिसके मूल में " टैक्सों " से इनकी आजीविका अर्जित है और इसके तत्काल हाल होने में खुद के बनाये प्रक्रिया ही इसके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है ,जिसे दूर करने की मांग इन दिनों एक बार फिर से अन्ना हजारे की शक्ल में गूंजने लगी है ,जिसकी ताकत दलगत अधर से परे है ,इसके बावजूद " प्रक्रिया " के नाम पर तेजी से लोकपाल - लोकायुक्त जैसे मसले को हाल करने के लिए त्वरित कदम उठाने में संसद विफल है तो मानना होगा कि हम टूट  चुके पथ के पथिक हैं ,जिसके लिए इंतजार-दर-इंतजार ही किस्मत में लिखा है ,जिसका कोई मूल्य सत्ता संघर्ष में नहीं है |
मगर यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि " भ्रष्ट ,भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी " समाज के ऐसा रोग है ,जिसका समाधान काफी भयावह होता है ,बस प्रतीक्षा करें उस घडी की जब एक बार पूरा देश घरों से  निकल कर सड़कों पर आएगा और फिर --- 

1 comment:

  1. jise aajadi pyari hai ,use mout se dar nahin lagata .

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