( एसके सहाय )
बोल - चाल की भाषा में आपने सुना
होगा कि, देखो वह "हदरल" जैसा खा रहा है ,मानों उसे पुन: भोजन नसीब होगा
या नहीं, वह एक ही बार में सब आहार जल्दी -जल्दी खाकर तृप्त होने की चेष्टा कर रहा
है | काफी कुछ ऐसा ही ,झारखण्ड में वार्षिक बजट को लेकर राज्य सरकार बर्ताव वह
करती रही है और इसका दोषारोपण केन्द्र सरकार पर इस रूप में लगाती है ,जैसे उसके
अपेक्षा के अनुरूप विकास मद में राशि नहीं दिए जाने से प्रान्त अबतक समृद्दि से
कोसों दूर है ,गोया इसके लिये हम जिम्मेदार नहीं बल्कि केंद्र की कांग्रेसनीत
संप्रग सरकार है ,जो केन्द्रीय राशि देने
में पक्षपात करती है, लेकिन सच तो यह है कि राजग शासन कल में भी यही हालात इस
राज्य के थे ,तब आरोप - प्रत्यारोप के आयाम नहीं थे ,क्योंकि दोनों एक ही प्रवृति
की सरकार थी ,इसलिए यह विषय कभी अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधान मंत्रित्व काल में
संघर्ष का मुद्दा नहीं बना ,मगर अभी ऐसी बात नहीं है ,इसलिए एकबार फिर से समाप्त
हुए वित्तीय वर्ष (२०११- १२) के लेखकीय बजट को जानना समीचीन होगा ,ताकि यह स्पष्ट
हो सके कि विकासगत मामलों में कौन उत्तरदायी और किस रूप में हैं |
वैसे ,झारखण्ड में एक बार फिर
योजनागत -विकासगत राशि करोड़ों में पिछले वित्तीय वर्ष (२०११ -१२) में तय समय में
खर्च कर पाने में सरकार सफल नहीं हो पाई |यह पहली दफा नहीं है कि ऐसी स्थिति उत्पन
हुई हो , बल्कि राज्य के अस्तित्व में आने के बाद से ही हर साल निर्माणात्मक
-संरचनात्मक कार्यों में प्राप्त रूपये को अबतक किसी भी मुख्य मंत्री के कार्यकाल में समय के साथ
पूर्ण या कहें कि खर्च नहीं कर पाने का रिकार्ड भी इस राज्य का है |ऐसे में यदि
संघ सरकार चालू वित्तीय वर्ष में योजना मद की राशि में कटौती कर दे ,तब कोई नैतिक
हक झारखंड का नहीं है कि उसे लेकर राजनीतिक वितंडा खड़ा करे ,लेकिन भाजपानीत मुख्य
मंत्री अर्जुन मुंडा की सरकार क्या सहन करेगी या राजनीतिक लोभ के संवरण करने से
बाज आएगी ? पूर्व का इतिहास देखें तो ऐसा नहीं लगता बल्कि जोर -शोर से कांग्रेसनीत
संप्रग सरकार को विकास के मार्ग का रोड़ा घोषित करेगी और लोगों को भरमाने के लिये
झूठ का सहारा लेगी |अबतक का ऐसा ही नज़ारा रहा है |इसमें आम लोगों को बेवकूफ बनाने
और अपनी सत्ता बचाए रखने की रणनीति काम करती है ,जो क्षुद्र मानसिकता वाले प्राय:
हर राजनीतिज्ञ करते है और इसी श्रेणी के मुंडा है ,जो खुद और भाजपा के बीच समन्वय
स्थापित करने की आड़ में राजभोग में तल्लीन है और इनके साथ झामुमो और आजसू सरीखी
बौनी पार्टियां साथ देने को तैयार ही है |
इस पूरी धोखाधड़ी और राजनीती को समझने
के लिये चालू वित्तीय वर्ष (२०१२- १३ )के लिये पारित विनियोग विधेयक को देखें
,जिसमे साल भर के बजट के लिये ३७,११३.८० करोड रूपये स्वीकृत किये गए हैं और इनमें
योजना मद के लिये १८,७०९.६७ करोड तथा गैर योजना कार्यों के लिये १८,४०४.१३ करोड
रूपये खर्च किये जाने की बात सरकार ने की है ,लेकिन सवाल है कि क्या वास्तव में
वर्तमान सरकार की क्षमता है ,जो इतनी बड़ी राशि निशिचत समय पर खर्च कर सकती है ! यह
इसलिए संदेह पैदा किया है कि विगत १२ सालों का अनुभव यही बताता है कि बाबु लाल
मरांडी ,शिबू सोरेन ,मधु कोड़ा और अर्जुन मुंडा के मुख्य मंत्रित्व में कभी ऐसा
आभास नहीं हुआ कि "सरकार गंभीरता एवं चुश्ती" के साथ योजनाओं को धरातल
पर उतारने के लिये कृत संकल्प है |
इस तथ्य की पुष्टि समाप्त हुए
वित्तीय वर्ष के आंकड़े खुद करते हैं और शक भी उत्पन्न करते है कि मात्र एक माह में
तीन चौथाई राशि बजट के कैसे खर्च कर दिए गए ? वह इसलिए कि २०११-१२ में फ़रवरी कुल
बजट का ६५०१.५७ करोड रूपये ही खर्च होने की आधिकारिक घोषणा थी ,फिर अचानक समाप्त
हुए साल में ३६०० करोड रूपये खर्च कर दिए जाने की बात सरकार ने कर डाली आखिर यह
कमाल कैसे हुआ ? यह इसलिए भी सोचनीय वाली बात है कि केन्द्र सरकार बराबर यह तोहमत
झारखण्ड पर लगाती रहती है कि वह दिए गए
राशि का समय में उपयोग नहीं करती और अधिक राशि मांगने के फोबिया से यह ग्रस्त रहती
है |ऐसे सवाल उठाना वाजिब ही कहा जा सकता है मगर इसका भी जवाब राज्य सरकार ने
तैयार कर रखा है और कहा भी है कि केन्द्रीय आवंटन हाल में जैसे ही मिला ,उसे तुरत
खर्च कर दिए गए इसलिए कि योजना पूरी कर ली गई थी !
इसमें क्या सच है और क्या झूठ ,इसका
दस्तावेजी सबूत ही साक्ष्य हो सकते है . जिसका कौन पहले खुलासा करता है ,इसका
इंतजार है | ऐसा इसलिए कि दोनों ही सरकार अपने -अपने तरीके से एक दूसरे को इल्जाम
में घेरते रहने के प्रयत्न में हमेशा रही है .क्योंकि दोनों ही इस वक्त एक -दूसरे
के विपरीत राजनीतिक समूह के प्रतिनिधित्व कर रहे हैं |
बहरहाल ,झारखण्ड का गत साल का वार्षिक बजट १५३२२.७५ करोड का
था |बाद में ,खर्च नहीं कर पाने की आशंका के बीच राज्य सरकार ने केन्द्रीय मदद को
देकते हुए इसके आकार में कमी की और फिर १२२३२.६५ रूपये के वार्षिक बजट बनाये
,जिसमें प्राप्त आवंटन १०४०२.८५ करोड रूपये घोषित हुए ,जिसमें बताया गया कि इसमें
अबतक अर्थात बीती ३१ मार्च तक १०१००.२२ करोड रूपये खर्च कर दिए गए हैं |
अतएव , इस सन्दर्भ में मुख्य मंत्री
अर्जुन मुंडा की तरफ से क्या करवाई होती है ,इसे देखा जाना बाकी है ,वह इसलिए कि
मुंडा ने बराबर अधिकारियों को चेतावनी दी है कि यदि समय पर याने चालू वित्तीय वर्ष
में योजना मद की राशि खर्च नहीं की गई ,तब सरकार सबंधित अधिकारीयों के विरूद्ध
दंडात्मक कदम उठायेगी लेकिन अब कहा जा रहा है कि समीक्षा में दोषी पाए जाने पर
विभागों के सचिवों के खिलाफ नकारात्मक चारित्रिक टिप्पणियाँ लिखी जायेगी | साफ है
कि स्वयं अकर्मण्य सरकार कैसे सख्त कारवाई कर सकती है ? जबकि वह खुद विकास पर कम
और राजनीतिक चालबाजियों पर ज्यादा ध्यान देने में मशगुल है ,जिससे कि सरकार के
स्थायित्व का खतरा टालता रहे ,यही आज झारखण्ड का मूल संकट है ,जिसमें हर पक्ष किसी
न किसी रूप में प्रत्यक्षमान है |
जाहिर है कि विगत वित्तीय वर्ष में कुल
बजट के ८२.९७ फीसदी खर्च किये जाने की बात सामने आई है ,जिसमें १२,२३२.६५ करोड में
से १०,१००.२२ करोड खर्च किये जाने का दावा है और इसमें फ़िलहाल पांच विभागों के
खर्च राशि में ३८ से ६२ प्रतिशत राशि खर्च नहीं होने के संकेत है | मसलन ,सूचना
प्राविधिक क्षेत्र में ३७, समाज कल्याण में ५९.५७, उर्जा में ६२.३२ ,भवन निर्माण
में ६५.१० ,स्वास्थ्य में ६६.१३ और विज्ञान प्रौधोगिकी के लिये ४६८.९१ प्रतिशत
राशि ,इनके लिये निर्धारित बजट में से खर्च हुई है ,जबकि अभी सड़क, पेयजल , बिजली ,
ग्रामीण विकास , कृषि ,सिंचाई कल्याण जैसे निर्माणात्मक ,संरचनात्मक एवं विकासगत
महकमों-क्षेत्रों -विषयों के समीक्षा किया जाना शेष है |
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ReplyDeleteapne apni bat nahin rakhi?
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