( एसके सहाय )
जो देश अपनी "राष्टीय
चिंताओं" की परवाह नहीं करता ,उसकी दुनिया भी परवाह नहीं करती |अंतराष्टीय
राजनय के इस अटल सत्य को समझने के लिये कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है ,बल्कि
भारत ,पाकिस्तान ,अमेरिका और विश्व के अन्य देशों -क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य में
आज चहुंओर अपनी - अपनी "राष्टीय
चिंता" के रूप में विधमान है ,सिर्फ उसे अनुभूत करने और प्रदर्शित कूटनीतिक
व्यवहार को जानने की आवश्यकता है | अतएव, हाल में जब अमरीकी अंडर सेक्रेट्री आफ
स्टेट वेन्डी शरमन ने नई दिल्ली में यह जानकारी दी कि उसके देश ने पाकिस्तान के
मोहम्मद हाफिज सईद जैसे दुर्दांत आतंकवादी को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिये एक
करोड डालर याने कारी पच्चास करोड रूपये के इनाम घोषित किया है ,तब भारतीय राजनय
एवं कूटनीतिक क्षेत्र में इसे स्वागत करते हुए हर्ष व्यक्त किया गया ,जिसको विदेश
मंत्री एस एम् कृष्णा ने रेखांकित भी किया |मतलब यह कि जो काम भारत को पहले ही
मुंबई कांड के बाद तुरत कर देना चाहिए था ,वह अमरीका कर रहा है और हम तालियाँ बजा
रहे हैं |है न सोचने वाली बात कि आखिर हमारी विदेह नीति का ध्येय क्या है ,यह भी
आज के केंद्र सरकार को मालूम नहीं है ,ऐसे में रह -रह करके बाहरी चुनौती मिलने की
आशंका बनी रहती है तो क्या ताज्जुब ?
इस घोषणा के क्या निहितार्थ हैं ,इसे भी
मौजूदा केंद्र समझने में चूक रही है और अपनी राष्टीय राज्य की चिंता को भूलने की दिशा में अग्रसर है
| वह इसलिए कि पाक राष्टपति आसिफ अली जरदारी के अजमेर शरीफ दौरे के लिये सरकार पलक
- पांवड़े बिछाए इसके इंतजार में है ,ताकि रिश्ते को नई दिशा अपनी राष्टीय हितों के
अनुरूप दिया जा सके ,जो अभी के पाक में व्याप्त स्थिति असंभव तो नहीं लेकिन बेहद
मुश्किल सा है क्योंकि वहां के हालात में खुद जरदारी का महत्त्व इनदिनों जबरदस्त
संदेह के घेरे में है ,फिर सेना -कट्टरपंथियों के बीच इनकी क्या हैसियत है ,यह विश्व
बिरादरी को अच्छी तरह मालूम है |
ऐसे में ,अमरीका ने सीधे विदेशी
आतंवादियों के विरूद्ध में अपनी परराष्ट नीतियों को विस्तार देने के कोशिश की है ,तो इसके मूल में उसके अपनी
राष्टीय चिंता है ,न कि दुनिया के हितों
को सुरक्षित करने की पहल ,जैसा कि अमूमन अपनी हर बात - कारवाई के लिये वह लोकतंत्र
,मानवता ,सभ्य समाज वगैरह की करता रहता है | इससे भारतीय कूटनीति को सिखने की
जरूरत है | मसलन , जब संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरे देश के आंतकवादी को अपना शत्रु
घोषित करता है ,तो वह अपनी राष्टीय चिंता को प्रकट करता है अर्थात ९/११ हमले के
पश्चात वह अपने नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए हुए है और इसके
आधार पर हर उस दुश्मन को खत्म करने के प्रयास में है ,जो उसकी अस्मिता को चुनौती
देते हों | यही वजह है कि एक तरफ पाकिस्तान को आर्थिक मदद की दुहाई देता है ,तो दूसरी तरफ उसके घर में ओसामा बिन
लादेन को मार डालता है और इसके लिये अंतराष्टीय मानक "संप्रभुता" को
तोड़ने में तनिक भी हिचकिचाहट उसे नहीं होती लेकिन एक भारत है ,जो प्रतीक्षा करने
में ही अपने को कूटनीतिक विजय और राष्टीय हित को सुरक्षित मान लेने के भ्रम में है
| ऐसे में चिंता होना लाजिमी है |
दरअसल , बदलते विश्व परिदृश्य में
दुनिया अब सिमट गई है और इसे तेजी से शोधपरक जीवन शैली के देश उसके अनुरूप अपने को
ढाल रहे है और इसमें यूरोप - अमेरिका सबसे आगे है ,जिसमे भारत के रणनीतिक तौर
-तरीके बाबा आदम के ज़माने से चले आ रहे हैं ,जिसमें अब वह कोई सार्थक लाभ या हित
परिलक्षित -दृष्टिगत नहीं है ,जो कभी हुआ करते थे |अब परराष्ट के नियम ,खुल्लमखुला
राष्ट हित से जुड़ा है ,जिसमे "नैतिकता" नाम की कोई बात नहीं होती और इस
सन्दर्भ में हाल के श्रीलंका के लिये मानवाधिकार पर हुए संयुक्त राष्ट संघ के
मतदान में भारत के हितों को नज़रंदाज करने वाला और श्रीलंका को चिढाने वाला रहा है
,फिर इस पडौसी से दुरी बनती दिखे तो इसके लिये कौन जिम्मेदार होगा ? आखिर क्या देश
की विदेश नीति ,अमरीका के नज़रिए से संचालित होगी ? इन दिनों तो ऐसा ही दिख रहा है
| यही नहीं ,अमरीका साफ कर चूका है कि ईरान के रिश्ते उसके साथ नहीं तो और किसी के
साथ नहीं मंजूर किये जा सकते और इसके लिये बहाना लिया है - परमाणु उर्जा के विकास
की , जिस ओर यह कदम बढ़ाया है ,उसे प्रतिबंधित करने की कोशिश में वह है |
इस मुद्दे अर्थात ईरान को लेकर ब्रिक्स
देशों की रणनीति को विफल करने और इसके तहत पाक को आतंकवादी पनाहगाह के तौर पर
चिन्हित करके अमेरिका ,भारत को अपने पक्ष में करने की कूटनीतिक प्रक्रिया को तेज
किया है और इसी परिप्रेक्ष्य में उसके कदम बढे है ,इसे समझने की जरूरत ,देश के
विदेश मामलों के संचालकों को होनी चाहिए | यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि लादेन या
इससे मिलीजुली धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने में अमेरिका खुद संलिप्त रहा है और
सोवियत संघ के अफगानिस्तान में घुसने की आड़ में कैसी- कैसी काली कारवाई इसने की है
,यह अब तक अंतराष्टीय राजनय के जानकारों के जेहन से उतरा नहीं है |
इसलिए भारत के हित में दोस्त -दुश्मन
की पहचान अवश्य होनी चाहिये | पाक का निर्माण का आधार धार्मिक कट्टरता है ,वह जबतक
खुद के मौजूदा हालात में है ,तबतक यह प्रतिद्न्दी के स्थान पर प्रतिद्वेषी ही बना
रहेगा ,यह इसके मुख्य लक्षण है ,जो आसानी से इसके राजनय के ओजारों से हटने वाला
नहीं है और इसकी झलक कई बार भारत को पुष्ट साक्ष्य के तौर पर मिला भी है लेकिन आक्रामक
विदेश नीति के अनुसरण के आभाव में वह बार -बार "राज्य" नीति के रूप में
अंजाम दे रहा है और हम सिर्फ चिल्ला-चिल्ला कर थक गए लेकिन दुनिया के अन्य देश
सुनने को तैयार नहीं हैं | ख़ुफ़िया तंत्र को सीधे भारत विरोधी गतिविधियों में
इस्तेमाल किया जाना और भारतीय मुद्रा के जाली नोट को बढ़ावा देने जैसे कार्य पाक कर
रहा है ,जो अंतराष्टीय नीतियों के खिलाफ है ,इसके बावजूद इस मामले में जैसे -तैसे
नीतियों का ही प्रतिफल है कि वह अपनी अवैध राजनय और कूटनीतिक गतिविधियों को रोकने
से बाज नहीं आ रहा |स्पष्ट है कि वह शक्ति की भाषा का इंतजार कर रहा है और हम हैं
कि अपने राष्टीय हितों को उपेक्षा -दर- उपेक्षा किये जा रहे है ,जिससे उसके मनोबल
बढते गए है |आखिर यह सिलसिला कबतक चलेगा ?
इधर ,अमेरिका अपने "मुनरो
सिद्दांत" का विस्तार किये जा रहा है और विना किसी के इजाजत के सीधे अपने
शत्रुओं पर वार पर वार किये जा रहा है और भारत केवल तालियाँ बजने के काम में ही
अपनी सफलता मान ले रहा है ,जो साफ जाहिर कर रहा कि हम अपनी राष्टीय चिंताओं को दूर
करने की दिशा में प्रयत्नशील नहीं है और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी सिद्द हो रही
है | यहाँ पर चीन ,जापान जैसे बड़े समृद्द और वियतनाम ,ईरान जैसे छोटे देश उदाहरण
हैं जो किसी भी कीमत पर अपनी राष्टीय अस्मिता को लेकर ढिलाई देने को तैयार नहीं है
,जबकि इनके बीच नस्लीय -जातीय तत्वों के पुट भी आपस में मिलते है |
apna heet chor kar dusre ke karway par khush nahi hona chaiye ....videsh niti ka yahi atal satya hai ....... Tannu Nagre
ReplyDeletedesh ki kendriy sarkar ne schmuch men videsh niti ko amerika ke hathon men girvi rakh diya hai aur iske liye manmohan dinhg ki amerikaparast nitiyan jimmewar hain , aapne jo likha hai ,vah sach ke nikat hai , isme sandeh nahi . jahan munh tod jawab dene chahiye tha ,vahan chupi sadhkar kamjori ka ijhar karna videsh niti ho gai hai ,jo chintajanak bat hai . santosh kumar
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