(एसके सहाय)
क्या झारखण्ड में माओवादी विकास के
दुश्मन बन गए हैं ? सुनने में थोडा यह अटपटा लग सकता है लेकिन यह काफी सच के करीब
भी है ,इससे खुद प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के शीर्ष नेतृत्व अवगत हैं ,जो इनकी
शुरूआती ध्येय से भटकाव का संकेत है | यहाँ
राज्य के दो जिले में काफी अरसे से निर्माणात्मक परियोजनाएं इसलिए ठप्प हैं
कि माओवादी इनके निर्माण से जुड़े ठेकेदार कंपनियों से रंगदारी मांगने को अपनी
प्राथमिक सूची में शुमार किये हुए है | वैसे, यह विषय सिर्फ दो जिलों तक सीमित
नहीं है बल्कि यह २४ जिले के प्राय: हर दूरस्थ इलाकों तक "रंगदारी" के
तौर पर विस्तृत है |अतएव ,उदाहरण के लिये ही इस रपट में केवल दो जिलों का उल्लेख
है ,जो पूर्णत: वस्तुगत है और चिंता को बढ़ावा देने में योगदान कर रही है |चिंता
इसलिए कि सरकार या प्रशासन इस संकट से निपटने के लिये अबतक कोई गंभीर प्रयास नहीं
की है | अबतक जो भी कदम या कहिये पहल हुई है ,वह केवल कागजी खाना पूर्ति ही सिद्द
हुए हैं |
उग्रवाद प्रभावित पलामू और गढ़वा जिले
में दो दर्ज़न से अधिक सड़क परियोजनाये विगत चार साल से अधिक समय से रुकी हुई हैं और
इस सिलसिले में कोई पहल भी नहीं हुई कि कैसे , इनकी कार्य योजना समयबद्द तरीके से
पूर्ण हो | निर्माणात्मक योजनाओं से रंगदारी वसूले जाने बात, कई मौके पर सार्वजनिक
तौर पर उजागर हुई और हर बार इस विषय को नज़रंदाज़ कर दिया गया ,जिससे ग्रामीण
क्षेत्रों में सड़क निर्माण के विकास में अपेक्षित गति नहीं आ पाई है और जो कुछ भी
पथ निर्माण की तस्वीर दिखती भी है ,वह ठेकेदार के स्वयं की जिम्मेदारी से मूर्त
रूप में सामने है और लफड़ा भी इस बात का निर्माण किये हुए एजेंसी पर चस्पा होता रहा
कि "बिना चढावा के आखिर सडक कैसे बन गया" और इस मामले में कतिपय ठेकेदार
पुलिस के नज़रों में अनावश्यक रूप से चढ गए ,जो खुद तो माओवादियों पर नकेल कस नहीं
सकते और उपरी कमाई के नये -नये रास्ते की तलाश में जुगत भिडाये रहने को कोशिश में
भिड़ें दीखते हैं |ऐसे में ,विकास के निमित परियोजनाओं पर भूमिगत संघठनों ने
उग्रवादी, अपने मनमाफिक "रंगदारी" की मांग करते हैं ,तो किस मुंह से
उग्रवादिक - आपराधिक तत्वों के खिलाफ कारवाई करने के वैधिक- नैतिक अधिकार रखते हैं
?
गढ़वा और पलामू जिले के पुलिस अधीक्षकों
से सड़क निर्माण में उग्रवादी हस्तक्षेप के बाबत सवाल किये गए ,तब इनमें एक क्रमश:
माइकल एस राज ने कहा कि "पुलिस ठेकेदारों को अपने कामों में सुरक्षा प्रदान
करने के लिये तैयार है लेकिन दिक्कत यह है कि वे साफ -साफ यह भी बताने में हिचकतें
हैं कि आखिर रंगदारी की मांग किस शख्स ने माओवादी बन कर उनसे की |" इसी तरह ,
के जवाब क्रांति कुमार गड़ीदेशी ने दिए ,जो बताते हैं कि रंगदारी या कथित लेवी
वसूलने वालों के विरूद्ध पुलिस कटिबद् है और यदि एक निश्चित समय सीमा में
परियोजनाएं पूर्ण करने का आश्वासन निर्माण कंपनियां दे ,तब सुरक्षा देने में कोई
समस्या नहीं है मगर संकट यह है कि ठेकेदार भी ठेका ले लेते हैं और इसे तय समय में
पूरा करने में रूचि नहीं लेते, ऐसे में पुलिस बल को केवल एक कार्य के लिये तो
हमेशा तैयार नहीं रखा जा सकता क्योंकि अन्य कई मोर्चे पर भी बल की जरूरत होती है
,जिसका क्षेत्र सड़क निर्माण से अधिक व्यापक है |
अब जरा , गढ़वा के एक प्रखंड की
तस्वीर को देखें , जहाँ माओवादियों ने रंगदारी नहीं मिलने से नाराज होकर इसके
निर्माण पर रोक लगा दी है ,जबकि जिले के सभी प्रखंडों का एक सा हाल है |ये सभी सड़क
योजनाएं प्रधान मंत्री सड़क योजना के तहत लंबित हैं ,जो रंका प्रखंड के ग्यारह
ग्रामीण इलाकों में निर्माण की प्रतीक्षा में है ,मगर माओवादियों ने अपनी तोड़-फोड
हरकत से ऐसे स्थितियां उत्पन्न कर दी है कि पिछले तीन सालों से इसके निर्माण पर
खर्च कि जाने वाली राशि २२२९.७८५ रूपये का कोई उपयोग नहीं है | इन सड़क परियोजनाओं में लारकोरिया-सिरोइखुर्द पथ
-लागत३६५.६०९ लाख रूपये ,लंबाई -१२.०७ किलोमीटर और अबतक खर्च रूपये लगभग दस लाख हो
चुके है ,जो पूर्ण होने के इंतज़ार में हैं |
इसी तरह , बांदू-दूधवालपथ - सड़क की
लंबाई १० .८५ किमी ,लागत राशि -३२९.११ रूपये,
=भंडरिया -मदगादी-चप्काली -रामर पथ ,
लंबाई -११.०२ किमी, प्राक्कलित राशि -४१४.३४५ लाख रूपये ,
=चिनिया -चप्क्ली पथ - लंबाई सात
किलीमीटर ,काम शुरू ही नहीं हुए ,
=कठौतिया -हेताद्कला पथ -लंबाई ३.६ किमी
,कार्य डर से शुरू नहीं हुए ,
=मझिगँव -बरवाडीह पथ -लंबाई २.५ किमी,
लागत राशि ४२२.३४५ लाख रूपये ,
=खुदवा मोड -करा पथ -लंबाई ४.५२५ किमी,राशि १.२५ लाख अर्थात
सवा करोड रूपये ,
=चिनिया - तहले पथ -लंबाई सात किमी ,लागत
राशि २२१ लाख रूपये ,
=छातौलिया -डोल पथ -लंबाई ७.०५ किमी,
.राशि २११.९९४ लाख रूपये ,
=बर्वाही -चतरू पथ -लंबाई आठ किमी, राशि
१५३.२५ लाख रूपये ,जिसमे खर्च ९२.९६ लाख रूपये, , और = बिरजपुर बलिगढ़ पथ -लंबाई १० किमी,
राशि २०१.७७ लाख रूपये ,जिसमें खर्च राशि १३३.५१ लाख रूपये |
इन वस्तुपरक जानकारियों में एक तथ्य यह है कि रंगदारी मांगे जाने और इसे अनसुना किये जाने पर माओवादियों ने ठेकेदारों के निर्माण मशीनों को जला दिया और मारपीट की,इसमें चिनिया तहले सड़क निर्माण में इस्तेमाल हो रहे दो जेसीबी मशीन को जला दिया गया |यही हस्र लारकोरिया -सिरोइखुर्द पथ के निर्माण में हुआ | इतना ही नहीं , एक निर्माण कंपनी कलावती कंस्ट्रक्शन ने बकायदा पत्र लिख कर सरकार को सूचित भी किया है कि वह माओवादियों के सक्रीय रहने की वजह से काम करने में असमर्थ है | हालाँकि इन निर्माण कार्यों के माओवादियों द्वारा रोके जाने से गांव वालों के मध्य आक्रोश है ,ग्रामीण भी चाहते हैं कि सड़कें बने ,ताकि विकास के अन्य अवसर के मार्ग खुल सकें लेकिन स्थानीय प्रशासन सरकार की दृढ़ता के अभाव से उनके मनोबल बढ़ गए से प्रतीत हैं |
इन वस्तुपरक जानकारियों में एक तथ्य यह है कि रंगदारी मांगे जाने और इसे अनसुना किये जाने पर माओवादियों ने ठेकेदारों के निर्माण मशीनों को जला दिया और मारपीट की,इसमें चिनिया तहले सड़क निर्माण में इस्तेमाल हो रहे दो जेसीबी मशीन को जला दिया गया |यही हस्र लारकोरिया -सिरोइखुर्द पथ के निर्माण में हुआ | इतना ही नहीं , एक निर्माण कंपनी कलावती कंस्ट्रक्शन ने बकायदा पत्र लिख कर सरकार को सूचित भी किया है कि वह माओवादियों के सक्रीय रहने की वजह से काम करने में असमर्थ है | हालाँकि इन निर्माण कार्यों के माओवादियों द्वारा रोके जाने से गांव वालों के मध्य आक्रोश है ,ग्रामीण भी चाहते हैं कि सड़कें बने ,ताकि विकास के अन्य अवसर के मार्ग खुल सकें लेकिन स्थानीय प्रशासन सरकार की दृढ़ता के अभाव से उनके मनोबल बढ़ गए से प्रतीत हैं |
यही दृश्य पलामू के हैं ,जहाँ टेंडर
निकलते हैं ,ठीकेदार ठीक लेता है और जब वह निर्माण कार्य की शुरूआत करता है ,तब
माओवादियों के एजेंट या वे खुद धमक कर कथित लेवी अर्थात रंगदारी टैक्स की मांग
करते हैं | इससे ग्रामीण अंचलों में सड़क की सुविधा कैसे होगी ? आवा -गमन के रास्ते
तंग होने से वैसे भी झारखण्ड पूरे देश में पहले से बदनाम है ,फिर इस दिशा में ठोस
पहल की जरूरत अरसे से है लेकिन सिर्फ कागजी खाना पूर्ति और घोषणाओं के बूते ही
विकास के सब्जबाग दिखाए जाने के नज़ारे हैं |
वैसे भी ,पलामू सर्वाधिक उग्रवाद ग्रस्त
जिले के रूप में चिन्हित है ,यहाँ ठेका हासिल कर लेना ही सबसे बड़ी उपलब्धि मानी
जाती है और यदि हासिल हो गई ,तब बिना माओवादियों के हुक्म से काम के प्रारंभ करना
दुश्वार है और यदि अनुमति इनसे मिल जाती है ,तब वह सड़क दिखना भी मुश्किल है ,
ऐसा इसलिए कि कागजों में ही पथों के
निर्माण कर दिए जाने के मामले कई दफे सामने आये
,जिसमे ठेकेदार ,अभियंता -अधिकारीयों
के मिलीभगत होने के साथ ही माओवादियों की भूमिका
पकड़ में आई लेकिन अराजक सरकार की अराजक लोकशाही
के कीकर्तव्यविमूढ़ हालात में होने से कोई ठोस परिणाम कभी सामने नहीं आये |
मसलन ,पलामू के मनातू प्रखंड में दो सड़क
निर्माण के लिये छ बार ठेके की घोषणा हुई लेकिन किसी निर्माण कंपनी इसमें भाग नहीं
लिया ,इसकी वजह पूरे इलाके माओवादियों के प्रभाव के रूप में होना है |इसी तरह,
मोहम्मदगंज -महुदंड मार्ग की है ,जहाँ २२ किमी सड़क के निर्माण के लिये प्रधान
मंत्री ग्रामीण योजना के तहत पांच करोड रूपये खर्च किया जाना है ,जो इनके कारण
ठप्प है |पांकी प्रखंड के दारिका - केकरगढ़ और
द्वारिका -पिपरातांड पथ के निर्माण जैसे ही शुरू हुए माओवादियों ने धावा बोलकर
इसके निर्माण कार्य पर बलात रोक लगा दी |इसके अलावा ,नौडीहा -महुआरी-लक्ष्मीपुर के
काम इन उग्रवादियों ने २००७ से ही रोके रखा है ,मगर इसके फिर से शुरू किये जाने पर
जिला प्रशासन मौन धारण किये हुए है |सबसे आश्चर्य की बात है कि मनरेगा के पैसे से
कव्वाल-लक्ष्मीपुर - मनदोहर और बारापुर-नासो तक लघु सिंचाई विभाग से सड़क निर्माण
की पहल हिउ लेकिन माओवादियों के धमकी के बाद ,यह भी अधूरा पड़ा है |
इन सड़क निर्माण में माओवादियों के अड़चन
पैदा किये जाने के बारे में पलौम जिला पुलिस अधीक्षक अनूप टी मैथ्यू से बात की गयी
तो उन्होंने बताया कि " कोई ठेकेदार या निर्माण कंपनी पुलिस की सहयोग मांगे
,तब न सुरक्षा प्रदान किया जाय ,यहं तो खुद ठेकेदार भूमिगत संगठनों से तालमेल करके
सरकारी धन के लुट की योजना को अंजाम देते हैं ,ऐसे में पुलिस किसके बिना पर अपनी
तरफ से कारवाई करे या कदम उठावे |"
स्पष्ट है , निर्माण कार्यों में करोडो की
राशि खर्च किये जाने से झारखण्ड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में माओवादियों जैसे
भूमिगत संगठनों के प्रभाव से सड़क जैसी मुलभूत संरचना के निर्माण में बड़ी बाधा आ
कड़ी हो गई है ,जिसका निकट भविष्य में कोई हाल नहीं दीखता ,जिसकी वजह दृढ़ता के अभाव
से है और इसमें आमहित के महत्त्व के सवाल इन दिनों राज्य में गम हैं ,तब आश्चर्य
नहीं करने चाहिए |
jharkhand me ugrawadi sarak nirman hi nahi balki kaae sarkari kamo ke badle rangdari wasulte hai aur ise wasulne me madad gar khud contractor police eng. officer hote hai aur ye jab lutte hai to maowadio ko lutne se kaun rokega
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