(एसके सहाय)
भारतीय समाज में इन दिनों ,खासकर,
उत्तर भारत में नव चर्चित धर्म गुरू को लेकर जबरदस्त बहस का दौर है और इस लोक
परिचर्चा में कई बातें ऐसी हुई हैं ,जिन पर विचार किया जाना लाजिमी है |सो , इस
सतत सामाजिक प्रक्रिया को समझने के लिये सर्व प्रथम यह अनुभूत करने की जरूरत है कि
देश का मन मिजाज की संस्कृति क्या रही है और जो इस समय निर्मला बाबा को लेकर बातें
की जा रही है ,क्या उसमें तनिक भी व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में स्वीकारा जा सकता
है |ऐसा इसलिए कि जो दिख रहा है ,उसकी जड़ें सामाजिक -सांस्कृतिक अवचेतना "मनों"
में अति सूक्ष्म तरीके से स्थापित है ,फिर इस हाय -तौबा से क्या निष्कर्ष निकल
सकते हैं ?
इसी की खोज में यह कई बार सामने आया
है कि भारत "धर्मभीरू" देश है, जहाँ नानाविध प्रक्रियाएं सामाजिक जीवन
को प्रभावित करते रहे हैं और इसपर कभी व्यवस्था का रोक भी नहीं रहा और अब तो कदापि
संभव नहीं ,क्योंकि संविधान प्रवृत जो अधिकार वैक्तिक स्वरूप में आम भारतीय को
प्राप्त हैं ,उसमें आस्था ,विश्वास ,निष्ठां और परस्पर सहयोग की प्रक्रिया पर बंदिशें नहीं
है |ऐसे में ,निर्मल बाबा केवल एक प्रतिमान ही हो सकते हैं ,इन जैसे असंख्य बाबा
इसी देश में हैं लेकिन उनपर नजर इसलिए नहीं जा पा रही कि उनके पहुँच अभी समाचार
जगत से दूर हैं और यदि मौका मिले तो रोज -ब -रोज एक नई बाबाओं की नई कहानी सामने आ
सकती है और पूरा मीडिया इसमें ही अपनी समाचार कथा के चटपटे सूत्र तलाश करने में
अपने को धन्य मान सकती है और इसमें कोई हर्ज जैसी बात भी नहीं है |
अतएव , निर्मल बाबा पर दोष देने से पहले खुद व्यक्ति को अपने को तौलने की
जरूरत है | एक उदाहरण यहाँ पर है | देश के नागरिक सांसद -विधायकों या कहिये अन्य
जन प्रतिनिधियों को अपने -अपने व्यक्तिगत "मत" देकर जन हितों के अनुरूप
व्यवस्था को संचालित करने के लिये अधिकृत करता है लेकिन चुने जाने के बाद ,इनके
नाज -नखरे आम हितों के विपरीत प्रतीत होता
है ,तब संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही मामले को निपटाए जाने की प्रक्रिया सन्मुख
उपस्थित होती है ,जिसमें "खीझ" जैसी भावनाओं का तूफान भी दीखता है
,जिसका सुन्दर उदाहरण ,अन्ना हजारे के नेतृत्व में खड़ा "लोकपाल" जन
आंदोलन है ,जिसे कुछ लोग बेकार मानते हैं तो कुछ लोग भ्रष्टाचार के लिये अपरिहार्य
मानते हैं और यह मुकाम तक तभी पहुंचेगी
,जब संसद इस लोकपाल पर अपनी मुहर लगायेगी |
ठीक .इसी तरह का मामला निर्मल बाबा के साथ हैं |वह खुद तय शुल्क को ग्रहण
करते हैं ,जोर -जबरदस्ती इसमें नहीं है और यह है भी ,तो उनके अपने परिनियम हैं
|साथ ही ,अपने आय के ज्ञात स्रोत को छिपा नहीं रखा है |आयकर वाले ही सही -सही इस
विषय पर प्रकाश डाल सकते हैं और इसमें अगर खामियां हैं तो बाबा इसके परिणाम
भुगतेंगे ही ,यह तो नियम - परिनियम की प्रक्रिया है ,जिमें ज्यादा बुद्दि लगाने की
आवश्यकता नहीं है |
इसलिए , दोष देने की जहाँ तक बात है ,तब वह दोष सामाजिक प्रक्रिया के उन
जड़ों की हैं ,जहाँ से अन्धविश्वास ,श्रधा जैसी प्रक्रिया उत्पन्न होती है |वैक्तिक
स्तर पर किसी के प्रति निष्ठां पर क्या सवाल खडें हो सकते हैं |निर्मल बाबा तो एक
नमूने भर है ,जो बलात किसी से रूपये तो नहीं झटके हैं ,जो कुछ भी है ,वह तो इनके
ही नियोजित हैं या कहिये कथित भक्तों के हैं ,फिर इसमें कानून की खिल्ली उड़ाने
जैसी बाते नहीं है |लोग खुद अपने मर्जी से जाते मुर्ख बनने ,तब कोई कैसे उसे रोक
सकता है |अज्ञानता ,अशिक्षा के अभाव ने अभी भारतीयों को तर्कशील अर्थात वैज्ञानिक
सोच से दूर कर रखा है तो इसके लिये व्यवस्था ही
न दोषी है ,इसमें निर्मल बाबा जैसे कई नये बाबाओं के उत्पन्न होने के सूत्र
स्वाभाविक रूप से छिपे हैं .जिसपर कोई भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के कानून प्रतिषेध
नहीं कर सकते | इसके उपाय एक ही हो सकते हैं ,जागरूक व्यक्ति की अपनी मौलिक सोच या
तर्कशीलता का प्रभाव ,समाज में है तो खुद -ब -खुद निर्मल बाबा समाज से कट जायेंगे
,तब इतनी आलोचनाओं - प्रतिआलोचनों के लिये
मीडिया या समाज के पास समय कहाँ होगा !
थोडा इस पर भी विचार करें ,जो निर्मल बाबा और सांसद इन्दर सिंह नामधारी ने
अलग -अलग अंदाजों में एक दूसरे को साला - बहनोई के रूप में स्वीकार किया है
,सार्वजनिक बातों में ,जो एक रिश्ते की हकीकत भी है ,इसे इंकार नहीं किया जा सकता ,लेकिन
जो बातें नामधारी ने की है ,क्या उसे मंजूर किया जा सकता है ? बात हो रही है ,उस
जन प्रतिनिधि की ,जो २५ -३० सालों से एकाध अवसरों को छोड़कर बराबर विधायिकी में रहा
है और अब निर्मल बाबा के सन्दर्भ में कहता है कि " वह हमारे निकटतम रिश्तेदार
हैं ,उनपर मुझसे कुछ नहीं पूछिए अन्यथा संबंधों में दरार हो सकते हैं " यह उस
शख्स के विचार हैं ,जिसे लोगों ने व्यवस्थापिका में शासन सूत्र को ठोस बनाये रखने
की जिम्मेदारी कई अरसे से डालटनगंज और अब चतरा के लोगों ने दे रखी है और जब स्वयं
की बरी आई ,तब अपना नजरिया अभिव्यक्त करने भाग गए | वह भी तब, जब कथित धर्म गुरू
ने अपनी बातों को नामधारी के सन्दर्भ में "इनके बंद मुठ्ठी" का इशारा किया ,जिससे मजबूर होकर इस मुकाम तक
पहुँचने में अनपेक्षित कामयाबी मिली | समाचार चैनल "आजतक" को दिए
साक्षात्कार में निर्मल बाबा ने इसी तरह
के संकेत दिये है , यह संकेत भी बाबा ने तब दिए जब नामधारी ने अपनी आदत के मुताबिक
पिछले कई दिनों से साले होने की बात स्वीकार करते हुए अपने गोल - मोल बातों से बताया कि "इनके " कार्यों से उनके मतभेद हैं और कई बार ऐसा नहीं
करने के सुझाव भी उन्होंने दिए हैं लेकिन निर्मलजीत सुनता है नहीं | इसकी
प्रतिउत्तर में ही बाबा ने एक अनजाने से प्रश्न के जवाब में एक सामाजिक प्राणी ,जो
राजनीतिज्ञ भी है, के नकाब उठाये दिए , जो भारतीय सामाजिक जीवन को समझने के एक
सूत्र इन दिनों दे दिया है और इसे किस रूप में व्यवस्था के नेतृत्व कर्त्ता लेते
हैं ,उसका भी परीक्षण के बाद निष्कर्ष आने वाला है |
कुल मिलाकर देखें तो ,निर्मल बाबा प्रचलित सामाजिक विकृति की उपज हैं
,जिसमें नियम -परिनियम की भूमिका का कोई महत्त्व नहीं है और जो प्रश्न वैयक्तिक
सोच से प्रभावित है अर्थात भावनाओं से परिचालित है ,उसे कैसे रोक पायेगें ? यह
सवाल ही इस सन्दर्भ में मौजूं हैं |
log khud bevkuf banne ko taiyar hain to nirmal baba ,har jagah milenge . lalchi ke ganv men thag ki kami nahin hoti .yah kafi purani kahavat aj bhi sach hai ,jo is lekh men ekdam sahi hai .dhanybad
ReplyDeletedaltonganj men nirmal baba ke sath kam karne wale kai sathi batate hain ki - ve puja path to karte the lekin in puja se unko kya milta tha ,yah vahi mahsus karte honge .filhal inko lekar palamu men baten tarah -tarah ki ho rahi hai ,jo apne likha hai ,use main sahmat hun len -dene me paraspar honi weali dhokha kewliye samaj hi doshi hai ,pahle log savan ko sudharen tab dusre ko moka nahin milega ,thagne ko -
ReplyDeleteपढ़ा सर... आपने सही आकलन किया है... समाज की मूढ़ता ही ऐसे लोगों को आश्रय देती है...
ReplyDeleteaadmi apne ko jyada chalak samajhta hai aur nirmal bab sadharan vyakti se uper ke soch rakhne wale hain ,fir chalbaj duniya men ek se ek badhkar dhurt log hain jo jivan tikdam hi kare rahte han ,nirmal baba bhi isi tarah ke jiv hain ,fir thage jane par hay -touba karne ka kya matlba ?
ReplyDeleteandhvishwas par vishwas nahin kare .tab hi samaj ka bhala hoga --
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