(एसके सहाय)
निर्मलजीत से निर्मल बाबा बने नव चर्चित इस धर्म गुरू की कहानी किसी
तिलिस्म से कम प्रतीत नहीं है ,जिसमें रहस्य के पुट है ,तो एक कर्मठ एवं गंभीर
व्यक्ति के अदम्य साहस की गाथा भी है ,जो और धर्म गुरूओं से इनको अलग पहचान देती
है | ऐसे में , इनके जीवन के शुरूआती गतिविधियों को जानना काफी दिलचस्प होगा ,
जिसमें एक कारोबारी वृत्त के सामान्य व्यक्ति का आर्विभाव ,कुछ ठहराव के बाद अचानक
विशिष्ट स्वरूप में होती है ,फिर संदेहात्मक विवादों के घेरे में आकर बहस का
केन्द्र बन जाती है और आजकल, इनके साथ यही देश व्यापी चर्चा का विषय लोगों के बीच
बन गए हैं |सो ,इनके जीवन के शुरूआती सफर की ओर तांक-झांक करना स्वाभाविक है |
निर्मल बाबा के जीवन की शुरूआती पल
झारखण्ड के डाल्टनगंज में गुजरी है ओर इसके लिये निर्दलीय सांसद इन्दर सिंह
नामधारी का सहारा इनके वैशाखी को डोर प्रदान करती है ,जो कि रिश्ते के धागों में
साला -बहनोई के रूप में है ,लेकिन इन संबंधों का मूल्य अब वैसा नहीं रहा ,जैसा की
शुरू में था ,जिसमें निर्मलजीत एक कर्मचारी के तौर पर ही अपने जीजा के व्यापारिक
कामों में हाथ बंटाते थे ,जिसमें असंतुष्ट रहना ही इनकी नियति बन गई थी | इस कारोबारी
जीवन में निर्मल को जब ठौर नहीं मिला ,तब वह अचानक अपना बोरिया बिस्तर बांध कर
देहली के लिये कूच कर गए ,जहाँ फिर अपने
तरीके से जीवन यात्रा की शुरूआत की ओर इसमें संबल बना इनकी पत्नी सुषमा कौर की लगन
एवं मेहनत, जिसमें वह घर खर्च के लिए खुद राष्टीय राजधानी में टुयुशन करके आजीविका
अर्जित करने में इनको मदद करने में सहायक बनी |
निर्मल बाबा जीवन के अमूल्य शुरूआती बसंत डालटनगंज में गुजारे और इन दो
दशकों में किसी लफड़े में नहीं पड़ें ,जबकि इनके जीजा और खुद का कारोबारी धंधा ही
जीवन का मूल आधार थे | यह बात गत सदी के अस्सी एवं नब्बे दशक की है ,जिसमें बालपन
के वह साल भी समाहित है ,जब इनकी उम्र मात्र तेरह साल की थी और इनके पिता का
देहांत हो चूका था लेकिन तबतक नामधारी के साले के रूप में रिश्तेदारी कायम हो चुकी
थी . जो बाद के दिनों में इनके तजुर्बे निर्मल को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित की |
नामधारी के संग निर्मलजीत सिंह उनके तेल व्यवसाय के कामों में सहयोग देते थे और
यहीं से कारोबार के गुर सीखकर बाद में अपना ठेकेदारी का काम अलग होकर करने लगे ,जिसमें
बराबर इनको क्षति ही झेलने की स्थिति से गुजरते रहना पड़ा ,जो परवर्ती काल में
इन्होने डाल्टनगंज से हमेशा के लिये विदा ले ली और अब जब "निर्मल बाबा"
के रूप में अवतरित हैं ,तब इनके बालपन एवं युवापन के कई किस्से पलामू में चर्चा के
विषय बन गए है | वह इसलिए कि डाल्टनगंज ,गढ़वा ,रांची और बहरागोड़ा में अपने को एक कारोबारी
के तौर पर स्थापित करने के जीतोड परिश्रम इन्होने किया लेकिन कामयाबी नहीं मिली और
जब सफलता मिली भी तो अब नव चर्चित धर्म गुरू के रूप में ,जो विवादों के बीच इनका
देश के कानून से दो -चार होने के हालात है और यह स्थितियां भी इनके द्वारा स्व
उत्पन्न है ,जिसकी अनुभूति शायद इनको खुद नहीं है |
बहरहाल , निर्मल बाबा खुद पाकिस्तान
से आये एक शरणार्थी रहे और जब इनकी बहन की शादी इन्दर सिंह नामधारी के साथ हुई तब
वह अपने माँ के साथ पंजाब के पटियाला में थे ,बाद में नामधारी के परामर्श के तहत डालटनगंज में व्यवसाय करने आ गए
|यहाँ नामधारी के तेल व्यवसाय में इनकी भूमिका एक हिसाब -किताब रखने वाले मुंशी की
थी |यहीं इनकी दिलीप सिंह बग्गा की बेटी सुषमा कौर से विवाह हुआ \इनके ससुर की परिवहन व्यवसाय में काफी नाम थे ,जो कभी
"बी डी मोटर्स" के तौर पर पहचान रही |अभी एक वर्ष पहले ही इनके ससुर
दिलीप बग्गा का जयपुर में इंतकाल हुआ है |
निर्मल बाबा के ससुर डालटनगंज से
जयपुर अपने धंधे के लिये १९८९ में गए थे | इनके दो अन्य सालों के नाम संतोष सिंह बग्गा और संतोष सिंह बग्गा है
|इसमें संतोष बग्गा फ़िलहाल जीवित हैं |
डालटनगंज में जब निर्मलजीत ने अपना स्वतंत्र व्यवसाय "मोटर्स
पार्ट्स" की शुरू की थी ,यह कारोबार १९८४ तक यहाँ था लेकिन जब उस वर्ष सिख
दंगे के चपेट में आने पर इनकी दुकान लुट ली गई और फिर इन्होने इस शहर को छोड़ दिया
इनके पडौसी विजयकांत शुक्ल बताते है " वह काफी धीर गंभीर प्रवृति के व्यक्ति थे " शुक्ल के बगल में ही डालटनगंज के रेडमा में आज के बाबा की दुकान थी | इसी तरह की बातें रांची एक्सप्रेस के वरिष्ष्ठ संवाददाता सुरेन्द्र सिंह रूबी कहते हैं "वह तो अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाला इंसान था ,काफी काम बोलना उसके आदत में शुमार थी " रूबी के बगल में ही निर्मलजीत १९७०-७५ के बीच रहा करते थे और ये दोनों ही पश्चिमी पाकिस्तान से आये शरणार्थी परिवार थे ,स्वाभाविक है कि इनके भी परस्पर छनती हो |
इनके पडौसी विजयकांत शुक्ल बताते है " वह काफी धीर गंभीर प्रवृति के व्यक्ति थे " शुक्ल के बगल में ही डालटनगंज के रेडमा में आज के बाबा की दुकान थी | इसी तरह की बातें रांची एक्सप्रेस के वरिष्ष्ठ संवाददाता सुरेन्द्र सिंह रूबी कहते हैं "वह तो अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाला इंसान था ,काफी काम बोलना उसके आदत में शुमार थी " रूबी के बगल में ही निर्मलजीत १९७०-७५ के बीच रहा करते थे और ये दोनों ही पश्चिमी पाकिस्तान से आये शरणार्थी परिवार थे ,स्वाभाविक है कि इनके भी परस्पर छनती हो |
निर्मल बाबा की पत्नी सुषमा कौर के फुफेरे भाई मदन मोहन सिंह डालटनगंज में
एक वरिष्ठ अधिवक्ता है | वह बताते हैं कि " सिख दंगे के बाद वह डालटनगंज से
विदा हो चुके थे और देहली में रहकर जीविकोपार्जन की कोशिश में थे ,इस दौरान
मेरी ममेरी बहन सुषमा (बाबा की पत्नी ) से
मिलने १९८६ में वह देहली गए थे ,तब बहन
अपने घर के आस -पास के बच्चों को पढाकर घर के खर्चे जुटाती थी और बहनोई साहब अपने
ही कक्ष में अंतरध्यान लगाये रहते थे ,जिसमें सुषमा सहयोग करती थी |" वैसे,
इनके ससुराल के लोग अच्छे -खासे ,स्थापित व्यवसायी रहे हैं ,परिवहन और खदान के
कामों में इनकी अपनी साख रही है |
ऐसे में, निर्मलजीत सिंह कब निर्मल बाबा हो गए ,यह डालटनगंज के लोगों ने तब
ही जाना ,जब उनके किस्से - कहानी मिडिया
के माध्यम से चर्चित हुए | कहते है कि सिख दंगे ने इनको मानसिक रूप से काफी विचलित किया और उसी आघात ने
इनको धर्म गुरू के तौर पर स्थापित किया
,जो इन दिनों चर्चा का विषय बन गया है,जिसमें कई तरह की बातें निकल कर सामने आ रही
है ,जिसमें सर्वाधिक चर्चा के मुद्दे अकूत सम्पति अर्जित करना ,अध्यात्म के नाम पर
व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करना तथा भावनाओं के दोहन के मुद्दे ज्यादा
प्रचारित -प्रसारित हैं |
इन सब चर्चित विषयों से अलग अबतक यह
प्रकट नहीं है कि क्या निर्मल बाबा ने किसी को धोखा दिया , जोर जबरदस्ती से रूपये
वसूले ,मतलब कि वस्तुगत प्रत्यक्षमान साक्ष्यों के अभाव में न्यायिक प्रक्रिया के
क्या हस्र होते हैं ? फ़िलहाल, इसका इंतजार देश को है |
nirmal baba akele shakhs nahin hain ,jinka ithas fankakasi se uppar tak jane ki hai, daltonganj men nirmaljit ko unke samaksh sabhi log mp inder sinh namdhari ke roop men hi jante hai ,jo kabhi namdhari ke yahan hi noukri kate the , jaha inko paise ki tangi raha karti thi . namdhari ke kanjusi se hi dukhit hokar aur apne vyapar men sahyog nahi diye jane se unhone daltonganj ko choda tha .yah bat bilkul sahi hai . lokpriy hona hi nirmal baba ke liye musibat ban gai ,jo ab kanun ke dayre men inko lane ke liye hai .yah jalan ka painam hai .
ReplyDeleteत्रिकालदर्शी, तीसरी आँख निर्मल बाबा को लाखों लोग भगवान की तरह पूजते हैं। बाबा कभी झारखंड में ठेकेदारी करते थे अब लोगों की परेशानियों का इलाज कर रहे हैं। लोग आरोप लगा रहे हैं, ऐसे मूर्खों की भी कमी नहीं जो बिना मेहनत के शार्टकट के चक्कर में रहते हैं। बाबा बाजार में नए-नए ब्रांड की कमी कहां है। बाबा पैसे देने वालों के ही संकट दूर करते हैं। बाबा करामाती हैं पंगा न लें-http://www.facebook.com/photo.php?fbid=3270819564219&set=a.1139469801807.2021904.1079265442&type=1&theater
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विवादित तीसरी आँख निर्मल बाबा ने कहा है कि मेरी शक्ति भक्त जानते हैं, सालाना इन्कम 238 करोड़ है, भक्तों के पैसे पर उनका हक है, मुझ पर ईश्वरीय कृपा है, लोगों ने शक्ति का अहसास किया है, मुझे बदनाम करने की साजिश हो रही है, उनकी कृपा चलती रहेगी। लगे रहो बाबा भक्त बहुत हैं, देखा जायेगा.....
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=3299483200792&set=a.1139469801807.2021904.1079265442&type=1&theater
nirmal baba daltunganj me hi lambe samay tak the yah sambdo par acchi jankari ke leye ap ko danywaad
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