Thursday, 25 February 2016

टीका -टिप्पणी /एसके सहाय

 झारखण्ड में अगले वित्तीय वर्ष २०१६-१७  के लिए प्रस्तुत किया गया बजट लीक के फ़क़ीर है ,खासियत यह कि कृषि क्षेत्र में यह पिछले बजट की तुलना में दुगना राशि के प्रबंध किये जाने की बात है ,तो विधायकों को तीन की जगह अब चार करोड़ रूपये की राशि उक्त मद में की गई है ,यह भी नहीं सोचा कि बगल के राज्य बिहार में विधायक कोटे की राशि सैंद्धांतिक रूप से पिछले पांच सालों  से ही बंद है । दिलचस्प बात यह कि पलामू में मेडिकल कॉलेज स्थापित किये जाने की बातें मुख्य मंत्री रघुबर दास के साथ -साथ पलामूवासी स्वास्थ्य मंत्री रामचन्द्र चंद्रवंशी विगत एक साल  से करते रहे हैं ,मगर इसकी  कोई घोषणा नहीं है ,जबकि  अन्य क्षेत्रों में खोले जाने की घोषणा बजट में है --

झारखण्ड/मेदिनीनगर - भाजपा के पलामू जिलाध्यक्ष के पद पर निर्विरोध काबिज अमित तिवारी 'कोरा  कागज' की तरह हैं ,जिनमे अभी रंग भरा जाना है । विद्यार्थी परिषद के जरिये चुनावी राजनीति में पांकी विधान सभा क्षेत्र से पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमा कर मात खाने के बावजूद सक्रीय राजनीती में सीधे हस्तक्षेप के बाद क्या -क्या गुल खिलना है ,इसके दीदार का इंतजार है !
     
क्या आपको यह नहीं  लगता कि 'इस्लाम और साम्यवाद' में राष्ट-राज्य की स्पष्ट संकल्पना नहीं होने से आतंकवाद को स्वाभाविक बढ़ावा मिला है !
   
क्या आपने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बदलते कवरेज रूख पर गौर किया है ?  नहीं न ,तो ध्यान दीजिये - नरेंद्र दामोदर दास मोदी के प्रधान मंत्री के पद पर आसीन्न होने के साथ ही खबरिया चैनलों पर प्राय हर दिन सामरिक शक्तियों के बारे में जानकारियां दी जा रही है ,इसमें भारत समेत देश -विदेश के हर कोणों के मुद्दे  पर प्रसारण हो रहे हैं । क्या इसके संकेत को आप समझ रहे हैं ? 
   
   
किडनी /कल शाम की ही बात है ,मै अपने शहर के बेहतरीन होटल 'ज्योतिलोक' के लॉबी में अकेला बैठकर एक हाथ में टीवी के रिमोट थामे और दूसरे हाथ में टोस्ट-कॉफी के साथ अपनी तन्हाई को दूर करने की कोशिश में था ,तभी वहां अप्रत्याशित ढंग से मुझे खोजते -खोजते बचपन के यार अजय कुमार सिन्हा तशरीफ़ रखते ही कहने लगे , तुम तो सबसे बड़े मीडिया के पत्रकार हो ,एक काम मेरे लिए करो , मैंने पूछा क्या - उसने कहा कि एक सज्जन को अपनी किडनी दान करनी है और उसे सर्व साधारण को अवगत कराना है ,यह ए प्लस ग्रुप रक्त का है ,इसके लिए ९४३१५५५८११--७२०९३८६०७७ से लोग संपर्क कर सकते हैं ,सो आपके सेवा के लिए इसे जारी कर रहा हूँ मित्रो ,धन्य है मेरा मित्र --


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को लेकर हुए विवाद की जड़ में राहुल गांधी है ,यह न वहां जाते और न भाजपा इसे तूल  देती ! यह अधकचरे/अपरिपक्व  छात्रों के जरिये खड़ा किये गए हंगामा है ,जो शैक्षणिक जीवन में अक्सर गुमराह होते रहे हैं ,देश के छात्र आंदोलन के इतिहास पर नजर दौड़ाये - 

   क्या आपको नहीं लगता कि राहुल गांधी "निठल्ले" होने की वजह से ऊट -पटांग बयानबाजी अर्थात विचार अभिव्यक्त करते रहते हैं ? निठल्ला का आशय है- व्यक्तिगत/सार्वजनिक जीवन में कर्तव्य बोध का अभाव अर्थात जिम्मेदारी के अहसास से परे होना ।  

राष्ट भक्त/ राष्ट द्रोही के मुद्दे पर बहस बेमानी अर्थात व्यर्थ है । देश में वाम दल हों या भाजपा ,इनके पूर्वजों की अहम भूमिका आजादी के  संघर्ष में विशेष नहीं है ,लेकिन मौजूदा लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इनके योगदान की उपेक्षा नहीं की  सकती अर्थात इनको नकार नहीं  सकते  ,ठीक इसके उलट कांग्रेस पर भी यही मापदंड लागू है ,जिसमे पराधीन भारत में अप्रतिम योगदान है ,मगर आज की मौजूदा राजनीती में जज्बे,त्याग,समर्पण,ईमानदारी , परोपकार ,सकारात्मक/रचनात्मक सोच से यह कोसों दूर है ! 

क्या आपको यह आभास नहीं होता कि रघुबर दास का मुख्य मंत्री के रूप में सत्ता/शासन/प्रशासन पर पकड़ (वेट) नहीं है !

जो राजनीतिक  भावनात्मक मुद्दे   को लेकर सामाजिक/राजनीतिक क्षेत्रों  क्रियाशील तत्व होते हैं ,वे बेहद घटिया किस्म  इंसान होते हैं ! 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विगत ९ फ़रवरी को घटित मामले को लेकर  हो रही बहस में राज्य (देश)और सरकार  के बीच के फर्क को  क्या बहसबाज समझते भी हैं या फिर   दलबन्दी के तहत हो-पों-चीं  कर अपने को तीसमार खां भुझने की  भूल में हैं ! 

  राजीव  गांधी  के हत्यारे को रिहा करने पर तमिलनाडु में जयललिता सरकार  उतारू है ,फिर अफजल गुरू तो भारतीय हैं ,फिर इनकी फांसी की सजा पर हुई  मौत को लेकर  न्यायिक /सामाजिक बहस  पर एतराज कैसा ? उधर बेअंत सिंह के हत्यारे को लेकर अकाली सरकार की नीयत पर क्या विचार  है आपके दोस्तों --  

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में घटित मुद्दे पर प्रतिपक्ष ने बहस की मांग करके अपनी फजीहत को ही न्यौता दिया है ! राष्टवाद/देशभक्ति/देशद्रोह जैसे मुद्दे पर आरएसएस जनित नेताओं की इस विषय में महारथ (मास्टरी)हासिल है ! इनकी चुनौती सब कोई स्वीकार नहीं कर सकते !

ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया जा रहा था ,तब इनके मुख से यह निकला-'प्रभु इन्हे माफ़ करना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं ' सचमुच में यह प्रेम एवं करूणा की अथाह सागर की गहराई से उदभुत मानवता के प्रति अमूल्य विचार आज भी प्रासगिक हैं । 
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आजादी के बाद रेलवे एक बार को छोड़कर कभी घाटा में नहीं रही ,सिर्फ रेल मंत्री रामसुभग सिंह के कार्यकाल में घाटा साफ -साफ दिखा था ,बाद में यह हमेशा मुनाफे में रही है ,हाँ इसमें सत्तासीन तत्व अपने राजनैतिक हितों को ख्याल कर रेल बजट को प्रचारित करते रहे हैं ! लालू इरा इसका बेहतरीन उदहारण है -

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