आरक्षण पर क्या बहस करना है ,यदि इसे ख़त्म करना है ,तब दृढ़ता से अंतरजातीय /अंतर्धार्मिक परिणय सूत्र में बंधने वाले युवाओं को इसके लाभ मिले, इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है । देश को जाति/धर्म ही भीतर से खोखला किये हुए है !
आखिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अपना दृष्टिकोण आरक्षण पर क्यों नहीं साफ -साफ रखते ? गैर राजनीतिक समिति के गठन करके इसके समीक्षात्मक परिणाम से क्या हल होगा ? विवाद तो होने ही है ,इससे बेहतर होगा कि ,जो जेहन में है ,उसे स्पष्ट तरीके से देश के मानस को अवगत कराएं -
संजय दत्त जेल की सजा काट कर आज निकल गए ,देखना है -वालीवुड में इनके क्या जलवे होते हैं !
चलिए आपको अग्रिम सुचना दे रहा हूँ ,वह यह कि 'पंजाब में अगली सरकार 'आम आदमी पार्टी' की बनने जा रही हैं '
हरियाणा/आरक्षण की आड़ में जानते हैं आप ,राज्य में क्या हुआ ? गैर जाटों की सम्पति सुनियोजित ढंग से लुटे गए और बर्बाद किये गए और इसमें ही सार्वजनिक सम्पदा को कैसे तहस-नहस किया गया ,यह कोई छुपी हुई बात नहीं है !
वर्ष २०१६ -१७ के रेल बजट व्यवहारिक और व्यावसायिक नजरिये का सूचक है !
लोकतंत्र में ,विशेषकर दलगत राजनीती की सत्ता में "कार्यकर्त्ता" प्राणवायु होते हैं , सरकार की नीतियों/योजनाओ का धरातल पर कैसे क्रियान्वयन राजकर्मचारी करते है ,इसकी सुचना तो दलीय नेता/कार्यकर्त्ता ही सही -सही दे सकते हैं और नौकरशाही केवल अपने नफे-नुक्सान को ही तरजीह देने के आदी होते हैं ,आखिर इनकी आजीविका के स्थायित्व का प्रश्न जो ठहरा !
सावधान पाकिस्तान, भारत तुझे ठुकाई करने के अभियान में तेज़ी से उपक्रम कर रहा है । अवसर पाक ने ही कूटनीतिक लहजे में भारत को दी है ,नागरिक सरकार के ऊपर सैन्य प्रभुत्व को भारत ने जान लिया है ,इसलिए वह बच सके तो बच जाये ,मोदी सरकार के मूड को जानने में पाकिस्तान भूल कर गया है ,इसलिए पठानकोट आतंकी हमले के बाद भी भारत उसे रियायत देने की कूटनीतिक सदाचार से देने के उपक्रम में है । कभी संसद पर हुए हमले के बाद बाजपेयी सरकार ने 'ऑपरेशन पराक्रम के माध्यम से चढ़ाई करने के निर्णय लिया था ,तब क्या दशा हुई थी ,उसे अब याद करने के वक्त पाक को आ गया है अर्थात वह थर्रा उठा था ,पश्चिमी देशों अमेरिका ,रूस जैसों के जरिये बाजपेयी से कैसे गिड़गिड़ाया था पाकिस्तान ने ,यह किसी से छिपा नहीं !
प्राचीन काल में राजा जो धर्म अपनाता था ,प्रजा उसी का अनुसरण करती थी , इसका सुन्दर उदाहरण सम्राट अशोक है ,जिसने बौद्ध धर्म को नई ऊंचाई दी ,बाद में आदि शंकराचार्य ने पुन :वेदान्त दर्शन को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई ,जिसे भौगोलिक पहचान 'सिंधु' के उच्चारणवश हिन्दू' के जरिये अस्तित्व में जाना/पहचाना गया ,लेकिन देश की सत्ता मुस्लिम शासकों के हाथों में दंसवीं शताब्दी के बाद मध्यकाल में देश में रही ,मगर आम लोगों ने इसे(इस्लाम) तवज्जो ने दिया ,क्यों ?
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे आम बजट में अगले वित्तीय वर्ष २०१६-१७ के लिए कोई लाम - काफ नहीं है , वैसे कृषि , आधारभूत संरचना और सामाजिक क्षेत्रों पर विशेष जोर है , उत्पादों के दामों में वृद्धि/कमी प्राय हर बजट में किया जाना वाले किस्से हैं ,आयकर जस के तस हैं और बीमा/पेंशन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को ४९ प्रतिशत तक की छूट है । अब आपको कैसा प्रतीत होता है बजट दोस्तों ,बताएं -
पंजाब/ राज्य की मुख्य समस्या ड्रग्स अर्थात नशे से तबाह होते समाज है और इसी को अरविन्द केजरीवाल (आप) ने दौरे करके अपने अगले विधान सभा के चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाने का निश्चय कर लिया है ,क्या दुखती नब्ज पकड़ी है आम आदमी पार्टी के प्रमुख ने, जवाब नहीं ?
हाँ मामू,अब केंद्रीय और दिल्ली सरकार के सचिवालय में पहले जैसी अराजकता नहीं है ,मोदी /केजरीवाल के गद्दीनशीन होने से बहुत तेजी से आप संस्कृति गायब हो रही है ,यह जानकारी आपकी सच्ची है ,यह बात मेरे भांजे ने कुछ दिन पहले टेलीफोनिक बातचीत में बताई थी , वह वहां वरिष्ठ नौकरशाह के पद पर है ,कुछेक साल पहले वह प्रतिनियुक्ति पर बिहार में भी पदस्थापित था , वह जहानाबाद से ताल्लुकात रखता है और मूलवासी पटना का ही है ,नाम उल्लेखित करना उचित नहीं समझता हूँ दोस्तों ,वैसे कभी इसके पटना आवास में डकैती हुई थी और खोजी कुत्ते ने जिस जगह कदम रखा था ,वह काफी चर्चित भी था ,विशेष अब आप अपना दिमाग लगावे मित्रों --वह कह रहा था ,दोनों सचिवालयों में पारदर्शिता को लेकर प्रतिस्पर्धा है ----
कल के पोस्ट में मैंने बतलाया था कि कैसे मोदी /केजरीवाल के केंद्रीय एवं राजकीय सचिवालय में कदम रखने के साथ कार्य संस्कृति अर्थात अप संस्कृति में गिरावट की मात्रा महसूस की जा रही । दरअसल यह दो व्यक्तित्वों उपजे चारित्रिक बल का कमाल है , जो आने वाले दिनों इनकी प्रभावी भूमिका को लेकर इनमे तेज संघर्ष संकेत हैं । यही देश को नई दिशा देगी !
देश की विधायिकाओं में अक्सर शोर-शराबे,हंगामा, मारपीट,गाली -गलोच ,बहिष्कार आम है ,इसी को ध्यान में रखकर हाल में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर व्यग्यं करते हुए कई बार कहा है कि 'जिसे जनता ने नकार दिया ,वे संसद ठप्प कर रहे हैं ' सचमुच यह वाकई गंभीर स्थिति के संकेत है ,तो सवाल है कि इसका हल क्या है ? समाधान है और इसकी कुंजी विधायिका प्रमुख अर्थात अध्यक्ष के हाथ में है । इनको करना सिर्फ यह है कि संसद/विधान मंडलों में संख्या बल अर्थात सदस्य संख्या के आधार पर पक्ष-विपक्ष को "समय' निर्धारित कर सदन संचालित कठोरता से एवं तटस्थ भाव से करना होगा । क्या यह साहस भरा कदम कोई अध्यक्ष उठा सकता है ?
झारखण्ड/ राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा पांचवी परीक्षा के सफल प्रतियोगियों को नियुक्त किये जाने सबंधी सिफारिश को लेकर बवाल है । हो भी क्यों नहीं ? आखिर इसी प्रदेश में पूर्व में आयोग के करामात भरी परीक्षा ,साक्षात्कार और नियुक्ति के तमाशा सामने है ,परीक्षार्थी ने परीक्षा दी नहीं और वह सफल हो गया ! भाई-भतीजावाद के खेल लोग भूले नहीं है । पर्दाफाश होने पर dsp / उप समाहर्ताओं समेत अन्य सेवा वर्ग के नियुक्त अफसरों को हटाया गया ,गिरफ्तार किया गया ,फिर उच्च/ उच्चतम अदालत में सौ रूपये के शुल्क वाले वकील को रखकर मुकदमे को कमजोर होने दिया गया , फिर क्या था ? सर्वोच्च न्यायालय ने पुन इनको रखने के निर्देश दिए और जाँच रिपोर्ट के आने तक इंतज़ार करने के आदेश दिए ,नतीजन अयोग्य अधिकारी एकाध साल बाद फिर सेवा में पद स्थापित हो गए । इसी राज्य ने आयोग के अध्यक्ष/सदस्य समेत कई को नियुक्ति को लेकर जेल जाते भी देखा है !
झारखण्ड/ क्या आपने राज्य के अस्तित्व में आने के बाद विकास के सन्दर्भ में सरकार द्वारा उठाये गए एक खास कदमों पर गौर किया है ? नहीं न , तो जानिए , मरांडी से लेकर दास तक जितने भी सरकार सामने आई है ,सभी ने DPR , कंसल्टेंट, सलाहकार ,प्रोजेक्ट वगैरह के लिए सरकारी संस्थाओं से काम न लेकर गैर सरकारी एजेंसियों से कार्य करवाती है ,क्यों ?जबकि खुद सरकार के मातहत तकनीकी प्रतिष्ठानों की कोई कमी नहीं है । यह इसलिए कि इसमें भी ऊपरी कमाई अर्थात कमीशनखोरी का खुला क्षेत्र निहित होता है !
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