जीने की राह' सिखाने वाले गुरू के रूप में प्रसिद्ध श्री श्री रविशंकर अब राजनीतिक भाषा बोलने लगे हैं ,जैसा कि उन्होंने कहा है कि वह जुर्माना नहीं देगें ,इसके बदले जेल जाना पसंद करेंगे अर्थात कानून के प्रचलित आदेशों की अवहेलना करने को वह तैयार हैं ! इनपर gnt ने पांच करोड़ के अर्थ दंड लगाये हैं ।
राजनीती में तू-तू- मै- मै क्या होती है और जिम्मेदारी से बच निकलने के लिए कैसे कैसे तर्क गढ़ लिए जाते हैं ,उसे देखिये - राहुल गांधी ने पूछा कि विजय माल्या कैसे विदेश भाग गया ,इनका आशय था कि सरकार ने उसे देश से बाहर निकलने का मौका दिया ,इसके जवाब में वित्त मंत्री ने सीधा उत्तर न देकर पूछा कि कवात्रोची कैसे खिसक गए थे ? स्पष्ट है कि मूल सवाल से कैसे सरकार बचती है ,इसमें साफ तौर पर झलकती है ।
विजय माल्या कैसे फरार हो गया । क्या यह व्यवस्था (system) की खामी की वजह से निकल भागा ? नहीं ,दुनिया की कोई भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देशों में व्यवस्था की खामी नहीं होती ! खामी उसके संचालन करने वाले की होती है अर्थात चारित्रिक पतन की वजह अर्थात मिलीभगत अर्थात अकर्मण्यता अर्थात अराजकता अर्थात व्यवस्था के शीर्ष पर बैठे शख्स की कमजोरियां होती है !
झारखण्ड/जब से रघुबर दास ,मुख्य मंत्री बने हैं ,मैंने नोट किया है कि इनपर हुए हमले/आलोचना/ विरोध के प्रतिकार लिए सत्ता पक्ष से कोई भी खुलकर सामने नहीं आया है और न ही राजनैतिक/सामाजिक हल्कों से किसी ने प्रतिरोध भरी आवाज बुलंद की है । इससे जाहिर है कि प्रदेश की भाजपाई राजनीती में गड्ड-मड्ड है !
झारखण्ड/खबर है कि रांची एक्सप्रेस का प्रबंधन अगले एक अप्रैल से बदल जायेगा !क्या प्रबंधन परिवर्तित होने से रांची से प्रकाशित होने वाले इस दैनिक पत्र के पुराने दिन बहुर जाने की संभावना उत्पन्न हो पायेगी ?
क्या आपको आभास नहीं होता कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , बिस्मार्क बनने की राह पर हैं ! ध्यान रहे, बिस्मार्क ,जर्मन एकीकरण के नायक के तौर पर स्थापित ऐतिहासिक शख्स के रूप में पहचान रखते हैं । इन्हीं से अभिभूत एवं प्रथम महायुद्ध के बाद वर्साय की संधि के तीखे प्रतिरोध से एडोल्फ हिटलर का जर्मनी में आर्विभाव हुआ था !
भारतीय प्रेस/मीडिया अधिकांश सिर्फ "हौआ" खड़ा करना जानती है । गंभीर मुद्दों/विषयों/बातों को चलताऊ /सतही नजरिये से ग्रहण करने की प्रवृति से यह अभिशप्त है । मूलभूत जरूरतों/संकटों /समस्याओं से रूबरू होना इसके फितरत में नहीं बदा है !
केदारनाथ सिंह ,पलामू जिला कांग्रेस के पूर्व महामंत्री , वह भी पंडित स्व जगनारायण पाठक जैसे कांग्रेस के खुद्दार जिलाध्यक्ष के कार्यकाल के, जो प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को इंदिरा जी कहकर संबोधित करने वाले एवं बातचीत करने वाले , से अचानक मेदिनीनगर कचहरी परिसर में आज मुलाकात हुई , तो वह मेरे एक प्रश्न के जवाब में बताया कि मौजूदा कांग्रेस के सांगठनिक ताकत और सोनिया/ राहुल गांधी में वह क्षमता नहीं है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सत्ता को केंद्र से उखाड फेंके ,कांग्रेस तभी अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करेगी ,जब वर्तमान मंहगाई जारी रहेगा । आम भारतीय के लिए मंहगाई ही महत्वपूर्ण होती है ,अन्य बातों/मुद्दे से विशेष मतलब नहीं होता ! इनसे भेंट काफी अरसे बाद हुई ,जब वह खैनी मल रहे थे, कभी मैंने बचपन में इनको गिलौरी पान चबाते देखा करता था ,तब इनके उद्दाम शरीर के गजब ही प्रभाव होता था । खैनी उनके प्रिय तम्बाकू नहीं होते थे ,मुंह में पान ही होते थे , कितना परिवर्तन तब और में हो गया ,इसे कहते हैं समय का चक्र !
मेरा बाल सखा अभिमन्यु ओझा ,मुझसे इन दिनों मुंह फुला लिया है ,वजह है ,मेरे जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर मेरे किये गए कुछेक पोस्ट , उसे मेरे बारे में गलत फहमी हो गई है कि मैं राष्ट द्रोहियों को साथ दे रहा हूँ , है वह भाजपाई ,इसलिए वह ऐसा सोचता है ,इसका ख्याल मुझे है ,लेकिन वह मेरे तर्कों को सुनने को तैयार नहीं है ,कैसे उसे मनाऊं ,यह समस्या आ खड़ी है ,वह रोज मुझे छेड़ता है लेकिन अनमने ढंग से , आखिर हैं तो बाल मित्र , मैंने उसे समझाने के क्रम में बतलाया कि रूबिया सईद का अपहरण हुआ था ,तब अटल बिहारी बाजपेयी ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा था-- काश मेरी भी बेटी होती ,तो वह देश के लिए बलिदान कर देते ,मगर कतई आतंकवादियों को नहीं छोड़ते । बाद में इन्हीं बाजपेयी के प्रधान मंत्रित्व में दुर्दांत अातंकियों को कंधार ले जाकर छोड़ा गया था ,क्या उसे भूल गए मेरे यार ! इसके बावजूद भी मेरा यार कुछ सुनने को तैयार नहीं , अब मैं क्या करूं , वैसे मनु चाय -पानी रोज कराता है ,लेकिन नजर उसकी मुझसे रूठने जैसी है ---
पाकिस्तान में चीनी फौज के कदम रखने का मतलब उसकी संप्रभुता पर आने वाले दिनों में खतरे से है ,जिसे पाक कूटनीतिज्ञों ने तव्वजो न देकर भारी भूल कर दी है , चीन अब आसानी से पाक भूमि से नहीं हटने वाला !
गुलाब नबी आजाद (कांग्रेस) ने आरएसएस और आईएसआईएस को एक ही तराजू में तौलने की कोशिश उनके खुद के बहुसंख्यक समाज का ही सोच बताता है ,इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए , भारत समेत दुनिया में जहाँ भी मुस्लिम कहर बरपती है ,देखा गया है कि उसके रहनुमा जोरदार तरीके से प्रतिकार करने में झिझकते हैं और जरूरी हुआ तो विरोध का श्वर काफी धीमा होता है ,इसी को ठीक से समझते हुए अमरीकी राष्टपति बराक हुसैन ओबामा को कहना पड़ा था कि 'आखिर मुसलमानों में ही दहशतगर्द क्यों पनाह लेते हैं ,मुस्लिमो के अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों पर ध्यान दें ' और अब वहां के एक रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम ने इसे ही अपनी चुनावी मुद्दा बना लिया है ,जो भविष्य के लिए अंतत दो मान्यताओं वाले कथित सम्प्रदायों के मध्य व्यापक संघर्ष के संकेत है ,जिसमे भारत में जाने-अनजाने उलझ जाने के खतरे मंडराने के संकेत दे रहे हैं !
झारखण्ड/ बाबूलाल मरांडी में गजब का आत्म विश्वास है ,जैसे उन्होंने थकावट को मात दे दी हो , इनके पास फिलवक्त दलगत राजनीती की वजह से भांति -भांति के जीव -जंतु जमा है ,इन्हीं के बदौलत इनको राज्य जितना है ,आज इनको मेदिनीनगर में बढ़ती अपराध को लेकर झाविमो द्वारा आयोजित धरना में बोलते देखा -सुना ,तो लगा ,देर -सबेर एक दिन उनको फिर सत्ता के केंद्र बिंदु बनना निश्चित है !
क्या किसी ने 'ईश्वर' को देखा है ? क्या यह सत्य नहीं है कि 'परम्परागत विश्वास' का नाम ही ईश्वर है !
यह जो आभासी दुनिया (वर्चुअल वर्ल्ड) है न मित्रों ,काफी मायावी है ,कब किससे आपका मन -मिजाज जुड़-टूट जाये ,कहना मुश्किल है !
लोकतंत्र में, विशेषकर लिखित संविधान वाले राष्ट-राज्य में , संविधान,संविधान संविधान की रट कौन लगाता है अर्थात दुहाई कौन देता है ? ऐसा जाहिल राजनीतिज्ञ करते हैं क्यों ? उन्हें यह अहसास ही नहीं होता कि संविधान लोग/जनप्रतिनिधि ही बनाते हैं ,कोई ऊपर से आया फरिश्ता इसे दस्तावेज का रूप नहीं देता । इसलिए यह हर वक्त परिवर्तनशील रहने वाली प्रक्रिया/ संविधान है । जैसे 'लोग और जनता' में भेद हैं ,इसे कितने आज के नेता/राजनीतिज्ञ बुझते हैं,इसलिए दोस्तों थोड़ी से झलक आपको जानने के लिए संक्षिप्त रूप में बताता हूँ । लोग अर्थात विधायिका अर्थात बहुमत अर्थात अस्थायी से अर्थ लोकतंत्र में है ,लेकिन जनता अर्थात राज्य अर्थात स्थायित्व से इसके अर्थ लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में होते हैं । मतलब कि संविधान सहज रूप से परिवर्तित हो सकते हैं ,मगर राज्य निर्माण/ गठन आसान प्रक्रिया नहीं होती ! विशेष बाद में --
कल झाविमो प्रमुख बाबू लाल मरांडी को मेदिनीनगर में देखने -सुनने के लिए गजब का आकर्षण लोगों/ विभिन्न दलों के नेताओं /कार्यकर्त्ताओं में दिखा, खुद भाकपा के राज्य सचिव केडी सिंह कार्यक्रम स्थल के आस-पास चहल-कदमी करते एवं मरांडी के भाषण को संजीदगी के साथ सुनते देखा गया ,यही हाल राजद, भाजपा, कांग्रेस, झामुमो ,बसपा समेत अन्य स्थानीय नेताओं में बेसब्री थी । मानना होगा कि मरांडी को लेकर राज्य में एक अलग ही 'आकर्षण' लोगों में व्याप्त है । क्या इसका प्रतिदान भविष्य में राजवासी मरांडी को देंगे ?
झामुमो नेता हेमंत सोरेन को बाहरी तत्वों के विरूद्ध संघर्ष तेज़ करके अपने अधिवास नीति का खुलासा करते हुए आगे बढ़ना चाहिए और इसमें पूर्व मुख्य मंत्री बाबूलाल मरांडी के अपने कार्यकाल में घोषित १९३२ के खतियान को समावेशित करके प्रतिपक्ष का साझा मंच से व्यापक स्तर पर जन आंदोलन छेड़ना के लिए तत्पर रहें । वैसे भी २००३ में मरांडी घोषित अधिवास नीति का विरोधः रांची, जमशेदपुर और बोकारो में ही हुआ था ,अन्य राज्य के इलाके में इसे लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं थी !
झारखण्ड/ रघुबर राज तभी तक है ,जबतक हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी एक -दूसरे के विपरीत धुर्व में हैं ,जिस दिन दोनों एकमत हुए ,उसी दिन से मौजूदा सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी !
भारतीय विधायिकाओं में १९८० के बाद "छेछड़" प्रवृति के राजनीतिज्ञों का प्रवेश तेज़ी से एवं काफी मात्रा में हुआ है !
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