Wednesday, 30 March 2016

commentry on indian political system


दाम्पत्य जीवन में आवारगी की तरह रहने वाले शशि थरूर क्या जाने कि "भगत सिंह " क्या थे ! 

झारखण्ड/ राज्य में कांग्रेसियों का दिमाग ख़राब हो गया है , वे आजकल लातेहार में लुटेरों के हाथों मारे गए दो पशु व्यापारियों के मामले को 'राष्टीय मुद्दा' बनाने की कोशिश में हैं , जो इत्तफाक से अल्प संख्यक समुदाय से जुड़े थे,जबकि यह विशुद्ध रूप से आपराधिक मामला है । इनकी चाल देखिये , कांग्रेस हत्या के शिकार परिवार को एक-एक लाख रूपये दिए ,उसे आश्रितों ने ले भी लिया ,लेकिन इसके पहले सरकार ने एक-एक लाख रूपये देने की पहल अनुग्रह राशि के तौर पर की ,जिसे ग्रहण करने से उनके परिजन यह कहकर  इंकार किया कि मुख्य मंत्री आकर उनसे मिले तब वह मानेंगे । क्या सामाजिक/राजनैतिक स्थिति है ?
झारखण्ड/ राज्य के शीर्ष नौकरशाह राजीव गौबा अब केंद्र सरकार की सेवा में हैं ,इनके मुख्य सचिव काल को आप किस रूप में देखते हैं ?
" मिस्टर प्राइम मिनिस्टर , बेतला नेशनल पार्क में १४ लंगूर इसलिए मर गए कि उनके पेट में पानी और भोजन नहीं थे ,यह मैं नहीं कह रहा , उनके हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट ऐसा कह रही है , क्या इसके बावजूद पलामू 'अकाल' क्षेत्र घोषित किये जाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है ? 
   ' वही तो बात करने के लिए यहाँ आया हूँ, बिहार को १८८ करोड़ रूपये के पैकेज राशि सूखे से निजात पाने के लिए दे रहा हूँ'
मेरे इस सवाल पर यह कहते हुए प्रधान मंत्री पीवी नरसिंह राव मेदिनीनगर के चियांकी हवाई अड्डे पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस से उठ गए । यह वाक्या १९९३-९४ की है ,जब पलामू में जानवर क्या आदमी क्या , सूखे/अकाल जनित प्रभावों से काफी मर रहे थे और सरकार अकाल की स्थिति तो मान ही  नहीं रही थी ,सूखे की विभीषिका भी मानने से परहेज कर रही थी । तब मैं uni का प्रतिनिधि था । 

देश में जहाँ कहीं भी अंतरधार्मिक व्यक्ति या व्यक्तियों के  बीच आपराधिक कृत्य होता है ,तो क्या वह सांप्रदायिक हो जाता है ? जैसा कि झारखण्ड के लातेहार जिले में विगत दिनों अल्पसंख्यक समाज के दो पशु व्यापारियों की हुई हत्या के मामले में कतिपय क्षेत्रों में प्रतिक्रिया हुई है ! इस सिलसिले में आज पलामू  जिला झामुमो के सचिव मनुव्वर जम्मा खान से स्थानीय मेदिनीनगर के वकलतखाना  में मुलाकात हुई ,तब उन्होंने कहा कि " आप कैसे कहते हैं कि पशु व्यापारियों की हत्या सिर्फ अपराध भर है ? उनका कहना था कि उनकी हत्या सुनियोजित है और यह असहिष्णुता से जुड़ा है और इसको शह देने वाले भाजपा और आरएसएस से जुड़े तत्वों का है । इसके प्रत्युत्तर में मैंने उनको जवाब दिया कि अगर हर आपराधिक वारदात को अंतरजातीय / अंतरधार्मिक नजरिये से देखा जायेगा ,तब कानून व् व्यवस्था के साथ न्यायिक क्षेत्रों में विकट स्थिति पैदा होगी ,जोर जबरदस्ती का साम्राज्य उत्पन्न होंगें और व्यवस्था  समक्ष हर वक्त संकटापन्न के हालात मौजूद रहेंगे । वैसे ,इन जैसे मामलों के लिए विपक्ष/पक्ष का अपना दृष्टिकोण तो दलगत आधार पर होते ही हैं जो आजकल दिख भी रहा है ! यह बातचीत थोड़ी लंबी खिंच गई जिसमे उन्होंने सवाल खड़ा किया कि "हिन्दुओं के लिए जैसे 'गाय' आस्था का प्रश्न है ,वैसे मुसलमानों के लिए 'सूअर' नापाक पशु है ,फिर इसकी खुलेआम मारे जाने और खाने की क्या जरूरत ? इसपर  भी प्रतिबन्ध लगना चाहिए । 

व्यवस्था अर्थात सिस्टम क्या होता है ,यदि इसे जानना है तो हाल में बिहार में घटित तीन मामलों का अध्यन कीजिये । पहला - सत्ताधारी वर्ग से बलात्कार में आरोपित एक विधायक(राजद) की क्या दुर्दशा हुई ,इसे बताने की जरूरत नहीं है । दूसरा - सत्ताधारी वर्ग के ही दो विधान मंडल सदस्यों  (जदयू) ने अलग-अलग विषयों पर ऊंट-पटांग बात कही ,फलत; दोनों पार्टी से तुरत निलम्बित हुए और तीसरा यह कि कुछेक दिन पहले एक मंत्री ने सजा -याफ्ता कैदी से जेल में जाकर मुलाकात की ,परिणामत;जेल अफसर मुअतल हुए । अब कितने लोग है ,जो जानते हैं कि " व्यवस्था का अर्थ अनुशासन है " ! 

झारखण्ड/ राज्य में अराजकता कैसी है ? इसे समझिए - पेयजल अफसर बाजार में है ,उसके नजरों में पाइप से पानी रिसता दीखता है ,वह उपेक्षा करके आगे बढ़ जाता है , बिजली अभियंता टहलने निकलते है और देखते है कि बिजली खंबा टेढ़ा है तथा बिजली के तार निचे झुके हुए हैं ,यह  कभी हादसे को अंजाम दे सकते है ,वह भी इसे नजरअंदाज   करते हुए चल देते हैं , डाक्टर सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त एवं घायल व्यक्ति को देखकर आगे बढ़ जाते हैं , पुलिस सामने मारपीट या कहिये अपराध होते देखते हैं ,उसे ओझल होने देते हैं ,फिर किसी के प्राथमिकी दर्ज़ कराने  के इंतज़ार करते हैं ,स्थानीय निकाय अफसर रोज गंदगी के अम्बार देखते रहते हैं ,मगर उसके समाधान की दिशा में पहल करने से कतराते हैं । उच्च राज कर्मी अपने मातहत कर्मचारियों को रोज आदेश/निर्देश देते हैं ,फिर उसके परिपालन भी हो रहा है ,क्या उसे संज्ञान में रखते भी हैं ?इसी तरह के नज़ारे प्राय  हर क्षेत्रों में हैं । सवाल है कि आखिर ऐसी  क्यों स्थिति उत्पन्न हो गई है ? 

क्या आपको नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी की केंद्रीय सरकार " राजकीय टैक्स वृद्धि" पर जरूरत से ज्यादा जोर दे रही है ?

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का यह बयान कि निजी क्षेत्रों में भी 'आरक्षण' लागू किया जाना चाहिए ,क्या आपको बचकाना  नहीं लगता ? अब उनको कौन समझाए कि निजी हल्कों में पूंजी निवेश भी निजी जोखिम पर होते हैं ,फिर सार्वजनिक क्षेत्रों की तरह इनके कारोबार 'कल्याणकारी अवधरणा' से उत्प्रेरित नहीं होते ,इनके लिए सिर्फ और सिर्फ मुनाफा ही मुख्य ध्येय होते हैं ,फिर आरक्षण कैसे ?

हे रामा गोरे ,
गोरे ये बहियां ,
में हरी-हरी चूड़ियां हे रामा , 
हरी -हरी , 
लीलरा पर शौभेला टिकुलिया , 
ये रामा ,हरी -हरी । 
चैत माह में गया जाने वाला यह लोक गीत मैंने किशोर वय के दौरान  लातेहार में रहने के दौरान सुना था ,जो आज भी दिल को गुदगुदाती है , उस काल में वहां अक्सर रईसों के आवास/प्रतिष्ठानों में "चैता गीत" के आयोजन होते रहते थे ,जो अभीतक मेरे मानस पटल में सचित्र अंकित पाता हूँ--

फिल्म अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ,क्रिकेटर विराट कोहली की कौन लगती है ,जिसे मजाक बनाना उनको बुरा लगता है ? क्या अनुष्का ,विराट की 'व्यक्तिगत सम्पति' है ? जीवन में हर कोई का किसी से भावनात्मक रिश्ते होते हैं ,फिर कौन-कौन को किससे -कैसे प्रतिक्रिया करने पर रोक सकेंगे ! सार्वजानिक जीवन में यह सब हमेशा चलते रहने वाली प्रक्रिया है कोहली साहेब, दिल-दिमाग को जरा खोल कर रखिये - भारतीय सभ्यता-संस्कृति के विपरीत  पाश्चात्य जीवन शैली के अनुरूप आपके अनुष्का से रिश्ते हैं ,जिसे कई भारतीयों को बुरा लगता है, तो क्या आपको --  

वर्ष १९८४ में सिख विरोधी दंगे और २००२ में हुए गोधरा कांड के बाद हुई प्रतिक्रिया में क्या फर्क है ? दोनों में ही तो केंद्र और राज्य सरकार  उसे रोकने में अनमने  थी ! 

उत्तराखंड के बाद अब मणिपुर/हिमाचल की बारी है ,राजनीतिक अस्थिरता के लिए !

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