Thursday, 10 March 2016

टीका -टिप्पणी / एसके सहाय

प्रधान मंत्री नरेंद्र  मोदी  ने अपने अभिभाषण  में  मंद बुद्धि / हीन भावना जैसे उपमा जड़ित शब्दों का  प्रयोग किया लेकिन  राहुल गांधी  का नाम  नहीं लिए , क्या इस लाक्षणिक बातों का राजनितिक  असर होगा ! क्योंकि राहुल के कल दिए गए भाषण का यह  जवाब था ।   

 भावावेश में व्यक्त किये गए विचारों की कोई अहमियत नहीं  होती ! भारतीय न्यायिक पद्धति में इसके कोई मतलब नहीं हैं ! कन्हैया हो या  अन्य कोई  मामला ,यह न्यायिक बहसों में टिकाऊ नहीं  होती ,इसके ढेरों उदाहरण हैं । सबसे बड़ा उदाहरण -राम मंदिर-बाबरी मस्जिद आन्दोलनों के काल में  कई विध्वंसक नारे लगे ,उसके क्या फलाफल हैं ,यह किसी से छुपा नहीं है ! 

दिन में शादी करो/ बात मेदिनीनगर कचहरी के सतीश भैया के  होटल में चाय के  बीच आज  हुई गप्प-शप्प की है ,टेबल के इर्द-गिर्द राज्य सचिव केडी सिंह ,नोटरी पब्लिक प्रदीप नारायण सिंह  के साथ आधा दर्शन वकीलों में शादी-विवाह में होने वाले ताम-झाम और उसमे खर्च होने वाली अनावश्यक धन को लेकर बहस  रही , जिसे मै भी चाव सुन था ,इसी बातचीत में सिंह ने कहा कि सफ़ेद दौलत के  बुते वैवाहिक कार्यक्रम को पूर्ण  करने वालों को चाहिए कि वे अपने बाल -बच्चों की शादी दिन में करें ,इसे अभियान के  तौर पर लिया जाने की जरूरत है  । बात में संजदिगी थी, वास्तव में आजकल काली कमाई से अर्जित धन से ही वैवाहिक समारोहों में आन-बान -शान का प्रदर्शन ही प्रतिष्ठा का विषय दीखता है । समय/ पैसे की बचत इसमें जाहिर है !

केरल उच्च अदालत के एक न्यायधीश बी कमाल पाशा ने सवाल किया है कि 'जब मुस्लिम पति चार बीवी रख सकते हैं ,तब उनकी पत्नियां चार शौहर क्यों नहीं रख सकती ?' यह बात उन्होंने गत रविवार को कोझिकोड में एक विचार -गोष्ठी में व्यक्त किया है । 

स्मृति जुबैद ईरानी को क्या सोच कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन जैसे भारी -भरकम मंत्रालय का दायित्व सौंपा है ? यब बात अभी तक भारतीयों को समझ में नहीं आ सकी है ! 

स्मृति ईरानी के काफिले से दुर्घटनावश एक शख्स की मौत होती है और वह अर्थात उनका महकमा पूरी ऊर्जा इस बात  में लगाती है कि उनके गाड़ी से टक्कर  नहीं हुई है । यह सब क्या है ? बात जो छनकर आई है उसमे  मानवीय संवेदना का ही प्रश्न है ,अगर हुए वह खुद के गाड़ी से घायल व्यक्ति को तुरत अस्पताल ले जाती तो उनकी "संवेदनशीलता" की  प्रशंसा होती ,मगर यह क्या ,वह फोन करके राहत उपलब्ध करने में ही व्यस्त दिखी है,अर्थात उपचार में अनावश्यक विलम्ब !  

नरेंद्र दामोदर दास मोदी  वो नहीं जिसे भारतीय और पूरी दुनिया जानती है ,मोदी  वह हैं जिसे मै समझ रहा हूँ ! 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ,पक्ष-प्रतिपक्ष को अपने तरीके से राजनीती "खेला" रहे हैं ,चित्त भी मेरी और पट भी मेरी ,क्या इस कहावत को आपने सुना है ! कूटनीतिक मोर्चे पर भी विश्व को अपने मनमाफिक साधने की कला भी कम निराली नहीं है ! 

उत्तर कोरिया का तानाशाह शासक किम जोन उन सिरफिरा शख्स है ,फिलवक्त उसे चिढ़ाने वाली कदमों से अमरीका-दक्षिण कोरिया को बाज़ आने  की जरूरत है । मौके की तलाश में उसे व्यक्तिगत रूप में दबोचने की आवश्यकता है,अन्यथा चूक होने पर मानवता के समक्ष गंभीर स्थितियां उत्पन्न होगी ।  

झारखण्ड/ पहले चीनी की राशनिंग और अब फिर धोती-साड़ी योजना के पुन चालू होने की खबर ,यह सब क्या है ? मूल योजना पर तो लगता है राज्य में किसी का ध्यान /जोर  ही नहीं है ! सब कमीशनखोरी वाली  स्कीम पर ही रस्सा -कस्सी के नज़ारे  हैं !  

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों के एक समूह ने 'मनुस्मृति' की प्रतियां जलाकर क्या सन्देश देना चाहा है ? क्या उन्हें उनके गुरूओं ने यह नहीं बताया कि हिन्दू समाज उस सोच से काफी आगे निकल चूका  है ,जो उनके विरोध प्रदर्शन  को लेकर कोई उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया /प्रतिकार नहीं देने वाला है ! अगर वो सचमुच प्रगतिशील विचारों के वाहक है ,तो शरीयत/हदीश के  रूढ़िवादी परम्पराओं/ सोच के विरूद्ध वैसी ही प्रतियां जलाकर दिखाएँ , कैसे  खौफनाक नतीजे होते हैं ,सामने आ जायेंगे अर्थात दिन में तारे दिखने लगेंगे ! 

लोकतान्त्रिक सत्ता की सबसे बड़ी खामी यह है  कि इसमें शासन/प्रशासन मंद गति से कार्य है ! बहुधा जन आक्रोश इसी वजह से उत्पन्न होते हैं । 

आर्ट ऑफ़ लिविंग फाऊंडेशन अर्थात श्री श्री रविशकर अन्तराष्टिय स्तर का  नटवर लाल है । दिल्ली  यमुना नदी  तट पर ११ -१३ मार्च के हो रहे तमाशा का क्या मतलब है ? अाखिर इसमें खर्च होने वाली राशि कहाँ से आ रही है ? क्या इसका हिसाब-किताब केंद्र सरकार लेगी ! यह काफी कुछ वैसा ही मामला है ,जैसे योग गुरू रामदेव 'योग साधना' नाम पर अपनी दुकान को उत्पादों से सज़ा कर व्यापार में संलिप्त हैं ! पूर्ववर्ती सरकार ने जब रामदेव के धंधे की जाँच शुरू की ,तब कैसे वह छटपटाये थे ,लोग उसे भूले  नहीं हैं ।  

मित्रों, जो विचार मुझे कौंधते हैं ,वही आपके लिए पोस्ट करता हूँ ,फर्क आप में और मुझमें यह है कि आप 'व्यष्टि'  में सोचते  हैं और मैं 'समष्टि' में , अर्थात दलगत भावना से परे होकर बेलौसअर्थात बगैर लाग -लपेट के ,  कहने का मैं अभ्यस्त हूँ ,इसके लिए काफी कीमत अपने जीवन में चुकानी पड़ी है और चूका भी रहा हूँ , पक्ष-विपक्ष मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ,किसी के दिल दुखाना मेरा मकसद नहीं । वैसे , मैं अपने बारे में आपको क्या बताऊँ ! 

क्या आप जानते हैं , राष्ट पिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे ने अपने जीवन में प्रथम और अंतिम बार केवल एक हत्या की ,लेकिन माओ त्से तुंग ने दस करोड़ अपने ही चीनी भाइयों को मौत की नींद सुला दी ,काफी कुछ ऐसा ही दृश्य देखिये कंबोडिया ,में जहाँ पोलपोत ने अपने ही  देशवासियों के लाखो क़त्ल कर दिया । विचारिये जरा ,यह सब क्या है ?

लगता है अब छात्र नेता कन्हैया कुमार की भूमिका बदल गई है ,वह राजनीतिक शब्दावलियों में विचार प्रकट कर रहा है ,शायद उसकी सीधी तौर पर सार्वजनिक जीवन में सक्रीय राजनीती में अर्थात दलगत भूमिका में  भाग लेने के यह संकेत है !

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