झारखण्ड में चुनावी दौरे में नरेंद्र मोदी मेदिनीनगर आये थे और स्थानीय भाजपाई अपने हाथों में गुलदस्ता लिए उनके स्वागत में स्थानीय चियांकी हवाई अड्डे पर कतारबद्ध खड़े थे ,लेकिन उस पंक्ति में एक ऐसा भी शख्स था ,जिसके हाथों में पुष्प गुच्छ नहीं थे ,मगर मोदी ने सबसे पहले उन्हीं से हाथ मिलाकर पूछा कि आपके खाली हाथों में गुलदस्ते नहीं ! जवाब मिला ,मैं अपने इन्हीं खाली हाथों से स्वागत आपका करना चाहता हूँ ,बगैर आडम्बर के ,फिर मोदी ने उनसे गले मिलकर ऐसे भाजपाई से सिख लेने के उपदेश अन्य मौजूद नेताओं / कार्यकर्त्ताओं को दिया । जानते हैं वह शख्स कौन था - परशुराम ओझा ,जिसे आम स्थानीय एवं पालमुवासी जमीन से जुड़े भाजपाई के रूप में संजीदगी के साथ अपने से जुड़ा पाते हैं !
क्या आपको यह अनुभूति नहीं होती कि फेसबुक "भावनात्मक शोषण" करता है अर्थात यह शोषण के उपक्रम/ साधन/ औजार बन गया है !
धर्म क्या है ? और सभ्यत -संस्कृति क्या है ? इन्हीं प्रश्नों पर मनुष्य के समाज की परस्पर चिंता/ संकट शुरू से है , जो आज भी राष्ट-राज्य के गठन/निर्माण में अनिवार्य तत्व की भूमिका में बानी हुई है ।इससे पिण्ड छूटे तो कैसे ? यही मूल सवाल आज संसार की है ।"संघर्ष" इसी का दूसरा पहलु है ,इसे समझिए --
पहले अरूणाचल प्रदेश और अब उत्तराखंड में भाजपा ने राजनैतिक अस्थिरता के लिए कदम बढ़ा दिया है ,इसमें परदे के पीछे के खेल को समझने की जरूरत है ,इसके भविष्य में दूरगामी और गंभीर परिणाम के संकेत छिपे हैं ,जिसे जितना जल्द प्रतिपक्ष पढ़ ले ,उतना ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए बेहतर होगा !
उप राष्टपति हामिद अंसारी ने वर्तमान मीडिया के स्वरूप पर चर्चा करते हुए बहुत ही सारगर्भित बात कही है ,वह यह कि " पत्रकारिता के संसार में संपादकीय साहस , उच्चतम पेशेवराना अंदाज और नैतिक मानकों के उच्च प्रदर्शन के अभाव ने चिंता के विषय बन गए हैं " उन्होंने आगे कहा कि " एक समय था,जब अखबारों (मीडिया ) के संपादक, बौद्धिक दिग्गज होते थे ,जो देश के लिए दिमाग का काम करते थे " सचमुच में मौजूदा पत्रकारिता का माहौल अराजकतापूर्ण एवं कूपमण्डूकता ही परिलक्षित है !
सुब्रमण्यम स्वामी का यह कहना कि " भारत को धर्म निरपेक्ष बनाने का फैसला हिन्दुओं ने ही किया था " कोई अचरज पैदा नहीं करता । यह तो राष्ट-राज्य के अस्तित्व में आने के क्रम में शुरू से होता आया है कि ' बहुसंख्यक समाज" ही अपनी समाज./देश की दिशा/रूपरेखा तय करती रही है !
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के यह कहने का क्या मतलब है कि " भारत एक महान देश बनेगा ही ,लेकिन इस प्रक्रिया में कोई हिटलर पैदा नहीं होगा " यह विचार उन्होंने कल पुणे के संत तुका राम के जन्म स्थान 'देहु' में एक स्कुल के उद्घाटन कार्यक्रम में व्यक्त किया है । इसका एक अर्थ तो यह है कि उनके जेहन में हिटलर सा भाव है ! यह एक मुहावरा में एक शख्स की परिवर्तित कारनामों का भाव ही तो है ! याद रहे ,एडोल्फ हिटलर अपने सख्त फैसलों/आदेशों के बदौलत प्रथम महायुद्ध में बर्बाद हो चुके जर्मनी को मात्र तीन साल के भीतर फ़्रांस/ ब्रिटेन जैसा मजबूत राष्ट बना चूका था ,यह कार्यकाल १९३३--१९३६ का था , समृद्ध होने के बाद ही वह विस्तारवादी नीतियों का अनुसरण कूटनीतिक/युद्ध के तरीको से शुरू किया था । वह १९३३ में ही अपने देश का चांसलर बन चूका था ।
भारतीय संविधान में मोहन दास कर्मचन्द गांधी अर्थात महात्मा गांधी को भी राष्ट पिता के रूप में घोषित नहीं किया गया है , लेकिन हम उनके नाम से गौरवान्वित होते हैं या नहीं ! काफी कुछ यही मसला 'भारत माता के जयकारे' के नारा के साथ है ,यह एकतागामी /अखंडता /अटूट/विश्वास/श्रद्धा के भावभियक्ति के संकेत भर से है ,इससे किसी को परहेज कैसा ?
हम रहें या नहीं रहे ,हमारी शुभेच्छा हमेशा आपके साथ रहेगी साथियों ---
झारखण्ड/ राज्य में कानून व व्यवस्था क्या है ? इसे समझें - पलामू में दो घटित मामले ऐसे हैं ,जिसमे सामाजिक/प्रशासनिक हल्कों की स्थिति साफ ढंग से उजागर करने में मददगार है ,जिसके परिप्रेक्ष्य में यथार्थ बोध करने के लिए पर्याप्त है ! लातेहार जिले के बालूमाथ दो पशु व्यापारी को लुटेरों के गिरोह ने हत्या कर दी और इसके लिए बवाल है ,प्रतिपक्ष अब सत्तारूढ़ पर हावी है ,आंदोलन भी तूफान पर है ,मगर सत्ताधारी वर्ग से कोइसी ने खुलकर अपराध को अपराध के रूप में मामले को नहीं समझते हुए मूकदर्शक की भूमिका में है ,इनसे जुडी पार्टियों के नेता भी खामोश राजनैतिक तमाशा देख रहे हैं । इसके लिए मुख्य मंत्री रघुबर दास को ही बोलना पड़ा है । दूसरी घटना , आपराधिक पृष्टभूमि के एक युवक की हत्या का है ,जिसे लेकर भी चैनपुर में बवाल हुआ । दोनों मामले में लोग सड़क पर उतरे , दोनों मामले की प्रकृति अलग-अलग है , सवाल लोगों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेने का है । एक स्पष्ट तौर पर आपराधिक है ,तो दूसरा अपने गलत हरकतों का प्रतिफल है ,फिर समान तौर पर दोनों मामलों में "लोग" उत्तेजित है , क्यों ? इतफ़ाक से दोनों मामले अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े हैं । एक में सुनियिजित लूट है ,तो दूसरे में प्रेम के अवैध रिश्ते का सवाल है ? आंदोलन की मानसिकता दोनों में एक सा दिखा है , एक में राजनीती ज्यादा है ,तो दूसरे में चुप्पी है ,मगर सामाजिकता एक सा है । इनके बीच कानून-व्यवस्था के पहरेदार की भूमिका नापने योग्य प्रतीत है !
झारखण्ड/ क्या सचमुच में रघुबर दास ,मुख्य मंत्री के सिंहासन पर बैठने के बाद मदहोश हो गए हैं ?
झारखण्ड/ रघुबर दास जब विधायक थे ,तब वह जमशेदपुर में स्थानीय कार्यकर्त्ताओं के दुलारे थे, मंत्री बने तो कड़क मिजाज होने की छवि बनी ,फिर प्रदेश भाजपाध्यक्ष हुए ,तब कार्यकर्त्ताओं के दुःख-सुख में भागीदार होने वाले नेता की ख्याति अर्जित की , उप मुख्य मंत्री पद पर काबिज होने के पश्चात महत्वकांक्षा बढ़ी और इसके बाद जैसे ही मुख्य मंत्री के पद मिला ,वैसे ही भाजपाई इनको 'चिरकुट" नजर आने लगे !
अरूणाचल प्रदेश में शह देकर भाजपा ने सरकार के स्थायित्व को संकट उत्पन्न करने में सफलता पाई और यही हथकंडे उत्तराखंड में पुन : कांग्रेसनीत सरकार के विरूद्ध अपनाये गए है ,इसलिए तब तय मानिये देर-सबेर झारखण्ड में भी प्रतिपक्ष ,रघुबर सरकार के स्थायित्व को संकट पैदा करेगी !
पेरिस के बाद ब्रसेल्स में हुआ आतंकी हमला अगले विश्व युद्ध के पृष्ठभूमि तैयार करने में खाद-पानी का काम करने जा रहा है ,थोड़ा इंतजार करें , अमेरिका में रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम को राष्टपति के पद पर बैठने तो दीजिये ,फिर कैसे विश्व राजनीती की पहिया तेजी से घूमती है ,वह दुनिया को पत्ता चल जायेगा !
नरेंद्र मोदी ,खुद में अदभूत व्यक्तित्व के स्वामी हैं ,इनके नेतृत्व में देश तेज़ी से उगेगा या फिर डूबेगा । अतएव , इनके राजनैतिक/कूटनैतिक पहलकदमियों की प्रवृतियों को जितना तेज़ी से आप पढ़ लें ,उतना ही अच्छा होगा ।
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