Wednesday, 17 February 2016

टीका -टिप्पणी/एसके सहाय

मुझे जान से मारने की धमकी मिली है ,यह धमकी हत्या के जुर्म में सजायाफ्ता एवं झारखण्ड हाई कोर्ट से जमानत पर जेल से बाहर आये पुलिस संरक्षित दलाल ,मुखबिर, एसपीओ संतोष उर्फ़ प्रियरंजन उर्फ़ सद्दाम वगैरह नामों से पहचान वाले आपराधिक तत्व ने दिया है । इस बाबत जब मैंने स्थानीय थानेदार एसके मालवीय को आवेदन देकर उसके विरूद्ध कार्रवाई करने एवं अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई ,तब उन्होंने उसे लेने में आनाकानी की, फिर अन्यमयस्क होकर ठाणे के मुंशी से रिसीव कराकर उसकी एक प्रति देते हुए मेरे आरोपी को आवाज देकर बुलवाया , फिर पुलिसिया रॉब में उसे डांटते हुए धमकी देने की मनाही की , पर यह क्या घटना के दूसरे दिन थानेदार(मेदिनीनगर) के बुलावे पर दोपहर उनसे मिलने गया ,तप उन्होंने कहा कि शाम को आइयेगा । पर यह क्या ? शाम को घर से फोन आया कि मेरे आरोपी एक पुलिस दल के साथ मुझे तलाशने आया है ,सो मै ,भागे भागे घर पहुंचा ,तो ASI अरविन्द सिंह ने तैश में बोला कि आपके द्वारा और इसके द्वारा दी गई आवेदन पर जाँच करने आया हूँ ,आप अपना पक्ष रखिये ,मैंने उसे अपने प्रधान एवं जिला सत्र अदालत के कागजातों को उसे देते हुए बतलाया कि पिस्तौल तानने एवं गोली मरने की वजह यही है , तो उसने मुझे धौंस पट्टी में लाकर अपमानित करने की कोशिश की ,तभी तत्क्षण मैंने पलामू रेंज के DIG साकेत कुमार सिंह को फोन करके एक पुलिस अफसर द्वारा मेरे साथ किये जाने वाली बर्ताव की सुचना देते हुए अपनी जान बचाने की गुहार लगाई,तो उन्होंने आश्वस्त किया की "धैर्य रखिये ,सभी का इलाज " है ,इस बातचीत के सेकंड बाद जाँच के बहाने मुझे धमकाने पहुंचे अफसर को उसके मोबाइल पर फोन आया ,तब वह चुपचाप यह कहते हुए मेरे आवास से चला गया कि मैंने कइयों को ठीक किया है ,आपको भी ठीक कर दूंगा ,कोई नेता /अफसर मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं पायेगा ! अब मुझे सचमुच में भय लग रहा है ,मेदिनीनगर पुलिस के किस्से पहले से ही बदनाम एवं चर्चित है ,सुनियोजित अपराध और उसमे इसकी भूमिका संदिग्ध रहे हैं ,जाये तो जाये कहाँ विशेष बाद में -- यह वाक्या गत बुधवार एवं गुरूवार की है । 

कभी इलाहबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति तेज़ नारायण मुल्ला ने एक मामले की सुनवाई हुए कहा था - "देश की पुलिस संघटित आपराधिक गिरोह है।" काफी कुछ मामला झारखण्ड के मेदिनीनगर पुलिस के साथ यह समान्तर  है । मैंने हत्यारे संतोष उर्फ़ प्रियरंजन ,जो अदालत से आजीवन कारावास में दण्डित है ,के विरूद्ध प्राथमिकी के लिए लिखित अाग्रह किया ,तब पुलिस ने बड़े आदर के साथ उसे बुलाकर मेरे खिलाफ भी मामला दर्ज़ करने के लिए उसे उकसा कर  आवेदन देने को प्रेरित किया और इसमें पुलिस कामयाब रही । वैसे ,पलामू जिले में अलग-अलग हुए दो  हत्याओं में दो spo / दलाल/मुखबिर हत्या के अपराध 
में पूर्व में जेल की हवा खा चुके हैं । इनकी गिरफ्तारी तभी हुई ,जब इनकी सेवा लेने वाले पुलिस अधीक्षक का पलामू से तबादला हो चूका था और इसमें एक संतोष भी है, जिसने मुझे जान मारने की धमकी दी है ,उसने ऐसा क्यों किया ,इसे समझने /जानने के लिए पुलिस के पास समय नहीं है  ,क्योंकि वह इनके चहेता है ,आमद-रफत का रिश्ता है । इसलिए कभी भी मेरे साथ अनहोनी हो सकती है ,मित्रो --
 
राहुल  गांधी 'हम कभी नहीं सुधरेंगे' वाली राजनीती  शिकार हैं , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय  जाकर सिर्फ यह कहना कि 'अभिव्यक्ति की आजादी' को ख़त्म नहीं  होने देंगे,उनकी नकारात्मक विचारधारा का  द्योतक है । मूल सवाल पर अर्थात देश विरोधी व्यवहार पर वह आखिर मुंह क्यों नहीं खोलते ? अगर ,वह मानते हैं कि अफजल गुरू और पाक परस्ती  को लेकर  कोई बात विश्वविद्यालय  नहीं हुई ,उसे भी  बेबाक  ढंग से देश  के सामने  रखना चाहिए । 

झारखण्ड/ चालू वित्तीय वर्ष के समाप्त होने में अब ४५ दिन  शेष रह गए  हैं ,फिर गांव-गांव योजना बनाओ अभियान का  मतलब ?  अभी तो योजना मद की  राशि को निर्माण कार्य में  युद्ध स्तर पर खर्च किये जाने की आवश्यकता है ,ताकि वह वापस नहीं हो सके । ऐसी नौटंकी से बाज़ आना चाहिए । योजना बनानी है ,तो अगले  वित्तीय वर्ष २०१६-१७  शुरूआत में ,फिर जलसा आयोजन करके अभी तमाशा खड़ा करने की  जरूरत है ?  

मौजूदा भारतीय लोकतान्त्रिक सत्ता में क्या आपको यह महसूस नहीं होता कि उसमे "लेढ़ प्रवृति"के लोग काबिज हैं ! 

अमरीका को नहीं समझना ही भारतीय कूटनीति की विफलता है , वह तो पाकिस्तान को एफ -१६ ही नहीं , बल्कि उससे भी ज्यादा देगा , लेकिन हम कैसे उन दोनों देशों को अपने अनुकूल साधे ,यह कूटनीति आजादी के बाद से ही नहीं समझ पाये हैं , अमरीका की प्रवृति देखें - प्रथम महायुद्ध में वह खुद शामिल नहीं था लेकिन उसमे उलझे पक्ष-विपक्ष  समान रूप से हथियार बेचकर अपने को दौलतमंद रहा ,फिर दितीय  युद्ध में भी वह तभी कूदा ,जब जापानियों  पर्ल हार्बर पर आक्रमण कर दिया अर्थात मजबूर होकर वह उसमे शामिल हुआ ,फिर वर्तमान अन्तराष्टिय परिवेश में भारत की फिक्र वह क्यों करेगा ? 


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