प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी यह कहना कि भारतीय नीति दुनिया में " सकारात्मक योगदान "के प्रति प्रतिबद्ध है , का क्या मतलब है ?
निचली अदालत ने सौलर घोटाले में केरल के मुख्य मंत्री ओमान चाण्डी के विरूद्ध आपराधिक अभियोग दर्ज़ करने के आदेश दिए और उच्च न्यायालय ने उसपर रोक लगा दिया , से क्या यह प्रतिध्वनित नहीं होता कि न्यायपालिका के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन करने का वक्त आ गया है !ऐसे ढ़ेरों उदाहरण हैं, ,जिसमे निचली, उच्चऔर सर्वोच्च अदालत के फैसले, आदेश, निर्देश और विचार आपस में अंतर्विरोधों से भरे पड़े हैं अब खबर यह है कि fir दर्ज़ करने के आदेश देने वाले न्याधीश एसएस वासन ने इस घटना को लेकर अनिवार्य स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए गुहार लगा दी है अर्थात इस्तीफा दे दिया हैं ।
उच्चतम न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त के पद पर सेवा निवृत न्यायमूर्ति संजय मिश्रा की नियुक्ति कर देने से ,क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि न्यायपालिका ने कार्यपालिका की शक्ति का हनन किया है ! क्षेत्राधिकार में सीधा हस्तक्षेप --
अब जब साफ हो गया है कि आत्महत्या करने वाला छात्र रोहित वेमुला दलित नहीं, बल्कि अत्यंत पिछड़ी जाति से ताल्लुकात रखता था ,तो क्या दलित प्रेम को लेकर उपजा आक्रोश ठंडा पद जायेगा ! जैसा कि रोहित के दादी राघवमया ने अपने बीटा/बहु को पिछड़े वर्ग से जुड़ा होने की बात कही है ।म्रितक छात्र "वडेरा"जाति से था ,जो पिछड़ेवर्ग में सूचीबद्ध आंध्र प्रदेश में है ।
हेमामालिनी/ इस तारिका एवं भाजपाई सांसद को कला के क्षेत्र में केंद्र खोलने के लिए पहले रियायती दर पर भूमि सरकार ने दी ,लेकिन उसका विकास नहीं कर पाई ,फिर अब महाराष्ट सरकार ने मुंबई के अँधेरी इलाके में ४० करोड़ रूपये की भूमि को मात्र ७० हजार रूपये पर आवंटित किया है ताकि वह 'डांस अकादमी' खोल सके । क्या उदार भाव है ? सूचनाधिकार के तहत प्राप्त एक रिपोर्ट ---
हलाल की कूटनीति- खबर है कि फ़्रांस ने ईरानी राष्टपति रफ़संजानी के सम्मान में दिए जाने वाले भोज में "हलाल" किये गए मांस अर्थात रेतकर काटा गया जीव अर्थात तड़पा -तड़पा के मरे गए पशु के मांस परोसने से इंकार कर दिया ,वहीँ दूसरी ओर इटली ने ईरानी संस्कृति-सभ्यता के सम्मान में अपने यहाँ ईरानी राष्टपति को 'नग्न तस्वीर' दिखे नहीं ,सो उसने उन्हें ढंक दिया । साफ है कि यूरोप के दो देशों की वैदेशिक मामले में सोच अर्थात कूटनीति अलग-अलग है ,इसका कारण ईरान की उपयोगिता है ,जिसे फ़्रांस के राष्टपति फ्रांस्वा ओलांद ने अपने तरीके से इजहार किया और इटली ने अपने तरीके से प्रकट किया है । ऊपरी तौर पर यह परस्पर सामान्य मामले प्रतीत हैं ,लेकिन नहीं ,इसमें भविष्य के संकेत छिपे हैं ,फ़्रांस आधुनिक सोच का देश है ,मगर इटली में अपने परम्परागत रूझान कायम है , विदेशियों के लिए थोड़ा झुकना इटली की फितरत में है ,तो फ़्रांस अपने राष्टहित में उत्पन्न संकट को साधने की उत्कंठा है । कुल जमा ईरान का महत्त्व सिर्फ उसके अकूत तेल भंडार का है ,इससे अधिक उसकी उपयोगिता शेष दुनिया के लिए कुछ भी नहीं है । धार्मिक कटटरता के मध्य उसकी विश्व राजनय में उपयोगिता सिर्फ अपनी भौगोलिक स्थिति के लिए है ,जो मध्य एशिया में इसको महत्वपूर्ण बनाये हुए है इससे अधिक कुछ नहीं । आर्य जाति का उदभव स्थल भी कुछ इतिहासकार ईरान को ही मानते हैं ,जिसे एडोल्फ हिटलर , इसकी श्रेष्ठता को मान कर अभिभूत होता था और इसमें भारत के क्या
कहने !
झारखण्ड/ ओम प्रकाश 'अमरेंद्र' ने आज मिलते ही मुझे जानकारी दी कि 'संजय भाई ,बहुित ही दुखद समाचार है ,मैंने उत्सुकतावश पूछा ,क्या ,उन्होंने बताया कि महेन्द्रनाथ उपाध्याय का निधन हो गया ' यह सुनते ही मेरे नजरों के सामने १९८५ ९० तैर गया ,जब श्याम बिहारी श्यामल के साथ पहली मुलाकात उनसे हुई थी, तब महेंद्र जी अपने 'रावण जिन्दा है' नामक साहित्यिक कृति को लेकर चर्चा में आने ; लिए जदोजहद कर रहे थे ,तब वह बेरोजगार थे ,बाद में प्राथमिक शिक्षक होकर आजीविका अर्जित करने में तन्मयता से जुटे ,लेकिन साहित्यिक यात्रा जारी रही । "विषधर" उनका 'उपनाम था ,जिसे उन्होंने मेदिनीनगर से प्रकाशित दैनिक 'राष्टीय नवीन मेल, जरिये स्तम्भ चलाकर नया आयाम दिए । श्यामल ,सम्प्रति यूपी में दैनिक जागरण में भदोही के प्रभारी हैं । उपाध्याय को मेरी शत-शत नमन है।
खादी का अर्थ स्वदेशी उत्पादन और इसके उपभोग से है ,इससे इत्तर कुछ भी नहीं =
संप्रग सरकार 'अराजक माहौल" में काम करना ज्यादा पसंद करती थी फिर क्या पड़ी है कि राजग सरकार मौजूदा परिवेश को बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाये ! अपने 'एजेंडे' को लागु करने/लादने का, जो सही मौका है !
पहले आडवाणी और अब यशवंत सिन्हा ने 'आपात्त काल ' जनित आशंकाएं प्रकट की है ,मैंने तो उनसे काफी पहले से ही भविष्य की झलक नरेंद्र मोदी के भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर उदय के साथ देखी है अर्थात "सर्वाधिकरवाद" का उदभव !
क्या आपको अहसास नहीं होता कि पिछले एक दशक से देश में न्यायिक सक्रियता बढ़ गई है ! ऐसा क्यों ? शासन/प्रशासन का मर जाना इसे ही कहते हैं । हाल में यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति/संप्रग काल में सतर्कता आयुक्त पद पर थॉमस की उच्चतम अदालत द्वारा नियुक्ति समेत ढेरों उदाहरण सामने हैं --
झारखण्ड / मेदिनीनगर - शैलेंद्रनाथ चतुर्वेदी आज पूरे रौ में थे ,वकालतखाना के अपने चैंबर में कुछेक वकील साथियों और सामाजिक क्रियाविदों के साथ फरमाते हुए कहते हैं कि ' आम लोगों के पॉकेट में सीधे डाका डालने की जुर्रत मनमोहन सरकार ने कभी नहीं की ,मगर मोदी सरकार सीधे साधारण लोगों के जेब से पैसे निकालने में तूल गई है ,देखिये भला संजय भैया, अब तीन घंटे में ट्रेन यात्री नहीं पकड़ पाये तो आपका टिकट रद्द हो जायेगा ,क्या भारतीय ट्रेने कभी टाइम पर चली है !
जम्मू कश्मीर मामले में भाजपा/पीडीपी राजवासियों से "पाजीपन" का खेल कर रही है ,आखिर इनके बीच स्वर्गीय मुफ़्ती मोहम्मद सईद के साथ क्या समझौता था? लोकतान्त्रिक राज है तो उसे सार्वजनिक करने से परहेज़ क्यों ?
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