एसके सहाय
देश में अार्थिक उन्नयन के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अबतक के विकास के निमित्त उठाये गए क़दमों को विश्लेषित करने पर स्पष्ट प्रतीत है कि "योजनागत" जरूरतों पर केंद्रीय सरकार का बल नहीं है । मौजूदा स्थितियों को ही फौरी तौर पर ठीक करने पर सरकार का जोर परिलक्षित है । ऐसे में ,प्रश्न है कि भविष्य की तस्वीर 'समृद्ध भारत' की कैसी होगी ? इसपर संशय के बादल घनीभूत हैं ।
कहने को योजना आयोग की जगह अब नीति आयोग अस्तित्व में है ,तो क्या यह नव गठित आयोग पूरे देश को समान रुप से आत्मसात करके प्रगति की रूपरेखा खिंच पाने में कामयाब हो पायेगा ? यह यक्ष सवाल अभी से ही चोटी के अर्थ विशेषज्ञों को मथ रहा है । सरसरी तौर पर मोदी सरकार दो क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देती प्रतीत है ,इसमें सामरिक और विनिर्माण के क्षेत्र हैं ,लेकिन इसमें भी आम लोगों की सहभागिता नगण्य है ,जो कुछ भी अबतक दिखा है ,उसमे पैसेवालों का ही हित साधन दीखता ।
सिर्फ नाम परिवर्तित कर देने से किसी संस्थान की सार्थकता सिद्ध नहीं होती ,बल्कि उसकी जरूरत की उपयोगिता ही महत्व रखती है । इस परिप्रेक्ष्य में शब्दों के कोई मायने होते ,योजना या नीति इसकी उपयोगिता तभी है ,जब दूरदर्शी सोच तहत उसकी क्रियान्वयन हो ,अन्यथा विकास की सभी क्षितिज व्यर्थ है ।
अतएव, पिछले दो केंद्र सरकार के पेश बजटों को देखें ,तो जाहिर होगा कि मौजूदा सरकार सामाजिक क्षेत्रों के कल्याणकारी योजनाओ में भारी कटौती की ओर कदम बढ़ा दी है और उद्योग स्थापना एवं मुलभुत संरचना पर इसकी विशेष जोर है । विकास का यह जोर पर्यावरण की कीमत पर है । कृषि,सिंचाई ,पेयजल ,दवा दारू ,भोजन अर्थात खाद्यान को नजर अंदाज करने की प्रवृति है ,जो की देश के लिए तीन चौथाई आबादी को यही मूल रूप से जरूरत है ।
इस बात को ऐसे समझें ,मोदी सरकार शुरू से अपने मनमाफिक भूमि अधिग्रहण अधिनियम बनाने के प्रति उतारू थी ,फिर अब वस्तू सेवाकर (जीएसटी) के लिए जोर लगाई है । रसोई गैस हो या फिर रेलभाड़ा ,मछली बाजार की तरह कीमतों के दाम ऊपर -निचे करके क्या सन्देश देना चाहती है ? भूमि/सेवाकर सरकार के अनुसार नहीं लागू हो पाया ,तो कौन सा पहाड़ टूट जायेगा ! आर्थिक विकास में रोजगार सृजन एवं इसकी सहज उपलब्धता ही महत्वपूर्ण होती है । संगठित क्षेत्रों के लोगों को राहत देना बड़ी बात नहीं है ,यह शुरू से हर सरकार करते आई है ,बल्कि अधिसंख्य आबादी को दूरदर्शी संकल्पना के तहत कदम बढ़ाने की आवश्यकता है,जहाँ तत्कालीन आधार के कदम बेमानी हैं ।
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