अंतरात्मा की आवाज और मतदान ।।।।।
जैसा कि, राष्ट्रपति के पद के गैर भाजपाई उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने कल रांची में मतदाता विधायकों एवं सांसदों से मुलाकात के बाद देश के उन सभी मतदाताओं से अपील की है कि " वे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर मतदान करें, तभी लोकतंत्र का भला होगा ।"
इस आह्वान के पश्चात सिन्हा जी भूल गए हैं कि, हम
आज 21 वीं सदी में हैं, जहां भौतिकवादी चमक-दमक में " आत्मा " खो गयी है ।
वैसे, याद करने की जरूरत है, आजादी के बाद पहली बार अंतरात्मा की आवाज पर मतदान करने की अपील 1969 में की गई थी और यह अपील श्रीमति इंदिरा गांधी ने कांग्रेस जनों के सांसदों- विधायकों से की थी और वह भी अपनी ही पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीवा रेड्डी के विरुद्ध मतदान करने के लिए, तब रेड्डी राष्ट्रपति के पद के लिए एक उम्मीदवार थे ।
बहरहाल, रेड्डी पराजित हुए और कालान्तर में कांग्रेस विभाजित हुई । इसके आगे क्या हुआ, उसे यहां उल्लेखित करना जरूरी नहीं है ।
ऐसे में यशवंत साहेब, यह अपील करते हैं, तब उसके क्या अर्थ हैं? यह समझना संदर्भित होगा । मौजूदा दौर में " हिन्दुत्व " के अतिरिक्त कोई मध्यवर्ती विचार बहुसंख्यक समुदाय में हिलोरें लेती नहीं दिख रही, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ भी अन्य गैर भाजपाई दलों के क्षेत्रीय नेताओं के दुर्भाव दिखते हैं, स्थानीय हितों से ऊपर उठ कर सोचने की क्षमता भी परिलक्षित नहीं है, तब अंतरात्मा की आवाज पर विचार करने-सुनने के लिए किसे फुर्सत है?
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