Saturday, 2 July 2022

हेमंत सोरेन सरकार के स्थायित्व का प्रश्न

          ●हेमंतसोरेन के नाम दो शब्द●

    निश्चित को छोड़कर अनिश्चित की ओर जाना वर्तमान #झारखंड सरकार के लिए जोखिम है और इस संक्रमण से बाहर निकलने की जद्दोजहद में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन फंसे हैं अर्थात राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अबतक झामुमो के रुख का इजहार नहीं होने को लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह के कयास हैं ।

     और इस अनुमानों को बल मिला है हेमन्त के केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं कांग्रेस के राज्यसभा नेता मल्लिकार्जुन खङगे के पिछले दिनों हुई मुलाकातों से, जिसमें बताते हैं कि, ईडी वगैरह के दबाव से मुक्त होने के लिए वह, कांग्रेस से मौजूदा गठबंधन तोड़ कर अलग हो, भाजपा से नाता जोड़ सकते हैं ।

     वर्तमान राज्य सरकार को वैसे दोनों स्थितियों में विशेष खतरा नहीं है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता अल्पसंख्यक समुदाय के बीच  हमेशा संदिग्ध रहेगी और दूसरी बात यह कि, कांग्रेस के पास हेमन्त सरकार से समर्थन वापस लेने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं  बचेगा, क्योंकि राष्ट्रीय सियासी खेल में भाजपा और कांग्रेस परस्पर एक- दूसरे के धूर विरोधी हैं ।

          दरअसल, राष्टपति चुनाव एक बहाना है सियासत के एक औजार के तौर पर, सिर्फ आदिवासी राष्टपति के मुद्दे पर झामुमो के  व्यवहार में तब्दीली आती है तो, राज्य में गठबंधन टूटना तय है और  अस्थिरता के दौर शुरू होंगे, यहां पर भाजपा कब झामुमो को गच्चा दे देगी, फिलहाल निष्कर्ष निकालना टेढी खीर है ।

          वैसे, सर्वज्ञात है कि, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन " वैयक्तिक " हित में निर्णय लेने वाले राजनीतिक प्राणी हैं, जहां सिद्धांत, विचारधारा, आदर्श से कोई लेना-देना नहीं, क्षेत्रीय हित को व्यक्तिगत फायदे में बदलने की कला को ही आखिर में ' क्षेत्रीय राजनीति का मूल जो छिपा है ।'

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