Sunday, 9 February 2014

राहुल का यह नाटकीय अंदाज

                                    (एसके सहाय)
     कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी तीन दिन पूर्व झारखण्ड के एक दिवसीय दौरे पर जिस अंदाज़ से अपने निर्धारित कार्यक्रमों में भाग लेकर वापस लौट गए, उससे स्पष्ट है कि वह अभी " चुनावी राजनीति के मैदान " में अपरिपक्व हैं| इनका अवतरण जिस अंदाज में राज्य के तीनों जिलों में हुआ , मानों वह कोई "फिल्म सितारा" हों , जिस तरह १६ वीं लोक सभा के घोषणा पत्र तैयार करने के निमित्त ' आदिवासी महिलाओं एवं अल्पसंख्यक समाज ' से रूबरू हुए , यह बता गया कि अब भी वह पार्टी के चतुर खिलाडियों के फैलाये जाल में फंसे गैर राजनीतिक प्राणी हैं और साथ में चुनिंदे पत्रकारों से हुई विमर्श इनके खोखले रणनीति की ओर इशारा किया है |
      इस दौरे में राहुल के मुख्य फोकस में 'रोड शो' था ,इतफाक से उस दिन माओवादियों का राज्य व्यापी बंद आहूत थी ,जिसमे कार्यक्रम में परिवर्तन करके सुरक्षित तरीके से कांग्रेस ने अपने प्रिय नेता के चेहरे को सड़क पर प्रदर्शित की | यह चेहरा प्रदर्शन हजारीबाग ,कुजू और रांची की सडकों पर कम दूरी में हुआ ,अन्यथा तय कार्यक्रम में १०० किलोमीटर की दूरी निर्धारित थी | अलबत्ता , यह ऐसा रोड शो की झलक थी ,जिससे लोगों को आभास मिले कि वह किसी अन्य ग्रह के जीव हैं ,जिसे आम नागरिक "ग्लैमर" को देखकर अभिभूत ठीक उसी तरह हो जाये ,जिस तरह अभिनय के क्षेत्र में पारंगत अभिनेता को देखकर अक्सर जन साधारण प्राय: हो जाया करते हैं |   
        इतना ही नहीं , राजनीति के दूसरे चरण को देखें - राहुल गाँधी जिस आदिवासी महिलाओं -अल्पसंख्यक समाज से बातचीत किये ,उसमे कौन शिरकत कर रहे थे ? यह जानने का प्रयास भी इन्होने नहीं किया , थोड़ी कोशिश की होती ,तब जाहिर होता कि उसमे मौजूद लोग 'कांग्रेस' के ही नेता -कार्यकर्ता'  शामिल हैं , जो उनको सर्व जन साधारण से किनारे होने का अनुभूत कराती और पार्टी के ज्ञानी एवं तिकड़मी नेताओं के रूख से परिचय कराती |
      इसी तरह ,जब वह रांची के वरिष्ठ एवं चयनित पत्रकारों से बंद कमरे में मुखातिब थे ,तब इनका आग्रह था कि "इस बातचीत" को ऑफ द रिकार्ड ही समझा जाये | साफ है कि इसके मतलब क्या थे ? यह कोई बहुत अबूझ पहेली अब भारतीय राजनीति में नहीं रही ,जिसके लिये कांग्रेस के इस नायक को चिरौरी करना पड़े |
   अब जरा ,राहुल के इस दौरे के प्रयोजन और प्रभाव को देखें ,तो प्रकट होगा कि इस आगमन से कोई नई उर्जा कांग्रेस को मिली हो ,ऐसा प्रतीत नहीं होता | सुरक्षा के ताम-झाम से पार्टी के इस नेता को मीडिया में प्रचार मिला ,मगर इसके निहितार्थों को कोई भी पकड़ नहीं पाया | राहुल अपने दौरे में १६ वीं आम चुनाव के लिये स्थानीय स्तर पर 'जन समस्याओं -संकटो' को समझने के कथित बातों को लेकर झारखण्ड पधारे थे और इनके पास समय इतने काफी कम थे कि चंद घंटों में राज्य की प्रमुख समस्याओं को निकट से जान जाया जाये ,जो कभी सहज नहीं हो सकती |
     वैसे, यह सभी अवगत हैं कि इस दफे के लोक सभा के चुनाव में कांग्रेस के मुख्य स्टार प्रचारक वहीं हैं और वही चुनावी रणनीति तय करेंगे , फिर इस जैसे दौरे का एक अर्थ यह भी निकला है कि पार्टी के इस राष्टीय उपाध्यक्ष को किसी पर 'भरोसा' नहीं ,तभी तो " घोषणा पत्र " के लिये इनके देश व्यापी दौरे हो रहे हैं | देश की परिवर्तित राजनीति में यह पहली बार हो रहा है कि कोई राष्टीय पार्टी का स्वयमेव नेता अपने दम पर आम भारतीयों के नब्ज टटोलने को निकला है | काफी हद तक ,यह मोहन दास करमचंद गाँधी की तरह का अधुनातन दौरा है ,जिसमे महात्मा गाँधी ने सक्रिय राजनीति में भाग लेने के पहले अपने तरीके से देश की सुदूरवर्ती इलाकों का दौरा किये थे और यह जानने के प्रयास किये कि मौजूदा सामाजिक -राजनीतिक मांग और जरूरत क्या है ?
   मतलब यह नहीं कि राहुल के इस झारखण्ड दौरे अर्थात देश व्यापी गमनागमन को राजनीति के आदर्श सूत्र की ग्रहण किया जाये | यह इसलिए कि इस दौरे का मतलब 'सत्ता' पर पुन: काबिज होने के प्रयास से जुड़ा है ,जैसा कि इस नेता ने कई बार कहा है | कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने के लिये पार्टी में एक से एक धुरंधर प्रकांड विद्वान है ,ऐसे में कांग्रेस अर्थात राहुल का यह स्टंट अपने को अन्यों से श्रेष्ठ बताने को लेकर है ,जो अन्य कांग्रेसियों के लिये नई सबक है कि ' वे ' भावी राजनीति के लिये तैयार /सतर्क हो जाएँ अन्यथा कूड़ेदान में जाने के लिये विचार कर लें |

     यह सर्व विदित है कि कांग्रेस अब व्यवहार में एक कारपोरेट कंपनी की तरह आचरण करने वाली "कार्य शैली" के राजनीति करने की हिमायती पार्टी है ,इसके पसंद -नापसंद  आलाकमान अर्थात सोनिया गाँधी /राहुल गाँधी के इच्छा /अनिच्छा पर निर्भर है , सत्ता के शिखर पर जो चेहरे दिख रहे हैं ,वो केवल मोहरे भर हैं ,जिनकी अपनी कोई अभिलाषा / मनोकामना नहीं , यह दिक्दर्शन आज से नहीं ,वरन राजीव गाँधी के काल से है ,फिर भी यह अन्य से ज्यादा लोकतान्त्रिक दल होने का ढोंग करती प्रतीत है , तब यह नाटक कर रही होती है ,जैसा कि राहुल ने झारखण्ड में किया है | 

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