Monday, 21 May 2012

वन्य जीव संरक्षण की यह पहल


                   (एसके सहाय)
हाल में "ग्लौबल टाइगर रिकोवरी प्रोग्राम" (जीटीएपी)के कार्यशाला में यह बात रेखांकित होने के खास मायने है ,जिसमे कहा गया है कि भारत में विगत चार के दौरान बत्तीस बाघों की मौतें हुई है ,विशेष इसलिए कि मई २०१२ तक इसमें १४ बाघों के शिकारियों  के हाथों मारे जाने की रिपोर्ट भी शामिल है ,जो वाकई गंभीर और चिंता के विषय है .यह ब्रह्माण्ड के चराचर जीवों के प्रति मनुष्य के क्रूरता को प्रदशित करता है ,जबकि अब यह निर्विवाद रूप से सच है कि "मनुष्य और जानवरों के संघर्ष में हमेशा वन्य जीवन को ही नुक्सान उठाना पड़ता है" इसके बावजूद धरती पर मौजूदा वन्य प्राणियों के प्रति क्रूरता का भाव अब तक बना रहना खास चिंतनीय विषय बने हुए हैं | यह कार्यशाला पिछले १६-१७ मई को नई दिली के विज्ञान भवन में आयोजित थी ,जिसमे पूरे विश्व भर के देशों के प्रतिनिधिक वन्य प्राणियों की सुरक्षा में जुटे विशेषज्ञ उपस्थित थे |
             वन्य प्राणियों के बारें में फ़िलहाल भारत को ही देखें ,इसमें बताया गया है कि ३२ बाघों में मात्र १८ की मौत स्वाभाविक है ,याने बाकी दुर्घटनावश ,जिसमे शिकार भी एक प्रक्रिया है ,के वजह से इस कम होती प्रजाति के लिये खतरे से कम नहीं सिद्द हो रहे | इस कार्यशाला में यह तथ्य भी रेखांकित हुए कि वन्य प्राणियों के संरक्षण एवं संवर्धन में नेपाल और रूस के बेहतर रिकार्ड है ,इसमें भी नेपाल में विगत तीन सालों में एक भी बाघ के नहीं मारे जाने की बात सामने है .जो इसके वन और वन्य जीव सुरक्षा के मामले में प्रतिबद्दता  को दर्शाती है ,जो प्रशंसनीय है | 
            वैसे ,भारत में बाघों के संरक्षण की दिशा में १९७२ में ही कदम बढ़ा दिए गए थे लेकिन वैज्ञानिक प्रविधि के अनुसरण में कोताही बरते जाने से इसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले ,फिर भी, जो कदम उठाये जा रहे हैं ,उसमे अब पूरी तरह सजगता बरते जाने की स्थिति उत्पन्न हो गई है | शुरूआती दौर में केवल १३ बाघ परियोजनाए क्रियान्वित थी ,जो अब बढ़ कर ४१ हो गई हैं और यह १७ राज्यों तक विस्तृत है ,इसमें तमिलनाडु के सथ्य्मंगालम और अंदर प्रदेश के कवल वन्य प्राणी अभ्यारण्य हाल में शामिल किये गए हैं |
           २००६ की गणना में १७०६ बाघों के पाए जाने की बात थी ,जिसमें उतरोतर वृद्दि की बातें सामने आई  हैं,लेकिन  २००८ में यह संख्या १४०० होने की बात सामने थी ,और अब यह तायदाद १७१० तक बताई गई है  इसलिए इसे  इसे ज्यादा उल्लेखनीय  माने जाने की तवज्जो में दर्ज नहीं है .यह इसलिए कि अवैध शिकार और व्यापार की आशंकाओं को पूरी तरह निर्मूल अर्थात रोक पाने में अब भी बाघ रिजर्व तैयार नहीं हो सके है ,यही कारण है कि जब - तब बाघों के मारे जाने की खबर आती रहती है | देश में कुल क्षेत्रफल का एक फीसदी भाग ही बाघों के लिये सुरक्षित है ,जिमें विस्तार की योजनाओं पर सरकार विचार कर रही है ,जैसा कि जी टी ए पी के उदघाटन के अवसर पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने संकेत दिए हैं |
        बाघ के संरक्षण और संवर्धन के अभियान में तेरह देश पूरी तरह सम्मिलित हैं ,जहाँ विश्व बैंक इन देशों में इन वन्य जीवों के लिये अपनी तरफ से वित्तीय मदद प्रदान कर रही है ,ऐसे में इस जानवर को विलुप्त होने से बचाने के लिये हर संभव पहल किये जाने की दरकार मनुष्य को है |यह मदद बैंक की २००८ से ही है और इसी के सौजन्य से पहला ग्लौबल टाइगर रिकोवरी प्लान की बैठक १० नवंबर २०१० को सेंट पीटर्सबर्ग में हुई थी और यह दूसरा कार्यशाला नई दिल्ली में संपन्न हुई है |इस बैठक में बाघों के बचाव ,संरक्षण एवं सुरक्षा के प्रति समर्पण भाव से कदम उठाये जाने पर बल दिए गए |  यहाँ यह भी उजागर हुआ कि जो बाघ पालतू हैं ,उसके भी जीवित रखने और इसमें प्रजनन क्षमता को बरकार रखने में मनुष्य कारगर नहीं है ,ऐसे में प्रकृति प्रदत आबो -हवा को इसके लिये इर्द - गिर्द बनाये  रखने पर मुख्य जोर दिए गए |
           फिलवक्त , विश्व में ५००० हज़ार पालतू बाघों के होने की बात कार्यशाला में उजागर हुई है ,जिसमें भारत का प्रदर्शन इसके रख -रखाव के बारे में काफी दयनीय है जिसे निचले सूची में अंकित किया गया है तथा जंगलों में विचरण करने वाले इस वन्य जीवों  की संख्या ३५०० बताई गई है ,जिसे २०२२ तक दुगुने अर्थात ७००० तक किये जाने का संकल्प लिया गया है | वैसे ,भारत में बाघों के लिये ५०००० वर्ग किलोमीटर का ही क्षेत्र अभी सुरक्षित है |

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