एलपीजी संकट और बाजपेयी युग
एसके सहाय
मेदिनीनगर :स्थानीय स्तर पर एलपीजी की समस्या पूरे देश में है लेकिन बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा की यह कैसे संकट के रूप में उत्पन्न हुआ, सो इसे जानने लिए आपको प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को जानना होगा ,तब यह पता चल सकेगा कि कैसे इसकी आपूर्ति में संकट पैदा होने की शिकायत बराबर मिलती रहती है .
एलपीजी के बारे में सबसे ज्यादा शिकायत यह है कि स्थानीय स्तर पर गैस आपूर्ति के लिए वितरक के पास सूचना दर्ज कराने के बाद भी यह तय अवधि में सिलिंडर की आपूर्ति नहीं करती है ,इससे क्षोभ होना स्वाभाविक है , आखिर तय समय में आपको रिफिल क्यों नहीं पहुँचाया गया ,इस पर कभी आम आदमी सोचता नहीं , सिर्फ अपने फायदे को ध्यान में रख कर ही काम करने की प्रवृति से संकट और अधिक गहरा जाने की स्थिति उत्पन्न होती है ,जो समाज में आलस्य पैदा करने में सहायक होती है .
यहाँ पर किसी सरकार के पक्ष -विपक्ष में विचार करना या अच्छा -बुरा बताना मकसद नहीं है ,केवल यह याद दिलाने की कोशिश है कि " कैसे नीतियों के परिवर्तन से पूरा समाज प्रभावित होता है ,इसकी जानकारी सत्ता में बैठे लोगों को नहीं होती, " जैसा कि बाजपेयी सरकार में हुआ .घरेलु गैस आसानी से मिले ,इसकी परिकल्पना खुद बाजपेयी जी ने की थी और यह भी सच्चाई है कि राष्टीय जन्त्तान्त्रिक गठबंधन की सरकार केंद्र में रही ,तबतक एलपीजी के लिए विशेष चिंता के विषय उपभोक्ताओं के लिए नहीं बने थे , इसमें एक प्रमुख वजह यह थी कि सरकार ने "नीति "ही इसप्रकार तय कर दिए कि "जो भी नागरिक ,जहाँ भी रहे ,वे पूरे भारत में कहीं से भी एलपीजी के लिए आवेदन कर उसे प्राप्त कर सकतेहैं ,केवल भारतीय पहचान होने की पुष्टि होना जरूरी घोषित किया गया "
इस नीति से सभी केलिए गैस मिलना सुलभ हो गया ,स्थानीयता का बंधन नहीं रहने से इसका लाभ समान रूप से सभो को मिला ,लेकिन परवर्ती काल में यही अब समस्या पैदा कर दी है ,जो आये दिन एलपीजी के लिए शोर सुनने को मिलता रहता है ,यहाँ यह भी ध्यान देने लायक तथ्य है कि बाजपेयी की सरकार जब तक थी सिलेंडर के आपूर्ति में कोई भी शिकायत नहीं थी ,इस बात को आज भी लोग बड़े जोर देकर तस्दीक करते है लेकिन अब इसकी आपूर्ति में अनियमितता की शिकायत लगभग हर शहरों -कस्बों से मिल रही है .
देखा जाय तो , मालूम होगा कि "स्थानीयता के बंधन के नहीं रहने से एक बितरक के पास अचानक कनेक्शन के लिए आवेदनों की बाढ़ आ गई ,जो उसके क्षमता के अनुकूल नहीं थे , ऐसे में किसी को कनेक्शन के लिए मना करना भी क़ानूनी तौर पर जुर्म होता ,ऐसे में सभी को समान रूप से कनेक्शन के लिए मंजूरी दी गई इससे घरेलु आपूर्ति में बाधा होना सवाभाविक था .
इस संदर्भ में एक बात और ध्यान देने की है, वह यह कि " बाजपेयी सरकार के पहले वितरकों के लिए आपूर्ति क्षेत्र का निर्धारण किया जाता था , जिसके बाहर गैस आपूर्ति की मंजूरी नहीं दी जाती थी ,इससे आपूर्ति में अनावश्यक दबाव वितरक पर नहीं होता था " अर्थात नगरपालिका ,पंचायत ,प्रखंड जिले वगैरह को क्षेत्राधिकार घोषित करके वितरक को लाइसेंस दिए जाते थे ,जिससे भी आपूर्ति सहज होने में मदद मिलती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है ,जिस के कारण बराबर एलपीजी के लिए आन्दोलन होते रहन की खबरें मिलती रहती है .
इन बातों को समझने के लिए उदाहरण के तौर पर डालटनगंज (मेदिनीनगर ) के एक वितरक की हालत को जानिए , १९९८ के पहले इसके पास गैस के मात्र ६ हज़ार उपभोक्ता थे ,इसे सिलेंडर की आपूर्ति केवल नगरपालिका क्षेत्र में करने के लिए ही आदेश था ,इसके बाहर के नागरिकों को कनेक्शन देने की क़ानूनी मनाही थी ,इसतरह के क्षेत्राधिकार देश में वितरकों के निश्चित थे,इससे समयबद्ध तरीके से रिफिल उपभोक्ताओ को होता था ,लेकिन जब बाजपेयी ने गैस कनेक्शन लेने की प्रक्रिया आसान बन दिए तब उस वितरक के पास डेढ़ सालों में २२ हज़ार उपभोक्ता पंजीकृत हो गए और इसके आपूर्ति करने के क्षमता पर यह बोझ बन गया और आज हालत यह है कि इस बितरक के पास से माह मेंकेवल करीब ७००० -८००० उपभोक्ताओं को ही सिलिंडर का लाभ मिल पता है ,
मजे की बात है कि इस वितरक के पास ५०० से १०० किलोमीटर पर रहने वालों का भी कनेक्शन है यह स्थिति सिर्फ इसकी नहीं है ,यह सारे देश के गैस वितरकों की है जहाँ से कनेक्शन बेहिसाब जारी हुए है,इसी से आपूर्ति प्रभावित है तो ताज्जुब नहीं .
मतलब यह कि नीतियों के परिवर्तन से लाभ हैं ,तो हानि भी है ,इन दोनों में कौन सी नीति ज्यादा कारगर है यह खुद सरकार को ही मालूम नहीं है
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