बेबसी में मनमोहन की बातें
एसके सहाय
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का पिछले दिनों संसद और इसके बाहर लगातार भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में यह कहना कि "उनको पत्ता नहीं है, सरकार को स्थायित्व की मज़बूरी में ए राजा जैसे को मंत्री मंडल में बनाये रखना पड़ा" काफी हद तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार को बेपर्द करने के लिए एक मजबूत आधार विपक्ष को अनायास दे दिया है.साथ ही रूपये के लेनदेन को अपनी जानकारी में नहीं होने की बात करके यह स्पष्ट कर दिए कि मामला बहुत ही गंभीर है, अतएव आने वाले दिन केन्द्रीय सत्ता के लिए काफी चुनौती वाल होगा, ऐसा प्रतीत है.
इन निहितार्थों को समझने के पूर्व मनमोहन सिंह के राजनीतिक जीवन और इसके पूर्व के जिन्दगी को जानना जरूरी है, ताकि यह बात देशवाशियों को मालूम पड़े कि इस प्रधान मंत्री से विशेष की उम्मीद बांधे रखना बेकार की बातें हैं .ऐसा इसलिए कि यह इनके सार्वजनिक जीवन कि शुरूआत १९९१ में केन्द्रीय वित्त मंत्री के रूप में हुआ , इसमें यह लोगों को मालूम नहीं था कि प्रधान मंत्री कौन होगा , लेकिन यह सभी पहले से जानते थे कि "प्रधानमंत्री कोई भी होगा, मगर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ही होगे." ऐसा कयास और विश्वास क्यों देश को था ,यह बताने की जरूरत नहीं है ,सोवियत संघ का पतन ,भूमंडलीकरण , उदारवाद और बाजार को एक साथ मिला कर देखे , जिसमें मनमोहन को विश्व बैंक में कार्यकाल के तरीके को जाने, तब यह बताने कि आवश्यकता नहीं है कि इनके पीछे कि पृष्ठभूमि क्या रही है .
इतना ही नहीं ,मनमोहन को जानने का एक उदहारण काफी है ,वह यह कि अपनी सरक्षण कर्त्ता सोनिया गाँधी के चापलूसी में या कहिये कि उनकी कृपा बनी रहे इसके लिए अपने से कई गुणे छोटे शख्स के लिए कैसे साष्टांग दंडवत करते है ,उसका मिसाल इंडियन एक्सप्रेस कि वह तस्वीर है " जिसमें इनको प्रियंका गाँधी के बेटे को दोनों हाथ जोड़े प्रणाम की मुद्रा में दीखते है " यह घटना करीब दस साल पहले की है , जो बयां करती है "चारण प्रवृति " से यह बाहर नहीं हैं .
दरअसल मनमोहन सिंह सारी जिन्दगी नौकरी करते रहे है ,सेवा निवृति के बाद का जीवन कांग्रेस से सीधे जुड़ा, इसमें इनको अहसास हुआ कि नेहरू -गाँधी परिवार का वंदना करके सत्ता से अपने को जोड़ा रखा जा सकता है और इसी को उन्होंने अपना मूल सीढ़ी बनाया , जिसका नतीजा है कि वह आज देश के कल्याण के नाम पर ' भ्रष्टाचारियों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गए हैं"
मनमोहन सिंह वास्तव में निहायत शरीफ लेकिन अराजनीतिक प्राणी है ,तभी तो बार -बार यह कहना कि "उन्होंने अपनी तरफ से कोई लाभ नहीं लिया है ,जो कुछ भी हुआ वह राजनीतिक जरूरतों कि पूर्ति के लिए हुआ " इस बात में दम है और प्राय लोग विश्वास भी करते है लेकिन जिस तरह से "सत्ता" में बने रहने के लिए अपनी बैटन को सामने रख रहें हैं ,वह साफ परिलक्षित करता है किसी के इशारों में ही उन्होंने अपने विचार रखे है और जाँच हेतु कदम बढ़ाये हैं ,वह शख्स कौन है ,यह सभी जानते है मगर राजनीतिक क्षमता के अभाव में प्रतिपक्ष वह जन आन्दोलन खड़ी करने में लाचार हैं ,ऐसा इसलिए कि खुद राष्टीय जनतांत्रिक गठबन्धन का चेहरा पाक साफ नहीं है ,यहाँ भी कई दागदार चेहरे हैं "जो सिर्फ राजनीती के लिए राजनीती करने में विश्वास करते है ,जैसा कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने खुद के व्यावहार से परिचय दिया है , जो राजनीती का केवल एक भाग है अर्थात "किसी तरह सत्ता में बने रहो " यही राजनीती का अर्थ है .
बहरहाल , आज जो भी कुछ देश में हो रहा है ,उसके पीछे मनमोहन सिंह का विशेष योगदान नहीं है ,बल्कि इनके आधार को समझने के लिए आपको थोड़ी मगजमारी करनी होगो और यदि वह भी आप नहीं कर सकते तो हम आपको खुद बता देते हैंकि सिंह प्रधान मंत्री के पद पर तब तक बने रहेगें ,जबतक सोनिया जी की इच्छा होगी ,इस परिप्रेक्ष्य में थोडा पीछे जाएँ तब मालूम होगा कि "सत्ता" पर अपनी पकड मजबूत रखने के लिए कैसे -कैसे कदम बढ़ाये गए .
यहाँ दो दृष्टान्त का उल्लेख करना जरूरी है ,पहले यह कि जब महिला राष्टपति को लेकर पक्ष -विपक्ष में जवाब सवाल के बीच वामपंथियों ने जोर दिया कि महिला वर्ग से ही उक्त पद पर कांग्रेस अपना उम्मीदवार दे ,तब कांग्रेस ने या कहिये सोनिया जी के संकेत पर प्रतिभा पाटिल का नाम सामने आया , जब यह नाम पहली बार देश के लोगों को सुनने को मिला , तब काफी ताज्जुब और आश्चर्य कि स्थिति सार्वजनिक क्षेत्रों में थी ,क्यों कि इनसे कई गुणे स्थापित और चर्चित महिला नेत्री कांग्रेस के पास थी मगर इनके नाम की जगह पर अनजाने से नाम पर सहमती बनी . दूसरा यह कि प्रधान मंत्री के लिए नामों पर कांग्रेस बिचार कर रही थी तब मौजूदा प्रधान मंत्री से ज्यादा काबिल और सजग राजनीतिक पार्टी में मौजूद थे लेकिन इनकों नजरदांज करके मनमोहन सिंह को ही चुनने का मतलब आज की पैदा हुई हालातों से खुद को बचाने का उपक्रम करना भर है ,ऐसा इसलिए कि कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ,जो थोडा भी सार्वजनिक जीवन में सक्रीय रह कर उक्त पद हासिल करेगा वह कम से कम बचकानी बयान तो नहीं ही देगा ,जैसा कि मनमोहन सिंह ने खुद कहा कि "मुझे तो कुछ भी पत्ता नहीं "
प्रधान मंत्री के खुद की बात ने करीने से साफ कर दिया है कि संप्रग की वर्तमान सरकार सिर्फ सत्ता के लिए है ,जिसका केवल एक मात्र लक्ष्य अपने आका के राजनीतिक हितों का प्रबंधन करना है .
मन
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