Saturday, 23 July 2016

#comentry on indian political syastem

लोकतान्त्रिक व्यवस्था "खीझ" पैदा करने वाली सत्ता है ,लेकिन मुश्किल है कि इससे बेहतर कोई  आविष्कार भी तो नहीं हो सका  है दुनिया में अबतक ! 

# प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश में सक्रिय रूप से चुनावी समर में भाग लेने का मतलब है ,भाजपा के लिए सिरदर्द पैदा होना ! मौटे तौर पर भाजपा और कांग्रेस के वोट बैंक एक ही हैं ,फिर खाते -पीते -अघाते परिवारों के युवा समाज में राजनीती का अर्थ 'ग्लैमर' के साथ होने में सौभाग्य समझने की प्रवृति का होना है --
झारखण्ड में प्रशासन की कार्य पद्धति देखिये- कांग्रेस के विधायक देवेन्द्र कुमार सिंह के कथित माओवादी से बातचीत को लेकर उनपर दबिश पुलिस की  इतना बढ़ी कि वह राज्य सभा के चुनाव में वोट नहीं दे सके ,यह चुनाव ख़त्म क्या हुआ ,प्रशासन भी खामोश हो गया ,दूसरी तरफ ताला मरांडी के बेटे मुन्ना मरांडी पर दुष्कर्म के आरोप लगे और नाबालिग से शादी करने की बात हुई और प्रशासन के कच्छप चाल को देखिये , क्या यह सब सरकार के इशारे नहीं हैं ? 

कल  की ही बात है, देर रात घर पहुंचा ,तब बेटा ने चिंहुकते हुए बोला ,पापा -पापा , गुलु अंकल का फोन आया था , मैंने पूछा ,क्या बात है ,उसने कहा, आपसे ही जरूरी बात करने के लिए बोल रहे थे , बात बेसिक फोन पर करने के लिए कहे हैं । 
ठीक है , यह कहकर खाना वगैरह खा-पीकर मैं बिस्तर पर लेट गया , रात को वैसे भी मुझे नींद नहीं आती ,लेकिन कल कैसे झपकी आ गई ,पता ही नहीं चला , फिर अचानक रात दो बजे के करीब लैंड लाइन पर फोन की घंटी घनघना उठी ,इस बार बेटी ने फोन उठाया और मुझे आवाज दी -पापा गुलु पापा फोन है , अन्मयस्क मन से फोन का रिसीवर जैसे ही कान  से लगाया ,उधर से धीर-गंभीर आवाज आई -संजय तुम जल्दी से लखनऊ पहुंचो ,तुझसे जरूरी बात 'नेताजी' को करना है ,अरे हाँ अगर वहां नहीं पहुँच सके तो, बनारस आ जाओ ,यहाँ से लखनऊ साथ चलेंगे , मैंने पूछा ,क्या बात है भैया जी ,तो उन्होंने कहा कि 'तुम्हारी जरूरत है ,लाखों रुपए मिलेंगे और अगर  जीत गए ,तब तो पूछना ही क्या ?'
 यह सुनना था कि मैं समझ गया ,आगे गुलु भैया ने कहा कि झारखण्ड में क्या रख है ,यही आकर 'राजनैतिक रणनीतिक प्रचारात्मक भूमिका में आकर काम करो ,तुम्हारी पोस्ट को ध्यान से हमलोग पढ़ते हैं ,नेताजी तुमसे प्रभावित हैं ,मिलना चाहते हैं ' मैंने जवाब दिया ,सोचकर बताएंगे । 
 वैसे मित्रों आपको बता दूँ कि गुलु भैया मेरे फुफेरा भाई हैं अर्थात मेरी बुआ बनारस की है और भाई  एक खास नेता के विशेष सचिव हैं । 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ताबड़ -तोड़ विदेश दौरे का अर्थ है ,दुनिया के देशों को अपने नजरिए से आंक लेना ,ताकि भारत जब भविष्य में अपने राष्टीय हितों को साधने के लिए कूटनीतिक क्षेत्रों में कठोर कदम उठाये ,तब दुश्मनों की तायदाद कम और मित्रों की संख्या अधिक हो ! 

" किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार,,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ,
रिश्ता दिल से दिल के एतबार का , 
हमी से जिन्दा है नाम प्यार का , 
मरकर भी याद आएंगें ,
किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे ,
जीना इसी का नाम है " 

जिस नेता में "मौलिकता" का अभाव हो, वह और उसका दल थोड़े समय के लिए लोगों को दिग्भ्रमित कर सकता है ,लेकिन स्थायित्व का वह मोहताज ही रहेंगे  ! 

मुझे भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी में जर्मन एकीकरण के नायक "बिस्मार्क" का दिग्दर्शन होता है ,यह काफी कुछ वैसा ही है ,जैसे कांग्रेसियों को  प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी के दर्शन होते हैं ! 

जाकिर नाईक के विरूद्ध उनके  विचारों के अभिव्यक्तिकरण को लेकर भारतीय संविधान /कानून विशेष करवाई करने में प्रभावी नहीं हो सकता ,क्योंकि वह सीधे आतंकी गतिविधियों में सलग्न नहीं है ,बेहतर होता उनकी आय के स्रोतों एवं उसकी उपयोगिता को विधिक तरीके से जाँच किया जाये ! 

आपको याद है ,दस वर्ष पूर्व रूस में हिन्दू धर्म ग्रन्थ "गीता" को प्रतिबंधित कर दिया गया था सिर्फ इस आधार पर कि उसमे श्री कृष्ण के मुख से अधर्मियों को हिंसा के जरिये मार् डालने की बात थी अर्थात सन्दर्भ से हट कर रूसी सरकार ने भगवान श्रीकृष्ण को आतंकी एवं उनके विचारों को हिंसक मान लिया गया था ,अतएव ,जाकिर नाईक के भाषणों को भी सन्दर्भ से काटकर अध्ययन करेंगे ,तब तो वह भी दुनिया के सबसे बड़ा आतंकी दिखेगा ! 

आजकल दुनिया काफी असहिष्णु वातारवरण  में है , आपकी बात की कौन सी शब्द बखेड़ा कर देगा कहना मुश्किल है ,इसकी वजह शिक्षा में है ,जहाँ "वस्तुपरक" पढाई में सन्दर्भ के लिए कौई  जगह नहीं होती और लोग मानसिक दिवालियेपन के शिकार होने के लिए अभिशप्त हैं ! 

  उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मुश्किल यह है कि उसके पास मुलायम सिंह यादव/सपा और मायावती/बसपा के जोड़ के व्यापक जनाधार वाले नेता का घोर अभाव है ! 

# अच्छा होता ,कांग्रेस प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की जगह गुजरात में "लांच" करती ! अर्थात थोड़ा  और इंतजार --

उत्तर प्रदेश के मौजूदा स्थिति में शख्त शासक की आवश्यकता है और इसमें आजमाए गए नेताओं  में राजनाथ सिंह/भाजपा के अतिरिक्त मायावती /बसपा ही उपयुक्त प्रतीत हैं !

राजनीती में हैं तो किसी नेता अर्थात सांसद /विधायक/ मंत्री के चमचे बन जाएँ और अगर यह भी न हो सके तब, अरविन्द केजरीवाल जैसे पागल बन जाएँ ,मतलब अपने कार्यों के प्रति जीवटता का प्रदर्शन करें, सफलता आपके क़दमों को चूमेगी ! 

क्या यह सच है कि झारखण्ड के मुख्य मंत्री रघुबर दास से  राज्य के वरीय/ कनीय भाजपाई नेता/कार्यकर्ता मिलने - जुलने में कतराने लगे हैं अर्थात अपनी बात रखने से इसलिए खौफ खाते  हैं कि पत्ता नहीं वह कब ,किसे "बेइज्जत " कर दें !  अगर ऐसा तब तो ,यह गंभीर बात है । 

#शीला दीक्षित/ कांग्रेस लोगों को बेवकूफ बनाने एवं लोगों को तिकड़म से मोहने की कला को नहीं छोड़ती ,उसका  प्रदेश में उत्थान मुश्किल है ,देखिये अब शीला दीक्षित को राज्य के मुख्य बनाने का 'लालीपाप '  परोसने जा रही है ,वह दिल्ली की मुख्य मंत्री रह चुकी है और अब वहां से अपना वोटर लिस्ट से नाम हटवा कर यूपी के मतदाता सूची में जुडवाएंगी ! 
यह आम लोगों को बेवकूफ मानने की ही मानसिकता  है ,पहली बार मनमोहन सिंह को असम से राज्य सभा में कांग्रेस ने लाया था , उच्च सदन में तब 'राज्यवासी' को ही सदस्यता दिए जाने के प्रावधान थे , आपत्ति आने पर  की 'राजसत्ता' ने पूरी बाध्यकारी बंधन को ही हटा दिया ,तब से उच्च सदन राजनीती का खिलौना बनकर भर रह गया है । अर्थात नैतिक पतन --

# नरेंद्र मोदी/ देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी राजविज्ञानी हैं उनके चमचे नहीं ,तभी तो उत्तराखंड के बाद उच्च्तम न्यायालय ने अरूणाचल प्रदेश  में केंद्रीय सरकार को जबरदस्त झटका दिया है ! 

# ठुल्ला/ अरविन्द केजरीवाल के कहे शब्द "ठुल्ला" के अर्थ दिल्ली उच्च अदालत नहीं समझ पाई अर्थात  तलाश करने में विफल हो गई ,सो उसने केजरीवाल को उसके मतलब समझाने के लिए बुलाया है । है न दिलचस्प स्थिति ,
अदालत को अव्वल तो उसके  अर्थ  जानने के लिए 'भाषाविद'  का सहयोग लेना चाहिए था ,लेकिन खैर -उक्त शब्द से इसके अर्थ इस रूप में प्रतिध्वनित होते हैं -निककमा /विमूढ़ ! 

# सर्वोच्च न्यायालय / छह माह बाद अरूणाचल प्रदेश  के मामले में फैसले आने का क्या तुक है ? क्या अदालत उक्त अवधियों में घटित अर्थात समय को वापस ला  सकता है ! इससे से बेहतर उत्तराखंड उच्च अदालत ने त्वरित कार्यवाही पूरी करके के संविधान/राज्य/ कानून/ व्यवस्थापिका/लोगों को इंसाफ उपलब्ध कराने  में अप्रतिम कदम उठाकर योगदान दिए 

narendramodi@ लगता है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना 'डिजिटल इंडिया'  दम तोड़ने के कगार पर है ,पलामू एक बेहतर उदाहरण है ,जहाँ बीएसएनएल की सेवा २४ घंटे क्या ,हफ्ते /माह भर ठप्प रही है ! 

#कूटनीति / संयुक्त राज्य अमेरिका पहली बार पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए 'कश्मीर' को भारत का आंतरिक मामला करार दिया है । इससे साफ है कि विश्व राजनय में गुणात्मक परिवर्तन आ गए हैं ! 

#प्रियंका गांधी / प्रियंका गांधी का सार्वजनिक जीवन अर्थात राजनैतिक क्षेत्र में आगाज हो ,जीत के साथ ,इसलिए यूपी के आसन्न विधान सभा में इन्हें अपने ग्लैमरपूर्ण अर्थात चमक-दमक/लटके-झटके को बचा कर रखने की जरूरत है ! कांग्रेस का नेतृत्व इसे जितना जल्द समझ जाये ,उतना ,उसके भविष्य के लिए बेहतर है । 

#प्रशांत किशोर/ पहले मोदी ,फिर नीतीश के साथ चुनावी प्रचारात्मक रणनीतिक में कामयाबी पाकर वह कांग्रेस के साथ यूपी/पंजाब में फंस गए हैं । अपने "ब्रांड'  के उपयोगिता उनकी सही थी ,तब क्यों नहीं जदयू को राजद से अधिक सीट बिहार में दिलवा सके !  किशोर तो केवल नीतीश कुमार के लिए चुनावी ब्रांडिग कर रहे थे ,इसमें लालू/राजद तो शामिल नहीं थे ,फिर --ब्रांडिंग तभी चमकती  है जब पार्टी/नेता के प्रति लोगों में क्रेज/आकर्षण रहे ! 

#झारखण्ड/ राज्य में बाबूलाल मरांडी धीर-गंभीर नेता हैं ,जब इन्होने विगत राज्य सभा के चुनाव में हुए अनैतिक हरकत होने की बात मुख्य मंत्री रघुबर दास  और इनके राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के साथ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता पर चस्पा  की है ,तब यह गंभीर बात है । मामला सीडी में कैद टेप का है ,जिसका तकनीकी जाँच के बाद ही खुलासा हो पायेगा ,लेकिन दास कम से कम यह बताएं  कि मतदान के चौबीस घंटे पूर्व कांग्रेस विधायक निर्मला देवी के आवास पर क्यों और किसलिए गए थे ? 

#झारखण्ड/ क्या यह सच नहीं है कि झाविमो के नवीन जायसवाल और अलोक चौरसिया को " वैश्य-वैश्य " भाईचारे के चारा फेंक कर इनके जरिये अन्य चार विधायकों को तोडा गया था ? काफी कुछ कांग्रेस के विधायक निर्मला देवी को उनके पति योगेन्द्र साव के जरिये साधने की कोशिश राज्य सभा के चुनाव में उसी तर्ज़ पर की गई थी ! 

#प्यार/ मुझे आज दो व्यक्तियों  की याद बेहद आ रही है ,इनमे एक का नाम भानु प्रताप सिंह और दूसरे का राजेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ़ खोखन सिंह हैं ,जिसे मैं उनको चाचा कहा करता था । संयोग से दोनों अब इस दुनिया  में नहीं हैं ।  
 यह याद इसलिए महत्वपूर्ण है कि मेरे कदम डालटनगंज कचहरी में रखते ही इनकी दीवानगी मेरे प्रति देखते बनती थी , जिस दिन मैं कचहरी नहीं आ पता था ,उस दिन दोनों चाचा बिन पानी के मछली समान तड़पते थे ,जिसके प्रत्यक्षदर्शी नन्दलाल सिंह ,सुबोध सिन्हा सूर्यपत सिंह सहित कई वकील ,ताईद ,मुंशी के अतिरिक्त होटलों के मालिक एवं इनके कर्मचारी रहे हैं , साथ मैं कचहरी में बैठकबाजी करने वाले सामाजिक/राजनैतिक क्रियाविद भी इस परस्पर लगाव के साक्षी हैं । 
 उनके प्यार इस मायने में मेरे प्रति था कि जबतक मुझे दोनों भरपेट मिठाइयां नहीं खिला  लेते ,उनको चैन नहीं मिलता और घर/ कचहरी में नहीं मिल पाता ,तब शहर में खोजकर मुझे पंचमुहान स्थित नवप्रभात होटल में ले जाकर खिलते-पिलाते । इन दोनों में प्रतियोगिता इस रूप में रहती थी कि कौन संजय को ज्यादा मानता  अर्थात प्यार करता हैं । 
 दोनों दिवंगत चाचा मुझे नहीं पाने पर लोगों से मेरे बारे में पूछते रहते कि 'संजय आइल हव ' एक बार सूर्यपत सिंह ने भानु चाचा को कहे कि ' आप संजय को ही क्यों खोजते हैं ,जवाब था ,लइका हई ,जबकि उस वक्त भी मैं newsman था और आज भी newsman हूँ ,मगर उनके समाचार मेरे हाथ से कभी नहीं प्रसारित हुए और न ही उन्होंने कभी किसी समाचार के लिए जोर/दबाव दिए ,ऐसा इसलिए बता रहा हूँ कि दोनों अलग-अलग क्षेत्रों के राजनितिक प्राणी थे ,मगर मुझ पर इतना स्नेह वर्षा करते थे कि  क्या बताऊँ -भानु चाचा रोज आने वाले थे लेकिन खोखन चाचा सफ्ताह में दो -तिन बार कचहरी में आते थे और इनकी नजर में मैं क्या था ,इसे मैं आज तक नहीं जान सका हूँ ,दोनों को मेरा विनम्र श्रद्धांजलि --

#kashmir / मौजूदा काश्मीर के हालात उतने बिगड़े नहीं हैं ,जैसा कि पिछली सदी के अस्सी/नब्बे दशक में थी । आपको याद करा दूँ कि उस दौर में एक साथ पंजाब और कश्मीर में इतना जबरदस्त मारकाट /मुठभेड़ /विस्फोट विदेशी शक्तियों से प्रायोजित आतंक की छाया विधमान थी कि उसके प्रभाव में आम जन क्या ,विशिष्ट लोग क्या ,मिडिया भी दहशत के साये में दब्बूपन की शिकार हो गई थी और इसका उदाहरण है कि आतंकी को आतंकी नहीं ,बल्कि जंगजू और खाड़कू शब्द से विभूषित करने के लिए प्रेस/ अखबार अर्थात कहें मीडिया अभिशप्त थे तथा केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी ।  

#प्रियंकागांधी / उत्तर प्रदेश में आसन्न विधान सभा के चुनाव के पहले राहुल गांधी जगह प्रियंका गांधी के होर्डिंग/पोस्टर/बैनर/कटआउट के प्रदर्शन से क्या कांग्रेस खो चुकी प्रतिष्ठा / शक्ति में  कुछेक इजाफा कर पायेगी ! 

#कांग्रेस/ इंदिरा की पोती और राजीव की  बेटी प्रियंका गांधी को बचा कर सोनिया गांधी को रखने की जरूरत है ,इसका आगाज जीत के साथ होना चाहिए और गुजरात चुनाव में प्रियंका को पूरी शक्ति से कांग्रेस को झोंक देने  लिए अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए ,फिर देखिये राष्टीय राजनीती का पहिया कैसे तेजी से घूमता है है ! 

 #BJP /  भाजपा की क्या बदतमीजी है ? सुना आपने भाजपा  प्रादेशिक उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बसपा प्रमुख मायावती को "वैश्या" से तुलना की है ! 

#भाजपा/  भाजपा धुर दक्षिणपंथी तत्वों की सामूहिक पार्टी है ,इसमें "मंहगाई"  दर में वृद्धि होना स्वभाविक है ,याद है आपको बाजपेयी इरा में किरोसिन तेल के दामों में इजाफा एकाएक तीन रूपये से अठ्ठारह रूपये प्रति लीटर कर दिया गया था । 

" मेरे काशिद जब तू पहुंचे , 
मेरे दिलदार के आगे ,
अदब से सर झुकाना ,
हुस्न के सरकार के आगे ,
जुबां से गर कह न पाये तो , 
आँखों से बयां करना ,
मेरे गम का हरेक किस्सा ,
मेरे गमखार के आगे " 

#झारखण्ड / रघुबर राज की खुशकिस्मती है कि बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन दो छोर पर हैं और कहीं भाजपा के दुर्योग से दोनों में 'राजनैतिक मतैक्य' स्थापित हो गया ,तब राज्य की ईंट से ईंट बजा देने में इन दोनों का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ! 

दोनों भाई -बहन अपने लॉन में आपस में बॉलीवाल खेल रहे थे ,तभी बॉल छिटक कर वहां पहुंचा ,जहाँ मैं अपने मित्र के साथ गप्पे लड़ा रहा था और अचानक पास आई गेंद को मैंने बगैर सोचे-समझे एक किक जोरदार तरीके से जमा दिया ,जो सामने आती बहन के छाती में लग गया और वह भी इस तरह से कैच पकड़ी ,जैसे वह गोलकीपर सा चैम्पियन हो । 
 इस अप्रत्याशित घटना से मेरा दोस्त अकबका गया ,कहने लगा 'तू मुझे मरवा दिया ,नौकरी गई सो अलग ,मैं बर्बाद हो गया ' और मैं अवाक् सा रहने को विवश गया ,बीच बॉल लिए बहन सधे कदमों से धीरे-धीरे मेरे पास पहुंची और धीमा आवाज में यह बोलते हुए तेज़ी से घूम गई 'थैंक्स' । 
 यह सुनना था कि मेरे यार के चेहरे पर मुस्कराहट छा  गई और लंबे-लंबे सांस लेते हुए अपने काबिलियत के किस्से सुनाने लगा । 
  यह बात उस दौर की है ,जब हम तीन बिहारी आजीविका अर्जित करने के लिए दिल्ली में संघर्ष कर रहे थे । इस दरम्यान एक स्वैच्छिक संस्थान लिए एक स्टेनोग्राफर कम टाइपिस्ट लिए वेंकेंसी अखबार में निकली ,सो हम तीनों ने उसमे आवेदन डाल दिए । नियत दिन और नियत समय में  कुल छियालीस प्रतियोगियों ने उसमे शिरकत की ,जिसमे मैं फेल कर गया ,लेकिन उसमे उतने प्रतियोगियों में  मेरे दोस्त का चयन हो गया । यह अलग बात है कि बाद में मेरा चयन एक  वर्ल्ड न्यूज एजेंसी के 'सब एडिटर'  के रूप में हुआ । 
  बदलते समय के साथ मेरे मित्र की प्रतिनियुक्ति उस संस्थान से देश के बड़े राजनैतिक हस्ती के आवास पर हुई ,जहाँ मैं अक्सर उससे समय काटने जाया करता था । विशेष बाद में --

तैयार हो जाये ,वो मित्रगण ,जिन्होंने मेरे पोस्ट उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव   ( २०१२) में अध्ययन कर चुके  हों और अगर जिन दोस्तों को मेरे पोस्ट में दिलचस्पी है ,वे २०१२ पोस्ट पढ़ सकते हैं ,फिर बातें होंगी --

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