Thursday, 16 June 2016

commentry on indian political system

रसोई गैस / कल की बात है ,उनने दोपहर अचानक कहा कि रसोई गैस के बर्नर का पाइप टूट गया है ,इसे आज ही बदल दें या मरम्मत करा लें , चूल्हा बीस साल पुराना  बलु लाइन का था ,लेकिन था चकाचक ,सो मैंने बर्नर की तलाश में शहर के प्राय हर दुकान को तलाशा ,दूसरे बर्नर  के लिए ,उसे न मिलना था और न ही मिला ,फिर देशी इंजिनियर अर्थात ठठेरा के पास दूसरा बर्नर के नीचे वाले पुर्जे को ठीक कराकर उनको सौंप दिया, मतलब यह कि अगर आप ब्रांडेड कंपनियों के वस्तु खरीद रहे हों ,तब लगे हाथ दुकानदार से उसके कल पुर्जे/पार्ट्स वगैरह भी खरीद लें , क्योंकि आजकल बाजार का फंडा यह है कि कंपनियां खास अवधि के बाद उक्त माल का उत्पादन बंद कर देती है और जरूरत के वक्त वह आपको मिलती नहीं !  

कांग्रेस का कैसे उत्थान होगा ? झारखण्ड को एक उदहारण माने, तब जाहिर होगा कि कि 'राजनीती के प्रति उसकी स्पष्ट दिशा अर्थात नीति का आभाव है ' राज्य सभा के चुनाव होना है और इसका गठबंधन राजद, जदयू और झाविमो के साथ है ,लेकिन यह यहाँ झामुमो के उम्मीदवार को समर्थन कर रही है ,क्या तटस्थ / बहिष्कार बेहत्तर विकल्प नहीं होता कांग्रेस के लिए ! सीधी सी बात है , चुनाव में विधायकों के 'लार ' टपकने और भाजपा को नीचा दिखाने की प्रवृति ने कांग्रेस को जनाधार से वंचित करने में अहम भूमिका निभाई है । 

क्या वाकई राहुल गांधी चालू माह में सोनिया गांधी के स्थान पर कांग्रेसध्यक्ष होने जा रहे हैं ? 

राहुल गांधी कांग्रेस प्रमुख के पद पर विराजते हैं,तब तय मानिये 'तदर्थ नीतियों' की बाढ़ आ जाएगी , ऐसी स्थिति में कैसे पार्टी का उत्थान होगा ? मुख्य समस्या कांग्रेस की राजनीती में यही है !

राजनैतिक प्रतिदन्दिता में भाजपा अर्थात नरेंद्र मोदी की दिलों इच्छा है कि अर्थात नारा है कि "कांग्रेस मुक्त भारत " इसके जवाब में कांग्रेस नेतृत्व को चाहिए कि वह अपने अतीत में जाये और नए तेवर के साथ रचनात्मक संघर्ष में कूद जाये ,जिसमे " संपन्न भारत, सबल देश " नारे में अन्तर्निहित अवधारणा को आत्मसात करे । 

झारखण्ड/कांग्रेस के प्रोमिनेन्ट लीडर योगेन्द्र साव (पूर्व विधायक) को हजारीबाग प्रशासन ने जिला बदर कर दिया है और प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व खामोश है ,  ऐसे में कैसे पार्टी अपने खोये जनाधार को प्राप्त कर पायेगी ?  

अपने समय में स्वपन सुंदरी के रूप में चर्चित सिने तारिका हेमामालिनी को देखिये ,जब मथुरा कांड में कल  दो पुलिसकर्मियों सहित चौबीस लोग मारे जा रहे थे ,तब वह अपने बदन की नुमाइश का फिल्मांकन किये फिल्म को यु ट्यूब में उसे लोड करने में मस्त थी ! मौजूदा काल में वह मथुरा की भाजपाई सांसद है । 

लोकतंत्र की खूबसूरती और बदसूरती मूल रूप से यही है कि जाहिल/विद्वान तथा चरित्रवान/चरित्रहीन समान रूप से प्रतिस्थापित होने के अवसर पा जाते हैं ! 

आप माने या न माने ,नरेंद्र मोदी के साथ एक बात जबर्दस्त रेखांकित हो गई है ,और यह है उनके विदेशी दौरे के कीर्तिमान , इसके पहले के प्रधान मंत्रियों के परराष्ट् गमन कभी चर्चा के विषय नहीं बने अर्थात मोदी के गूढ़ कूटनीतिक कदमों के रहस्य क्या हो सकते हैं ,जरा सोचिये दोस्तों - पूंजी निवेश/रोजगार तो  कोई भी बता सकता है , लेकिन मकसद इससे इतर भी है, उसे समझने की कोशिश करें ! 

क्या आपको नहीं लगता कि देश में राजनीती का अर्थ " मक्कारी " में तब्दील हो गया है ? 

मथुरा कांड और मथुरा जैसी स्थितियां पुरे देश के हिस्सों में हैं , सस्ती राजनैतिक लोकप्रियता के आड़ में कैसे कैसे गोरखधंधे चल रहे है , इससे स्थानीय नेताओं से ज्यादा कौन समझ सकता है ! 

यह समाचार कथा, मधु कोड़ा के मुख्य मंत्रित्व काल की है , कोड़ा को मेदिनीनगर आना था ,और वह निर्धारित दिन को टाउन हॉल में कार्यक्रम को उद्घाटन करके चले भी गए ,मगर कुछ ऐसा उस दरम्यान घटा कि मत पूछिए -
कोड़ा काल भ्रष्ट संदेहों को  लेकर उन दिनों देश भर में चर्चित था , प्रेस से बचने की उनकी हरचंद कोशिश रहती , सो डालटनगंज के स्थानीय पत्रकारों ने तय किया कि उन्हें घेरा  जाये । 
कोड़ा, समारोह  को संबोधित किये ,फिर कुर्सी पर पांच मिनट बैठे, इसके बाद नजरे चुराते हुए खिसकने लगे , जिसे संवाददाताओं ने ताड लिया  , फिर खबरनवीसों की  टोली  उन्हें पकड़ने के  लिए पिल पड़ी । इस दौरान तेज़ गति से चलते हुए टाइम्स ऑफ़ इंडिया के रिपोर्टर फैयाज अहमद ने उनको आवाज दी - सीएम साहब ,सीएम साहेब ,दो मिनट प्रेस के लिए भी समय दें , चलते चलते कोड़ा ने कहा कि सर्किट हाउस में हम बात करेंगे , आप सभी वहीँ चलिए , इस मौके पर मैं भी मौजूद था ,मैंने कहा -कोड़ा जी ,अहमद साहेब सिर्फ पत्रकार ही नहीं हैं बल्कि प्रोफ़ेसर भी हैं ,जरा मिल लीजिए ,फिर ऐसा मौका नहीं मिलेगा ! 
    " हाँ , हाँ वही तो मैं कह रहा हूँ ,सर्किट हॉउस में प्रेस से बातचीत हो जाएगी " यह सुनना  था कि तपाक से मेरे मुंह से निकला -- " शर्म नहीं आती झूठ बोलते , मिनट टू मिनट में कहाँ ठहराव है सर्किट हॉउस , मुख्य मंत्री की कुर्सी को पैतृक सम्पति समझ रखा है क्या ? 
 तबतक कोड़ा अपनी सवारी में तेजी से चलते हुए बैठ  चुके थे , जहाँ से चियांकी हवाई अड्डे से उड़न खटोले में बैठकर रांची के लिए फुर्र हो गए । 
 बाद में इधर पत्रकारों में यही खुसुर-पुसुर होती रही ,जाने कैसे -कैसे मुख्य मंत्री हो जाते हैं ! 
 
न्यायविदों से एक सवाल -- आपराधिक मामले में राज्य अर्थात पुलिस/ सीबीआई वगैरह जाँच एजेंसी की भूमिका में रहती है , क्या कभी अदालतों ने विचार किया है कि अनुसन्धान अफसर के  आरोप पत्र में अभियुक्तों के हित में बेतरतीब, अतार्किक ,साक्ष्य जैसे प्रक्रिया को कमजोर जान बूझकर रखे जाते है ! ताकि इसका लाभ अवांछित तत्व को मिल सके ! कहने का मतलब कि राज्य/सरकार  की बातों  पर ही अदालत प्राथमिकता के साथ क्यों गौर करती है ? 

लोकतान्त्रिक सत्ता और मुख्य मंत्री के आवास पर सन्नाटा ! यह क्या जाहिर करता है ? जी हाँ, झारखण्ड़ के मुख्य मंत्री रघुबर दास के रांची में कांके रोड स्थित बंगले का है यह दृश्य ........ 

झारखण्ड/ झाविमो के छ विधायकों के नाम विधान सभा की सूची में भाजपाई के रूप में दर्ज़ है ,तो चुनाव आयोग में इनके उल्लेख झाविमो के विधायक के तौर पर उल्लेखित है ,जाहिर है कि आयोग निर्वाचित होने के बाद भर सिर्फ एक मरतबे ही सूची जारी करती है ,तब अचरज कैसा ? बदली स्थिति में झाविमो के उक्त छ विधायकों ने दल-बदल कर भाजपा में शामिल हो गए ,जिसकी पुष्टि विधान सभाध्यक्ष ने की है ,फिर इसमें उच्च न्यायालय क्या कर सकता है ,हकीकत में दोनों एजेंसियों की सूची सही है । झाविमो की दाखिल याचिका पर एक नजर.... 

उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने ठीक ही कहा है कि कार्यपालिका अर्थात सरकार अर्थात प्रशासन अपने क्षेत्राधिकार में आने वाली क्रिया- विधियों को खुद तटस्थ तरीके से क्रियांविंत करे, तब अदालत को दखल देने के अवसर नहीं मिल पाएंगे । लोग आते हैं तभी न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है । बात तो सही है ! 

झारखण्ड/ रघुबर दास के मुख्य मंत्री बनने के पूर्व और पद संभालने के बाद के व्यवहारों में क्या फर्क आपको नजर नहीं आता !

किस्सा कुर्सी का/आंधी फिल्म का नाम आपने सुना होगा ,कैसे उस ज़माने में कांग्रेसी तत्वों ने इन फिल्मों को लेकर नाच किया था ,काफी कुछ ऐसा ही है फिलवक्त के निर्मित फिल्म " उड़ता पंजाब " का मसला ,जिसमे ड्रग में डूबे पंजाब की तस्वीरों का चित्रण है और संयोग से सूबे में अकाली/भाजपा गठबंधन की सत्ता है । सोचिये--इस वितण्डा की वजह क्या हो सकती है ? 

कूटनीति/अमेरिका के साथ भारत की होती गलबहियां से ज्यादा खुश फहम होने की जरूरत नहीं है ,उसके राष्टहित बदली विश्व राजनय से उपजी स्थितियों का प्रतिफल है । कभी सोचा है ,इस अमेरिका ने लोकतान्त्रिक भारत को नजर अंदाज करके आधी शताब्दी तक पाकिस्तान को गले लगाए रखा था और अब पाक की उपयोगिता उसके के लिए समाप्त प्राय ; है ! 

कूटनीति / भारत ने जब १९९८ में दूसरी बार परमाणविक परीक्षण किया था ,तब दुनिया में काफी शोर हुए थे ,इस गलत फहमी को दूर करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज ने कहा था - भारत का दुश्मन पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन  है , क्या आज की अंतर्राष्टीय राजनीती में यह सच साबित होती नहीं प्रतीत होती ! 

झारखण्ड/ सरकारी हॉस्पिटल में इन दिनों डकैती हो रही है , मुफ्त में दवा तो मिलती नहीं लेकिन डॉक्टर मामूली झख्म में चार -पांच सौ रूपये की दवा लिखने से हिचकते नहीं ! मानो वह खुद दवा कंपनियों के एजेंट बन गए हों । ऐसा ही एक मसला आज मुझे उस वक्त देखने को मिला ,जब अचानक मेदिनीनगर सदर अस्पताल में कदम रखा तब मालूम हुआ कि पौने दस अपराह्न तक डॉक्टर अपने सीट पर नहीं बैठे थे और उनके क्लिनिक में मरीज इनके इंतजार में जहाँ-तहां खड़े-बैठे हैं ,तभी सिविल सर्जन को मैंने फोन से उनके अनुपस्थिति की जानकारी दी ,तब वह बोले कि ' देखता हूँ ,डॉक्टर क्यों नहीं बैठा है । ' खैर, किसी तरह चिकित्सक पहुंचे ,फिर दनादन पर्चियों में  बाहरी औषधियों के नाम लिखने लगे ,यह टेबलेट अस्पताल में मिल जायेगा ,बाकि बाजार से खरीद लें , उत्सुकतावश मैंने एक लड़के से पर्ची लेकर बाहर के दुकान में दवाइयों के दाम पूछा ,तो मालूम हुआ कि यह चार सौ पच्च्पन रूपये का है ,जबकि लड़की को हल्का जांघ में दाने निकले थे ,तो सरसरी तौर पर गर्मी के प्रभाव से प्रभावित प्रतीत था । यह कमाल काले रंग के डॉक्टर ने किया था ,जिसे पहचानने में मुझे हुआ । लाख का वेतन फिर भी काम में संजीदगी नहीं ,यह है सरकारी सेवा का स्वरूप --  

केंद्रीय मंत्री वेंकट नायडू ने कुछेक दिन पहले नरेंद्र मोदी को ईश्वर का विशेष तोहफा बताया था ,जिसे भारत को किस्मत से मिल गया है । इससे आपके जेहन में क्या तस्वीर उभरती है ? 

बिहार/ शासन क्या होता है ,यह तो देशवाशियों को इंटरमीडियट के नतीजे के बाद हुई सख्त कार्रवाई से पत्ता च ही गया होगा ! 

कोलिजियम व्यवस्था उस काल में न्यायपालिका में साकार हुई थी ,जब  लुंज-पुंज अर्थात मिली-जूली सरकार थी अर्थात १९९३ में ,जिसके कार्यपालिका के मुखिया पीवी नरसिंह राव थे ,अब सोचे जरा --

'डियर' शब्द को लेकर कोहराम मचाने वाली स्मृति जुबैर ईरानी पर यह कहावत  एकदम सटीक बैठती है -चोर के दाढ़ी में तिनका , बिहार के शिक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में उक्त शब्द का प्रयुक्त करके उनको अपमानित नहीं किया ,बल्कि 'अपनत्व' का इजहार किया है , यह ईरानी को नहीं भूलना चाहिए कि वह  एक देश के सार्वजनिक क्षेत्र के गंभीर पद पर बैठी है ,जिसे सभी जानते हैं कि यह नरेंद्र मोदी की मेहरबानी से मानव संसाधन मंत्री हैं ,तो क्या सिर्फ मोदी ही इनको डियर कहने के लिए अधिकृत हैं या उनके शौहर या कोई तीसरा भी  ,इस मुद्दे को महिला की आड़ में स्मृति को बात का बतगंड बनाने से  बाज  आना चाहिए । 

कूटनीति/ भारत और चीन के दौत्य रिश्ते में जमीन -आसमान का फर्क है , रणनीतिक दृष्टि से भारत के समक्ष चीन कहीं नहीं टिकता है ,उसके अपने सारे पड़ोसियों से अनबन खास रूप से भारत के लिए मुफीद है ,लेकिन भारत के साथ केवल पाकिस्तान ही तनातनी में है । 

बचपन मेरा लातेहार में बीता है , दोस्तों के साथ खेलते हुए मेरे मुंह से सिर्फ एक मित्र के  लिए 'डियर' शब्द मेरे जिह्वा से निकला था ,जो बार- बार मिलने के बाद उसके लिए ही संबोधित होता था ,उसका नाम अजय कुमार अग्रवाल है ,जिसे प्यार से हम 'आजु' कहते थे , मित्र मण्डली में यह होड़ रहती थी कि संजय हम सभी को भी डियर शब्द से पुकारे ,लेकिन ऐसा नहीं हो पाता था , कालांतर में प्रियंका ने मुझे डियर कहा ,मैंने नहीं ,अब मत पूछिए कि प्रियंका कौन है , अगर आप जानना ही चाहते हैं ,तब नियमित रूप से मेरे पोस्ट को पढ़ा करें ,आप जान जायेंगे , इधर एक और के लिए मुझसे डियर शब्द अनायास उच्चरित हो गया ,जानते हैं आप इसका उत्तर में मुझे रूखा जवाब मिला ,इसे आप क्या कहेंगे ? 

क्या मजाक है ? सुना आपने , नरेंद्र मोदी ने इलाहबाद में कहा कि -विकास देखना हो तो झारखण्ड चले जाइये ,हद हो गई ,इधर मुख्य मंत्री रघुबर दास ने घोषणा भी कर दिया कि राज्य में रिश्वतखोरी/भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है ! क्या देश में डॉ गोयबल्स का पुनर्जन्म हो गया है  दोस्तों  ! मेदिनीनगर -रांची पथ के १६५ किमी सड़क का ही जरा मुआयना कर लें ,विकास की क्या गति है ,पत्ता चल जायेगा ! 

कभी देश की राजनीती में लालू प्रसाद यादव 'हल्की /सतही बातों  को गंभीर और गंभीर मुद्दों को हल्का ' करने के विशेषज्ञ माने जाते थे ,लेकिन अब बदली स्थिति में इस मानसिकता के अनेकों शख्स पैदा हो गए हैं ,जिनको यथार्थ परक राजनीती से कोई लगाव नहीं है ,जरा अपने आस-पास सक्रीय राजनीतिज्ञों से पूछिए कि ' आप राजनैतिक क्षेत्र में क्यों हैं ? जवाब सुनिए और उनके क्रिया-कलाप देखिये ,वास्तविकता का पता चल जायेगा ! 

हुड्डा सरकार (हरियाणा ) से ज्यादा अबतक विज्ञापित रकम किसी ने खर्च नहीं किया , उसके क्या हश्र विधान सभा के चुनाव में हुए ,उसे आपने देख लिया , अब  संप्रगनीत सरकार के चमक-दमक पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है ,तो क्या इसका लाभ भाजपा को भविष्य के चुनावों में मिल पायेगा ?

कूटनीति/दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देशों में भारत और अमेरिका शुमार है ,फिर अमेरिका ,भारत की उपेक्षा करके कैसे आधी शताब्दी तक चीन को तरजीह देता रहा ! परिवर्तित विश्व राजनय किस ओर इशारा करता है ? हड़बड़ी में कहीं मोदी सरकार "राष्ट हित" को नजर अंदाज न कर दे ! राष्टहित ही वह स्थायी तत्व हैं ,जो किसी राष्ट/राज्य के वैदेशिक मामले में नीति का निर्धारण करने अपूर्व योगदान  देते हैं और यह राष्टहित क्या है ,इसे पहचानने की कला विरलों में ही होती है ,इतिहास देखिये -पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रखर /अधुनातन राजनेता भी चीन से मात खा गए ! 

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