Thursday, 28 April 2016

commentry on political system


भारतीय कूटनीति में अब गुणात्मक बदलाव के संकेत हैं अर्थात जैसा को तैसा के तर्ज़ पर चीनी उईगर मुस्लिम नेता को दिया वीसा ,तो पाक के प्रति अचानक लचीले रूख के अवलंबन से अब तेज़ कूटनीति के ही आसार दिखेंगे और इसके फलाफल भी तेज़ी से घटित होंगे ,इसके लिए भारत लाभ-हानि दोनों को झेलने/ग्रहण /अंजाम देने-करने के लिए अपने को तैयार कर  रहा है --

लोकतान्त्रिक व्यवस्था के संसदीय प्रणाली की सत्ता में राष्टपति / राष्ट प्रमुख सिर्फ " राज " करता है , "शासन" नहीं ,इसकी भी समझ उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायधीशों को नहीं है ,काफी चिंता जनक स्थिति को बयां करता है । राज्य में राष्टपति लागू किया जाना अवैध है ,तब इसके लिए आलोचना के पात्र संघ/केंद्र सरकार है ,न कि राष्टपति के पद पर आरूढ़ व्यक्ति प्रणव मुखर्जी , राष्टपति कैसे संघ सरकार /मंत्रिमंडल के सलाह/परामर्श को ठुकरा सकते हैं, यदि वह पहली बार अपनी सहमति/हस्ताक्षर देने /करने से इंकार करते हैं ,तब फिर पुन ; उसी सिफारिश को उनके पास सरकार प्रस्तुत करती है ,तब वह हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य हैं ,नहीं किये जाने पर उसे राष्टपति की सहमति मान लिया जाता है । ऐसी संवैधानिक प्रावधानों के तहत कैसे मुखर्जी साहेब इंकार कर सकते थे ? ज्ञातव्य है कि संसदीय सत्ता में मंत्रिमंडल लोक सभा के प्रति उत्तरदायी है , न कि राष्टपति के प्रति ,इसका भी उक्त न्यायालय ने ख्याल नहीं किया । आखिर " वैक्तिव " रूप में राष्टपति प्रणव मुखर्जी से भी गलती हो सकती है ,ऐसी टिप्पणी का क्या तुक ? क्या आपको इन सन्दर्भों में नहीं प्रतीत होता कि पिछले कुछेक अर्से से न्यायपालिका अपनी क्षेत्राधिकार से आगे बढ़कर अनावश्यक विवाद को जन्म दे रही है ? 

देश में आपने अक्सर सुना होगा कि राष्टपति/ राज्यपाल , सरकारों को निश्चित अवधि में विश्वास प्राप्त करने के हिदायत/निर्देश देती रही है । क्या ऐसा कहने के अधिकार उन्हें है ? नहीं, इसका कोई  संवैधानिक मूल्य नहीं है ,इसके बावजूद प्रधान मंत्री/ मुख्य मंत्री उक्त हिदायतों को इसलिए मानने के लिए विवश होते हैं कि " उसमे इतना नैतिक बल " अंतर्निहित है कि उसकी उपेक्षा करना किसी सरकार के लिए असंभव तो नहीं ,लेकिन मुश्किल जरूर होता है ,यह उस स्थिति में ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ,जब संविद सरकार की सत्ता होती है । 

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के चुनाव में कांग्रेस हो या भाजपा ,इन दोनों का मुकाबला तो झामुमो प्रत्याशी डॉ शशि भूषण मेहता से ही होना तय है  अर्थात अबतक के सामाजिक समीकरण में डॉ मेहता ही अन्य उम्मीदवारों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं !

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के  उप चुनाव में भाजपा पास दमदार उम्मीदवार का टोटा है ,तो कांग्रेस के पास दिवंगत विधायक के पुत्र का आसरा है । ऐसी स्थिति में कैसे दोनों झामुमो के डॉ शशिभूषण मेहता से जीत की होड़ कर पाएंगे ? 

मैंने कहा -नहीं ,नहीं  उनने कहा-- ' ऐसे कैसे हो सकता है , आप पहली बार मिले हैं, पी कर ही जाना होगा' मैंने पुन :  कहा-  'फिर कभी मुलाकात में पी लेंगे'  उन्होंने जोर देकर कहा - "कल को किसने देखा है ,आज भेंट हुई है तो आज ही क्यों नहीं ' यह सुनना था कि मुझे आभास हुआ कि 'उनके मन में तूफान चल रहा है ,तभी तो उनके मुख से अनायास वैसी बात निकली'  क्षणभर के लिए मैं सिहर उठा और अबतक मेरे कानों में वो  शब्द गूंज रहे हैं , सोचता हूँ कि  कहीं उनने कोई ऐसा-वैसा कदम न  उठा ले ! 

कूटनीति/चीन सरकार द्वारा घोषित उईगर मुस्लिम  आतंकी ईसा को दिए गए भारतीय वीसा  को सरकार ने रद्द कर दिया है , आपके नजरों में मोदी सरकार का यह कदम कैसा है ?

झारखण्ड/ पांकी विधान सभा के उप चुनाव में झामुमो-कांग्रेस के उम्मीदवार करीब -करीब तय हैं ,फिर भाजपा के प्रत्याशी तय करने में देर का मतलब क्या है ? क्या भाजपा आयातित उम्मीदवार के बल  चुनाव जीतने की कसरत कर रही है ?

झारखण्ड/ गोड्डा में थोड़ा संशय है ,संदेह इसलिए कि वहां उलट-पुलट होते रहे हैं ,लेकिन पांकी में भाजपा की उप चुनाव में हार निश्चित है !  

झारखण्ड/ क्या पांकी विधान सभा क्षेत्र के लोग डालटनगंज की तरह अधकचरे प्रतिनिधित्व को अपनी नुमाइंदगी करना पसंद करेंगे ,जैसा कि दो राष्टीय पार्टियों से युवा लेकिन अनुभवहीन उम्मीदवारों के उप चुनाव में कूदने की बात सामने आई है ।

झारखण्ड/ मेदिनीनगर- शहर में अवांछित तत्वों की दुस्साहस इतनी बढ़ती जा रही है कि उसका एक शिकार होते-होते मैं खुद बचा हूँ । वाक्यां गत रात तक़रीबन दस बजे की है ,हर रोज की भांति मैं जेलहाता निवास से सुदना स्थित अपने आवास की तरफ कदम बढ़ा रहा था ,तभी रेलवे ओवरब्रिज  मध्य पहुँचने पर अचानक बाइक में सवार दो युवक मुझे घेरते हुए स्टेशन जाने  रास्ते पूछने लगे ,जिसे बताते हुए मैंने अपनी चाल तेज़ कर दी । अंकल ,अंकल कहते हुए तभी पीछे बैठा हुआ शख्स उतरा और एक झपटे में मुझे गला दबाने में ताकत झोंक दी ,इस अप्रत्याशित  हमले से खौफ खाकर मैंने अपने बचाव में उसके जबड़े पर कसकर मुक्का दे मारा ,जिससे वह गिर पड़ा , फिर तेज़ आवाज में दौड़ते हुए ब्रिज के नीचे पहुंचा ,लेकिन तबतक दोनों भाग चुके थे ,शोर सुनने पर आस-पास के लोग जमा हुए ,फिर उनको ढूंढने की बात हुई ,खैर ,इस वारदात में मेरे  गर्दन -चेहरे में बदमाश के नाख़ून गड़े , इस तरह की घटना ओवर ब्रिज पर पहले भी कई दफे हो चुकी है इसके बावजूद पुलिस सचेत नहीं रहती ,प्राथमिकी दर्ज़ कराने लिए कदम बढ़ाये ,मगर क्या बगैर प्रत्यक्ष नुक्सान के पुलिस कभी किसी के मामले आजतक दर्ज़ की है ! यह सोचकर मैंने इसकी उपेक्षा कर दी ।  यह हमला तात्कालिक था या फिर सुनियोजित ,इस बारे में  फिलवक्त निश्चित होकर कह नहीं सकता । 

झारखण्ड के पांकी विधान सभा के उप चुनाव में भाजपा द्वारा लाल सूरज को दिए गए टिकट को अगर " प्रतिमान " माने ,तो साफ जाहिर होगा कि यह पार्टी अब दल न होकर " गिरोह " में तब्दील हो गई है ! सूरज कल तक झामुमो के थे । 

कभी - कभी यह जीवन " निस्सार " होने की अनुभूति देती है , न जाने कब ,कौन ,क्या अनहोनी प्रत्यक्षमान  हो जाये ,निश्चित नहीं है ,शायद यह भौतिकवादी प्रवृत्तियों के प्रभावी होने की वजह से है ,या फिर और कुछ ,जिसमे एक लक्षण  "अभिसार" की प्रक्रिया भी है ! 

No comments:

Post a Comment