Friday, 22 April 2016

commentry on political system in india

क्या आपने गौर किया है ? अपने को इस्लामिक देश कहलाने में गौरवान्वित होने वाले दुनिया में ही सर्वाधिक हिंसा होते है !
कूटनीति - भारत के लिए पड़ोसियों में एकमात्र पाकिस्तान सिरदर्द है ,लेकिन प्रतिस्पर्धी चीन तो सभी पड़ोसियों से तीखा मतभेद है , ऐसे में चीन किस भ्रम में है ! वह भारत के विरूद्ध साज़िश रचने में पाक का सहारा लेता है ,मगर भारत उसे घेरने में जापान, ताइवान,वियतनाम ,सिंगापूर ,थाईलैंड ,दक्षिण कोरिया ,मलेशिया या समझें उसके ही पीली नस्ल वाले देशों साथ है ,इसलिए चिन से खौफ खाने की जरूरत नहीं है !

पेयजल/पानी संकट  से निजात पाने  का  एकमात्र उपाय और हल यह कि समुन्द्र में गिरते पानी को नदियों में बांध जहाँ-तहां बनाकर रोक दिया जाय अर्थात भगीरथ प्रयास की जरूरत है । 

आर्थिकी/ विजय माल्या एक नमूना है , आखिर विकास और उससे पैदा होने वाले रोजगार को ध्यान में रखकर सरकार/बैंक कबतक नब्बे फीसदी लोगों के अरमानों को कुचला जाता रहेगा ? जो बड़े कर्जदार हैं ,उनके संपत्तियों /उद्योगों/उपक्रमों को क्यों नहीं ,उनके ही कामगारों के बीच वितरित कर दिया जाता ? देश के टैक्सों से ही तो आखिर धूर्त कारोबारी/ अफसर/नेता/मंत्री वगैरह पलते हैं ,फिर व्यवस्था भी तो लोकतान्त्रिक है ,ऐसे में कठोर कदम उठाने से परहेज कैसा ?

अरस्तु ने कहा - मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है ,मगर हॉब्स ने कहा - नहीं , मनुष्य स्वार्थ से सामाजिक प्राणी है । अब बताइए ,दोनों में कौन सत्य के करीब है ?

मार्क्स ने कहा कि -दुनिया ,पदार्थ अर्थात अर्थ से गतिमान है अर्थात पैसे की ही महत्ता है ,लेकिन हीगल ने बताया कि -नहीं ,व्यक्ति की जीवन शैली में 'विचार' ही वह तत्व है ,जिससे संसार संचरित है । इन दोनों ,दार्शनिकों में किनका कथन सच प्रतीत है ? 

भारतीय राजनीती इतनी घटियापन में उतर गई है कि मत पूछिए , नरेंद्र मोदी से उनके माँ और पत्नी को कोई शिकायत नहीं है ,इसके बावजूद इन दोनों को लेकर विकृत मानसिकता  राजनीतिज्ञ जब-तब आलोचना/ व्यंग्य बाण करते रहते हैं । इनके हवाले से अगर कोई आपत्ति/विरोध  होती ,तब बात समझ में आता ,लेकिन अबतक वैसा कुछ भी सामने नहीं आया है , फिर मोदी की परस्पर रिश्ते को लेकर सार्वजनिक क्षेत्र/ चर्चा में ,हाय-तौबा क्यों ? 


झारखण्ड/ क्या आजसू सचमुच में घोषित स्थानीयता नीति के विरूद्ध है ? इस दल का शीर्ष नेतृत्व राज्य स्थापना काल से 'चिकनी-चुपड़ी' राजनीती करता रहा है ,फिर कैसे सत्ता से अपने को विलग रख सकता है ? याद है आपको , आजसू के चन्द्र प्रकाश चौधरी ,भाजपा विरोधी दल में मंत्री रहे है तो पार्टी प्रमुख सुदेश महतो ,भाजपा के साथ विरोधी बेंच पर बैठते रहे थे !दोगली  राजनीती का यह चेहरा --

पाकिस्तानी हुक्मरान/कूटनीतिज्ञ ,नरेंद्र मोदी को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं ,जितना जल्द पाक ,मोदी के व्यक्तित्व अर्थात प्रवृति  को जान ले ,उतना उसके अस्तित्व के लिए  में बेहतर होगा ,अन्यथा दुनिया से मिटने के लिए तैयार रहे ! अमरीका-चीन कुछ भी पाकिस्तान के काम नहीं आएगा । 

चीन के साथ भारत ने मसूद अजहर को लेकर जिस तरह की विश्व राजनय की नीति अपनाने की रणनीतिक चेष्टा कर रहा ,तय मानिए ,आने वाले समय में संयुक्त राष्ट संघ अप्रसांगिक हो जायेगा ! 

झारखण्ड/ क्या घोषित स्थानीयता नीति को लेकर प्रतिपक्ष रघुबर सरकार के विरुद्ध सशक्त आंदोलन कर पायेगें ?

इस आभासी संसार में भांति- भांति के जीव -जंतु विचरण करते हैं और इसमें कुछेक प्राणी ऐसे भी हैं ,जो इसे दिल से लगा बैठते हैं । इस बारे में आपके क्या ख्याल है ?

क्या आपको ऐसा प्रतीत नहीं होता कि बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार अब भाजपा के मुकाबले में खुद के चेहरे  चमकाने के खातिर अतिरेक भरी राजनितिक चालबाजियों को हवा दे रहे  हैं ! 

कांग्रेस  दोगली चाल देखिये -बंगाल में वामपंथ से नरम रिश्ते रखकर भविष्य की राजनीती के आसरे हैं ,तो केरल में वामपंथियों से खुल्ला विरोध में है !

कूटनीति/ क्या भारत "बाज़ारू माल " हो गया  है, जैसा कि चीन सरकार नियंत्रित अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने कहा है । उसके मुताबिक हमारा देश अमेरिका और चीन को रिझाने के प्रयास में है ,ताकि खुद को सुन्दर नारी(अंतराष्टीय  वधु) की तरह प्रस्तुत करके विकास/रोजगार के निमित्त पूंजी निवेश आकर्षित कर सके ! 

झारखण्ड/ राज्य में सड़कों पर अराजकता देखिए-रोज दुर्घटनाओं में मरने की ख़बरें आती हैं ,मगर सरकार/प्रशासन चेतने को तैयार नहीं , अराजकता का आलम यह है कि दो पहिया हो या चार पहिया या फिर भारी  गाड़ियां ,सभी के रोशनियाँ रोड़ों पर नहीं बल्कि छितराए हुए ऊपर की ओर है  तब लोग मरें नहीं तो क्या करें ? ध्यान रहे ,अधिकांश मार्ग दुर्घटनाओं में अस्सी फीसदी शिकार रौशनी में आँखों के चौंधियाने से होती है !

झारखण्ड/ बोकारो-हजारीबाग में हुए सांप्रदायिक दंगे नियोजित दिखे ,फिर कहां है राज्य का ख़ुफ़िया महकमा ,आखिर यह किस मर्ज़ की दवा है ? सरकार / पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय की निगरानी में यह चूक एक बानगी भर है । पिछले डेढ़ सालों के आपराधिक/उग्रवादिक घटनाओं के तफ़सीलात में जायेंगे ,तब पाएंगे कि नब्बे फीसदी मामले सुनियोजित थे और इसके पूर्व सुचना/ जानकारी स्थानीय पुलिस/ख़ुफ़िया तंत्र को नहीं थी । फिर क्यों मुखबिरी / विशेष पुलिस अधिकारी (spo ) के ऊपर करोड़ों रूपये खर्च करने का क्या मतलब ? क्या इस मद में लूट होने की आशंका नहीं दिखती ?
 जिस देश में ,विशेषकर लोकतान्त्रिक सत्ता में लोग पानी के लिए 'बिलबिलाते' हों ,उस राष्ट में सरकार होने का कोई अर्थ नहीं !

लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सरकारें 'मूल काम' क्यों नहीं करने में दिलचस्पी लेती ? पानी ,बिजली,चिकित्सा और आहार ही तो मुख्य जरुरत राजा भोज से लेकर गंगुआ तेली तक को दरकार रहती है ,फिर भी इसे उच्च प्राथमिकता न देकर 'अय्यासी वाले' कामों में अभिरुचि लेती सत्ता नजर आती है ,ताकि उसमे ऊपरी आमद अर्थात कमीशन प्राप्त किया जा सके ! 

नरेंद्र मोदी बार -बार जोर देकर कहते हैं कि २१ वीं सदी भारत की होगी । इसके निहितार्थ अगर आप समझते हैं ,तब सोचिये जनाब ! इस शब्दावली के क्या तात्पर्य हो सकते हैं ?

झारखण्ड/ क्या आपने एक बार भी मुख्य मंत्री रघुबर दास को  मुख्य सचिव/पुलिस महानिदेशक से किसी आपत्तिजनक मामले/घटनाओं के बारे में जवाब -तलब करते देखा/पूछते पाया है ?

पी चिदबरम्ब क्या बोलेंगे इशरत जहाँ मामले में , यह वही शख्स है न ,जिसने केंद्रीय गृह मंत्री रहते मुसलमानों की तरफदारी करते हुए 'भगवा आतंकवाद' शब्द को गढ़ा था !
उत्तराखंड मामले में उच्च अदालत ने केंद्र सरकार/भाजपा को ऐसी चपत लगाई है कि मत पूछिए , संसदीय प्रणाली की सत्ता में जब राज्यपाल् ने विश्वास मत की तारीख तय कर दी थी ,तब उसके बीच में ही राष्टपति शासन थोपने की क्या जरूरत थी ? , लोग लोक-लाज और संवैधानिक स्थितियों का इतनी सतही  जानकारी  भाजपा के लीडरान को है ,यह मुझे नहीं मालूम था !
देश में अब वामपंथ की राजनीती के दिन लदने लगे हैं ! यद्धपि वाम दलों के पास बेहतरीन नेताओं की जमावड़ा है ,लेकिन दिक्कत है कि प्राय सारे  के सारे जन जुड़ाव से "वैक्तिव " रूप में कट चुके हैं और रही -सही कसर पूंजी पर आधारित राजनीती ने इनको राष्टीय स्तर पर अप्रासंगिक बना दिया है --
मुख्य मंत्री रघुबर दास के लिए गोड्डा-पांकी विधान सभा के उप चुनाव अग्नि-परीक्षा है ! क्या वह भाजपाई अंतर्विरोधों से उबर कर सरकार के डेढ़ सालों में किये गए कामों को लेकर उक्त चुनाव में अपनी सार्थकता सिद्ध कर पाएंगे ?

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