Friday, 17 June 2022

सियासत का मोहरा बना अधिवक्ता संघ

 ■इंदर सिंह नामधारी का डुगडुगी ड्रामा खत्म■ ❗

  जैसी की चर्चा है, इंदर सिंह नामधारी आज पूर्व घोषित धरना पलामू जिला न्यायाधीश के सामने नहीं देंगे, यह फैसला कल शाम उन्होंने अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रामदेव प्रसाद यादव के हवाले से की है, जिसमें बताया गया कि, जिस उद्देश्य के लिए उन्होंने "धरना" दिए जाने की बात कही गई है, उसकी पूर्ति हो गयी है अर्थात महिला अधिवक्ता सुष्मिता तिवारी एवं उसके सैनिक पति के संग हुई हिंसक संघर्ष को लेकर दर्ज मामले में आरोपी पक्ष को अदालत में पैरवी के लिए वकील मिल गया है ।

      सवाल है कि, अधिवक्ता संघ का अपने सदस्य के साथ हुई हिंसक हमले को लेकर क्या निर्णय था? इसे कभी संघ ने सार्वजनिक तौर पर बताया नहीं, बल्कि टुकड़े-टुकड़े में, मतलब परस्पर बातचीत में ही बताया जाता रहा कि, अधिवक्ताओं से अपील की गई कि, आरोपी पक्ष से कोई सदस्य न्यायालय में खङा नहीं होगा ।

         फिर, नामधारी जैसे " वजनदार " नेता बगैर सोचे-समझे कैसे   भूमि विवाद को लेकर हुए  संघर्ष में अभियुक्त बनाए गये लोगों के तरफ से ' सस्ती लोकप्रियता ' अर्जित करने के ध्येय से कूद गये, यह जानते हुए कि, जब किसी आरोपी/अभियुक्त के लिए पैरवीकार वकील उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में अदालत स्वयं उनके लिए अधिवक्ता निशुल्क उपलब्ध करवाती है ।

           दूसरी तरफ, नामधारी का धरना अधिवक्ता संघ के विरुद्ध घोषित नहीं था, उन्होंने न्यायधीश के समक्ष धरना दिए जाने की बात उद्घोषित की थी, फिर संघ के अध्यक्ष रामदेव प्रसाद यादव कैसे अधिवक्ता मंडली की बात/निर्णय को उनसे साझा किए, जैसा कि, पूर्व विधानसभाध्यक्ष नामधारी ने खुलेआम यादव के नाम को प्रचारित-प्रसारित करते हुए कहा है कि, " अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष ने उन्हें सूचित किया है ।"

      दरअसल, पूरा मामला टुच्ची राजनीति एवं सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के परिप्रेक्ष्य में है, जिसके झांसे में आम लोगों को प्रभावित करने की कोशिश है अर्थात अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर सुविचारित, सुनियोजित है, ताकि मतदाताओं के एक बङे जमात को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके और इस खेल में नामधारी का कोई सानी नहीं,,, आखिर उन्होंने एक प्रबुद्ध हित समूह के मुखिया रामदेव को एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करने में कामयाब जो हो गये ⁉️

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