Wednesday, 31 August 2011

इन्दर सिंह नामधारी के चेहरे को देखिये

                                                                         एसके सहाय                                                                                                                                            सांसद इन्दर सिंह नामधारी को ओमपुरी - किरण बेदी के कहे शब्द काफी बुरे लगे हैं इसलिए इनके खिलाफ विशेषाधिकार का नोटिस दिए जाने को उचित मानते हुए कहते हैं कि सांसदों कि सरेआम तौहीन करना संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में  उनके मर्यादा के विरूद्ध है इनको दंडित किया ही जाना चाहिए |वह रे नामधारी ,लगता है मर्यादा ,नैतिकता ,सत्य निष्ठां ,सचरित्र्ता के तीर उनके ही तरकश में है और किसी के पास यह नहीं है | अब यहाँ इनकी ब्लेकमेलिंग और कायरपन का झलक दिखा दिया जाय तो कैसा रहेगा ? खैर  छोडिये इन सब बातों को ----,   
 फिर भी दो कारनामे यहाँ इनके देना मौजूं है - पहला यह कि झारखण्ड में विधान सभा के अध्यक्ष रहते अपनी ही सरकार के विरूद्ध इन्होने साजिश की,यह उस वक्त की बात है ,जब बाबूलाल मरांडी मुख्य मंत्री थे ,यह षड्यंत्र जब उजागर हुआ ,तब छ: माह के लिए अपने मुंह सिल लिए थे ,इनके कारनामों की तब इनके ही तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव और पार्टी के वरिष्ठ नेता रवि राय ने इनके क़दमों की तीखी आलोचना की थी याने चारों तरफ से थू -थू इनकी हुई थी ,इस फजीहत के बाद काफी दिनों तक इनके मुंह पर ताले लटके रहे और जाकब मुंह खोला तो बड़ी मासूमियत से कहा " आखिर में भी तो राजनितिक प्राणी हूँ ,सो मुख्य मंत्री की लालसा किसे नहीं होती "
                                          यह है नामधारी का दिलचस्प बातें और कारनामें | अब इनकी डरपोकपन को देखिये -यह वाक्यां मुख्य मंत्री अर्जुन मुंडा के विरूद्ध लाये जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव से है ,तब विपक्ष ने पहली बार एकजुट होकर तत्कालीन मंत्रिमंडल में शामिल कथित निर्दलीय मंत्रियों    के सहयोग    से मुंडा को पदच्युत  करने  की रणनीति  बनाई  थे और नामधारी सरकार को लगातार  विश्वास  दिलाते  रहे कि उनिकी  सरकार को कोई  खतरा  नहीं  है ,वह इनके बागी  मंत्रियों  को डाल  -बदल  अधिनियम  के तहत  अयोग्य  करार  देंगे  |इसके  लिए नामधारी ने लगातार सिंह गर्जना करते हुए  तारीख  डर  तारीख  सुनवाई  के  तहत  अदालत  लगाते  रहे लेकिन  जब फैसले  देने  की  घडी  आई  तो मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए | इन्होने बारह  घंटे  पूर्व  अपना  इस्तीफा  विधान  सभाध्यक्ष  के पद  से देकर  मुंडा को बता  दिया कि "निर्णय  देने  के जोखिम   वह नहीं उठा  सकते  "  ये वही मंत्री हैं ,जो अब मधु कोड़ा के साथ जेल में चक्की पीस रहे है |
                              यही है नामधारी  का असली चेहरा ,जो बातें तो बड़ी गोल-गोल करते  है और अपनी पर जब बन आये , तब एहसास होता है की दर्द कैसा होता है | ठीक यही बयान किया है ,इन्होने एक टीवी चैनल को दिए बयान में ,जिसमे इनको "विशेषाधिकार ही लोकतंत्र में सुरक्षा  कवच नज़र आता है ,यह दिखता ही नहीं कि -- भारत के संविधान के प्रस्तावना में ही पहली पक्तिं कि शुरूआत -" हम भारत के लोग" से होती है ,जिसकी झलक अभी -अभी देशवासियों ने देखा है और अगर इनके नज़र टेढ़ी हो गई ,तब क्या होगा ,कह पाना मुश्किल होगा | यह तो गनीमत समझिये कि अन्ना हजारे का भूख हड़ताल लंबा नहीं खीचा और इतफाक से यह लंबा होता ,तब  भीड़ की क्या मानसिकता होती है ,यह तो देहली देखता और पूरी दुनिया इसकी गवाह होती | आखिर पक्ष -विपक्ष ने इसे "भीड़ " ही घोषित करके वाजिब लोकतान्त्रिक मांग को बारह दिन तक टालते रहे थे | फ़िलहाल  इतना ही ------
 
     

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