एसके सहाय
संयुक्त राज्य अमरीका का सबसे बड़ा मुजरिम ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद स्वाभाविक प्रतिक्रिया में अहिंसक जगत में ,खास कर एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले राष्ट -राज्य में ख़ुशी की लहर है ,लेकिन यह हर्ष कितने दिनों तक बरकरार रहेगा ,इसमें संदेह है ,यह शक इसलिए पैदा हुआ है कि "दुनिया को कोई भी बलशाली कितना बड़ा क्यों न हो , वह संगठित शक्ति याने राज्य शक्ति के आगे बोना ही है और ओसामा बोना ही था , जिसे मार कर बहुत बड़ा तमगा पा लेने की कल्पना यदि अमरीका एवं पश्चिम
जगत कर रहा है तो यह ख़ुशी उनके लिए क्षणिक ही है
.
इन बातों को समझने के लिए आपको "व्यक्ति और राज्य शक्ति के बीच के भेद को जानना होगा ,तभी यहाँ लिखी शब्दों के अर्थ आप समझ सकेंगे . सबसे पहले तो यह अनुभूत करें की जब 9/11 हुआ था ,तब लादेन कि शक्तियों का बखान इस तरीके से तब किया गया कि वह सचमुच पाशविक शक्तियों में अत्यधिक बलशाली है ,मतलब कि जो दुनिया के सबसे ताकतवर देश में अपने खूंखार वारदातों को अंजाम दे सकता है ,वह वाकई में काफी मजबूत शक्ति का स्वामी है , न जाने किस - किस तरह कि बातें तब फिजां में तैरती नजर आई .इससे काफी कुछ भ्रम भी विश्व में फैले ,जो सच्चाई से कोसों दूर तब भी थे और आज भी है .
पहले तो यह जानिए कि ओसामा कोई राज्य नहीं था ,यह मुठ्ठी भर के धर्मांध लोगों का जनूनी शक्तियों का गिरोह का नेतृत्व कर्त्ता था ,जिसमे इस्लाम एक बहाना था अपनी निजी शक्ति के विस्तार करने के लिए , ऐसे में सिर -फिरे लोगो कि सम्मिलित ताकत इसे बल दे गई तो उसे नायकत्व प्रदान उन हलको में कर दिया जो , किसी भी सूरत में इस्लाम से इत्तर कुछ भी सोचने को तैयार नहीं होते ,जो प्राय : हर क्षेत्र - देश दुनिया में मिल ही जाया करते हैं .इसमें जो ध्यान देने लायक बात यह कि ,ओसामा को आखिर इतने दिन तक कौन टिकाये रखा ,यह किसी देश के सरक्षण में ही हो सकता है ,इससे अलग नहीं ,ऐसे में पाकिस्तान का नाम स्वाभाविक तौर पर सामने है ,जो आज भी चिल्ला कर कह रहा है :उसकी व्यवस्था में आतंकवादियों -अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है ,उनके यहाँ कानून कि सत्ता है ,इसलिए किसी भी आतंकवादी को पनाह देने का सवाल ही नहीं उठता है " ऐसा खुद वहां के स्वराष्ट मंत्री रहमान कई दफे कह चुके हैं . लेकिन बात जमती नहीं .
बहरहाल , ओसामा बिन लादेन यदि दस सालों तक दुनिया की आखों में धुल झोकने में सफल रहा तो वह इसलिए की उसके सिर पर राज्य शक्ति का वरदहस्त था ,जिसका नाम पाकिस्तान है ,भले ही अमरीका या इसके पिछलग्गू देश इसे khuleaam स्वीकार करने से हिचकें .
साधारण सी बात है - समाज का उन्नत रूप ही राज्य -राष्ट का होता है ,भारत , अमरीका पाकिस्तान जैसे ही राष्ट कम - अधिक मात्रा में अलग - अलग स्वरूपों में पूरे दुनिया में "सह अस्तित्व " के तौर पर स्थापित हैं , ऐसे में एक आतंकी कैसे इतने दिनों तक अपने को बचा सकता है ,जब विश्व की तमाम पुलिस उसकी तोह में भिड़े हों , जिसमें खुद उसके आका अर्थात पाकिस्तान भी शामिल हो ,साफ है की "बिना राज्य शक्ति के कोई भी ताकतवर प्राणी लंबे काल तक अपने को नहीं छिपा सकता "
ऐसे में लादेन के 9.11 के पश्चात गुमनाम तरीके से रह कर आतंकी कारवाई को अंजाम दिए जाने की बात पचती नहीं , इसलिए अमरीका के बढ़ते दबाव में पाक सरकार झुक कर भविष्य को ध्यान में अपने को सुरक्षित करने की कोशिश की है ,तब ताज्जुब नहीं कर्म चाहिए , आखिर पाकिस्तान एक वैध सत्ता ही तो है ,जिससे एक राज्य की तरह ही कूटनीति गत तरीके से व्यवहार किए जाते रहें हैं , ऐसे में अमरीका हो या अन्य कोई देश के सरक्षण के बिना कोई भी आतंकी ज्यादा समय तक अपने को दुनिया से छिपा कर नहीं रह सकता .
ऊपर लिखित बातों को यदि आप नहीं समझ पायें तो एक उदाहरण से इसे समझने की चेष्टा करें , एक थानेदार को अमूमन अपने इलाके की पल -पल ki जानकारी होती है ,यदि सूचना मिलने में देर है ,तब समझें की वह जन बुझ कर नौटंकी कर रहा है या
नाकाबिल है या वह अपराध जगत से उपरी कमाई करने की जुगत में है , और यदि वह ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने शुरू कर दे तब , उस क्षेत्र में कोई भी अपराधी लंबे समय तक नहीं शरण ले सकता और यदि वह है तो साफ मानिये की उसकी अपनी कमजोरियां हैं ,जिससे वह अपनी डयूटी नहीं कर रहा है ,जिसमें रिश्वत , जातिगत मामले या एक के लिए दूसरे को छुट देने की विवशता जैसे अपनी -लाभ -हानि के विराग काम करते हैं , लेकिन अगर यह ठान ले की उसके इलाके में अपराध या अन्य कोई गैर क़ानूनी काम नहीं हो तो क्या कोई उसे ऐसा करने से रोक सकता है ,कदापि नहीं , व्यावहारिक तौर पर देखें तो मालूम होगा की उसे तबादले झेलने होंगे ,वह भी अन्य के हितों के लिए .यह एक मामूली सी एक पुलिस अधिकारी का रूख हो सकता है .
अतएव लादेन जब 10 वर्षों से टिका रहा ,तो साफ है कि उसके पीछे राज्य शक्ति का ही हाथ है ,इसके इत्तर कुछ भीं नहीं , लादेन की उपयोगिता पाकिस्तान के लिए ख़त्म हुई तब इसे पाक ने ठिकाने लगा दिया अमरीका के हाथों , इसमें आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है , जिस जगह पर लादेन के मारे जाने कि बात हो रही है ,क्या उसके बारे में पाक सरकार या सेना या इसके ख़ुफ़िया तंत्र को वाकई में कोई जानकारी नहीं थी ?ऐसा हो ही नहीं सकता ,पाक अब भी लगातार झूठ पर झूठ बोले जा रहा है और भारत सिर्फ अपने ऊपर हुए आतंकी हमले की बात कर रहा है .ऐसे में यदि फिर कोई बड़ी हिंसक घटना होती है तब भी कोई आश्चर्य नहीं .
पूरे विश्व के आपसी रिश्ते कूटनीति से या दौत्य सबंध से परिचालित होते हैं ,जैसे अमरीका और भारत या इससे स्वभाव वाले राज्य केवल कुटनीतिक तरीके से रिश्ते बनाते और बिगड़ते है लेकिन भारत -नेपाल ,पाकिस्तान श्रीलंका बंगला देश, Bhutan या अन्य से रिश्ते का आधा r "दौत्य " ही है ,जिसमे हर वक्त कूटनीति ही प्रभावी नहीं होती ,यदि इसे समझ लेन तो फिर लादेन का मामला भी आसानी से समझ सकते है अन्यथा नहीं .
अब जब लादेन मारा जा चुक्का है तो , आने वाले दिनों में और अधिक सावधानियां बरतने की जरूरत hai .यह तो स्पष्ट हो चुक्का है कि एक राज्य भी आधिकारिक रूप में अपराधी -आतंकवादी को शरण - सरक्षण दे सकता है ,ऐसे में अस्थिरता का दौर जारी रहे और मार - काट होती रहे ,यही आज संसार कि मुख्य त्रासदी है ,जिसके चपेट में भारत लगातार आजादी से जूझता आ रहा है और अमरीका व् पशिचम देश तो हल में उसके चपेट में आये है ,फिर वह क्या जाने की 'अराजक स्थिति में आतंकवाद का दर्द कैसा होता है किसी व्यवस्थागत देश में जहाँ कानून की सत्ता सिर्फ दिखावे भर की होती है और आम नागरिक घूंट कर रहने को विवश होता है "
यहाँ एक बात और जरूरी है ,वह यह की लादेन की दुनिया के ख़त्म होने का भ्रम विश्व नहीं पाले , अब छोटे -छोटे समूहों में उससे भी अधिक खतरनाक आतंकवादी गिरोह पाकिस्तान अफगानिस्तान जैसे दुनिया में विचर रहे है ,जो मौका मिलते ही अपनी ताकत का अहसास कराने से नहीं चुकेंगे और इसके पीछे भी कोई राज्य की शक्ति निहित हो तो उसे अब कुटनीतिक तरीको से हल करने की सोचना बेवकूफी भरा ही होगा ,इसलिए सख्ती का इल्म ही शांति का बड़ा स्रोत हो सकती है ,जिसे अमरीका ने लादेन के परिप्रेक्ष्य में दिखा दिया है ,जिसे सबक के तौर पर भारत जितना जल्द ग्रहण कर ले उतने ही हितकर होगा .
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